हम सभी अकसर ये शिकायत करते है की हम ज्यादा काम करते है और घर या आफिस में किसी सुख सुविधा की कमी है तो हमें रोने का एक और बहाना मिल जाता है | जरा इन बच्चो को देखीये इनकी उम्र और इनके काम करने के माहौल को देखीये , जिस उम्र में इन बच्चो का पढ़ना लिखना चाहिए खेलना कूदना चाहिए दिन दुनिया की सभी चिन्ताओ से मुक्त हो जीवन जीना चाहिए तो ये बेचारे काम कर रहे है वो भी इस खतरनाक और घटिया वातावरण के बीच | देख कर दुःख होता है हम में से कई इन बच्चो को देखते होंगे उनके बारे में जानते होंगे पर करते कुछ भी नहीं " हम क्या कर सकते है ,बेचारे गरीब है ,बेचारे काम करते है तब खाना मिलाता है ,शिकायत करने से क्या फायदा हमारी सुनेगा कौन , एक बार इन्हें छुड़ा भी लिया तो क्या फायदा ये फिर से गरीबी के कारण इसी माहौल में आ जायेंगे" जैसे बहाने कर हम या तो इन्हें अनदेखा कर देते है या कुछ करने से पीछे हट जाते है | कई बार हम में से कई लोगो को पता ही नहीं होता की हमें करना क्या है या हम इसकी कहा शिकायत करे | इनमे से एक मै भी हूँ मै स्वयम नहीं जानती की यदि मै किसी बाल मजदूर को देखू तो उसकी शिकायत कहा और किससे करू ( साथ में मेरा नाम भी सामने नहीं आये )पाठको से निवेदन है कि जिन्हें इस बारे में जानकारी हो वो अपनी जानकारी यहाँ दे दे या किसी एन जी ओ की जानकारी दे ( मै मुंबई में हूँ यदि यहाँ के किसी एन जी ओ की जानकारी दे तो और भी अच्छा होगा ) जो बाल मजदूरी के खिलाफ काम करती है और ऐसे बच्चो की देखभाल का भी इंतजाम करती हो | साथ ही सबसे निवेदन भी है कि यदि आप में से कोई भी बाल मजदुर को देखे खासकर जो किसी के यहाँ नौकरी कर रहे हो तो उसके मालिक को एक बार इसके लिए टोके और बताये की वो बाल मजदूरी करा कर गलत कर रहा है और उसकी सरकारी तंत्र में शिकायत भी करे | मुझे पता है की ये बहुत बड़ी समस्या है पर कहते है न की बूंद बूंद से घड़ा भरता है तो यदि एक एक आम व्यक्ति भी इस समस्या को हटाने के लिए अपना थोडा सा भी योगदान दे तो कुछ बच्चो को तो हम इस नारकीय जीवन से बचा ही सकते है | काफी जगह ये जागरूकता भी फैलाई जाती है की हमें उन सामानों का उपयोग नहीं करना चाहिए जो ऐसी जगहों पर बना हो जहा की बच्चे काम करते है किन्तु इससे उन बच्चो पर ज्यादा असर नहीं होगा बल्कि हो सकता है की उनका और भी शोषण हो और उनकी मजदूरी और भी कम कर दी जाये | पर मुझे नहीं लगता है की सर्फ़ ये करने से बाल मजदूरी कम होगी उसके लिए प्रत्यक्ष तौर पर इन बच्चो के लिए कुछ करना होगा | कम से कम एक फोन करके इसकी सूचना सही तंत्र तक पहुँचाने जैसा छोटा काम तो हम कर ही सकते है |
सभी चित्र ई -मेल से प्राप्त |
मुझे पता है की ये बहुत बड़ी समस्या है पर कहते है न की बूंद बूंद से घड़ा भरता है तो यदि एक एक आम व्यक्ति भी इस समस्या को हटाने के लिए अपना थोडा सा भी योगदान दे तो कुछ बच्चो को तो हम इस नारकीय जीवन से बचा ही सकते है |
ReplyDeleteAapke saath poorntaya sahmat hun. Meree bhee ye koshish rahtee hai,ki is bareme chhota-sa sahi,qadam uthaya jaye.
Apki Soch Sahi hai ...Aj ke samay ki zaroorat bhi.... Bahut Achche vishay ko sanvedansheelata se saamne rkha aapne,.....
ReplyDeleteहम क्या कर सकते है ,बेचारे गरीब है ,बेचारे काम करते है तब खाना मिलाता है ,शिकायत करने से क्या फायदा हमारी सुनेगा कौन ,
ReplyDeleteहां यह बहुत से लोग ओर मै भी ऎसा सोचता हुं; लेकिन कभी कभी एक ख्याल भी मन मे आता हे, कि शिकायत करने से सच मे कुछ नही होगा, तो क्यो ना हम ही इन बच्चो के बारे सोचे, अपने ही शहर मे कुछ लोगो के संग मिल कर किसी जगह चार पांच या दस बच्चो को रखे ओर उन्हे पढने के लिये मुफ़त मे मदद करे.... धीरे धीरे लोगो को पता चलेगा तो लोग दान दे तो उसी दान से इन बच्चो के खाने का इंतजाम करे, रहने ओर पढने का इंतजाम करे, लेकिन शुरुआत तो हमे ही कही से या हमीं से करनी पडेगी.... दान का सिस्टम ऎसा हो कि जिस ने भी डालना हे डाले नाम किसी का ना हो.. ओर जब हम इस पोधे को लगायेगे तो हमे देखा देखी ओर भी लोग अपने अपने शहरो मे यह काम शुरु करेगे...
सच कह रही हो परन्तु बच्चों की इस स्थिति के लिए उनके अविभावक जिम्मेदार होते हैं. जरुरत है उन्हें शिक्षित करने की.बहुत से शहरों में मैंने देखा है कुछ अफसरों की बीबियाँ मिलकर अपने गेराज में ऐसे बच्चों के लिए फ्री स्कूल चलाती थीं जहाँ उन्हें चाय नाश्ता भी मिलता था .बेचारी खुद जा जा कर बच्चों को बुला कर लाती थीं परन्तु उनके माता पिता ही भेजने को तैयार नहीं होते थे.
ReplyDeleteआपकी चिंता वाजिब है। क्या पुलिस में शिकायत करना काफी नहीं है?
ReplyDeleteआपकी चिंता सही में जायज है और हमें कुछ न कुछ करना भी चाहिये। कागजों में चौदह साल से छोटे बच्चों से मजदूरी करवाना जुर्म की श्रेणी में ही आता है, लेकिन मैंने खुद अदालतों में, थानों में बहुत छोटे छोटे बच्चों को चाय सप्लाई करते तो देखा ही है। कानून बना देना ही प्र्याप्त नहीं, उसका इंप्लिमेंटेशन भी ठीक से होना चाहिये।
ReplyDeleteअंशुमाला जी,
ReplyDeleteबालश्रम के विरोध में कितने भी क़ानून बना दिए जाएं लेकिन जब तक देश में गरीबी और भुखमरी है, इससे छुटकारा नहीं मिल सकता...जब तक देश में हर बच्चे को तालीम की रौशनी मिलना बुनियादी अधिकार नहीं बन जाता और जब तक सरकार इस पर गंभीरता से अमल नहीं करती, देश सही मायने में विकसित नहीं हो सकता...देश के आने वाले कल को सुधारने के लिए बच्चों पर किया गया निवेश ही सबसे अच्छा निवेश है...मान लीजिए सरकार आज सभी टैक्सपेयर्स पर इस अच्छे कार्य के लिए स्पेशल टैक्स लगा दे, हम में से कितने होंगे जो उसे राजीखुशी सहन करेंगे...आजकल विकसित देशों की तरह भारत के महानगरों में भी किशोर स्वावलंबी होने के लिए पार्टटाइम जॉब करते हैं...कहा जाता है कि बच्चों के स्मार्ट होने के लिए ऐसा ज़रूरी है...उनके माता-पिता उनकी हर ज़रूरत पूरी कर सकते हैं लेकिन फिर भी वो ये काम दुनियादारी सीखने के लिए करते हैं...लेकिन गरीब मां-बाप को तो दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए कलेजे पर पत्थर रखकर बच्चों को काम पर भेजना पड़ता है...
जय हिंद...
सहमत हूँ आपसे... कुछ-कुछ प्रयास हमें भी करने चाहिए...
ReplyDeleteअंशुमाला जी आपसे सहमत हूँ कि कुछ न कुछ करना चाहिए लेकिन करे क्या। किससे शिकायत करे, जब थाने कि कैंटिन मे ही बच्चे बर्तन मांझते है और एस ओ साहब उन्हे माँ बहन की गालिया देता है। इन सब के लिए उनके माँ बाप जिम्मेदार है जो अनाथ है उनकी बात अलग है, लेकिन मेरे अनुभव है कि (जैसा कि मेरे गाँव मे होता है) एक एक के 6 से 11 तक बच्चे है और बाप खुद मजदूरी करता है तो कहँा से खिलायेगा, इसलिए उसके बच्चो को 7 से 10 तक की उम्र मे ही अपने पैरो पे खडा होना पडेगा। इस सब का कारण अशिक्षा और धार्मिक रूढिवादिता है।
ReplyDeleteसरकार नेे कई कानून बनाये है लेकिन सब निरर्थक है, इसके लिए तो जैसे श्री राज भाटिया जी ने बताया उसी तरह से कुछ हो सकता है अन्यथा किसी तरह नही।
संवेदनशील पोस्ट के लिए आभार.
ReplyDeleteइस समस्या के पीछे इनके अभिभावक हैं, जैसा की शिखाजी ने भी कहा है। ये सारे बच्चे गॉवों से आए हैं। इन गॉवों में अनेक संस्थाएं और सरकार भी शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही है लेकिन पैसे के लालच में इनके माता-पिता बच्चों को शहर भेज देते हैं।
ReplyDeleteवाजिब चिंता है आपकी | छोट-छोटे बच्चों की ऐसी हालत देखकर मन दुखी हो जाता है | गरीबी इसका मुख्य कारण है | अपने माँ बाप का सहारा बनने के लिए अधिकतर छोटे बच्चे खुद ही बाहर जाकर नौकरी करते हैं |
ReplyDeleteअब यदि इन्हें एक स्थान से छुटकारा मिल भी जाये तो दूसरी जगह ढूंढ लेंगे | हाँ , यदि कोई इन्हें बंधक रखकर
मजदूरी करवाता है तो नजदीकी पुलिस स्टेशन या नगर/ जिला के श्रम अधिकारी /श्रमायुक्त से शिकायत करके इन्हें मुक्त कराया जा सकता है | जो बच्चे स्वेच्छा से ,अपने माता-पिता की जानकारी में मजदूरी करते हैं , उनकी शिकायत से ज्यादा महत्वपूर्ण है -उनके अभिभावकों को समझाना , जागरूक करना |
अंशु जी,
ReplyDeleteआपके द्वारा लगाए गए चित्रों की तरफ देखना मुश्किल हो रहा है....
पुलिस में शिकायत करने से तो कुछ भी नहीं होगा....वो उन्हें रिमांड होम में डाल देगी...और वहाँ की स्थिति और भी नारकीय है....रोज अखबार रंगे होते हैं,इन ख़बरों से कि वहाँ बच्चों के साथ क्या क्या होता है.
समस्या है,गरीबी...बस और कुछ नहीं. जब माता-पिता दो रोटी नहीं जुटा पाते तो झोंक देते हैं,उन्हें ऐसे कामो में...इस ख्याल से कि उनका पेट भी भर जायेगा और घर के लिए भी वे दो पैसे कमाएंगे.
गाँव के लोग पैसे की लालच में तो अपने बच्चों को शहर भेजते ही हैं.... कई बार मजबूरी में भी भेजते हैं. दो बच्चों के बारे में पढ़ा कि उनके पिता ने गाँव में किसी से दो हज़ार रुपये उधार लिए थे. नहीं चुका पाने पर एक बाल-मजदूरों का एजेंट उनके दो बेटो को शहर ले आया...और सुबह आठ बजे से रात बारह बजे तक वे बच्चे जरी की कढाई का काम करते थे. बंद कमरे और पीली बल्ब की रोशनी में. जब एक समाजसेवी ने उन्हें छुड़ाया तो छः साल बीत चुके थे, इस बीच वे, एक बार भी गाँव नहीं गए और ना उनका उधार चुका. यह एक खाद्यंत्र जैसा भी है की...पहले उधार दो...नहीं चुका पाने पा रुनके बच्चों को शहर ले जाओ.
पूरी व्यवस्था ही बदलनी चाहिए...दो जून रोटी और प्राथमिक शिक्षा का हक़ सबको है....अगर इतने सालों की आजादी में हम इतना भी नहीं achieve कर सके...तो क्या किया....पर हाँ...अपनी तरफ से जितना संभव हो किया जा सके...कम से कम इन बाल-मजदूरों के साथ कोई दुर्व्यवहार ना हो...और अमानवीय कृत्य ना करवाए जाएँ...इतना तो हम चौकस रह ही सकते हैं.
नेट पर मुंबई स्थित बहुत सारी NGO की जानकारी और उनका फोन नंबर भी उपलब्ध है...आप अपने इलाके के हिसाब से चयन कर सकती हैं..
सराहना आपके इस कदम के लिए और शुभकामनाएं.
खाद्यंत्र = षड्यंत्र
ReplyDeleteबहुत सामयिक आलेख है, बालश्रम के लिये भूख, गरीबी, उनके माता पिता और उन्हें श्रम पर रखने वाले सभी बराबर के जिम्मेदार हैं. इस मामले में कठोर कानून के साथ साथ नैतिकता का होना भी सहायक होगा.
ReplyDeleteरामराम
श्रम सुधार एक संवेदनशील मुद्दा है। स्वयं कई मंत्री भी बाल श्रम से पूरी तरह असहमत नहीं हैं। यही कारण है कि केंद्र में पिछले वर्षों में श्रम मंत्रियों को लगातार बदला गया है मगर सुधार है कि फिर भी हो नहीं रहा।
ReplyDeleteयदि सरकारी तंत्र अपना कर्तव्य सही ढंग से निबाहे तो बाल श्रम क्या बहुत सी समस्याओं को आसानी से ख़त्म किया जा सकता है. पर क्या करें सरकारी कर्मचारियों को भी इच्छा होती है की वो भी अपनी सात पुश्तों के भविष्य का इंतजाम करके ही सेवा निवृत्त हों.
ReplyDelete@ क्षमा जी
ReplyDeleteधन्यवाद , ये एक कदम हम सभी को उठाना होगा |
@मोनिका जी
धन्यवाद |
@राज भाटिया जी
आप की बात बहुत विचारणीय है ऐसा ही कुछ ब्लॉग जगत में किसी और ने भी करने की इच्छा जाहिर की है अब इसे जमीनी रूप से करने का प्रयास करते है |
@ शिखा जी
जी हा सारी समस्या उन्ही के नासमझ होने के कारण है |
@अनुराग जी
हा यदि उनसे शिकायत की तो उनके चाय पानी का इंतजाम तो हो ही जायेगा |
@ संजय जी
ये मुद्दा तो कई बार टीवी चैनलों ने भी दिखाया है की सरकारी समारोहों बड़े आफिसर और मंत्रियो को बाल मजदूर पानी चाय दे रहे है और वो उस तरफ ध्यान भी नहीं दे रहे है |
यह एक संवदेनशील मसला है। इस सन्दर्भ में कदम उठाते वक्त इस बात का आकलन अवश्य कर लें कि आपका कदम उस बच्चे को बालश्रम से तो शायद छुटकारा दिला देगा,लेकिन साथ ही हो सकता है कि वह भूख के चुंगल में फंस जाए। इसलिए कदम तभी उठाएं जब आपके पास बच्चे के लिए वैकल्पिक साधन मौजूद हों।
ReplyDelete*
बंधुआ मजदूर मुक्ति आंदोलन में ऐसा ही होता रहा है। मजदूर बंधुआ मजूदरी से तो मुक्त हो जाते हैं,लेकिन वे फिर भूखे रहने पर मजबूर हो जाते हैं। उनके पुर्नवास का उचित इंतजाम नहीं होता।
@ खुशदीप जी
ReplyDeleteशिक्षा के अधिकार का कानून तो बन गया है किन्तु जैसा की आप ने कहा की सिर्फ कानून से काम नहीं होगा जरुरी है की सरकार और प्रशासन दोनों इसके लिए अपनी इच्छा शक्ति दिखाए | जहा तक टैक्स देने की बात है तो चाहे खुश हो कर या दुखी हो कर शिक्षा के लिए उपकर( कर पर २% उपकर ) तो हम सभी देते ही है पर सरकार उसका भी सही प्रयोग कहा करती है |
@ शाह नवाज़ जी
धन्यवाद |
@ दीपक सैनी जी
सही कहा आप ने मैंने भी कई गरीब लोगो को कहते सुना है जितने बच्चे उतना परिवार के लिए अच्छा है हर बच्चा दो हाथ और ले कर आएगा किन्तु वो ये भूल जाते है की अपने साथ वो एक पेट भी लायेगा जिसकी जिम्मेदारी कुछ सालो तक उन्हें ही उठानी होगी |
@ मनप्रीत कौर जी
धन्यवाद |
@ काजल जी
धन्यवाद |
@ अजित जी
अब ये समस्या शहरों की भी बन गई है यहाँ भी हर झोपड़े से कई बाल मजदुर रोज निकलते है |
@ सुरेन्द्र सिंह जी
ReplyDeleteजानकारी देने के लिए धन्यवाद | आप ने सही कहा अभिभावकों को समझाना होगा |
@ रश्मि जी
वास्तव में ये देख कर आश्चर्य होता है की हम जिस २१ सदी का नाम ले कर गर्व करते है उसमे भी बंधुवा मजदूरी जैसी चीजे मौजूद है | ज्यादा दुःख इस बात का भी होता है की न केवल इन बच्चो से खतनाक वातावरण में काम करवाया जाता है साथ ही उनको मजदूरी भी काफी कम दी जाती है और अमानवीय व्यवहार भी किया जाता है | घरेलु नौकरों को साथ तो लोग जानवरों सा व्यवहार करते है |
नेट पर तो कई एन जी ओ है किन्तु वो वास्तव में कितना काम करते है और कितना सिर्फ दान लेते है पता नहीं चलता है एक बुरा अनुभव हो चूका है इसलिए मैंने यहाँ पूछा ताकि यदि कोई ऐसे एन जी ओ से कोई जुड़ा है या जानता हो की कोई है जो वास्तव में जमीन पर कुछ कर रहा है तो उसकी जानकारी मिल सके |
@ ताऊ जी
धन्यवाद | सही कहा पूरा समाज इसके लिए जिम्मेदार है |
@ राधारमण जी
सुधार इसलिए नहीं हो रहा है की सब बस मंत्री पद को पाना चाहते है उससे जुडी जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहते है |
@ दीप जी
यही तो समस्या है की लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे है |
और पिछली पोस्ट पर टिप्पणियों का शतक मुबारक हो मै तो एक और टिपण्णी देने आई थी पर आप ने सभी का धन्यवाद दे दिया था तब तक सो रुक गई नहीं तो डबल सेंचुरी तो पक्की थी, इजाजत दे तो सचिन का डबल सेंचुरी का रिकार्ड तुड़वा दू :))))
@ राजेश जी
बिलकुल सही कहा आप ने इस बात का जिक्र मैंने भी किया है की एन जी ओ इन बच्चो के पढाई आदि का भी इंतजाम करती हो | इन को बाल मजदूरी के चंगुल से छुटकारा दिलाने के साथ ही इनका पुनर्वास करना भी जरुरी है |
आपका लेख और चित्र दोनों ही हमारे समाज के दोगले पन को दर्शाते हैं ।
ReplyDeleteपुलिस पर तो कितना विश्वास करें अगर हम अपने स्तर पर इन्हें घर लाकर पढायें लिखायें तो कुछ हो सकता है । CRY नामकी एक संस्था है जो बच्चों के लिये काम करती है । यह दिल्ली में भी कार्यरत है शायद उनसे कोई मदद मिल सके ।
CRY ka full form hai Child rights and you.
ReplyDeleteअंशुमाला जी,
ReplyDeleteकानून हैं और बहुत ही सख्त कानून हैं.. लेकिन उनका महत्व सिर्फ इतना जैसे सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है... ज़रूरत है कानून के सख्ती से लागू किये जाने की.. प्रत्येक राज्य में ब्लाक स्तर पर श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी होते हैं, जिनका काम न्यूनतम मज़दूरी लागू करना और बाल श्रमिकों का पुनर्वास करना होता है.. लेकिन ये लोग भी सिर्फ आंकड़े जुटाते हैं और खानापूरी करते हैं.. एक रेडीमेड गारमेंट्स की दूकान पर खरीदारी करते समय मैंने देखा की श्रम विभाग के आला अफसरों ने छापा मारा और काम करने वाले एक बच्चे को छुडाया.. वो बच्चा रोने लगा और नौकरी पर लौटने की जिद करने लगा, क्योंकि लाचार मान बाप का वह इकलौता सहारा था..
हाँ अब कुछ ठीक लग रहा हैं.बज़ट,महँगाई,टैक्स,मध्यम वर्ग जैसे अपनी समझ के बाहर के विषयो के बाद आपकी ये उद्देश्यपूर्ण पोस्ट आई.मुंबई में एक ऐसी विश्वसनीय संस्था है लेकिन आप चूँकी अपना नाम सामने लाना नहीं चाहती तो फिर कुछ नहीं हो सकता.आप जब भी किसी बच्चे को इन परिस्थितियों में देखें तो 1098 पर कॉल करें और लोकेशन बताएँ.शिखा जी ने सही कहा कि अभिभावक इसके लिये जिम्मेदार है.आप कभी इन बच्चों से बात करके देखिये हर दूसरा या तीसरा बच्चा ये ही कहेगा कि उसका पिता शराब पीता है माँ और उसके साथ मारपीट करता है पैसे छीन लेता है और उसे(बच्चे को) घर पे रहना अच्छा नहीं लगता है.यानी घर पर भी वही हाल.इस बुराई को खत्म करने के लिये और भी कई चीजों पर एक साथ काम करना होगा.
ReplyDeleteaapane jo kaha bilkul sahi hain
ReplyDeletemaine khud ek NGO chalata hun
aur hamne bhi socha tha is baare main
parantu ek duvidha ye thi ke hum agar inahe padha nahi paye to ye log kaam se bhi jayenge
aur fir kamane k liye chori karenge...
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बहुत अच्छा उद्द्श्य लेकर चल रही हैं आप .लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन जाय -जन्मदाता माता-पिता ही उदासीन हो जायं तब सबसे पहले उनमें चेतना जगाना भी आवश्यक है .
ReplyDeleteइन बच्चों का भविष्य बनाने के लिए हमकार्य योजना बना कर प्रयत्नशील हों .सप्ताह में एक दिन 2-4 लोग मिल कर कुछ घंटे भी दे सकें तो काफ़ी काम हो सकता है .
इस समस्या के कई पहलू हैं.. एक पहलू को नज़रअंदाज करेंगे तो समस्या खत्म नहीं हो पायेगी... पहले तो उस कारण को खत्म करना होगा जिसके कारण ये बच्चे मजबूरी करने को मजबूर हैं... घर में काम करने वाला कोइ नहीं तो काम करने को मैं इतना गलत नहीं मानता पर कम से कम काम ऐसा होना चाहिए जो उसे स्वास्थ्य और आत्मसम्मान को क्षति न पहुंचाता हो.. अगर हम अपने आसपास के बच्चों को आर्थिक सहायता देने में असमर्थ हों तो कम से कम उन्हें कुछ घंटों के लिए ऐसा कम ही उपलब्ध कराएं जो उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में बाधा न बने और वे अपनी पढाई भी जारे रख सकें... उदाहरण के लिए. अगर किसी बुकस्टोर पर शाम को व्यस्त समय में ४-५ घंटे के लिए बच्चे को काम दिया जाता है जिससे वह घर की रोटी चला सके और दिन में स्कूल भी जा सके.............
ReplyDelete@ आशा जोगलेकर जी
ReplyDeleteधन्यवाद |
@ चैतन्य जी
सही कहा कानून तो है पर उसे लागु करने वाला कोई नहीं है सब बस कागज पर कम करते है |
@ राजन जी
अच्छी जानकारी दी धन्यवाद नंबर याद रखूंगी मुंबई में रह कर मुझे इसकी जानकारी नहीं थी | बस ऐसे ही हम सब उदासीन है इन चीजो को लेकर |
@ चिराग जी
बहुत अच्छा काम कर रहे है आप करते रहे | आप ने सही कहा यदि उन्हें पढ़ा लिखा नहीं पाए तो इस नरक से इन्हें छुड़ाना बेकार जायेगा |
@ प्रतिभा सक्सेना जी
धन्यवाद | माता पिता यदि सजग होते तो इनकी ये हालत ही नहीं होती |
@ सतीश चन्द्र सत्यार्थी जी
हा ये तो सही है की जब तक आर्थिक मजबूरी दूर नहीं की जाएगी ये समस्या भी समाप्त नहीं होगी |
बहुत खूब.... आपके इस पोस्ट की चर्चा आज 14-6-2012 ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित है ...अरे आप लिखते क्यूँ नहीं... लिखते रहें ....धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
ReplyDeleteAaj Ka Insaan Badal Gaya Hai, Jamana Toh Wahi Hai.
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