December 10, 2013

रणनीति या मौके की नजाकत - - - - -mangopeople



                                        शायद ये हमारे भारतीय राजनीति  का ऐतिहासिक समय  है ,जो न तो आजादी के बाद से आज तक आया है और न ही आगे के ६०० सालो तक आयगा जब दो राजनीतिक  दल कुर्सी और सत्ता खुद लेने के लिए नहीं बल्कि उसे न लेने के लिए बहस कर रहे  है , ये शायद पहला मौका है जब  राजनीतिक  दल पक्ष की  जगह विपक्ष में बैठने के लिए लड़ रहे है , शायद ये पहला मौका है जब पक्ष में कोई है ही नहीं और विपक्ष के लिए दो दो पार्टिया खड़ी है । किन्तु जिस तरह इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है उसी तरह ये समय काल और व्यवहार भी स्थाई नहीं है , निश्चित रूप से इस त्याग के पीछे ६ महीने बाद होने वाला लोकसभा चुनाव है , जिसमे सभी साफ सुथरे दिखाई देना चाहते है ,साथ में एक  डर और भी है , भले सीडी और स्टिंग के किंग जेल में है किन्तु उनके अर्जुन एकलव्य जैसे शिष्य बाहर है क्या पता सामने वाला बिकने की  जगह   सीडी बना रहा है , आखिर अभी लोकसभा चुनाव भी तो जीतने  है , जहा कांग्रेस को बी जे पी के खिलाफ कुछ ऐसे ही सबुत चाहिए जैसे एक बार उनके पास छत्तीसगड़ में अजित जोगी के खिलाफ था , और "आप" को भी बीजेपी के लिए वैसे ही अभियान चला कर जितना है जैसा उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जीता है , भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर । सो बीजेपी भी फूंक फूंक कर कदम रख रही है और एक राज्य में सरकार बनाने ,जो अंततः उसकी ही होने वाली है ,के  लिए वो अपने उस खेल में पानी नहीं फेरना चाहती है जो वो देश में सरकार बनाने के लिए खले रही है । ये बात " आप " भी जानती है सो वो भी चुचाप तमाशा देख रही है और अति उत्साहित मिडिया की जमात  की तरह व्यवहार नहीं कर रही है । इन दोनों के सामने कुछ साल पहले के बिहार राज्य का उदहारण भी है की कैसे त्रिशंकु विधान सभा को रात के २ बजे भंग किया गया और नितीश की सरकार नहीं बनने दी गई और परिणाम स्वरुप हुए चुनावो में नितीश को प्रचंड बहुमत मिल गया । मजेदार स्थिति है दोनों ही बड़ी पार्टी एक ही दाव खेल रही है , देखना होगा अंत में जीत किसके हाथ लगेगी , यदि दुबारा चुनाव हुए तो । "आप " चुप है कि जब एक साल में यहाँ आ गए तो ६ महीने और बिना किसी जिम्मेदारी ( सरकार चलाने ) के वो अपना सारा समय और ऊर्जा लोकसभा के चुनावो की  तैयारी और  दूसरे राज्यो में अपनी पहुंच को बढाने के लिए कर सकते है , और बीजेपी ये दिखाने की सोच रही है की देखिये कांग्रेस के विकल्प के लिए हम सही है सच्चे ईमानदार तीसरे विकल्प की  जरुरत ही क्या है ।

                                               " आप " इतने कम समय में दिल्ली में जो जगह बनाने में कामयाब रही है उसके लिए बधाई के पात्र किन्तु याद रखिये की सत्ता के बाहर रह कर सिद्धांतो और उसूलो की बात करना आसान है किन्तु जब सत्ता हाथ में आ जाये तो उस ताकत के साथ अपना व्यवहार सामान्य रखना आसान नहीं होता है , ये सत्ता की ताकत कइयो को अपने नशे के लपेटे में ले लेती है , और ये शुरू भी हो गया , जब उनके एक विधायक ने शानदार विजय जुलुस निकाल दिया ( जहा उनका हांरे कांग्रेसी विधायक से झगड़ा भी हो गया और उन पर हारे विधायक की पत्नी से छेड़छाड़ का केस भी दर्ज हो गया  ) हा बाद में मनीष सिसोदिया ने उन्हें ऐसा न करने के लिए कह दिया , किन्तु " आप " को ये बात ध्यान में रखनी होगी की हम सभी के खून में पारम्परिक  राजनीतिक दलो  ने ऐसी बातो को भर दिया है की हम उन आडम्बरो और ताकत प्रदर्शन को भी लोकतंत्र का हिस्सा मानने लगे है । अब उनके ऊपर और जिम्मेदारी आ गई है की खुद को आम आदमी कहने वाले और अब खास बन चुके ये लोग अपना व्यवहार भी आम आदमी जैसा ही रखे और उसी नैतिक मूल्यो और सिद्धांतो की बात पर कायम रहे , जिसके दम पर वो यहाँ आये है । कुछ को छोड़ दे तो आम भारतीय इस व्यवस्था परिवर्तन और सरकारो के बदले व्यवहार के लिए तैयार है ,गेंद अब उनके पाले में है , निभा ले गए तो बड़े बन जायेंगे नहीं निभा पाये तो उनका हाल भी बाकि विकल्प बन कर उभरी तीसरी शक्तियो जैसा ही होगा । वैसे " आप " की जीत ने पुराने राजनीतिक दलो पर ये दबाव तो बना ही दिया की भ्रष्टाचारी , बाहुबली और अपराधियो को टिकट देना अब उनके लिए आसान नहीं होगा और उन्हें चुनावो में साफ सुथरी छवि वाले उम्मीदवारो को खड़ा करना होगा । देखते है की कितने राजनीतिक दल इस सबक को सिखते है ।
                                                                 

                                  बीजेपी दुखी है वो तिन राज्यो में चुनाव जीत गई उसके बाद भी मिडिया का फोकस उन पर न हो कर आम आदमी पार्टी की तरफ है , दुखी होना लाजमी है , मोदी को मीडिया का सारा एटेंशन लेनी की आदत हो गई थी अब उसका फोकस बदलना दुखी कर रहा है , और डर भी पैदा कर रहा है की कही जो लहर ,हवा चलने की बात वो अपने लिए कर रहे थे , वो कही किसी और की तरफ से न बहने लगे । डरना भी चाहिए , क्योकि वो भी कांग्रेस का विकल्प बन कर , बदलाव की बात कर और खुद को डिफरेंट कह कर इस राजनीतिक मैदान में कूदे थे , और आज स्थिति ये है कि उनका भी कांग्रेसीकरण हो गया है , नतीजा आज फिर उन्ही बातो को कह कर कोई और भी मैदान में है जो उनका खेल बुरी तरह बिगाड़ सकता है । वो तो सोच बैठे थे की बिल्ली के भाग से छीका टुटा और लोकपाल आंदोलन में बढ़ चढ़ कर अपने लोगो को हिस्सा लेनी दिया उसे कांग्रेस विरोधी  आंदोलन बनाया , किन्तु पता न था कि एक दिन वही आंदोलन उनके खिलाफ भी चला  जायेगा ,बीजेपी के लिए तो ये भष्मासुर जैसा हो गया । वैसे चाहे तो वो अभी से सबक सिख सकती है वैसे उसने प्रयास भी शुरू कर दिया था , और दिल्ली  में हर्षवर्धन जैसे साफ दिखने वाले व्यक्ति को अपना मुख्यमंत्री घोषित करके लेकिन देर से , अब ये देरी उसे लोकसभा के चुनावो में नहीं करनी चाहिए और कम से कम तब तक के लिए ये अपने कांग्रेसी चोले को उतार कर उससे अलग दिखना शुरू कर देना चाहिए ताकि दोनों को एक ही तराजू में न तौला जा सके ।

                                                 कांग्रेस तो निश्चित रूप से इस समय शॉक की स्थिति में है और उसके लिए अब बहुत देर भी हो चुकी है न केवल ६ महीने बाद होने वाले आम चुनावो के लिए बल्कि उसके बाद होने वाले कुछ अन्य राज्य के चुनावो के लिए भी जहा उसकी ही सरकार है । ये ठीक है की आत्मविश्वास बनाये रखने के लिए हम सभी सामने खड़ी चुनौती को अनदेखा करते है और दिखाते है की कुछ है ही नहीं किन्तु सच में ऐसा नहीं मान बैठते है , यही पर कांग्रेस ने गलती कर दी उसने तो कहने के साथ ही ये मान भी लिया था की मोदी और अरविंद उसके लिए कुछ है ही नहीं , ये अहंकार उसे ले डूबा और आगे भी ले डूबेगा ये तय है । राहुल आज भी सिख ही रहे है , हद हो गई अब वो साल पहले बनी पार्टी से भी सिख रहे है, उनका ये रवैया उन्हें भी ले डूबेगा और जल्द ही कांग्रेसी प्रियंका प्रियंका के नारे लगाते दिखेंगे , अच्छा हो वो जल्द सिख कर उसे आजमाना शुरू करे और पुराने घाघ कांग्रेसियो को रिटायर करके कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ताकि जो वो कहते है उसे अपनी पार्टी में लागु करवाने में उन्हें कोई परेशानी न हो और हर बार कांग्रेस के विकल्प के रूप में न कोई उभरे और न उसे राजनैतिक वनवास पर जाना पड़े। अच्छा होगा की २०१४ -१९ को छोड़ उन्हें अब २०२४ की तैयारी करनी चाहिए , कांग्रेस इससे ज्यादा सत्ता से दूर नहीं रहती है और हर बार की तरह पलट कर वापस आएगी , यदि बीजेपी ने खुद से कांग्रेस को बाहर नहीं निकाला , यदि अरविंद अपने सिद्धांतो पर नहीं टिके रहे तो ।


                      व्यक्ति पूजा शायद इंसानी स्वभाव है जिसे हम कभी भी नहीं बदल सकते है , आजादी से आज तक हम यही करते रहे है , हमेसा एक चहरे के पीछे भागते है , वैसे ये चलन हमारे देश तक ही सिमित नहीं है हाल हर जगह का यही है ।  चाहे नेहरु ,इन्दिरा हो या वाजपेयी ,मोदी या  जेपी और अब अरविंद , हम  अपने ढरे पर चल रहे है । ईमानदारी से हम बता सकते है की वोट उम्मीदवारो को नहीं अरविंद , शिवराज, वसुंधरा , रमन , मोदी और चुनाव चिन्हो को पड़े । हम  लोकतंत्र के उस मौजूदा रूप के लिए नहीं बने है जो इस समय देश में लागु है । इसे देखते हुई लगता है कि वाकई समय आ गया है की इस बात पर विचार किया जाये कि क्यों न जनता अपने प्रतिनिधियो के साथ ही अपने  प्रधानमत्री या मुख्यमंत्री का चुनाव  खुद ही करे न कि उसके चुने प्रतिनीधि जो की वास्तव में भी करते नहीं है , चुने गए प्रतिनीधि सदन के नेता का चुनाव करेंगे जैसी बाते केवल संविधान में लिखा भर है असल में क्या होता है ये हम सभी को पता है । जब जनता नेता और चुनाव चिन्हो को ही वोट देती है तो उसे ही ये अधिकार मिलना चाहिए की वही सीधे अपना सर्वोच्च नेता क्यों न चुने जैसे कई अन्य देशो में चुना जाता है , कम से कम आज दिल्ली में जैसी हालत है वो तो न होगी , चुनाव के बाद ही दूसरे चुनावो की बात होने लगी एक सरकार तो बन ही जायेगी और देश को उसके पसंद का नेता मिलेगा ।

                                   कहते है की एक झूठ बार बार बोला जाये तो वही सच बन जाता है , वही हाल हम भारतीयो का है । जोड़ तोड़, खरीद फरोख्त , दल बदल , मौका परस्ती , हर हाल में सत्ता की चाहते, उसूल सिद्धांत नैतिकता बेमतलब  और राजनीति में सब जायज है जैसी बाते हम इतना देखते आ रहे है की अब  हमें वो सब भी लोकतंत्र का ही एक हिस्सा लगने लगा है । आज कितने ही आराम से हम सब और मिडिया भी खुले आम ये बाते कर रहे है की कोई भी किसी से भी समर्थन ले ले कोई किसी को भी खरीद ले और सरकार बना ले , " आप " और बीजेपी  पार्टी की नैतिकता वाली बात तो हमें हजम ही नहीं हो रही है और लोग साफ कह रहे है कि ये क्या बकवास है चुपचाप सरकार बनाओ जो भी समर्थन दे , ये तो हाल है अपने देश का और बात करते है राजनैतिक व्यवस्था को बदलने की ।

चलते चलते 

                      बीजेपी को सरकार नहीं बनानी है उसे विपक्ष में बैठना है " आप " को भी सरकार नहीं बनानी है उसे भी विपक्ष में ही बैठना है और कांग्रेस सोच रही है कि  कम्बखत दोनों को विपक्ष में ही बैठना था तो मेरी सरकार ही क्या बुरी थी , मेरा ये हाल क्यों किया । 



                                           








26 comments:

  1. अंशुमाला जी,मैंने बहुत ध्यान से देखा पर पता नहीं क्यों मुझे जीत के बावजूद भी अरविंद केजरिवाल के चेहरे पर वो खुशी दिखाई नहीं दे रही जो होनी चाहिए।बहुमत की आशा तो उन्हें और उनके कार्यकर्ताओं को भी नहीं रही होगी।सरकार न बनाने की वजह कुछ और ही लगती है।केजरिवाल और उनके साथी थोड़े डरे हुए लग रहे हैं।राहुल गाँधी चाहे जितने अयोग्य हों उन्हें आज नहीं तो कल पीएम बनना ही है तब तक उन्हें pogo tv या cartoon network देख लेने दीजिए ।और मीडिया से तो अभी सारी पार्टियाँ वैसे ही डरी हुई है पता नहीं कौन कम पलट जाए।ध्यान है न कैश फॉर वोट कांड के समय क्या हुआ था।बीजेपी द्वारा बनाई गई सीडी एनडीटीवी ने रख तो ली पर चलाई नहीं बाद में चलाई भी तो काट पीटकर तब तक इसका कोई मतलब ही नहीं रह गया था।

    ReplyDelete
    Replies
    1. उन्हें बहुमत की आशा थी कि नहीं ये कहना मुश्किल है क्योकि जो सर्वे चुनावो से पहले वो करवा रहे थे उसमे उन्हें बहुमत से ज्यादा सीटे मिलती दिखा रहे थे जिसका सभी मजाक भी उडा रहे थे , उन्हें बहुमत मिल भी जाती यदि जनता में कुछ लोग ये नहीं सोचते की उन्हें पसंद तो करते है किन्तु वोट दे कर क्या फायदा सरकार तो उनकी बननी नहीं है शाजिया सिर्फ ३२६ वोट से हारी है । सरकार वो क्यों बनाएंगे उनका तो हक़ भी नहीं बनता है संवैधानिक तरीके से ये काम तो बीजेपी को करना है कायदे से देखे तो दो निर्दलीय को मिलाने के बाद उन्हें मात्र दो सीटो की जरुरत है , जो उनके लिए कोई मुश्किल नहीं वो जब चाहे कांग्रेस के ८ में से ४-६ विधयाको की अंतरात्मा जगा सकते है :) वो जगाएंगे भी किन्तु लोकसभा के चुनावो के बाद ," आप " को हलके में लेने की कांग्रेसी गलती वो नहीं दोहराएंगे , और आप आज किसी के सहयोग से सरकार बना कर अपना कल क्यों बिगाड़े और दुसरो के हाथ में मुद्दा क्यों दे अपने खिलाफ , जबकि उसका लक्ष्य और आगे जाने का है ।

      Delete
    2. स्टिंग की वजह से इन्हें अपना जनाधार खिसकता नजर आ रहा था।पर योगेन्द्र यादव ने आप की तरफ से उस स्टिंग मामले में काउंटर अटैक जोरदार किया था।केजरिवाल से सरकार बनाने की अपेक्षा इसलिए की जा रही थी क्योंकि कांग्रेस अपना थूका चाटते हुए उन्हें ही बिना शर्त समर्थन को तैयार हुई थी।पर आप ने नकारकर अच्छा ही किया।वो लोग सिद्धांतो के बल पर ही इतना आगे आए हैं।दूसरी तरफ देखा जाए तो केजरिवाल विपक्ष का काम तो पहले से ही करते आ रहे हैं।रॉबर्ट वाड्रा सलमान खुर्शीद शीला दीक्षित नितिन गडकरी अनिल अंबानी सबकी पोल उन्होंने वैसे ही खोल कर रख दी।अब विधानसभा में बैठकर देखते हैं क्या करेंगे।उन्हें हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहिए वर्ना इन्हें भी रामविलास पासवान बनते देर नहीं लगेगी।

      Delete
  2. पर जो भी हो दिल्ली के चुनावों में सबसे अच्छी बात यह हुई कि बड़े बड़े नेताओं के घमंड को जनता ने चूर चूर कर दिया।खासकर शीला जी जो केजरिवाल के बारे मे उल्टा सीधा बोल रही थी।राजस्थान में यूँ तो हर बार परिवर्तन होता है लेकिन इस बार खास बात यह रही कि दोनों पार्टियों ने जितने भी नेताओं के बेटे बेटियों और रिश्तेदारों को टिकट दिए थे जिन्हें कोई अनुभव नहीं था वो सब नकार दिए गये इसके अलावा जितने भी दागी और दागियों के रिश्तेदारों को टिकट दिए गये थे वो सब बुरी तरह से हारे हैं।ऐसा यहाँ पहले कभी नहीं हुआ और ज्यादा खास बात यह है कि इन दोनों मामलों में दोनों ही पार्टियों के साथ मतदाता ने एक जैसा व्यवहार किया है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अन्ना आंदोलन से जनता जाग गई है ये बात तो पिछले साल दिसंबर में ही पता चल गया था ( कितने समय के लिए ये नहीं पता ) अब तो उसका परिणाम सामने आया है , असल में अन्ना आंदोलन का असर तो अब इन नेताओ को पता चला है जो उसे हमेसा से हलके में लेते थे वो अलग बात है की आज खुद अन्ना के साथ जब वो अनशन पर है तो ज्यादा लोग खड़े नहीं दिख रहे है , सम्भवतः चुनावो कि आपा धापी कुछ कम हो तो "आप " और हैम सभी को उनकी याद आये । ।

      Delete
  3. जो भी हो सच में ऐतिहासिक क्षण तो है. रणनीति हो या राजनीति एक डर तो आया है इन हिटलरी नेताओं में.आगे तो बस प्रार्थना ही कर सकते हैं.

    ReplyDelete
    Replies
    1. ऐतिहासिक क्षण तो है ही , जो कांग्रेस " आप " के हाथो इतनी बुरी गत पाई है जिसे चुनावो के पहले कुछ समझते नहीं थे आज उसी को बिना शर्त समर्थन को तैयार है , इन कांग्रेसियो की अंतरात्मा बड़ी जल्दी जागती है ।

      Delete
  4. We are in a ticklish situation , BJP or AAP if they together make a government then who sits in opposition , will congress with 8 seats sit in opposition ????
    If BJP or AAP form the government and second one sits with congress in opposition and government being a non majority can be given a vote of no confidence

    As of now this has nothing to do with the loksabha election and before 18th december a decision needs to be take as per constitution

    ReplyDelete
    Replies
    1. कांग्रेस किसी भी कीमत में दुबारा चुनाव नहीं होने देगी वो जानती है इन हालातो में दुबारा चुनाव हुए तो जो ८ उसके पास है वो भी चले जायेंगे , इसलिए जहा तक मेरी जानकारी है विधान सभा बर्खास्त नहीं होगी न दुबारा चुनाव होंगे केवल ६ महीने के लिए राज्यपाल शासन लगेगा उसके बाद और उस बिच भी कभी भी कोई भी अपनी सरकार बनाने का दावा पेश कर सकता है , ऐसा ही होता आया है ।

      Delete
  5. आगे चलकर आम और खास दोनों का ये भी एक खेल ही साबित होगा ..... जस्ट वेट एंड वाच

    ReplyDelete
    Replies
    1. हा अब इंतज़ार के अलावा कोई रास्ता भी नहीं है ।

      Delete
  6. AAP की सफलता देख,अब शायद बुद्धिजीवी , समाजसेवी, देश और जनता के लिए कुछ करने का जज़्बा रखने वाले राजनीति की तरफ आकृष्ट होंगे .राजनीति को सिर्फ कीचड़ और गंदगी नहीं समझा जाएगा. पर मुश्किल यही है कि सफलता कितना संभाल पाते हैं ,ये लोग. अरविन्द केजरीवाल अकेले कुछ नहीं कर सकते...उनके आस-पास भी ऐसे लोग होने चाहिए जिनके पंख तो खुल आयें पर पैर जमीन पर ही हो ....एक आशा तो बंधी है...इनकी सफलता की रफ़्तार भले ही धीमी हो, पर आने वाले दिनों में साफ़-सुथरी राजनीति का चलन हो..ये भी कम नहीं. पूर्ण बहुमत न मिल पाना ,इनके हक में अच्छा ही है. इन्हें और कम करने का वक़्त मिलेगा .अभी संगठन को बढाने की ज्यादा जरूरत है .

    ReplyDelete
    Replies
    1. इन्हें और कम करने का वक़्त मिलेगा = इन्हें और काम करने का वक़्त मिलेगा

      Delete
    2. खुद अरविंद ने इस सवाल पर की महिलाओ को टिकट इतने कम क्यों दिए कहा था कि वो उन्होंने कई महिलाओ से चुनाव लड़ने के लिए कहा जिसमे निलम कटारा भी थी ने इंकार कर दिया , राजनीति और चुनावो की जो हालत देश में थी कि कोई भी साफ सुथरा व्यक्ति यहाँ आना ही नहीं चाहता था उसे डर रहता की उस पर बेमतलब के आरोप लगाये जायेंगे और उसे चुनावी तिकड़म नहीं आता है , यही कारण है कि नेता ताल ठोक ठोक कर अरविंद को चुनाव लड़ने की चुनौती देते थे । बस पैर जमींन पर रहे ये उम्मीद मुझे भी है और उनके हक़ में भी रहेगी ।

      Delete
  7. अंशुमाला जी! बहुमत न होने का इस समय सबसे बड़ा नुकसान यह है कि साझा सरकार बना भी ली जाये, तो बहुमत सिद्ध करना एक बड़ा सिरदर्द होगा.. कॉंग्रेस समर्थन के दिन यदि अनुपस्थित भी हो जाये तो बहुमत सिद्ध हो जायेगा, लेकिन आगे तो "हवन करेंगे-हवन करेंगे".. जिन कदाचारों और बढ़े मूल्यों का विरोधकर वे गद्दी पर बैठे, उसको काबू में करना असम्भव होगा और वो भी लोकसभा चुनाव से पहले.. याद है बी जे पी का बयान कि हमें तो खाली खज़ाना मिला है हम कैसे गाड़ी पटरी पर लाएँ... कोई भी पार्टी सत्तारूढ़ पार्टी को हटाने का दम भरती है, लेकिन मेनिफेस्टो में यह नहीं कहती कि चोर और खज़ना खाली करने वाली पार्टी के बाद वो कैसे चमत्कार दिखायेंगे!! जनता की उम्मीदें अगले दिन से चालू हो जाती हैं..
    इन सब को देखते हुये दोनों पार्टियों के लिये पॉप्कॉर्न की कढ़ाई है दिल्ली की विधान सभा!!

    ReplyDelete
    Replies

    1. बी जे पी के लिए सरकार बनाना ज्यादा आसान होगा , मझे हुए खिलाडी है कांग्रेस का ही एक रूप है कोई भी कांग्रेसी नेता अपनी " अंतरात्मा " जगा कर उसका साथ दे सकता है या वो ले सकते है अपनी और सरकार की स्थिति और मजबूत कर सकता है , आप का साथ दे कर तो बेचारे को लगेगा की लो यहाँ मिलना तो कुछ नहीं है ये कम्बख्त तो सरकारी बस से चलने तक के लिए कही मजबूर न कर दे , इसलिए सरकार फिलहाल तो बीजेपी की ही बनती दिख रही है और उनका हक़ भी बनता है अब धीरे धीरे राजी भी हो रहे है , कांग्रेस को समस्या भी न होगी जानते है कही दुबारा चुनाव हुए तो उन दोनों का क्या होगा पता नहीं किन्तु उनकी ८ भी चली जाएँगी ये तो तय है ।

      Delete
  8. आप पार्टी ने अभूतपूर्व कीर्तिमान बनाये और देश के सामने उन आदर्शों का फिर से नवीनीकरण /जागृत किया जिनके बल पर ही चुनाव लड़े जाने चाहिए। सत्ता से जुड़ने के बाद ही उनके कार्य और संकल्प ठीक से जाने जा पाएंगे। अभी इन्तजार करते हैं। चार राज्यों में पार्टी की जीत के बाद भी मिडिया यही पूछता आया कि आपके फलने का जादू नहीं चला , जबकि इन राज्यों का सामान्य नागरिक भी जन समर्थन के प्रमुख कारण जानता है , मिडिया का पक्षपात पूर्ण रवैया स्पष्ट नजर आया।

    ReplyDelete
  9. बिजली के बिल का भुगतान न करने जैसी अपील और बिल राशि आधी करने के वादे करना आसान है लेकिन आगे बहुत कठिन है डगर पनघट की। घाघ नेता पहले चैलेंज देते थे कि आप राजनीति में उतरिये, बेशक एक छोटे से राज्य में ही सही लेकिन उस चैलेंज को काफ़ी हद तक केजरीवाल पार्टी ने स्वीकारा है। अब ईमानदार सरकार बनाकर और चलाकर जनता के चैलेंज को भी स्वीकार करना चाहिये।

    ReplyDelete
  10. इस बार की दिल्ली विधानसभा के बारे में किन्ही विमल द्विवेदी जी द्वारा फेसबुक पर दी गई जानकारी यहाँ रखना सही रहेगा-
    1. इस बार केवल तीन महिलाये चुन कर आई है,
    तीनो "आप" से है.
    2. 12 लोग दलित समाज से है, उसमे से 10
    "आप" के है.
    3. कुल 11 युवा विधायक (25 से 35 वर्ष) चुने
    गए है, उसमे से 10 "आप" के है.
    4. प्रथम 10 सबसे गरीब विधायक,
    सभी "आप" के है.
    5. प्रथम 10 सबसे अधिक शिक्षित
    विधायक, 7 "आप" से है

    ReplyDelete
  11. वसुंधरा जी का काफिला कहीं जा रहा था तो लाल बत्ती होने पर उन्होंने अपनी गाड़ी को रुकवा दिया और हरी बत्ती होने पर ही उनका काफिला आगे बढ़ा।वसुंधरा जी पहले भी सीएम रह चुकी पर ऐसा तो उन्होंने कभी नहीं किया हमेशा जनता को ही रुकवाया जाता था ।लेकिन इस बार ट्रेफिक नहीं रोका गया।एक एफ एम चैनल की आर जे इस पर कह रही थी कि इन आप पार्टी वालों ने जनता को थोडा भाव देना शुरू कर दिया है इसीलिए दूसरी पार्टी के नेता भी इस तरफ सोचने लगे हैं।मुझे लगता है आरजे बिल्कुल ठीक कह रही थी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ये सब नौटंकी भी बस लोकसभा चुनावो तक ही रहने वाली है ये दिखाने के लिए की कांग्रेस का विकल्प वही है और वो भी बड़े नैतिक और आम लोगो जैसे है जनता को किसी और कि जरुरत नहीं है , वरन तो वसुंधरा जी के नखरो और बात करने का तरिका सभी को पता है ।

      Delete
    2. This comment has been removed by the author.

      Delete
    3. यह भी सही है।लेकिन अंशुमाला जी मैं तो इसे भी अच्छा संकेत मानता हूँ कि चुनाव जीते बाद भी इन लोगों को ऐसी नोटंकी करनी पड़ रही है।और वसुंधरा जी पियक्कडों पर विशेष मेहरबानी के लिए जानी रही हैं चाहे डिपार्टमेंटल स्टोर्स मे भी शराब की बिक्री की छूट देने का मामला हो या ठेके रात को आठ के बजाय ग्यारह बजे तक खोलने का।पर अभी तक उन्होंने ऐसा कदम जान बूझकर नहीं उठाया है।देखते हैं यह नौटंकी कब तक जारी रहती है।वर्ना पिछली बार तो इन्होंने फटाफट उन डिपार्टमेंटल स्टोर्स पर भी शराब बेचने की अनुमति दे दी थी जहाँ पर संभ्रांत घरों की महिलाएँ आटा भी खरीद रही होती हैं।

      Delete
  12. aajtak.intoday.in/story/operation-kejriwal-delhi-secretariat-officials-destroying-files-1-750547.html

    ReplyDelete
  13. लोकसभा चुनाव के बाद तस्वीर कुछ और ही है ।

    लम्बा अन्तराल हो गया है, कृपया नयी पोस्ट दें ।

    ReplyDelete