बिटियां सातवीं मे थी जब उनकी पाॅकेट मनी शुरू किया । बड़े अरमान कि चलो अब पैसा बचाना खर्चना मैनेज करना सीखेंगी । लेकिन कुल अरमानो पर उनके पापा जी ने पानी फेर दिया ।
पापा जी जब नीचे कुछ लेने जाते या ऑफिस से आते फोन करते तो फर्माइश कर देतीं पापा मेरे लिए ये ले आना वो ले आना । हम कहते पाॅकेट मनी मिली है उससे ले आओ , तो कहतीं पापा ले आओ मै पैसे दे दूंगी । अब आप लोग ही अंदाजा लगा लो कि पापा चॉकलेट चिप्स ला कर उनसे पैसे लेतें ।
बचा खुचा एक साल बाद लाॅकडाउन ले बिता । ना बाहर जाना आना ना बाहर का खाना पीना । सब ऑनलाइन आ रहा था तो उनके जरुरत का सामान भी हम मंगा देते । पैसे तो उनके सारे बस दोस्तो को गिफ्ट मे खर्च होते । लाॅकडाउन के बाद भी पापा ना सुधरे ना बिटियां पैसे मैनेज करना सीखी ।
पापा की परी का कुछ अलग ही मतलब ये आजकल के पापा लोग निकालते है । जब वैन से स्कूल जाती थी तब उनका बैग नुक्कड़ तक पापा उठा कर ले जाते थे । हम चिल्लाते नौवी मे आ गयी तुम क्यो बैग उठा रहे हो उसको लेकर जाने दो । लेकिन मेरी कौन सुनता है ।
लगभग सब पापा लोगो की यही हालत है । रोज सुबह देखते है बेटा छोटा है तो बैग मम्मी पापा लेते बस स्टाॅप तक लेकिन बड़े होते बेटे अपना बैग खुद उठाना शुरू कर देते । लेकिन बेटियां बड़ी हो गयी है पर स्कूल बैग पापा लोग ले जा रहे है ।
सातवीं तक तो पापा जी उन्हे जुते मोजे तक पहनाते थे । रोज सुबह उठने मे नाटक करती और देर होने लगती स्कूल के लिए। वो नाश्ता कर रही होती मै बाल बना रही होती तो बोलती पापा जूते पहना दो नही तो वैन छूट जायेगी ।
हमारे लाख मना करने के बाद भी कि तुम ऐसे ही करते रहे तो ये जिम्मेदार कैसे बनेगी सीखेगी कैसे । लेकिन पापा जी लोगो को इससे मतलब ही क्या है । नतीजा बिटियां उलटा पापा को बोलती पापा पहना दो नही तो तुम्हे ही स्कूल तक छोड़ने जाना होगा। अब स्कूल पापा छोड़ने जाते है और बिल्डिंग के नीचे तक भी बैग पापा ले जाते है । हमारी कोई ना सुनता ना समझता ।
अभी दशहरे को एक पड़ोसी अपने बेटे के साथ मिलकर उसकी नयी बुलट धो चमका रहे थे । दशहरे पर अपनी गाड़ी साफ कर उस पर माला चढ़ाने का रिवाज है यहां । तभी पतिदेव ने दिखाया देखो चौथी मंजिल वाले की बेटी ने जाॅब शुरू किया है तो उसके पापा ने स्कूटी दिलाया है लेकिन वो स्कूटी पिता जी अकेले धो रहे थे ।
हमने कहा ये क्या बात हुयी जब बेटा अपना बुलेट साफ कर रहा है तो बेटी स्कूटी साफ करने क्यो नही आयी । ये सच है कि अपनी कार साफ करने हम कभी नही गये लेकिन स्कूटी साफ करने पानी लेकर हमी जाते और ये भी देखते कि लोग मुझे ऐसा करता देख अजीब नजर से देख रहें ।
पापा की परी का मतलब बेटी को सपोर्ट करना होना चाहिए उसका बैसाखी बन अपाहिज ना बनाइये । जब स्कूटी या कोई भी गाड़ी दिला रहे है तो उससे जुड़ी जिम्मेदारी भी उसे दिजिए और उससे जुड़ी जानकारी भी । ताकि कोई छोटी मोटी समस्या आने पर उसे ठीक कर सके कोई डिसीजन ले सके ना कि मदद के लिए दूसरो का मुंह ताके।
इतने सालो से अपनी कार हो या स्कूटी सर्विस सेंटर लेकर गयी पर रेयरली ही कोई लड़की महिला वहां आती थी । स्कूटी का तो कितनी ही बार रंग देख समझ आ जाता लड़की या महिला की है पर लेकर पुरुष आया है । कई बार लोग फोन करके पुछते है कि और क्या क्या समस्या बताया था ।
ऐसी ऐसी महिलाओ लड़कियो से मीली हूं जिन्हे अपनी कार मे ईधन खत्म होने का इन्डीकेटर समझ नही आया या किक करके स्कूटी स्टार्ट कैसे करना है ये पता नही होता । टायर बदलना तो बहुत दूर की बात है ।
हमारा पालन पोषण एक मातृसत्तात्मक परिवार मे हुआ है । जहां हम लोगो को राजकुमारियों की तरह नजाकत से कतई ना पाला गया । बेटियां लक्ष्मी होती उनसे पैर नही छुआते जैसे चोचले हमारे घर कभी हुए नही । पैर छुना बड़ो के अभीवादन का तरिका है तो बेटी वो क्यो नही करेगी ।
जब पितृसत्ता मे बेटे नाजुक नही मजबूत बनाये जाते है आगे के संघर्ष, नेतृत्व के लिए तैयार किये जाते है । तो मातृ सत्ता वाले परिवार मे भी हम बेटियां को शुरू से जिम्मेदार और मजबूत बनाया गया । हम लोग अपने अंदर बाहर के काम के लिए कभी घर के पुरूषो पर निर्भर ना रहे । यहां तक कि भारी सामान को उठाने के लिए भी हम लोग कभी भाई लोगो का मुंह ना देखते ।
किसी के चिढ़ाने , टांग खिचने , गिरने पर रोना ना शुरू करते बल्कि मुंह तोड़ जवाब देते । कोई लड़का परेशान कर रहा जैसी समस्याएं हम लोगो को कभी घर लेकर आने की जरूरत ना पड़ी । पढ़ाई क्या करना है कैरियर क्या चुनना से जुड़ी काम खुद ही किये । पापा लोगो को तो ये भी पता नही होता कि हम लोग किस क्लास मे है ।
पर आजकल के नये नये पापा लोग परी बना बना बिटिया लोगो का भविष्य ही डांवाडोल कर रहे है । यही हर जरूरी अनुभव जिम्मेदारी से दूर रहने वाली बेटिया अकेले पढ़ने जाॅब करने जायेगी तो परेशान होगीं या गलत निर्णय लेती जायेगी । कैरियर मे भी और जीवन मे भी ।
तो ऐसा है पापा जी लोग्स अपनी अपनी परियों को बचपन से ही कल के गलाकाट प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किजिए। किसी ट्रोलिंग का जवाब देने लायक मजबूत बनाइये । मुसीबतों और असफलताओं से लड़ना सिखाइये। सही निर्णय लेना जिम्मेदारी उठाना सिखाइएये । योद्धा बनाइये नाजुक सी परी ना बनाइये ।
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