खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर दुनिया जहान के आरोप प्रत्यारोप राजनितिक दलों द्वारा एक दुसरे पर लगाया जा रहा है ,
अभी तक सो रहे थे क्या ९ साल क्या किया ।
चुनावों के समय इसकी याद क्यों आई ।
ये खाद्य सुरक्षा बिल नहीं वोट सुरक्षा बिल है
ये गेम चेंजर योजना का एक और गेम है ।
इस गेम के बल पर हम २०१४ क्या १९ का भी चुनाव जित जायेंगे ।
अध्यादेश क्यों लाया जा रहा है ।
संसद में बहस क्यों नहीं हो रही है ।
विरोधी संसद चलने नहीं दे रहे है ।
आदि आदि न जाने कितने ही आरोपों को आप सुना चुके होंगे , यहाँ मै राजनितिक दलों के आरोपों की नहीं बल्कि आप आदमी की बात करने वाली हूँ । इसमे कोई दो राय नहीं है की जब देश में लोग भूख से मर रहे हो बच्चे कुपोषित हो तो ये सरकारों की जिम्मेदारी बनती है की वो इसे रोके और कम से कम लोगो को भूख से मरने जैसी हालातो को बदले । जब देश में अनाजो का इतना भण्डार है की वो खुले में पड़े सड रहे है तो उन्हें गरीबो को दे देने में कोई बुराई नहीं है और ये एक अच्छी योजना है । एक अच्छी योजना होने के बाद भी मै इस बिल का विरोध करती हूँ और मुझे इसका विरोध करने का हक़ भी है , क्योकि इस योजना को लागु करने के लिए सरकार ने कोई भी अन्य आय के साधनों को ईजाद नहीं किया है , न तो यहाँ कोयला खदानों , और न ही २ जी ३ जी स्पैक्ट्रम को बेच कर मिले पैसे से और न ही विदेशो और देश से मिले काले धन से और न ही अपने नीजि खर्चो में कटौती करके इस योजना को चलाने वाली है , ये योजना उन्ही पैसो से चलेगी जो हम और आप टैक्स के रूप में सरकार को देते है ताकि वो हमें सुविधा दे सके , जो हमें मिलती नहीं है । इस लिहाज से जब कोई योजना हमारे दिए पैसो से चल रही है , तो हम देखे की उस योजना का क्रियान्वयन ठीक से हो और योजना अपने काम में सफल हो ।
पीछे मुड़ कर देखे तो हमारे देश में भुखमरी और कुपोषण होना ही नहीं चाहिए था , सरकार मनरेगा योजना ( वो भी हमारे ही पैसो से चलता है ) के तहत गरीबो को साल में सौ दिन रोजगार की गारंटी देती है उसके बाद भी गरीब भूख से मर रहे है क्यों , बच्चो को स्कुलो में एक समय का मुफ्त खाना मिलता है मिड डे मिल के तहत , उसके बाद भी बच्चे कुपोषित है क्यों , आगनवाड़ी के तहत गर्भवती महिलाओ को भी खाने के लिए पैसे मिलते है फिर भी कुपोषित बच्चो का जन्म और कुपोषित माँ है और जच्चे और बच्चो की मौत का आकडा कम नहीं हो रहा है क्यों , साफ है की योजनाओ को ठीक से लागु नहीं किया जा रहा है , सारा पैसा भ्रष्टाचार की भेट चढ़ रहा है । इस बात को खुद नेता मंत्री भी जानते है और मानते है, राजीव ने भी कहा की १ रु निचे आते आते १५ पैसा बन जाता है और दो दशक के बाद उनका बेटा कहता है की १ रु निचे आते आते १० पैसा बन जाता है , दो दशको में ५ पैसा और भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गया , समस्या को माना तो गया किन्तु उसे ठीक करने का, व्यवस्था को सुधारने का कोई भी काम नहीं किया गया । यहा कांग्रेस हाय हाय का नारा लगाने की जरुरत नहीं है पिछले दो दशको में देश में हर पार्टी ने राज किया है किसे ने भी इस काम को नहीं किया है, सभी के राज में एक एक पैसे का भ्रष्टाचार बढ़ा ही है और इसे बढाने में सभी ने बराबर का योगदान दिया है इसलिए यहाँ मै "सरकारे या सरकारों " लिखे रही हूँ और दोष किसी एक का नहीं पूरी राजनीतिक व्यवस्था का है ।
दूसरी समस्या है राशन के वितरण की , सरकारी राशन वितरण की जो व्यवस्था हमारे पास पहले से है वो दुनिया के सबसे बेकार और भ्रष्ट व्यवस्था में से एक है जो पहले की योजनाओ को ही ठीक से नहीं चला रहा है । सरकारी राशन की दुकानों पर आने वाला ज्यादातर राशन खुले बाजार में बेच दिया जाता है , आम गरीब लोगो तक उसकी पहुँच नहीं हो पाती है, तो भूख से मर रहे लोगो तक उसकी पहुँच कैसे होगी । नहीं मै आप के मोहल्ले के राशन क दूकान की बात नहीं कर रही हूँ , वहा कोई भुखमरी का शिकार नहीं हो रहा है , मै उन सुदूर गांवो आदिवासी इलाको की बात कर रही हूँ जहा सरकारी राशन की दूकान वाला माई बाप जैसे व्यवहार करता है , छोटे शहरों में तो फिर भी लोग लड़ झगड़ कर दबाव बना कर अपनी जरुरत का राशन सस्ते में सरकारी राशन की दुकानो से ले लेते है , किन्तु ये सब कुछ छोटे छोटे गांवो में आदिवासी इलाको में नहीं हो पाता है , वो पूरी तरह से उस व्यक्ति के दया पर निर्भर होते है जिसके हाथ में अनाज वितरण का काम होता है । बिना पुरानी सड़ चुकी व्यवस्था को ठीक किये आप भूखो तक खाना कैसे पहुंचा पाएंगे ।
अभी तक सो रहे थे क्या ९ साल क्या किया ।
चुनावों के समय इसकी याद क्यों आई ।
ये खाद्य सुरक्षा बिल नहीं वोट सुरक्षा बिल है
ये गेम चेंजर योजना का एक और गेम है ।
इस गेम के बल पर हम २०१४ क्या १९ का भी चुनाव जित जायेंगे ।
अध्यादेश क्यों लाया जा रहा है ।
संसद में बहस क्यों नहीं हो रही है ।
विरोधी संसद चलने नहीं दे रहे है ।
आदि आदि न जाने कितने ही आरोपों को आप सुना चुके होंगे , यहाँ मै राजनितिक दलों के आरोपों की नहीं बल्कि आप आदमी की बात करने वाली हूँ । इसमे कोई दो राय नहीं है की जब देश में लोग भूख से मर रहे हो बच्चे कुपोषित हो तो ये सरकारों की जिम्मेदारी बनती है की वो इसे रोके और कम से कम लोगो को भूख से मरने जैसी हालातो को बदले । जब देश में अनाजो का इतना भण्डार है की वो खुले में पड़े सड रहे है तो उन्हें गरीबो को दे देने में कोई बुराई नहीं है और ये एक अच्छी योजना है । एक अच्छी योजना होने के बाद भी मै इस बिल का विरोध करती हूँ और मुझे इसका विरोध करने का हक़ भी है , क्योकि इस योजना को लागु करने के लिए सरकार ने कोई भी अन्य आय के साधनों को ईजाद नहीं किया है , न तो यहाँ कोयला खदानों , और न ही २ जी ३ जी स्पैक्ट्रम को बेच कर मिले पैसे से और न ही विदेशो और देश से मिले काले धन से और न ही अपने नीजि खर्चो में कटौती करके इस योजना को चलाने वाली है , ये योजना उन्ही पैसो से चलेगी जो हम और आप टैक्स के रूप में सरकार को देते है ताकि वो हमें सुविधा दे सके , जो हमें मिलती नहीं है । इस लिहाज से जब कोई योजना हमारे दिए पैसो से चल रही है , तो हम देखे की उस योजना का क्रियान्वयन ठीक से हो और योजना अपने काम में सफल हो ।
पीछे मुड़ कर देखे तो हमारे देश में भुखमरी और कुपोषण होना ही नहीं चाहिए था , सरकार मनरेगा योजना ( वो भी हमारे ही पैसो से चलता है ) के तहत गरीबो को साल में सौ दिन रोजगार की गारंटी देती है उसके बाद भी गरीब भूख से मर रहे है क्यों , बच्चो को स्कुलो में एक समय का मुफ्त खाना मिलता है मिड डे मिल के तहत , उसके बाद भी बच्चे कुपोषित है क्यों , आगनवाड़ी के तहत गर्भवती महिलाओ को भी खाने के लिए पैसे मिलते है फिर भी कुपोषित बच्चो का जन्म और कुपोषित माँ है और जच्चे और बच्चो की मौत का आकडा कम नहीं हो रहा है क्यों , साफ है की योजनाओ को ठीक से लागु नहीं किया जा रहा है , सारा पैसा भ्रष्टाचार की भेट चढ़ रहा है । इस बात को खुद नेता मंत्री भी जानते है और मानते है, राजीव ने भी कहा की १ रु निचे आते आते १५ पैसा बन जाता है और दो दशक के बाद उनका बेटा कहता है की १ रु निचे आते आते १० पैसा बन जाता है , दो दशको में ५ पैसा और भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गया , समस्या को माना तो गया किन्तु उसे ठीक करने का, व्यवस्था को सुधारने का कोई भी काम नहीं किया गया । यहा कांग्रेस हाय हाय का नारा लगाने की जरुरत नहीं है पिछले दो दशको में देश में हर पार्टी ने राज किया है किसे ने भी इस काम को नहीं किया है, सभी के राज में एक एक पैसे का भ्रष्टाचार बढ़ा ही है और इसे बढाने में सभी ने बराबर का योगदान दिया है इसलिए यहाँ मै "सरकारे या सरकारों " लिखे रही हूँ और दोष किसी एक का नहीं पूरी राजनीतिक व्यवस्था का है ।
दूसरी समस्या है राशन के वितरण की , सरकारी राशन वितरण की जो व्यवस्था हमारे पास पहले से है वो दुनिया के सबसे बेकार और भ्रष्ट व्यवस्था में से एक है जो पहले की योजनाओ को ही ठीक से नहीं चला रहा है । सरकारी राशन की दुकानों पर आने वाला ज्यादातर राशन खुले बाजार में बेच दिया जाता है , आम गरीब लोगो तक उसकी पहुँच नहीं हो पाती है, तो भूख से मर रहे लोगो तक उसकी पहुँच कैसे होगी । नहीं मै आप के मोहल्ले के राशन क दूकान की बात नहीं कर रही हूँ , वहा कोई भुखमरी का शिकार नहीं हो रहा है , मै उन सुदूर गांवो आदिवासी इलाको की बात कर रही हूँ जहा सरकारी राशन की दूकान वाला माई बाप जैसे व्यवहार करता है , छोटे शहरों में तो फिर भी लोग लड़ झगड़ कर दबाव बना कर अपनी जरुरत का राशन सस्ते में सरकारी राशन की दुकानो से ले लेते है , किन्तु ये सब कुछ छोटे छोटे गांवो में आदिवासी इलाको में नहीं हो पाता है , वो पूरी तरह से उस व्यक्ति के दया पर निर्भर होते है जिसके हाथ में अनाज वितरण का काम होता है । बिना पुरानी सड़ चुकी व्यवस्था को ठीक किये आप भूखो तक खाना कैसे पहुंचा पाएंगे ।
तीसरा मुद्दा है की लोगो का चयन कैसे होगा , ये कैसे तय होगा की किन लोगो को इसके तहत अनाज दिया जाये , जिस आधार कार्ड की बात आप कर रहे है , उस तक भिखारियों , सड़क पर रहने वाले , खानाबदोशो , अनाथ बेघरो , और दूर बिहड़ो में बसे गांवो और जंगलो में रह रहे आदिवासियों की पहुँच नहीं है , उन्हें तो ये भी पता नहीं होता की सरकारों की कोई ऐसी योजनाए है , वो उसका फायदा उठा सकते है , आधार कार्ड जैसी भी की चीज है , ये बनता कहा है और इसके लिए जरुरी कागजात कहा से लाये । सड़क पर भीख मांगने वाले और घूम घूम कर बंजारों की तरह रहने वाले कहा से कैसे और किस आधार पर अपना आधार कार्ड बनवायेगा । यहाँ भी भ्रष्टाचार व्याप्त है , बी पी एल कार्ड हो या मनरेगा का जॉब कार्ड हो इस तरह के सभी कार्ड धड़ल्ले से गलत लोगो के बनाये जाते है , या जिनके पास अधिकार होता है वो खुद झूठे कार्ड बनवा कर उसके फायदे खुद लेता है । यही कारण है की सही लोगो तक सरकारी मदद नहीं पहुंच पाती है और हर रोज एक नए योजना का निर्माण किरना पड़ता है किन्तु हालत नहीं बदलते है ।
२००९ से सरकार इस पर काम कर रही है बात कर रही है किन्तु आभी तक कुछ जरुरी मुद्दों पर उसने ध्यान ही नहीं दिया जो इस योजना को ठीक से और चलाते रहने के लिए जरुरी था , सबसे पहले की इस योजना को चलाने के लिए पैसे कहा से आयेंगे अभी तो पैसे आवंटित कर दिए गए किन्तु ये कब तक चलेंगे उसके बाद इस योजना के लिए कोई आय का साधन निर्धारित नहीं किया गया है , नतीजा कुछ साल बाद पता चले की बढ़ता बजट घाटा , सरकारी खर्चो में कटौती , सब्सिडी में कटौती आदि आदि के नाम पर सबसे पहले इस तरह को योजनाओ को ही बंद कर दिया जाये , अनाज आज भी गोदामों के न होने के कारण खुले में सड़ रहा है , उस आनाज को बचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की , इस तरह की योजनाओ को चलाने के लिए आनाज का उत्पादन भी बढ़ना चाहिए उसके लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है , फिर वही होगा की विदेशो से महंगे दामो में सड़े हुए अनाज दुनिया में ब्लैकलिस्टेड हो चुके कंपनियों से मंगा कर एक और घोटालो की योजना है , ये सब नहीं किया क्यों की पहले ही मन बना लिया है की ये सब चुनावों तक रहेगा फिर इस व्यवस्था को भी कैश पैसे देने में बदल दिया जाएगा , ये लो कैश पैसा अब इससे खाना खाओ या दारू में उडाओ हमें क्या , पैसा कैश लो और वोट हमें दो , और यही कारण है की संसद का सत्र सामने होने के बाद भी अध्यादेश लाया जा रहा है ताकि इस योजना को बाद में कैश के रूप में बदलने के प्रावधानों को संसद में बदला न जा सके । भला हो कुछ टीवी कार्यक्रमों का जिससे हम आम लोगो को पता चलता है की हो क्या रहा है , कल बताया गया की यदि इस बिल को संसद में रख कर बहस कराया गया तो इस बिल में संसोधन की मांग हो सकती है और सरकार को मजबूरी में उसमे संसोधन करना पड़ सकता है ताकि बिल पास हो सके किन्तु यदि वो अध्यादेश लाती है और उसके बाद संसद में इस पर बहस करा कर पास करती है तब इस बिल में कोई भी संसोधन नहीं हो सकता है उसे वैसे ही पास करना होगा , और सरकार नहीं चाहती है की बाद में इस योजना को अनाज के बदले कैश देने की बात को बदला जाये, क्योकि उसे भूखो को खाना देने में कोई रूचि नहीं है वो बस किसी भी तरह इसे लागु कर वोट बैंक अपनी तरफ करना चाहती है । सरकारों का मतलब वोट तक है, होना भी चाहिए वो सारे काम ही वोट के लिए करते है , राजनितिक दल है तो राजनीति ही करंगे इसमे कोई बुराई नहीं है किन्तु जिन पैसो से आज अनाज खरीद कर गरीबो को दिया जाएगा ओर भविष्य में जो पैसे कैश दिए जायेंगे , वो हमारी मेहनत के होंगे हमारे दिए टैक्स के पैसे के होंगे इसलिए माननीय नेतागढ़ आप लोगो की इस योजना को ठीक से लागू करने की इच्छाशक्ति न होने के कारण मै इस योजना का विरोध करती हूँ और साफ मना करती हूँ की मेरे पैसो को एक और भ्रष्टाचार की भेट न चढ़ाये , जिस दिन लोगो को भूख से न मरने देने की इच्छाशक्ति आ जाएगी और सच में जमीनी रूप से योजना को ठीक से लागू करनी की सोच आ जाएगी उस दिन के लिए हमारे पैसे आप के पास सुरक्षित पड़े रहे तो ही अच्छा ।
चलते चलते
क्या सरकारे, क्या नेता क्या आम लोग जब पैसो की बात आती है तो सभी एक हो कर उसे लुटने में लग जाते है , गरीबो के लिए मदद के नाम पर आम लोगो ने भी धंधा चला रखा है की अब तो एक पैसा भी दान देने की इच्छा नहीं होती है । केदारनाथ त्रासदी के बाद साधुओ ने मंदिर लुटा , आम खच्चर वालो और स्थानीय लोगो ने यात्रियों को लुटा, वहा व्यवस्था करने के नाम पर सरकारी अधिकारी पहले ही सरकारी खजाना लुट चुके थे , त्रासदी के बाद नेता ने प्रचार लुटा , फिर राहत के नाम पर सरकारी खजानों की लुट शुरू हुई और आगे और होती रहेगी , किन्तु इसमे भी आम लोग पीछे नहीं रहे , अभी फेसबुक पर कुछ लोग सामने आये है जिन्होंने बाकायदा एयरफोर्स का लोगो लगा कर आम लोगो से दान देने की गुजारिश कर दी बाकायदा एकाउंट नंबर भी दिये गए , सेना की शिकायत पर उस पेज को बंद कर दिया गया जल्द वो पकडे भी जायेंगे , एक बेटा पकड़ा गया जिसके पिता ७ साल से गायब दे और उसने कहा की हाल में केदारनाथ से गायब हुए , , इतने दिनों बाद इलाहबाद में एक एक कर गंगा से १५ लोगो के शव मिलने की खबर आ रही है जिसके लिए दावा किया जा रहा है की वो केदारनाथ से बह कर आये है , अभी और न जाने कितने जिन्दा लोगो और कितने पहले से मरे लोगो के केदारनाथ से गायब होने की खबरे आएँगी , और कुछ "बदनशीब" बैठ कर घरो में मातम मना रहे है की उन्होंने भी अपने माता पिता को चार धाम की यात्रा पर केदारनाथ ...............
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पहले ही .क्यों नहीं भेज दिया ।
सरकार की सारी योजनाएं सिर्फ़ उसके चेले चमचों की जेब भरने की कवायद मात्र है इससे ज्यादा कुछ नही. मनरेगा, आंगनबाडी व अन्य योजनाओं का क्या हाल है और उनकी हकीकत क्या है यह भी सब जानते हैं. बहुत सटीक लिखा आपने.
ReplyDeleteचुनाव जीतने के लिये सारी नौटंकियां चालू हैं.
रामराम.
और इस सब नौटंकी के लिए पैसे हमारे खर्चे जा रहे है ।
Deleteचलते चलते:-
ReplyDeleteइसका असर अब रोज दिखाई देने लगा है. इस तरह की बेईमानी की वजह से ही वास्तविक पीडित लोगों को सही समय पर मदद मिलने में दिक्कते आयेंगी.
रामराम.
होता ये है की गलत लोग आसानी से घुस खिला कर मुआवजा ले जाते है और सही लोगो को सही साबित करने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है ।
DeleteYanha sarkar nahi aam aadmi hi bhrast hain... kya aap kya hum sub mai bhrastachar hain to kaha se dur hoga bhrastachar....
ReplyDeleteसब खुद सुधरने लगे तो हो जाएगा ।
Deleteएकदम सही कहा आपने। नरेगा, मनरेगा आदि कितनी ही योजनाओं का भ्रष्टाचार आज हमारे सामने है. बहुत सारी ऐसी कल्याणकारी योजनायें चलती भी अक्सर किसी राजनीतिज्ञ के नाम से ही हैं, जिनमे पैसा करदाताओं से ही वसूल किया जाता है और फिर आम गरीब आदमी के नाम पर लूट के नए आयाम चुने जाते है।
ReplyDeleteपहले की योजनाओ की समीक्षा और उनकी समस्याओ को सुधार कर उन्हें ही ठीक से लागू करने की जगह नई योजना ला दी जाती है ।
Deleteकिसी की मदद करते सौ बार सोचना पड़ता है कि सही व्यक्ति को सहायता पहुँच रही है या नहीं .लूट का कोई न कोई तरीका इजाद हो जाता है .
ReplyDeleteकहाँ जाकर रुकेगा यह सब !!
मदद के लिए तो हाथ ही नहीं बढ़ते है , पता है प्रधानमंत्री राहत कोष के पैसे कहा जाने है :(
Deleteसुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि policy के नाम पर tax payer का पैसा यूं वोटों के हथकंडों पर खर्च करने से बचाने के लिए कड़े प्रावधान हों
ReplyDeleteलीजिये कोर्ट ने तो आप की सुन ली अब राजनितिक दल अपने मेनोफेस्टो में कुछ भी मुफ्त में देने की घोषणा नहीं कर पाएंगे ,कोर्ट ने आदेश दिया है । उम्मीद तो है की ये लागु हो पायेगा ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नहीं रहे कंप्यूटर माउस के जनक डग एंजेलबर्ट - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद ।
Deleteबेशक जो भी योजना आती है, उसमे बड़े सारे गडबडझाले हों... पर फिर भी एक आम भारतीय के हिसाब से सोचें तो गरीबों के लिए कुछ तो होना ही चाहिए... फिर हर योजना से कुछ न कुछ तो फायदा हुआ ही होगा... ऐसा सोच कर देखें तो ???
ReplyDeleteमैंने भी वही कहा है की योजना में कोई खराबी नहीं है खराबी उसे लागू करने की सोच में है , जितना गरीबो का भला नहीं होता है उससे ज्यादा तो इन नेताओ का भला होता है , जरुरतमंदो के पास मदद पहुंचे तो किसी को बुरा नहीं लगता है गुस्सा तो तब आता है की गरीबो के नाम पर नेता और दुसरे फायदा उठाते है वो भी हमारे पैसे से ।
Deleteअब तो लगता है कि इस देश का भगवान ही मालिक है। यहां हर बात वोट बैंक के लिए होती है। कभी भी देशहित में नहीं सोचा जाता।
ReplyDeleteहा भगवान के ही भरोसे ही ये देश चल रहा है :(
Deleteआप की चिंता जायज़ है, इस पर भी अगर यह योजना एक साल पहले या एक साल बाद लाई जाती तो मैं भी समर्थन करता... मगर अभी तो वोट के बदले कैश जैसा मामला लग रहा गई...
ReplyDeleteरोटियों को लेकर भी यहाँ राजनीती ही हो सकती है ..... ऐसा खेल हर बार खेला जाता है इसीलिए योजनायें न तो साठ बरसों में कुछ कर पायीं और न ही आगे कर पाएंगीं
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteइस समस्या का शायद कोई हाल है ही नहीं क्यूंकि आजकल जहां तक राजनीतिक व्यवस्था की बात है तो वहाँ ईमानदार वही है जिसे आज तक बेईमानी करने का मौका नहीं मिला। तो योजनाएँ सही ढंग से लागू हों कैसे...
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