ये कविता मुझे मेरी भांजी ने कोलकाता से मेल किया मुझे बहुत अच्छी लगी सोचा आप लोगों से शेयर कर लू और मुझे ये भी पता चल जाये की ये कविता किसकी है | चुकी साहित्य से मेरा जुड़ाव नहीं है तो संभव है की ये किसी बड़े साहित्यकार की हो और मुझे पता ही ना हो या हमारे किसी साथी ब्लॉगर की अगर आप को पता हो तो मुझे बताये |
प्रिय सखा:
शायद ज़िंदगी बदल रही है!!
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल"
तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था
वहां,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले,
सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "वीडियो पार्लर" हैं,
फिर भी सब सुना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...
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जब मैं छोटा था,
शायद शामे बहुत लंबी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे,
घंटो उडा करता था, वो लंबी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है
और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
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जब मैं छोटा था, शायद
दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजुम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की
बातें, वो साथ रोना,
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "ट्रैफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते हैं,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दीवाली, जन्मदिन , नए साल
पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
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जब मैं छोटा था,
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टाँग, पोषम पा, कटते थे केक,
टिप्पी टीपी टाप.
अब इंटरनेट, ऑफ़िस, फिल्मस, से
फ़ुरसत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िंदगी बदल रही है.
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जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है.
"मंज़िल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
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जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी
में हम सिर्फ भाग रहे हैं..
इस जिंदगी को जियो
न की काटो
वाह वाह वाह बहुत ही अच्छी कविता पर सवाल एक है ये कौन रचनाकार है ?
कहते है की खोजने से तो भगवान भी मिल जाता है ये तो एक रचना ही थी प्रकाशित करने के एक घंटे बाद ही प्रकाश गोविन्द जी ने बता दिया की ये रचना पलक जी के ब्लॉग "ख्वाहिश " पर सात अगस्त को प्रकाशित हुई थी | प्रकाश गोविन्द जी आप का धन्यवाद | मैंने पलक जी को इसकी जानकारी दे दी ये सोच कर कि ये उनकी रचना है लेकिन ये क्या पलक जी का कहना है की उन्हें भी ये कविता मेल से ही मिली थी ये उनकी भी नहीं है और उन्हें भी रचनाकार का पता नहीं है | यानी ये पहेली अभी भी नहीं सुलझी है की इस रचना का रचनाकार कौन है ?
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
ReplyDeleteपर दोस्ती जाने कहाँ है...
bahut badiya!!!
"मंज़िल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
ReplyDeleteरचना किसी की भी हो बहुत अच्छी लगी
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
ReplyDeleteपर दोस्ती जाने कहाँ है...
aaj ka sach
होली, दीवाली, जन्मदिन , नए साल
ReplyDeleteपर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
सच है इंसान बदल रहा है। रिश्ते भी बदल रहे हैं
http://veenakesur.blogspot.com/
ये रचना सुश्री पलक जी की लगती हैं क्योंकि उनके ब्लॉग "ख्वाहिश" पर यही रचना लिखी हुयी है !
ReplyDeletehttp://palak-khwahish.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteये कौन रचनाकार है ?
और 'पलक' झपकते ही 'प्रकाश' ने आपकी "ख्वाहिश" पूरी कर दी।
waah, bahut khub....prakash ji ne to khoj kar bata hi diya hai....
ReplyDeletewaise bahut hi la jawab lekhan hai..
shayad zindagi badal rahi hai...
waah....
हमें तो इस तरह की nostalgic रचनाओं से परहेज़ ही है, वक़्त तो खैर वापस आना नहीं, यादें तो कम से कम सुकून भरी होने चाहिए...क्या रखा है वहीँ वहीँ सोच के रोने में ...
ReplyDeleteरचनाकार का नाम तो आपको मिल ही गया, ग़ालिब अंकल गूगल है चीज़ काम की ;)
जारी रखिये....
waah, bahut khub
ReplyDelete@प्रकाश जी
ReplyDeleteधन्यवाद | मान गए आप को आप ने यहाँ भी पहेली का सही और सबसे पहले जवाब देने की बजी मार ली | लेकिन अफसोस यहाँ इनाम में कोरा धन्यवाद के अलावा कुछ नहीं मिलनेवाला है |
@ सुज्ञ जी
और 'पलक' झपकते ही 'प्रकाश' ने आपकी "ख्वाहिश" पूरी कर दी।
ये तो आप ने एक और चीज रच दी |
@ मजाल जी
ये तो व्यक्ति के ऊपर है की वो इस तरह की रचनाको पढ़ कर रोता है या हसंता है ये तो उसके अनुभवों पर निर्भर करता है | मुझे तो ये रचना भी अच्छी लगी और आप की भी रचनाए अच्छी लगती है |
एहसास तो वही हैं बस अंदाज बदल गए हैं .
ReplyDeleteबहुत ही जबर्दस्त्त लिखा है.
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ReplyDelete.
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अंशुमाला जी,
आप द्वारा प्रस्तुत कविता अच्छी है...
पर... :(
यह भी कहूँगा कि ' जीवन में सभी चीजें अस्थाई है एक मात्र चीज जो हमेशा स्थाई रहेगी वह है परिवर्तन '... कहीं न कहीं यह रचना परिवर्तन को नकार सी रही है।
...
anshumalaji,
ReplyDeletedhanyawad aap ki comment ke liye ....
meri likhi hue rachna mai ,mai alag se apna naam last line mai likhti hu ,ya mention karti hu ki maine likha hai. per ji wo mera likha hua nahi tha. muje kisi ne group se mail mai beja tha maine kafi dhoodhnay ki koshish ki kis ne likhi hai per aap ki tarah muje nahi mila.
fark itna hai ki aap ne itni khubsurti se yaha post ki hai ye rachna ki shayd ab mil jaye wo jis ne ye likha hai . muje itna accha tarika aaya nahi ki mai aise bhi dhoodh sakti hu.
waise kafi rachnaye muje sms ya kahi kitab mai padhi hue hoti hai to muje accha lagnay per wo mai mere blog per saja leti hu. jo maine likhi hoti hai waha mai clerify kar diti hu ki meri likhi hue hai.
kabhi ye bhi hota hai ki kahi padhi hue rachna hoti hai jise padhay waqt kafi nikla hua hota hai fir jab yad aata hai use mai apni tarah se edit kar ke mere blog per saja leti hu .
bas mera blog yahi hai .. meri yadien... meri batori hue ek ek line jo kabhi fursad mai padnay ke sukun bakshti hai .. bas itna hi ...
meri wajah se ksi rachna kar ko thesh na pahochay mai is ka pura khayal rakhti hu..
yaha itna ilkhnay ka itna hi meaning hai ki shayd meri ye bat sab tak pahoch paye ...
Regards:
Palak
yeh jo bhi rachnakar hain.... bada achha likha hai.... filhal bas itna hi ki sunder rachna ko sajha karne ke liye aabhar.....Anshumalaji
ReplyDeleteलो 'पलक' मूँद गई तो,'प्रकाश'भी गायब हुआ।
ReplyDeleteरही ख्वाहिशें भी अधूरी, और ये भ्रमदक्ष नें छूआ।
किसकी यह रचना या कौन रचनाकार है?
ढूंढ रहे आभास में वह,निराकार भगवान हुआ॥
अंशुमाला जी आप इस कविता के लिए परेशान ना हों !
ReplyDeleteशोध के उपरान्त परिणाम यह निकला है कि अगर कविता सुश्री पलक जी की नहीं है तो यह पब्लिक की कविता है !
अच्छा होगा हम लोग आपस में इस रचना को बाँट लें !
कारण स्पष्ट करने के लिए बहुत सारे लिंक्स में से थोड़े से लिंक्स दे रहा हूँ .... आप देख लीजिये सबने इसको अपना मानकर बेधड़क इस्तेमाल किया है :
https://www.namoleague.com/Narendra-Modi-Topic-View?TopicID=65WhrP/TnKg=
http://hinditvmedia.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
http://sanjeettripathi.blogspot.com/2010/09/blog-post_24.html
http://tajim.posterous.com/31742607
http://www.gujarati.blogkut.com/gujarati-blogs/zindgi/
http://anisletofsensibility.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
प्रकाश गोविन्द जी
ReplyDeleteएक बार फिर धन्यवाद | आप के दिए लिंक देखे कुछ लोग ईमानदारी से बता रहे है की ये मेल से मिला है कुछ ने बस अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर दिया है लेकिन एक साहब है जो टीवी से जुड़े है वो तो कह रहे है की ये कविता उनके और उनके मित्र के बीच पत्र व्यवहार द्वारा हुआ संवाद है | हद कर दी बेईमानी की कहते है पुराने पत्रों से खोज कर निकला है | बोलो तो जो कविता वो अपने पुराने निजी पत्रों से खोज कर नवम्बर में निकाल रहे है वो पलक जी के ब्लॉग पर अगस्त में ही प्रकाशित हो गया है और कुछ पर सितम्बर में अब क्या कहा जाये ऐसे लोगों को |
हा इस कविता की एक खास बात है की ये सभी के दिल को बहुत भा रही है शायद इसने लोगों के बचपन को छुआ है और आज के समय में कुछ चीजो की कमी का एहसास करा रहा है साथ ही पूरे भारत को जोड़ भी रहा है | जिन पोस्टो पर ये प्रकाशित हुई है उनमे से कई गुजरात से है एक मध्यप्रदेश से खुद मुझे कोलकाता से मेल किया गया है और मैंने इसे मुंबई और दिल्ली में फैला दिया है | पर बेचारा रचनाकार उसे कोई क्रेडिट नहीं मिल पा रहा है |
anshumala ji...
ReplyDeleteprakash ji ne jo link diye hai us mai sab se pehla link.. jo chandan pratapsingh ka hai. waha is rachna ko padhnay ke bad muje lag raha hai ki ye unke chunay hue moti mai se ek moti hai. shayd ye rachna unki hi den hai.
maine unko pucha hai ..
dekhatay hai prakash ji ki wajah se is bar shad sahi rachnakar mila jaye..
Palak
jab mail se mila hai to crdeit email ko hi dene me kya harj hai, yahi sochkar maine saf likha tha k mail par mila..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है जीवन की सच्चाईयों को उजागर करती हुई हर पंक्ति बेहतरीन बन पड़ी है ....प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteकभी कभी ऐसा ही लगता है कि दिन सिकुड़ गए हैं ...
ReplyDeleteगर्मी की लम्बी दुपहरियां भी अब लम्बी नहीं लगती ...ये दूरियां रिश्तों में बन गयी हैं ..
रचनाकार जो भी हों , कविता शानदार है .!
kavita to sach me achchhi lagi.
ReplyDeleteकविता सच में बहुत अच्छी है। रचनाकार का पता नहीं चला अब तक? बड़ी समस्या है।
ReplyDeleteवैसे अगर मामला कविता का न होता, तो हमें जिम्मेवारी लेने में कोई परहेज नहीं होता कि हमारी है ये.)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअंशुमाला जी एक बहुत अच्छी कविता शेयर करने के लिए
धन्यवाद
बचपन की याद दिला गयी ये कविता
"मंज़िल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
ReplyDeleteTRUTH OF UNIVERSE.
रचना बहुत अच्छी है. चाहे किसी भी की हो.
ReplyDeleteज़िंदगी पर गंभीर बहस में शामिल होने के लिए सभी को बधाई।
ReplyDeleteमुट्ठी भर की ज़िंदगी,चुटकी भर आराम।
फिर भी करने को पड़े, दुनिया भर के काम।।
-डाक्टर गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर'
खोज कार्यक्रम चलता रहे मगर अंत में ... ढूंढते रह जाओगे!
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