मुम्बई में स्कूलों में बच्चो को मेहंदी,नेल कलर , बिंदी , टिका आदि फैशन वाली चीजे लगाना मना है । कुछ लोग बाज नहीं आते और बच्चो में मेहंदी लगा देते है नतीजा बच्चो को भुगतान पड़ता है । कुछ मम्मियां इस पर भिनभिनाती रहती है और मुझे समझ नहीं आता की किसी शादी में बच्चो ने मेहंदी न लगाया तो उससे उनके उत्साह में क्या कमी आ जायेगी । आम लोगो की सुरक्षा के लिए कोई नियम बनता है जाँच पड़ताल होती है तो सबसे ज्यादा आम लोग ही उस पर चिल्ल पो मचा देते है । अरे मॉल में पर्स चेक कर रहे है जैसे उसमे बम हो , जाँच से क्या होगा , कोई पर्स बम ले कर आयेगा क्या । सबको पता है की दो पहिया वाहन चलाते समय हेलमेट लगाना है , जैसे ही चेकिंग शुरू होती है लोग बोलना शुरू कर देते है , कमाई के लिए खड़े है , टारगेट मिला है , बेवजह परेशान कर रहे है, जल्दी है , जाम लगा है । यहाँ तक की शौचालय बनाने और शहर साफ करने जैसे मुद्दों के खिलाफ भी लोग बोलने लगते है । सभी को रातभर डांडिया करना है , शादियों में नाचना है तेज आवाज में संगीत बजा कर , रात १० -११ बजे सब बंद का नियम आजादी के खिलाफ है ।
असल में तो लोगो को नियम मानने अनुशासन में रहने से परेशानी है । जैसे ही कोई नियम बनता है लोग आपत्तियां उठाना शुरू कर देते है , और कई बार इसमे सबसे आगे वो होते है जिनका उस नियम से कोई मतलब ही नहीं होता है । खबर आई सरकार ने कुछ पॉर्न साईट पर बैन लगा दिया , लो जी सभी को कुछ भी देखने की आजादी याद आ गई उसका विरोध ऐसा शुरू हुआ जैसे की पढाई करने पर रोक लगा दी गई है । विरोध करने वाले से पूछा भाई दिन में कितनी बार पॉर्न देखते है , नहीं नहीं हम नहीं देखते है ये सब , जब नहीं देखते है तो विरोध क्यों कर रहे है , जो देखते है उनकी तो आजादी के खिलाफ है ना । हे प्रभु जिस चीज को लोग देखते है किन्तु उसको स्वीकार करने को तैयार नहीं है , हिम्मत नहीं है उस पर किसी भी तरह का बैन इन्हें स्वीकार नहीं , जबकि उन्हें ये भी नहीं पता की सारे पॉर्न साईट पर बैन नहीं हुआ था , सिर्फ उन पर हुआ था जिन पर बच्चो के पॉर्न वीडियो थे , वो भी कोर्ट के कहने पर , वरना ये सारे मुद्दे तो हमारी सरकारों के लिस्ट में कही आती ही नहीं ।
आजादी के नाम पर असल में हम अनुशासित होने से डरते है , आजादी का मतलब हमारे लिए ये है कि हम जो चाहे करे और हमें कोई न रोके , लेकिन जैसे ही किसी और की घूमती छड़ी हमारे नाक पर लगती है हमें सारे नियम कानून अनुशासन याद आ जाता है इस देश में तो कोई नियम कानून ही नहीं है , कोई देखने वाला ही नहीं है , किसी को पड़ी ही नहीं है । अब राष्ट्रगान का मामला ले लीजिये , कोर्ट ने जैसे ही सिनेमा में राष्ट्रगान बजने की बात की सबसे पहले याद आये विकलांग , वो कैसे खड़े होंगे , बेचारे विकलांग । सामान्य स्कुल में पढने , रोजगार के समान अवसर , सार्वजनिक इमारतों को विकलांगो के लायक बनाने जैसे अपने अधिकारों के लिए वो कितना लड़े आंदोलन किया कोई उनके साथ न आया , आज सिनेमा हॉल में ५२ सेकेण्ड वो कैसे खड़े रहेंगे इसके लिए अचानक सभी को उनकी याद आ गई । कोई बीमार हुआ तो वो कैसे खड़ा रहेगा , वो बेचारा बीमार तीन घंटे बैठ कर फिल्म देख सकता है बस , हमारी देखने की सुनने की आजादी का क्या हमें नहीं सुनना है तो मत जाइये सिनेमा हॉल , कोई जबरजस्ती नहीं है । किसी भी संस्थान, जगह स्कुल कॉलेज का जो नियम है उसके तहत ही आप वहां रहा सकते है तो रहिये वरना मना कर दीजिये । हम अपने बच्चो को मदरसों, गुरुकुलो में नहीं भेजते , हमें नहीं पसंद वहां ही शिक्षा व्यवस्था , आप भी मत जाइये जहाँ के नियम कानून आप को पसंद नहीं ।
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