रोज मजदूरी करने वाले मज़दूर के पास साक्षरता अभियान वाले आते है और उससे कहते है की तुम निरक्षर हो हम तुमको साक्षर बनायेगे बस तुमको रोज एक घंटे हमसे आ कर पढ़ना पड़ेगा, मज़दूर थोड़ा नाराज़ हो कर बोला साक्षर हो कर मुझे क्या फायदा होगा, उसके गुस्से को देख कर अभियान वाले थोड़ा सकपका गये बोले अरे भाई साक्षर हो जाओगे तो तुमको काफी फायदा होगा तुम सब कुछ पढ़ सकोगे अपना नाम लिख सकोगे कोई तुम्हारे साथ धोखा नहीं कर सकता यदि ठेकेदार तुमसे ज्यादा पैसे पर अंगूठा लगवा कर तुमको कम पैसे दे रहा है तो तुमको पता चल जायेगा कोई तुम्हारा शोषण नहीं कर सकता | इतना सुनते ही मज़दूर हत्थे से उखड गया और बोला हा हमको पता है सारे फायदे साक्षर होने के दो दिन पहले ऐसा ही एक साक्षर मज़दूर हमारे साथ काम कर रहा था शाम को काम खत्म होने के बाद ठेकेदार ने उसे दो सौ पचास पर नाम लिखवा कर दो सौ रुपया देने लगा तो उसने लेने से मना कर दिया और ठेकेदार से झगड़ा करने लगा की मेरे पूरे पैसे दो नहीं तो मैं शिकायत करूँगा यह सुन कर ठेकेदार ने उसे जम कर पीटा और नौकरी से भी निकाल दिया बेवकूफ़ फिर पुलिस के पास चला गया वहा भी पुलिस वालो ने रिपोर्ट तो नहीं लिखे उलटा दो तमाचे लगा कर भगा दिया | पिटाई से बे हाल दो दिन से घर पर पड़ा है और बच्चे भूखे रो रहे है, जी खूब फायदा मिला उसे अपने साक्षर होने का हमारा भी दिमाग ख़राब करके चला गया आज तक तो मैं समझता था की ठेकेदार हमारे दस रूपये मारता है उसे तू मैं भगवान को भोग लगाया सोच कर भूल जाता था पर जब से पता चला है की वो हमारे रोज के पचास रूपये मारता है तब से हमारा सुख चैन और नींद सब ग़ायब हो गई है अब लगता है की काश हमें ये पता ही नहीं होता की हमारे कितने पैसे जा रहे है कम से कम आराम से सो तो रहे थे अब तो वो भी चली गई आग लगे ऐसी साक्षरता को |
बिलकुल सटीक
ReplyDeleteसच की धरती बहुत गर्म होती है .....पैर जलने लगते हैं
ये कहानी सच में मेंगो पीपल (आम आदमी) की सच्चाई बयान कर रही है
इस रचना के लिए धन्यवाद
its very true !!!!!
ReplyDeleteभूखे पेट भजन नहीं हो सकता...
ReplyDeleteआपकी चिंता जायज है।
ReplyDelete………….
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
बड़े-बड़े ब्लॉगर छक गये इस बार।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसही कहा आपने।
ReplyDeleteमैं यहाँ आपसे सहमत नहीं हो पाया ... यहाँ गलती साक्षरता की नहीं है ... उस गलत व्यवस्था की है जिसका शिकार वो गरीब है ... एक साक्षर मार खाया ... यहीं अगर मान लीजिए हर कोई साक्षर होता, जागरूक होता .... तो शायद मार मजदूर नहीं ठेकेदार खाता ...
ReplyDeleteक्या इस वाकया से हम यही कहेंगे कि बस किसीको साक्षर नहीं होना चाहिए ?
सैल जी
ReplyDeleteयहाँ भी बात व्यवस्था की खामी कि ही की जा रही है कि केवल साक्षर बना देने से शोषण नहीं रुकेगा जैसा कि हम आप और सरकार सोचती है यदि ऐसा होता तो किसी पढ़े लिखे का कभी शोषण होता ही नहीं पर क्या वास्तव में ऐसा है | यदि उस साक्षर मजदुर की शिकायत पर पुलिस कार्यवाही करती तो न केवल आगे ऐसा शोषण होना रुकता बल्कि लोग खुद आगे आ कर पढ़ना लिखना सिखते उन्हें उसमे फायदा नजर आता | मतलब की पहले देश की व्यवस्था सुधारिए फिर कोई दूसरा काम कीजिए तभी उसका फायदा हम सभी को मिलेगा |
अब इतने साल बाद ये तो सबको समझ आ गया है कि साक्षरता के साथ जागरुकता भी बढ़ानी होगी। जागरुकता औऱ हक की आवाज जब उठेगी तो एक निरक्षर भी व्यवस्था को बदलने की ताकत रखता है। निरक्षर को साक्षर बनाने के साथ जागरुक करना आवश्यक है। निरक्षर भी कई बार साक्षरों से ज्यादा समझदार होता है। तो जरुरत है दोनो स्तर पर एकसाथ काम करने की।
ReplyDeleteअगर ठेकेदारों का शोषण रोकने की जुगत की जाए तो उसपर लागत भी कम आएगी और बेचारा मज़दूर भी साक्षरता का इस्तेमाल मेहनताने से इतर मुद्दों के लिए कर सकेगा।
ReplyDeleteagree with u! 100%
ReplyDeletehttp://liberalflorence.blogspot.com/