दीवाली के बाद का दिन मेरे लिए अच्छा नहीं गया | दीवाली के दूसरे दिन मेरी भाई और साथ आ रही मेरी फुफेरी बहन एक सड़क दुर्घटना के शिकार हो गये | एक सड़क दुर्घटना और उससे जुड़ी देश की चार व्यवस्थाए किस तरह की अव्यवस्था स्थापित करती है कि इसे शायद हमारे देश की व्यवस्था सिस्टम कहने के बजाये देश की अव्यवस्था कहे तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि यदि ये हमारी व्यवस्था है तो अव्यवस्था फिर किसे कहेंगे |
देश की अव्यवस्था नंबर दो है हमारे सरकारी अस्पताल और वहा के डाक्टर | दोनों को दुर्घटना के बाद कुछ लोगों ने तुरंत ही उन्हें सरकारी अस्पताल पहुँचाया | दोनों को जब सरकारी अस्पताल में लाया जाता है और उसके बीस मिनट बाद मेरे घरवाले वहा पहुँचाते है तब तक उस नरक के यमदूत उनका इलाज ( अस्पताल और डाक्टर कहना तो दोनों शब्दों को अपमानित करना होगा ) तो छोडिये उन्हें कोई प्राथमिक उपचार देने के बजाये दो बेहोश बच्चों से हिला हिला कर उनके नाम पूछने की कोशिश कर रहे थे | मुझे मालूम नहीं था की किसी घायल के इलाज करने में उसका नाम इतना सहायक होता है कि उसके जाने बिना उपचार संभव ही नहीं था या ये कहु की शायद नाम से इलाज की क्वालिटी निर्धारित होने वाली थी | इंतजार किया जा रहा था की कोई घर से आये कागजी कार्यवाही पूरी करे तब इलाज करने का एहसान उन पर किया जाये | घरवालों के आने के बाद भी जो मेरे बुआ फूफा थे से पहले फार्म भरने के लिए कहा गया बच्चों का इलाज तब भी शुरू नहीं हुआ और कुछ मिनटों बाद जब वहा मेरी छोटी बहन पहुंची तो स्वाभाविक रूप से पूरा दृश्य देख कर गुस्सा आने लगा और उसने डॉक्टरों पर चिल्लाना शुरू कर दिया तो उसे कमरे से बाहर कर दिया गया | मैं पहले से जानती थी की सरकारी डॉक्टरों की आये दिन पिटाई क्यों होती है उस दिन उसे मेरे घरवालों ने उसे झेल भी लिया | मेरी छोटी बहन की जगह मेरा भाई होता या पापा तो उस दिन भी अपने इस महान काम के लिए कुछ और सरकारी डाक्टर पिट गये होते | उस समय उन दोनों को वहा से नहीं ले जाया जा सकता था जब तक की सभी को उनकी स्थिति के बारे में ठीक से ना पता चल जाये | जैसे ही वहा के डॉक्टरों ने अपना इलाज ख़त्म करके कहा की दोनों बिलकुल खतरे से बाहर है | बुआ की सहेली जो डाक्टर थी सारी रिपोर्ट देख कर बोली इन्हें हम आराम से प्राइवेट अस्पताल में ले जा सकते है तुरंत ही उन्हें एम्बुलेंस में डाल कर प्राइवेट अस्पताल की ओर रुख किया गया लेकिन उसके पहले सरकारी डॉक्टरों से ये लिखवाना पड़ा कि दोनों घायल फिट एन फ़ाइन है | निजी अस्पताल को फोन पहले ही कर दिया गया था सबके पहुचने के पहले ही दरवाज़े पर ही डाक्टर वार्ड ब्वाय नर्स स्ट्रेचर के साथ मौजूद थे | उन्हें संभाल कर अस्पताल के अंदर ले गए लेकिन वहा पहले ही दस हजार रूपये एडवांस जमा करा लिए गये | उससे कोई परेशानी तो नहीं हुई, उस समय तो अच्छे से अच्छ इलाज चाहिए था चाहे वो जितने भी पैसे मांग लेते हम देने के लिए तैयार थे | लेकिन एक बात लगी की जिसके पास पैसा है वो यहाँ आ कर अपनी जान बचाये नहीं तो मरे उसी सरकारी अस्पताल के नरक में | मर गया तो उसकी बदकिस्मती बच गया तो उसकी खुशकिस्मती वरना सरकारी डाक्टर तो अपनी तरफ से हर संभव कोशिश कर देते है |
तीसरा नंबर है पुलिस अव्यवस्था का जी हा सदा आप के साथ वाली दिल्ली पुलिस उसने आते ही सबसे पहले उन लोगों को ही पकड़ा जो मेरे भाई बहन को ले कर वहा आये थे और लगा उनसे इस तरह पूछ ताछ करने कि जैसे उन्होंने ही दुर्घटना की हो फिर जिस दूसरी तरफ उसकी नजर गई वो थी मेरे भाई बहन की आयु और उनके बीच का रिश्ता भाई २६ साल का था और बहन ने अभी पिछले महीने ही अपना १८ वा जन्मदिन मनाया था | उम्र से भले दोनों बालिग थे पर दिल ओर दिमाग से दोनों का बचपना गया नहीं था | उसे बताया गया की दोनों फुफेरे भाई बहन है जिसको उसने मनाने से इंकार कर दिया चुकी मेरे मम्मी पापा और एक बहन उस समय बनारस आये हुए थे तो उस समय वहा हम सब में सबसे छोटी हमारी बहन ही मौजूद थी | लोगों को समझ नहीं आया की वो किस बात पर सक कर रहा था वो सड़क दुर्घटना थी और उन दोनों को अनजान लोग अस्पताल ले कर आये थे और वहा सारी कहानी बताने के लिए मौजूद थे | वो वही नहीं रुका जब मेरे घरवाले दोनों को लेकर प्राइवेट अस्पताल जाने लगे तो उसने साफ मना कर दिया की आप लोग नहीं जा सकते क्योंकि पहले मैं उन दोनों का बयान लूँगा | हमारी आंटी जो खुद डाक्टर थी ने जब उसे बताया की बच्चे तो अभी भी बेहोशी की हालत में है वो कोई बातचीत करने के हालत में नहीं है तो वो माना ही नहीं और अपनी जिप ला कर एम्बुलेंस के सामने खड़ा कर दिया और कहने लगा की सरकारी डाक्टर ने उन्हें फिट एन फ़ाइन घोषित किया है तो उन्हें बयान देना ही होगा | उसे समझाया गया की ये तो हमने ही लिखवाया है ताकि हम उसे किसी दूसरे निजी अस्पताल में ले जा सके वो साथ चल सकता है या फिर सभी के घर का पता नोट कर ले और घर पर आ सकता है पर वो मनाने को तैयार ही नहीं था | अब डाक्टर आंटी उससे झगड़ पड़ी कि जब मैं डाक्टर हुआ और मैं कह रही हुं की दोनों बच्चे इस हालत में नहीं है की बयान दर्ज करा सके तो आप क्यों नहीं मनाते | अंत में जमानत के तौर पर एक दूसरे आंटी के बेटे को उसके साथ वही छोड़ा गया तब उसने जाने की इजाज़त दी | चलिये मेरे भाई की हालत बहुत ज्यादा गंभीर नहीं थी लेकिन यही पर यदि कोई और मरीज़ होता जिसकी स्थित काफी गंभीर होती तो इतनी देर में तो उसकी जान पर ही बन आती | पर इन सभी को इससे क्या मतलब है
चौथी अव्यवस्था वो है जिसे हमारे देश में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है जी हा मीडिया इन सब के बीच वो कैसे पीछे रह सकता था | वो भी हॉस्पिटल के दरवाज़े पर मिल गया और शुरू हो गया अपने सवाल जवाब करने स्ट्रेचर पर जा रहे मेरे भाई बहन से | एक तो मेरी छोटी बहन पहले से ही एकदम डरी हुई थी और वो तो समझ ही नहीं पा रही थी की वो कहा है और क्यों है और दोनों के दोनों दिमागी तौर पर हिले हुए थे | बीच बीच में जब होश में आ रहे थे तो उलटी सीधी हरकते करने लग रहे थे क्योंकि उनका दिमाग उस समय ठीक से काम ही नहीं कर रहा था | पर हमारे मीडिया वालो को क्या माइक घुसाए जा रहे थे दोनों के मुहँ में की क्या हुआ कैसे हुआ | मेरे बुआ के लड़के ने उसे मना किया पर वो सुनने के तैयार ही नहीं था माइक और कैमरा लेकर चालू रहे | जबकि उसे मालूम था की की तीन दिनों तक न्यूज़ चैनलों पर नाश्ते खाने में ओबामा ही मिलने वाले है उसके उस रिपोर्ट का कुछ नहीं होने वाला फिर भी वो लगे रहे | उसे भी मेरे फुफेरे भाई ने धक्के मार कर भगाया |
और अब नंबर आता है इस पूरी दुर्घटना की पहली कड़ी पहली अव्यवस्था वो है हम और आप आम आदमी | जी हा वो आम आदमी जो सड़क पर होने वाली ऐसी हर दुर्घटना का मुख्य कारण है उसकी लापरवाही और ट्रैफिक के नियम ना मानने की उसकी आदत | जहा मेरे भाई की बाइक से दुर्घटना हुई उस जगह पर सड़क पर बने डीवाईडर को तोड़ कर एक यूटर्न लोगों द्वारा बना दिया गया था उसकी दो वजह थी एक तो सामने से एक पतली सी सड़क आ रही थी और उधर से आने वाले को सड़क के उस पार जाने के लिए पूरा सिग्नल पर जा कर टर्न ना लेना पड़े या दूसरे वजह ये भी हो सकती है कि उस गली के बगल में एक पेट्रोल पंप था और वहा आने वाले को पंप तक आने का सीधा रास्ता मिले किसी गाड़ी को दूर चौराहे तक जा कर मुड़ कर आने कि जरुरत ना पड़े | बदकिस्मती से मेरा भाई उसी यूटर्न के सामने से गुजार रहा था और एक ट्राली जो पानी का टैंकर ले कर जाती है यू टर्न लेते समय उसे टक्कर मार दी | एक आम लापरवाही जो सभी करते है वो लापरवाही मेरे भाई की तरफ से भी थी पीछे बैठी मेरी बहन ने हेलमेट नहीं लगाया था जो थोड़ी चोट उसके सर में लगी वो हेलमेट ना पहनने के कारण उसे लगी जबकि मेरे भाई को गंभीर चोट लगने से उसी हेलमेट ने बचा ली उसके हेलमेट के तीन टुकड़े हो गये थे पर उसे सर में कोई चोट नहीं आई | ये अच्छी किस्मत थी की टक्कर लगते ही दोनों बाइक से उछल कर दूर जा गिरे वरना बाइक तो ट्राली के पहिये के नीचे पड़ी थी और उसकी बहुत बुरी हालत हो चुकी थी |
यदि हम सभी ट्रैफिक के नियमों को ठीक से माने तो शायद सड़क दुर्घटनाएँ आधी हो जाये पर हम सभी को सारी जल्दी सड़क पर आने के बाद ही होती है | हर कोई शार्ट कट मारने में लगा होता है हम क्यों नहीं समझ पाते की ये नियम हमारी सुरक्षा के लिए है फिर अपनी ही सुरक्षा से खिलवाड़ क्यों | इस तरह की हरकते करके हम अपने थोड़े से फायदे के लिए कितने लोगों के जान से खेलने लगते है | गलत यू टर्न हो या गलत स्पीड ब्रेकर पूरे देश में इसको लेकर ट्रैफिक पुलिस की तरफ से भी कोई गंभीरता नहीं दिखाई जाती है |
देश की इन अव्यवस्थाओ को देख कर क्या लगता है की वास्तव में ये व्यवस्था कहलाने के लायक है | असल में इन्हें जिस काम के लिए बनाया गया है ये वही नहीं करती है | इन्हें लोगों की मदद सेवा और सहायता के लिए बनाया गया है पर ये तो लोगों को परेशान करने उन्हें मुसीबत में डालने का काम करती है आम आदमी को और असहाय बना देती है | क्या हम कभी भी इन अव्यवस्थाओ को वापस देश की व्यवस्था में बदल पाएंगे | मुझे तो कोई उम्मीद नहीं दिखती है |
अंशुमाला जी ! यही हमारा दुर्भाग्य है कि इस व्यवस्था के बीच ही हमें अपना जीवन जीना है .एकदम सही तस्वीर खींची है आपने. दुःख होता है बहुत, और आश्चर्य भी. कि क्या ये व्यवस्था में मौजूद लोगों का अपना परिवार नहीं होता ? क्या कभी ये यह नहीं सोचते कि कभी इनके अपने भी इसी कुव्यवस्था के शिकार होंगे.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति के लिए साधुवाद .
ReplyDeleteग्राम-चौपाल - कम्प्यूटर में हाईटेक पटाखे
गनीमत इस बात की है कि अब दोनों खतरे से बाहर हैं।
ReplyDeleteअव्यवस्थाओं के बारे में मेरा मानना है कि हम सब इसके लिये बराबर के जिम्मेदार हैं। नियम तोड़ना यहाँ शान की बात समझी जाती है, शायद हम अभी भी डंडे के ही यार हैं। बिना भय के प्रीत नहीं करते, चालान के डर से बेशक हैलमेट मेहन लेंगे, लेकिन सेफ़ एरिया(चालान के हिसाब से) आते ही पहला काम हेलमेट उतारना होता है।
किस किस को टोकिये,
ReplyDeleteकिस किस को समझाइये,
वो नहीं समझने वाले,
ये बात बेहतर,
आप ही समझ जाइए ....
ईमानदारी से देखा जाए तो ज्यादातर कागज़ी लगने वाली कार्यवाही का भी मकसद कायदे वाला ही होता है, बेवजह तो नहीं मानी जा सकती वो, बाकी रहीं इंसानियत की बात, तो वो तो किसी को सिखाना मुश्किल ही है... जिसने ५० सालों में नहीं सीखी, उसे ५० मिनट बहस कर के तो नहीं बदल सकते न .... हम तो ये करते है की जो भी हुआ उससे सबक ले,और आगे उनके हिसाब से तैयारी कर के जाए...
गनीमत है की दोनों अब दुरुस्त है ....
thank god... everybody is safe now...
ReplyDeleteanshumala ji, we can't do anything abt it...
and we should be ready to help other people whenever it is possible.. when everybody will start thinking like this, then only these kind of things can be avoided....
मेरे ब्लॉग में इस बार आशा जोगलेकर जी की रचना |
सुनहरी यादें :-4 ...
anshumala ji,
ReplyDeleteapka gussa aur nirasha dono samajh sakta hun.hum me se kai kabhi na kabhi is tarah ki paristhitiyon se do chaar ho chuke hai.santosh ki baat hai ki dono ki haalat ab khatre se baahar hai.system ki taraf se to kam hi ummeed hai parantu shekhar ji ki baat bhi sahi hai.hamen hi apni kuch aadato me sudhaar karna hoga.
main aapke bhaai bahan ke sheeghra swathaya laabh ki kaamna karta hun.
आपने तो कलई खोलकर रख दी व्यवस्थाओं की!
ReplyDelete--
उच्चारण पर टंकण सम्बन्धी भारी भूल को बताने के लिए आपका आभार!
सब कुछ रामभरोसे चल रहा है। और क्या कहा जाए।
ReplyDelete---------
मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।
शायद ये सिर्फ अच्छी किस्मत थी , जो सब आज कुशल है , वरना अगर सर्कारी तंत्र की चले तो वह अपने सिवा किसी को जीने ही ना दे
ReplyDeleteanshu jee, ham to yahi kahengee........yahi jindagi hai......aur jeena issi ka naam hai, tabhi to aise kasht se ubar kar log jee rahe hain...:)
ReplyDeleteham jaise bhi sirf hamdardi ke do shabd hi kah sakte hain..........
@ शिखा जी
ReplyDeleteआप सही कहा रही है की हमारे पास इसी व्यवस्था में जीने के अलावा कोई विकल्प मौजूद नहीं है |
@ अशोक जी
धन्यवाद
@ संजय जी
धन्यवाद | हा खतरे से तो बाहर है मेरा भाई पर उसे इस बात का भी अफसोस है की उसे ८ तारीख को ही नई जॉब ज्वाइन करने के लिए चंडीगढ़ जाना था और वो दुर्घटना का शिकार हो गया | हा आप ने सही कहा है की पहले तो हमें ही अपने आप को बदलना होगा और उसके बाद हमें ही व्यवस्था को भी बदलना होगा |
@ मजाल जी
हा ये ठीक है की कागजी कार्यवाही ज़रुरी है पर तब तक हम किसी घायल का इलाज तो रोक कर नहीं रख सकते है कागजी कार्यवाही तो घरवाले जब भी आयेंगे तब तो कर ही देंगे | इस बारे में तो कोर्ट ने भी डॉक्टरों को निर्देश दे रखे है की वो तुरंत इलाज शुरू करे बाकी काम बाद में होते रहेंगे |
@ शेखर जी
धन्यवाद |
@ राजन जी
धन्यवाद | यही तो समस्या है की हम में से ज्यादातर अपनी आदत सुधारने के लिए तैयार ही नहीं है |
@ शास्त्री जी , रजनीश जी
धन्यवाद |
@ पलाश जी
अब क्या कहु की अच्छी किस्मत थी की बच गये या बदकिस्मत थे की एक खाली सड़क पर उनकी दुर्घटना हो गई |
@ मुकेश जी
धन्यवाद | ऐसे हालातों में हमदर्दी के दो शब्द तनाव से बाहर आने में मदद करते है |
अंशुमाला जी आम लोगों को तो ये सब झेलना ही पड़ता है. दिल्ली के एक बड़े सरकारी हॉस्पिटल में पांच वर्ष गुजरने के बाद से मेरा मानना है की सरकारी अस्पताल से वो ही वापस आता है जिसके नाम का दाना पानी इस धरती पर अभी बाकी होता है. आप तो ये सोच कर तसल्ली करे की बुरी बला थोड़े नुकसान में ही टल गयी. देश की व्यवस्था तो राम भरोसे ही रही है और आगे भी रहेगी.
ReplyDeleteयही आम आदमी की किस्मत में है, जिसके पास पैसे नहीं वह कहीं का नहीं...
ReplyDeleteअंशु जी असल में हमारे देश में यही व्यवस्था है। आपके भाई और बहन के साथ दुर्घटना के बाद जो घटा वह कहानी लगभग हर जगह दोहराई जाती है। जिसके पास पैसे नहीं हैं वह सरकारी अस्पताल में ठगा जाता है संवेदनाओं के नाम और जिसके पास पैसे हैं वो निजी अस्पतालों में ठगा जाता है। निजी अस्पतालों में भी मैंने ऐसे केस देख हैं जब मृत्यु होने पर भी लाश को जीवन रक्षक उपकरण लगाकर पैसे ऐंठे जाते रहे हैं। मुश्किल यही है कि हम ही इसमें कहीं न कहीं शामिल हैं।
ReplyDeleteशुक्र है कि आप सबने हौसला बनाए रखा और इस अजाब से उबरने में कामयाब रहे।
चारों और अव्यवस्था का ही डेरा है..... दुर्भाग्य से आगे भी इसमें बदलाव की कोई राह नज़र नहीं आती....आपने जो कुछ बताया उससे आम आदमी को आये दिन दो चार होना पड़ता है...... आपकी स्थिति समझ सकती हूँ.....
ReplyDeleteकलियुगी (कलयुगी) व्यवस्था को हम देख रहे हैं किन्तु इसका आनंद नहीं ले पाते क्यूंकि हमारी आत्मा ने सतयुग देखा है!
ReplyDeleteपुनश्च: अंशुमाला जी आपने डा. दाराल के ब्लॉग में अपनी माता जी के विषय में लिखा है,,,यदि वे दिन में ८ से शाम चार के बीच पैदा हुईं हैं (जिसकी सम्भावना मुझे प्रतीत होती है) तो मेरी सलाह है कि सबसे पहले उनको गोमेद के अतिरिक्त नीलम या लोहे की अंगूठी (नीलम महंगा होने के कारण), दोनों, बांये हाथ की बीच वाली ऊँगली में पहना दें...
ReplyDeleteहजारो सालो के बुराईया अजेय है क्यों ????????????????'
ReplyDeleteक्यों उन का समाधान हमारे अन्दर है बाहर नही और हम बाहर रोना रोते रहे है ऐसी लाखो पोस्ट और अनगिनत लोग मिल जायेंगे जो व्यवस्था का रोना रोते मिल जायेगे जैसे की ये पोस्ट .
इस प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा सिर्फ सकती का हास ही करती है कभी सृजन नही .
या फिर कहे की निंदा रस का आनंद ही दूसरा है
सब जानते है की उन का कर्त्तव्य क्या है पर दोष व्यवस्था को दे कर खुद मुक्त हो जाते है .
इस प्रकार कभी समस्याए हाल ही नही हो सकती .
@ अन्सुमाला जी
आप के इस ब्लॉग का शीर्षक ही इतना नकारात्मक है तो पोस्ट क्यों नही होगी .
भले ही ९९ बेईमान हो पर क्यों की आप रहने के लिए घर , खाना और आप का ये शरीर खुद इसी माँ की दें है इस लिए मेरा भारत महान
आप शक होगा पर मुझे यकीन है
मेरा भारत महान था , है और रहेगा
शुक्र हैं आपके रिश्तेदारों को आम जनता हॉस्पिटल में ले आये, अगर पुलिस लेकर आती तो उनके शरीर या जेब में कोई कीमती चीज नहीं मिलती. आज हमारे देश की चारों व्यवस्थाएं ख़राब हो चुकी है.
ReplyDeleteआपके निष्कर्ष से पूर्ण सहमति है। आम आदमी का जीवन इन्ही अव्यवस्थाओं में फंसा रह जाता है और हम भारतीय अपने पोटेंशल का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते हैं - यही भारतीय भारत के बाहर चमकते हैं। बदलना तो पडेगा - आज नहीं तो कल। आशा है आपके भाई अब सकुशल हैं।
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