December 27, 2013

चाय से ज्यादा केतली गर्म - - - - - -mangopeople




                                                                                बिटिया को जब भी दूध का ग्लास पकड़ाती हूँ तो , वो चीखती है की ग्लास इतना गर्म है की पकड़ा नहीं जा रहा है , दूध कितना गर्म होगा मै  उसे कैसे पी सकती हूँ और मै  उन्हें हर बार समझाती हूँ कि ग्लास के गर्म होने से दुध के गर्म होने का अंदाजा उसे नहीं लगाना चाहिए दूध गर्म नहीं है उससे ज्यादा ग्लास गर्म है :) । यही हाल हमारी राजनीतिक पार्टियो के समर्थको का है , नेता जितना नहीं बोलते है उससे कही ज्यादा उनके समर्थक बोल पड़ते है । इधर "आप" विधायक बिन्नी केजरीवाल के घर से मीटिंग छोड़ कर बाहर आये उधर समर्थक चिल्लाना शुरू कर दिए की कल पोल खोलने वाली पार्टी कि ही पोल उनके माननीय नेता जी खोलेंगे , दूसरे दिन मामला सुलटने के बाद बेचारे नेता जी को अपने ही समर्थको की बातो का जवाब नहीं देते बन पड रहा था , केजरीवाल ने अभी शपथ भी नहीं लिया किन्तु उनके समर्थक राम राज्य लाने के सपने दिखाने लगे है , चार राज्यो के  बुरी गत करने के बाद कांग्रेस और जीत की रथ पर सवार बीजेपी भी अपनी हार जीत  को भूल आगे की राजनीति में लग गई , नए समीकरण तलाशने लग गई किन्तु समर्थक आज भी वही अटके पड़े है और सोशल मिडिया में पानी पी पी कर " आप " को गालिया दे रहे है उसे घेरने का प्रयास कर रहे है । इधर राहुल उनसे कुछ सीखने की बात करते है , अपने नेताओ को "आप" की तरह जनता से जुड़ने की नसीहत देते है ,कांग्रेस उसे समर्थन दे रही है तो उधर कुछ उसके ही खिलाफ मोर्चे ले कर निकल रहे है और गिन गिन कर उनके वादे याद  दिला उन्हें पूरा होने के लिए असम्भव बता रहे है । सही भी है जब ६६ सालो में हम नहीं कर पाये तो ये क्या करेंगे, किन्तु वो नहीं कर पाएंगे उस बात पर भी पूरा विश्वास नहीं है , डर में है कि सच में पञ्च साल में पूरा न कर दे इसलिए पञ्च साल का भी समय देने को तैयार नहीं है कहते है की सब ६ महीने में ही कर के दिखा दीजिये नहीं तो आप फेल है। बीजेपी के शीर्ष नेता कब के विवादित मुद्दो को ठन्डे बक्से में डाल कर भूल गई है किन्तु समर्थको को उसका भान भी नहीं है , मोदी कहते है देवालय से पहले शौचालय , सही बात है देवालय जैसे मुद्दो से कही ज्यादा जरुरी हर घर तक विकास शिक्षा और प्राथमिक जरुरतो को पूरा करना है , नेता जानते है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता विकास की रोड से जाता है सभी को ले कर चलने से मंजिल मिलती है ,न की किसी एक समुदाय को लेकर बोलने से ,आखिर वो इतने शीर्ष पर अपनी उसी काबलियत और बुद्धि से पहुंचे है  कि  कब क्या बोलना है और कब किन मुद्दो को गायब कर देना है ,  वो तो जम्मू भी जाते है तो कश्मीरी पंडितो पर एक लाईन भी नहीं बोलते है किन्तु समर्थक ये सब समझते ही नहीं है और ऐसी ऐसी बाते बाहर बोलते है उनसे उम्मीद करते है कि बेचारे नेता की छवि लाख चाहने प्रयास करने के बाद भी नहीं बदल पाती है । नेता वही सही और सफल है जो समय के साथ बदले और जनता के इच्छानुसार मुद्दे उठाये, कहते है की काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती है , मझा नेता बार बार एक ही संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दो को नहीं उठाता है ।  अब देखिये जिस मनरेगा ने गरीबो की भलाई वाली स्कीम ने यु पी ए को दूसरी बार चुनाव जिताया , वही दूसरी गरीबो की स्कीम भोजन का अधिकार और कैश ट्रांसफर उसे चार राज्यो में जीत क्या सम्मान जनक सीट भी नहीं दिला सकी , उसका भ्रष्टाचार सब स्कीम पर भारी पड़ा। बीजेपी भी जानती है की उसकी हिंदूवादी छवि न कभी उसे सरकार दिला पाई है और न आगे दिला पायेगी , वो उसे सीटे तो दिला सकती है किन्तु सत्ता नहीं , सही समय पर उसने अडवाणी को किनारे किया और वाजपेयी को आगे , मोदी ने सही समय पर सिखा और अपनी छवि विकास पुरुष की बना ली । किन्तु समर्थक राजनीति की इन हकीकतो को समझते नहीं है और उसी पुराणी छवि को पकड़ कर अपने ही नेता को मुसीबतो में डालते रहते है ।

                                               सोसल मिडिया हो या अन्य जगह दिल्ली और " आप " को लेकर ऐसी ऐसी राजनीतिक चालो का वर्णन है कि समझ नहीं आ रहा है की शिकारी कौन है और शिकार कौन , लगा बीजेपी सरकार बनाएगी किन्तु उसने " आप" की नैतिकता वाली चाल चल दी और गेंद " आप" के पाले में इस उम्मीद में डाल दी कि वो तो सरकार बनाएंगे नहीं ६ महीने विधान सभा स्थगित हो जायेगी फिर लोकसभा चुनावो के बाद कांग्रेसियो की अंतरात्मा जगा कर सरकार बना ली जायेगी  , लगे हाथ कांग्रेस ने भी समर्थन इस उम्मीद में दे दिया कि वो तो लेंगी ही नहीं हम दोनों चचेरे भाई उसे भगोड़ा घोषित कर देंगे और मामला फिलहाल लोकसभा चुनावो तक टाल देंगे और सरकार न बनाने पर "आप " वालो की जम कर खबर लेंगे ताकि वो लोकसभा चुनावो में ज्यादा कुछ न कर पाये , किन्तु हाय रे हाय जो " आप " वाले एक समय फसंते दिख रहे थे उन्होंने ने तो फिर से वोटिंग करा कर सरकार बनाने की ठान ली और अपने वादो को पूरा करने की भी , लो जी अब तो कांग्रेस और बीजेपी दोंनो की ही चाल उलटी पड़ती दिखने लगी , नतीजा दोनों की ही तल्खी और बढ़ गई " आप " के प्रति , बीजेपी के तो मुंह से निवाला चला गया , और अब कांग्रेस को डर है कि पिछले १५ सालो में जो खाया है दिल्ली में वो कही बाहर न आ जाये , जो थोड़ा बाहर आया है उससे तो ये हाल है जब और आयेगा तो आगे क्या होगा । अब दोनों उम्मीद लगाये बैठे है कि उनका तारण हार दिल्ली की बाबू ब्रिगेट करेगी , एक भी फाईल आगे नहीं बढ़ने देगी एक भी काम नहीं होने देगी , किन्तु उनकी इस उम्मीद पर भी तुषारपात होता दिख रहा है , अब खबर या अफवाहे जो भी आ रही है कि बाबू ब्रिगेट तो खुद ही अपनी जान बचाने में लगी है , कोई फाईले फड़वा रहा है तो कोई ट्रांसफर ले रहा है तो कोई आफिस में ताले लगा कर काम कर रहा है । एक हंसी मुझे तब आई थी जब टीवी चैनलो में मैंने अपने जीवन में पहली बार ( शायद दुसरो ने भी ) कांग्रेस और बीजेपी को गलबहिये करते एक दूसरे की पीठ थपथपाते और एक दूसरे की हा में हां मिलाते देखा लोकपाल के मुद्दे पर वो भी खुलम खुल्ला , चोरी छुपे तो दोनों ये करती ही आई थी , दूसरी हंसी अब आ रही है इस बाबू ब्रिगेट का हाल देख कर , मुझे कमल हासन की फ़िल्म इन्डियन याद आ रही है जिसमे वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी बने थे और रिश्वतखोरो को सजा देते है उनका डर सब में इतना हो जाता है कि उनके जाने के बाद भी दूसरे लोग उनके जैसी बेल्ट पहन कर ही लोगो को डरा देते है ।


                                                                समझ नहीं आता की अरविन्द से लोगो को इतना डर और चिढ क्यों है क्यों उनकी पार्टी बनाने से दोनों बड़ी पार्टिया इतनी खीजे हुई है , शरद पवार , राजठाकरे , देवगौड़ा , जगन मोहन , येदुरप्पा , कल्याण सिंह , उमा भारती जैसे न जाने कितने लोगो ने पार्टी तोड़ कर या नई राजनीतिक दलो को खड़ा किया , सभी ने किसी न किसी का वोट काटा और राजनीति में अपने लिए जगह बनाई या हार कर ख़त्म हो गए , उनके लिए ये तल्खी कभी भी इन दो बड़ी पार्टियो ने नहीं दिखाई जो वो आज "आप " के लिए दिखा रही है । शायद ये पहला मौका है जब उन्हें लग रहा है कि " आप " राजनीति में उनके बनाये नियमो के तहत नहीं काम कर रही है , लोकतंत्र का जो रूप उन्होंने आज तक जनता में फैला दिया था  जिसमे से लोक ही गायब है " आप " फिर से उस लोकतंत्र में लोक को सामिल करके उनका खेल बिगाड़ रही है , वो राजनीति करने के तरीके को बदल रही है , वो आम लोगो में अपने अधिकारो के प्रति जागने की जो भावना बैठा रही है वो आगे उन्हें परेशान करने वाले है , वो उनमे से ही एक नहीं है , जो सत्ता पैसे ताकत के लिए हर तरीके से समझौते कर लेती है , ये जिद्दी लोगो का वो गुट है जो सच में कुछ बदलने का ठान के आई है । इतना विश्वास तो खुद मुझे भी नहीं है "आप " पार्टी पर ,मै  मानती हूँ कि अरविन्द और उनके आस पास के कुछ लोग बदलाव के मकसद से काम कर रहे है जिसमे सत्ता का लालच नहीं है , क्योकि वो खुद एक बड़ा पद जो काफी ताकतवर होता है को छोड़ कर आये है और जमीनी रूप से काफी काम किया है कित्नु जिस बदलाव की वो बात कर रहे है वो ये काम अकेले नहीं कर सकते है , समग्र विकाश के लिए और ऐसे लोग की फौज वो कहा से लायेंगे , उनकी पार्टी में लगभग सभी नए है जिनमे से कई तो सता की ताकत को कभी महसूस ही नहीं किया है , वो उसे त्यागते हुए कैसे अपनाएंगे । इसके लिए तो भारतीयो का डी एन ए ही बदलना पडेगा जो भ्रटाचार का नमक खा खा कर उसका आदि हो गया है :)) ।

                                            राजनीति के इस बिसात में राजनीतिज्ञो और बाबू के बाद नंबर आएगा आम लोगो का जो कटिया डाल कर बिजली लेते है , मीटर में गड़बड़ी करके बिल कम करते है , ट्रैफिक रूल नहीं मानते है ,  जो पुरे कागजात न होने के बाद भी चाहते है कि कुछ ले दे कर उनका काम हो जाये , जो सरकारी दफ्तरों की लम्बी लाइनो से बचने के लिए दलालो का सहारा लेते है , जो घर बैठे ही ड्राइविंग लाइसेंस ले लेना चाहते है , जो अपने घरो में अवैध निर्माण करते है , पानी का गलत कनेक्शन लेते है आदि आदि क्या वो आम आदमी सुधरने के लिए तैयार है , कही ऐसा न हो जो आम आदमी वोट दे कर अरविन्द को उस गद्दी पर बैठाया है वही उनकी कड़ाई से उब कर खुद ही उन्हें गद्दी से उतार दे या ये हो सकता है कि आम आदमी ने पिछले ६६ वर्षो से जो गलती की है , उसे फिर से न दोहराए , इन दलो को फिर से अपने मुद्दो से भागने न दे,  जो सुधर गए है उन्हें बिगड़ने न दे , अपने नेताओ पर नजर रखे , अपने अधिकारो के प्रति सजग रहे , सिर्फ वोट डी कर पञ्च साल के लिए अपने हाथ न कटा ले , अपने नेताओ से सवाल करता रहे और लोकतंत्र से फिर से लोक को गायब होने का मौका न दे । तो लोगो से निवेदन है कि अपना दिल और दिमाग खुला रखे राजनीति को राजनीति की तरह ही ले सही को सही ओए गलत को गलत कहे ।


चलते चलते

               कुछ्महिनो पहले एक ब्लॉग पर पढा की सभी न्यूज चैनल हिन्दू विरोधी है और बीजेपी की खबर नहीं दिखाते है , मैंने भी अपनी गन्दी आदत के अनुसार वहा टिप्पणी दे दिया की भाई कोई भी तीज त्यौहार हो या ग्रह नक्षत्र की गड़बड़ी हिंदी न्यूज चैनलो तो इन्ही खबरो से भरेपड़े है , १५ अगस्त को जब आँख खुली और टीवी खोला तो एक बार तो मै कन्फ्यूज ही हूँ गई लगा की मै  कोमा से बाहर आई हूँ , मोदी जी प्रधानमत्री बन गए है और भाषण दे रहे है हर न्यूज चैनल पर  भाषण सीधा आ रहा था , वो कही रैली करे और उसका सीधा प्रसारण ये चैनल न करे से तो सम्भव ही नहीं है और कितना प्रसारण चाहते है । भाई साहब नाराज हो गए कह दिया कि मुझे हिन्दू धर्म छोड़ देना चाहिए हिन्दू होने के लायक नहीं हूँ , और तो और मै  देश द्रोही हूँ गद्दार हूँ , तब से दुखी थी की कोई मोदी समर्थक मिल जाये और मुझे राष्ट्रभक्ति का सटिफिकेट दे दे नहीं तो कम से कम हिन्दू होने का तो देदे मै  दोनों से निकल बाहर हो गई हूँ किन्तु वो मिल नहीं रहा था , कारण आज पता चला कि मै तो कामरेड हूँ ;-) अपने लिए ये सम्बोधन सुन कर अच्छा लगा गर्व सा हुआ बिटिया कई बार पूछ चुकी है कि मै बड़ी हो कर क्या बनूँगी क्या बताऊ उन्हें कि कुछ नहीं बनी बस उसकी मम्मी भर हूँ , अब कह सकती हूँ कि मै कामरेड बन गई :) वैसे हद है यार दुनिया की खबर लेने के चक्कर में मुझे ये भी नहीं पता चला की मै  कब से नारीवादी के साथ कामरेड भी बन गई । ब्लॉग जगत में आ कर बहुत सारे तत्व ज्ञान अपने बारे में पता चल रहा है , पता नहीं अब तक कैसे जी रही थी । निवेदन है की बताये की ये कामरेड किस धर्म जाति और देश का निवासी होता है , अपने बारे में इतनी तो  जानकारी हो :))))


नोट :-चलते चलते की बात अपने ऊपर यु ही किये गए टिप्पणी को हँसने हँसाने के लिए मजाक में लिखी गई है उसे कटाक्ष का गम्भीरता से न ले , ऐसा मेरी सहज बुद्धि कहती है ;-)

                                       





44 comments:

  1. ये राजनीति है

    ReplyDelete
  2. एक बहुत पुरानी कहावत है कि कमज़ोर की बीवी गाँव भर की भौजाई.. दरसल दिल्ली की तीमों पार्टियों का ये सर्कस इसलिये भी मज़ेदार हो गया कि सामने लोकसभा के चुनाव आने वाले हैं. ऐसे में जब किसी को भी बहुमत नहीं मिला तो सवाल करे या मरो का पैदा हो गया है. और "करो" का टारगेट है 6 महीने यानि लोकसभा चुनाव से पहले.. वरना चुनावों का सबसे ख़ूबसूरत मुहावरा "ऐण्टी इनकम्बेंसी" उनपर लागू होगा और वो "मरो" की गति को प्राप्त होंगे. जिस पार्टी को बहुमत मिल जाता, वो सरकार बनाकर "भएल बिआह मोर, करबा का" वाली स्थिति में होती और साथ में छ: महीने तो ख़ज़ाना ख़ाली, भ्रष्टाचार की फ़ाइलें और शीला आण्टी को सुनाने में बीत जाती. बी.जे.पी. के लिये यह सब आसान था. काँग्रेस को बहुमत मिलने पर - रिकॉर्ड बनते और हमें शासन करना आता है के नारे लगते.
    सबसे विकट स्थिति में थी/है "आप". क्योंकि उनके लिये साँप और छुछुन्दर वाली स्थिति होती. छ: महीने में नहीं कर पाये (क्योंकि तजुर्बेकार लोग तो हैं नहीं उनके साथ) तो लोकसभा चुनाव में उनके ख़िलाफ यही सब मुद्दा बन जाएगा. दरसल उनकी कैल्कुलेशन के हिसाब से वे सिर्फ उतनी सीट की उम्मीद लगाये बैठे थे जितनी में आराम से विधान सभा में हंगामा मचाया जा सके और सत्ताधारी दल को एम्बैरेस किया जा सके. इसी चक्कर में इन्होंने वादे भी बढ़ चढ़कर कर दिये, जो किसी अनुभवी सरकार से भी सम्भव नहीं, उनके जैसे नौसिखिये से तो असम्भव ही लगता है.
    इससे ज़्यादा तो मुझे भी राजनीति की समझ नहीं है... थोड़ा कॉमरेड मैं भी हूँ.. कार्यकर्ताओं की केतली वाली बात पर भी हमारे यहाँ बहुत पुरानी कहावत है.. अधजल गगरी छलकत जाये.. या साहब से ज़्यादा साहब का चपरासी रोब मारता है!!
    ख़ैर सुना है कल मेट्रो से जायेंगे शपथ ग्रहण करने!! ऐसे ही कभी लालू भी साइकिल से गये थे विधान सभा.. फोटो खिंच जाने के बाद, ऑफ द कैमेरा भी "आम" बने रहें, तब तो!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आफ द कैमरा ही क्यों हमेसा ही आम बने रहे इसकी जिम्मेदारी अब आम लोगो पर है कि हरबार की तरह वोट दे कर सो न जाये बल्कि जागते रहो का नारा बुलंद रहे , जो इन्होने ही सिखाया है, पिछले वाले जितने आये वादा कर भूले और हमने भुलने दिया , इनको तो नहीं छोड़ना चाहिए, हालत ये होनी चाहिए कि ये चाहे भी तो अपना वादा भूल न पाये , हा केवल ६ महीना का ही समय ये तो ज्यादती है , फिर तो ये देखा जाना जाहिए की इन ६ महीनो में जमीनी रूप से कार्य करने के लिए कुछ हुआ भी की नहीं , मुझे तो उम्मीद विश्वास है इनसे भी और जनता के जागते रहने से भी ।

      Delete
  3. आप मुझे ’कामरेड’ नहीं लगतीं, अनुराग जी ’भाजपा समर्थक’ नहीं लगते। दोनों के बारे में अपनी राय बता दी, अब खुदा खैर करे :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप से एक नहीं दो शिकायत है , एक तो आप कहावत आधा क्यों बताये " माथा देख कर तिलक लगाना " साथ में ये क्यों नहीं बताया की "प्रोफाइल देख कर गरियाना" ये भी होता है , दूसरे अब जबकि मै ये थोडा थोडा मान कर गर्व करने लगी थी कि मै कामरेड हूँ तो आप कन्फ्यूजिया रहे है मुझे ये कह कर कि मै नहीं हूँ , अब फिर से एक दिन जायेगा ये सोचने में की मै कामरेड हूँ की नहीं हूँ , हमरी तरफ से तो पूरा ठहाका लीजिये :)))

      Delete
    2. वैसे ये पक्का है कि कामरेड वाली बात लिख कर मैंने खुद अपने पोस्ट की ऐसी की तैसी कर ली , मेंन मुद्दे पर तो कोई बात ही नहीं कर रहा है :(

      Delete
    3. आधा बताने से ही सवा हो जाता हो तो पूरा बताने की जरूरत ही नहीं रहती :) इस प्रकरण में शामिल चरित्रों को एक एक करके जाति\धर्म\जेंडर के हिसाब से बदल कर देखा जाये तो गारंटीड बात है जो प्रतिक्रिया अभी हम आप दे रहे थे, वो बदल जायेंगी। इसी तरफ़ इशारा कर रही थी वो आधी कहावत।
      कन्फ़्यूजियाईये मत और इच्छानुसार गर्व थोड़ा नहीं पूरा करिये, मैंने ये भी नहीं कहा कि आप कामरेड नहीं हैं। मैंने तो मात्र इतना निवेदन किया है कि मुझे आप कामरेड नहीं लगती। error of judgement मुझसे बिल्कुल हो सकती है :)
      मेन मुद्दे की बात की जाये तो वहाँ भी वही आधी कहावत बाली बात मुझे तो फ़िट बैठती दिखती है। बीजेपी जोड़तोड़ करके सरकार बनाती तो आप इस बात पर उनकी खिंचाई कर रहे होते, जैसे अभी नहीं बनाई तो इस बात पर कर रहे हैं। किसी के बहुत बड़ा पद छोड़ देने को आप समर्थक कुर्बानी मानते हैं, विरोधी ये कह सकते हैं कि उन्होंने बड़े पद पर रहते हुये क्या अपना विभाग भ्रष्टाचारमुक्त बना दिया था? इनके बहुत से दावों की ऐसी-तैसी कभी भी की जा सकती है लेकिन वो मुख्य मुद्दा नहीं है। आपको लगता है कि बीजेपी के सरकार न बनने से मुझ जैसे लोग खिसियाये हुये हैं, ऐसा नहीं है। स्पष्ट बहुमत आता और उनकी सरकार बनती तो खुशी होती, अभी नहीं आया तो दुख नहीं है बल्कि मुझे तो खुशी इस बात की है कि कांग्रेसी नेताओं का अहंकार चूर-चूर हुआ है। मैंने पहले भी कहा था कि ’आआपा’ की असली कसौटी सत्ता पाने के बाद होगी, अब भी यही कह रहा हूँ। आम आदमी वाला मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है, मुफ़्त या चोरी की बिजली के लिये समर्थन देना और बात है, ईमानदारी से अपनी देनदारी चुकाना और बात। खैर, ज्यादा लिखेंगे तो फ़िर गाड़ी मेन लाईन से लूप लाईन में आ जायेगी और आप भी कहेंगी कि पोस्ट की .......।

      Delete
    4. @ इस प्रकरण में शामिल ................... वो आधी कहावत।
      सुबह से सूरज महाराज के दर्शन नहीं हुए है कोहरा के कारन नेटवर्क शायद खऱाब है इस लिए इन दो लाइनो का सिंगनल नहीं पकड़ पाई :(
      आज कौन सा जजमेंट डे है कि मेरे कामरेड होने का निर्णय मुझे आज ही लेना है मै भी एस एम एस पोल करा के निर्णय ले लुंगी और अपने कामरेड होने न होने का निर्णय जनता पर डाल दूंगी :)
      मै राजनीति को शुद्ध राजनीति की तरह देखती हूँ , राजनीति में जिस उच्च नैतिकता की बात "आप" वाले करते है मेरा खुद उस पर विश्वास नहीं है , क्योकि ये व्यवहारिक नहीं है और राजनीति में ऐसा होना भी नहीं चाहिए , आप बीजेपी के समर्थक होते हुई भी उसकी सरकारं न बनने से दुखी नहीं है किन्तु मै हूँ और मै इसे उनकी बड़ी बेफ़कूफी मानती हूँ , देश कि कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है जिसने ऐसे मौके पर जोड़ तोड़ न किया हो ये सरकार बनाने और चलाने के लिए व्यवहारिक है , जनता इतनी समझदार है ,उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता है , कभी सुना है की जोड़तोड़ करने वाली पार्टी इस कारण चुनाव हार गई है , बीजेपी ने " आप " के सरकार नहीं बनाने के अति आत्मविश्वास में आ गई जबकि वो उसे कांग्रेस की बी टीम कहती रही है , दिल्ली में जो रणनीतिक गलती उन्होंने की है उसका खामियाजा उन्हें लोकसभा में भी हो सकता है , खुद मैंने आप को सरकार न बनाने के लिए वोट किया था और बड़े आत्मविश्वास से कहा था कि हर्षवर्धन दिल्ली के नए मुख्यमंत्री है ( किसी ने मेरी नहीं सुनी क्योकि कोई भी यहा मुझे प्रसन्न करने के लिए काम नहीं करता है ;) ) और क्या आप को लगता है कि किसी राजनितिक पार्टी को इस बात के बारे में सोचना चाहिए की कौन क्या कहता है , आप वाले ये सोचते तो आज उनकी सरकार नहीं होती ।
      अरविंद अपने विभाग को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए रात में दिल्ली में बड़े बड़े बैनर लगाते थे की यदि उनके विभाग में आप से कोई पैसे मांगे तो उनके पास आइये वो आप का काम मुफ्त में कर देंगे , बिजली विभाग के सामने पर्चे बाटे की हम आप का काम मुफ्त में करेंगे , खेमका हो या दुर्गा नागपाल हो इन किस्सो से आप समझ सकते है कि एक आई ए एस बन जाने भर से आप के हाथ में वो पवार नहीं आ जाती है की आप व्यवस्था को बदल सके , हा उस भ्रष्ट व्यवस्था के साथ मिल कर कमा जरुर सकते है , अरविन्द एक एक सीढी चढ़ कर यहाँ आये है , आज जिस भ्रष्टाचार की जानकारी हमें मिल रही है उस आर टी आई पास करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है , आप ने उन्हें टीवी चैनलो पर इसके लिए लड़ते बहस करते शायद नहीं देखा हो सालो पहले , आर टी आई से भ्रष्टाचारियो को सजा नहीं मिलती है तब उन्होंने लोकपाल की बात की । उनके पद छोड़ने को मै कुर्बानी जैसा नहीं मानती हूँ उन्होंने कुछ करने के लिए अपनी सोच को पूरा करने के लिए पद छोड़ने की हिम्मत दिखाई ,जबकि हम में से बहुतो के पास अच्छी सोच और भावना होने के बाद भी हम अपने सुरक्षा कवच से बाहर नहीं निकलना चाहते है । कल ही टीवी पर टाटा स्टील के एक अधिकारी को सूना जो बता रहा था कि अरविंद जब टाटा में उनके साथ थे तो वो अपने काम से थक कर रात में हास्टल में सो जाते थे तब अरविंद जमशेदपुर की गरीब बस्ती में जा कर गरीब बच्चो को पढाते थे । मै उन पर विश्वास के साथ ये दबाव भी बनाये रखना चाहती हूँ कि वो अपनी लाइन से भटके नहीं , और दुसरो की तरह न बन जाये ।
      आप बीजेपी के पक्के वाले समर्थक नहीं है , ज़रा अपने आस पास नजर घुमाइये ब्लॉग के साथ और माध्यमो को पढ़िए आप को वो खीज उन व्यक्तवयो में नजर आएगी , और उनके गुस्से को मै गलत भी नहीं मानती हूँ , error of judgement है ये तो :) अब गटकरी को ही ले लीजिये " आप " के प्रति अपने निजी खुन्नस में वो ऐसे बयान दे रहे है जिससे " आप " का कद और बड़ा हो रहा है और खुद ही अरविंद को मोदी के सामने खड़ा कर रहे है , जो उनकी पार्टी को बहुत ही भारी पड सकता है । और कांग्रेस का अहंकार चूर वाले से बिलकुल सहमत , केवल बीजेपी के जितने से उनका अहंकार उतना चूर नहीं होता जितना की" आप " के सीटे जितने से हुआ , जिसे कुछ न समझ कर ललकार रहे थे उन्ही को समर्थन दे कर सरकार बनवानी पड रही है वो भी गाली खाते हुए , ये तो थूक कर चाटने जैसा हो गया जी।

      Delete
    5. http://parshuram27.blogspot.in/2013/12/few-comments-from-facebook-about-aap.html
      देखिये इस लिंक को इससे दो बाते पता चल रही है एक तो आप पक्के भाजपाई नहीं है , दूसरे अभी तक मुझे इस एंगल के बारे में पता ही नहीं था , अब अंदाजा लग रहा है कि मुझे कामरेड क्यों कहा गया :)))

      Delete
  4. आपने यह बात हँसने हँसाने भर के लिए तो नहीं कही होगी (बुरा न मानिए ऐसा मेरी सहज बुद्धि कहती है)।किसीने आपको ज़बरदस्ती हिंदू विरोधी बना दिया तो गलती उसकी है।यह एक संकीर्ण मानसिकता है।लेकिन यदि कोई किसी कामरेड को हिंदू विरोधी कह रहा है या मानता है तो कुछ गलत नहीं कह रहा ।क्योंकि आजकल यह दोनों शब्द समानार्थी ही हो गये हैं।वामपंथ अपने आपमें बुरी विचारधारा नहीं है पर भारतीय वामपंथियों ने इसको कबका पलीता लगा दिया है।अब कामरेड होना नहीं बस दिखने का फैशन है वर्ना कामरेडों को साम्प्रदायविरोधी होना चाहिए था पर ये हो गए हैं हिंदू विरोधी।आजकल के कथित सेकुलरिज्म का भी यह ही हाल है।वैसे उन्होंने आपको कामरेड कहा तो आपने क्या कहा?

    ReplyDelete
    Replies
    1. @ वैसे उन्होंने आपको कामरेड कहा तो आपने क्या कहा?
      मैंने उनसे पूछ कि मेरी किस विशेषता के कारण मुझे कामरेड कहा , मै ईश्वर में विश्वास नहीं करती , मैंने कई बार मासूम निर्दोष कश्मीरियों और नक्सलियो के बारे में बात की है , उनसे ये पूछते समय ही मुझे एहसास हो गया था कि हो न हो मै कामरेड हूँ , और मुझे ही नहीं पता है , किन्तु आप ने फिर से एक सवाल खड़ा कर दिया की अब मै हिन्दू होने और कामरेड होने में से एक ही विकल्प चुन सकती हूँ सोच रही हूँ क्या चुनु , क्योकि दोनों का होना भी मैंने नहीं चुना था ।

      Delete
  5. सब बिकता है। जो बिकता है वही दिखता है। देखें पार्टी विथ डिफ़रेन्स क्या डिफ़रेन्स लाती है?

    ReplyDelete
    Replies
    1. आम जनता को मजबूर कर देना चाहिए उन्हें डिफरेंट बने रहने के लिए ।

      Delete
  6. घबराइये नहीं 'कामरेड' साहिब, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को भी, फ़ासिस्ट, सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट और ऐंटी कैपिटलिस्ट कहा गया, लेकिन उनके नेशनलिस्ट और हिन्दू होने से कोई कभी भी इंकार नहीं कर सका ।

    आपको देश हित के लिए जो भी धारा सही लगती है आप उसका समर्थन करें, बाकी कहने वाले तो कहेंगे ही.।
    हमारे यहाँ एक कहावत है, पति को अगर पत्नी की पिटाई करनी होती है तो इस बात पर पीट देता है कि आज पालक में हल्दी क्यों डाला, और कल इस बात पर कि पालक में हल्दी क्यों नहीं डाला :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. और वो जो भारत को एक देश ही नहीं मानते ?उनका क्या? वो अपने आपको कामरेड ही कहते हैं।उनके सपनों का देश चीन जिसने जिनजियांग में उग्यूर (या उईघर) मुसलमानों को चुन चुनकर मारा।इस पर ये लोग कुछ क्यों नहीं बोलते?नेताजी ऐसे थे क्या?

      Delete
    2. अदा जी
      आपकी बात सुन कर जो दो इंच ऊपर हवा में उड़ रही थी , पति ने एक वाक्य में निचे ला दिया ये "कामरेड क्या होता है " आप ने सही कहा पति क्या न कर दे :))

      Delete
    3. राजन जी
      इतना गुस्सा अच्छी बात नहीं अभी आप ने ऊपर कहा है ना @ वामपंथ अपने आपमें बुरी विचारधारा नहीं है पर भारतीय वामपंथियों ने इसको कबका पलीता लगा दिया है।
      तो कुछ अन्य लोगो के किया का गुस्सा कही और नहीं निकालना चाहिए , जैसा की अदा जी ने कहा है
      @आपको देश हित के लिए जो भी धारा सही लगती है आप उसका समर्थन करें, बाकी कहने वाले तो कहेंगे ही.।
      लोग चीजो को गलत वे में लेते है और पलट के कुछ कहते है तो उनके कहने की मौज ले लेनी चाहिए , गम्भीर नहीं होना चाहिए ।

      Delete
    4. राजन जी,

      सोशलिज्म प्रजातंत्र से इतर दूसरी विचार धारा है, गौर से सोचें तो सर्वे भवन्तु सुखीनः सर्वे भवन्तु निरामयाः कुछ इसी ओर इंगित करता है.। जब प्रजातंत्र फेल होने लगे तो लोग साम्यवाद की ओर झुकते हैं.। किसी भी देश में कुछ लोगों के लिए प्रजातंत्र काम करता है कुछ के लिए नहीं। प्रजातंत्र जब सिर्फ कैपिटलिज्म का पिठलग्गू बन जाए और ग़रीब, ग़रीब से गरीबतर होता चला जाए और अमीर, अमीर से अमीरतर तब ऐसी विचारधारा पनपती है.। आप खुद ही देखिये क्या डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ़ वेल्थ सही है ?? आज टाटा, बिड़ला, अम्बानी कहाँ से कहाँ पहुँच गए और गरीब आदमी कहाँ है.। देश अम्बानी का, कानून अम्बानी का, जनता द्वारा चुने गए देश के नुमाइंदे अम्बानी के ही हैं.। देश में प्रजातंत्र सिर्फ नाम के लिए है, वस्तुतः हम कैपिटलिस्ट देश बन चुके हैं.।
      आप ये ना समझे कि मैं साम्यवाद के पक्ष में हूँ, मैं सिर्फ ये बताना चाह रही हूँ कि इसका जन्म किन परिस्थियों में होता है.।

      Delete
    5. भारत को एक देश नहीं मानने की औकात दुनिया के किसी भी देश में नहीं है, हाँ प्रजातंत्र की विफलता से प्रभावित लोग अपना फ्रस्ट्रेशन गलत तरीके से निकाल रहे हैं जिसकी भर्तस्ना होनी ही चाहिए।

      Delete
    6. अंशुमाला जी अभी तो मैंने बात गुस्से में कही नहीं हालाँकि यह सच है कि इन वामपंथियो से एफबी पर लड़ लडकर दिमाग खराब हो गया है।मैंने वामपंथ की विचारधारा को इसलिए अच्छा कहा कि इसमें सभी को समान मानने की बात की गई है ।लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसे व्यवहारिक रूप से अमल में लाया जा सकता है।खुद कम्यूनिस्ट देश भी ऐसा नहीं कर पाए।हाँ बहुत हद तक आर्थिक असमानता दूर करने के उपाय लोकतंत्र में भी किए जा सकते हैं और किए भी गए हैं।पर इस पूरी व्यवस्था को उखाड फेंकने के लिए हिंसक तरीका अपनाया जाए तो मैं इसके खिलाफ हूँ क्योंकि इससे कुछ लोगों की राजनीति तो चमकेगी पर जिसे लाभ होना चाहिए उसे कुछ नहीं मिलगा।वैसे यहाँ मैंने उनकी साम्प्रदायिकता को लेकर सोच के बारे में कहा था और अदा जी नही वामपंथियो के बारे में कहा।हम हमेशा किसीकी बेवकूफी भरी बातों की मौज नहीं ले सकते।अनुराग जी ने आप पर हास्यास्पद आरोप लगाए क्या आपको बुरा नहीं लगा?ये मत कहिएगा कि मैंने तो स्माईलियाँ भी लगाई,वर्ना मुझे सचमुच हँसी आ जाएगी ।

      Delete
    7. अदा जी,ये श्लोक तो बहुत पहले कहा गया राजतन्त्र होगा तब ।यानी इन विचारों पर वामपंथियों का ही एकाधिकार नहीं है।साम्यवाद पूरी तरह तो संभव नहीं है लेकिन इसकी बहुत सी अच्छी बातें दुनियाभर के प्रजातन्त्रों ने अपनाई हैं।मजदूरों और गरीबों के लिए काम किया गया है उन्हें अधिकार दिए गये हैं।लेकिन क्या साम्यवाद ने भी कभी लोकतन्त्र के गुणों को अपनाया है?बल्कि वो तो इसकी आहट से भी डरते है और इस बराबरी को बनाए रखने के लिए वो देश अपनी ही जनता से क्या कीमत वसूल रहे है सबको पता है।दमन की कोशिशे यहाँ भी होती है लेकिन उस पर लगाम लगाने की व्यवस्था यहीं है जबकि साम्यवादी तन्त्रों का तो हथियार ही दमन है।वहाँ तो यह मान्य तरीका ही है।यहाँ तो परिवर्तन की एक आशा भी है लेकिन वहाँ तो कीसीने फेसबुक पर भी अरविंद केजरिवाल बनने की कोशिश की तो उल्टा लटका के इतना मारेंगे न कि सारी क्रांति सर के बल बाहर आ जाएगी और फिर ताजिंदगी नजरबंद करके पटक देंगे।

      Delete
    8. मुझे तो लगता है इन वामपंथियों के घरों मे भी आपको साम्यवाद नहीं देखने को मिलेगा क्योंकि यह व्यवहारिक है ही नहीं।सुनने में चाहे जितना अच्छा लगे।बहुत कमायाँ है पर तब भी लोकतंत्र आज भी दुनिया की सबसे कम बुरी व्यवस्था है।और चलिए मानिए साम्यवाद का आना जरूरी है तो वह आएगा कैसे?नक्सलवाद जैसे हिँसक आन्दोलनो से?एक वामपंथी पार्टि के दो धडे हुए थे जिसमे से एक चुनाव लड़ने का फैसला किया तो दूसरे ने हिंसक आंदोलन का।इसके पीछे तर्क था कि मजदूरो को जमीदार पूरी मजदूरी नही देते।और किसान कह रहे थे कि जब हमें ही पूरा मुनाफा नही होता तो हम ज्यादा मजदूरी कैसे दें।पर क्या ये ऐसा कारण था कि उसकी वजह से वामपंथियो के समर्थन से नक्सली मारकाट पर ही उतर आए?और यह सही था तो इनके जवाब में बनी रणवीर सेना को आप किस आधार पर गलत ठहराएंगे?जब एक धडे ने मजदूरो के हक के लिए चुनाव लडने का फैसला किया(हालाँकि इन्होंने भी हिंसक तरीकों का विरोध नही किया) तो दूसरे ने हिंसा का रास्ता क्यों अपनाया?

      Delete
    9. और ये वामपंथी तो भारत की हर समस्या का कारण पूँजीवाद को मानता है यहाँ तक कि कश्मीर को भी जबकि इसी तरह की समस्याएँ कोरिया से लेकर चेचेन्या झिनजियांग तिब्बत आदि में भी रही ही हैं।पर चलिए मान लिया कि अरुंधति जी समेत तमाम वामपंथी सही कहते हैं कि कश्मीर समस्या भी पूँजीवाद की देन हैं तो फिर इसका हल क्या है? कश्मीर का आजाद हो जाना?कहीं इन्हें यह तो नहीं लग रहा कि अलग होकर कश्मीर में गिलानी और अंद्राबी जैसे लोग साम्यवादी व्यवस्था लागू करेंगे?और जरा कभी किसी वामपंथी से यह पूछकर देखिए कि चलिए माना कि हमें कश्मीर को अलग कर देना चाहिए परंतु कलको यदि इस अलग हुए कश्मीर के विभिन्न अल्पसंख्यक अपना अपना हिस्सा अलग होना चाहें तो आप क्या कहेंगे?क्या उनके भी उस 'आत्मनिर्णय के अधिकार' का आप समर्थन करेंगे?जिसका वामपंथी देशो मे कोई अस्तित्व ही नही है फिर देखिए उनका जवाब प्रेक्टिकल होता है कि केवल ऐसे ही बड़े बड़े सिद्धांत ही पेलते हैं।

      Delete
  7. अरे यहाँ मकसद सिर्फ हंगामा करना है सूरत बदलना नहीं :).

    ReplyDelete
    Replies
    1. हम वोटर मजबूर करेंगे की सूरत बदली जाये ।

      Delete
  8. आपकी पोस्ट का शीर्षक देख एक भूली बिसरी कहावत याद आ गयी, 'मुद्दई सुस्त ,गवाह चुस्त '
    AAP के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, ईमानदार , समर्पित, स्वार्थहीन लोगों को पार्टी में शामिल करना . अकेले केजरीवाल स्थिति नहीं बदल पायेंगे. शुरुआत तो उन्होंने कर दी है अब बस अच्छे लोगों का साथ चाहिए . इनकी नीयत पर तो कभी शक नहीं रहा ...intention सही हो तो काम सही ही होगा .कितने ही उच्च शिक्षित युवाओं ने अपने वेतन से पैसे और अपना समय देकर AAP के लिए काम किया है .अब जरूरत है वे campaigning से आगे बढ़कर पार्टी में सक्रीय भूमिका निभाएं
    अपने हाथों से जनता की नब्ज़ फिसलती देख, लोग तो सैकड़ों आरोप लगायेंगे ही .इसके सिवा वे और कुछ कर भी नहीं सकते . इसे उसी स्पीरिट में लेना चाहिए.

    ReplyDelete
    Replies
    1. मै देख कर हैरान थी की लोकपाल के पास होने पर भी कही चु तक नहीं हुई कोई फर्क नहीं पड़ा , वही खाली अरविन्द के मुख्यमंत्री बनने की खबर भर से इतनी खलबली थी सरकारी बाबू में , प्रिंसपल यदि कड़क हो तो पूरा स्कुल अनुशासित रहता है , बस उम्मीद है कि अरविंद ठीक ठाक रहे और अपने भी लोगो की गलती बर्दास्त न करे , तो सब सही ही जायेगा ।

      Delete
  9. चार राज्यों में सबसे ज्यादा सीट पाने वालों से पूछा जाता है , आपका जादू क्यों नहीं चला ! दिल्ली में सबसे ज्यादा सीट वाले से पूछा जाता है , आप अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं , सरकार क्यों नहीं बनाते जबकि अगला हाथ जोड़ कर कह रहा है , हमारे पास बहुमत नहीं है , कोई समर्थन दे नहीं रहा है ! "आप " से कहा जा रहा है , आप क्यों नहीं ले रहे समर्थन , जब कॉंग्रेस बिना शर्त दे रही है ! अब सरकार बना रहे हैं तो भी इलज़ाम हजार कि आपने तो कहा था ना लेंगे , ना देंगे !
    कभी कभी समझ नहीं आता कि लोग चाहते क्या हैं !
    ऐसा ही ब्लॉग जगत का हाल। जब तक दूसरों के सवाल में अटकेंगे , अटके रहेंगे !
    समाज ,देश और जनता के हक में जो उचित है , वही करे बाकी तो लोगों का काम है कहना!

    ReplyDelete
    Replies
    1. और असल में जो सवाल किये जाने चाहिए की जनता के लिए क्या क्या किया वो पञ्च साल तक कोई पूछता ही नहीं है ।

      Delete
  10. 'आप' के लिए तो "एक आग का दरिया है और डूब के जाना है" जैसी स्थिति है देखें अब आगे क्या होता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. और मुझे लग रहा है आग का दरिया है और डूब ही जाना है

      Delete
  11. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  12. अच्छा अब पता चला कहाँ ये बहस हुई।खैर अभी लौटकर टिप्पणी करता हूँ।आप पार्टि के बारे में अंशुमाला जी से सहमत हूँ।लेकिन कामरेडों के बारे में मैं अनुराग जी से सहमत हूँ।वहीं अंशुमाला जी को संजय जी ने जो जवाब दिया है उन पर कतई तालीपीट और सीटीमार किस्म का उत्साह प्रदर्शन को जी चाहता है।भाई संजय जी आप बचते बचते ही सही राय बनाने और देने की प्रोसेस आ ही गये।बधाई :)।पर ये भी कहना चाहूँगा कि कश्मीर की समस्या केवल वहाँ की जनता की पैदा की नहीं है बल्कि इसके और भी पक्ष हैं और वहाँ हर कोई अलगाववादी नहीं है।हाँ यह बात सच है कि धारा 370 जैसे कानूनों ने इस अलगाव को बहुत बढ़ावा दिया।और अंशुमाला जी आप कृप्या विभिन्न कानूनों की साम्यता ही मत देखिए उनमें अंतर भी देखिए तो पता चलेगा कि धारा 370 और बाकी कानूनों में क्या अंतर है।और आप जैसी सोच बीजेपी कांग्रेस के बारे में रखती हैं तो कोई कामरेडों में भी कमी ढूँढ सकता है इसमें गलत क्या है?हाँ असहमति की वजह से आपको ही कामरेड कह दिया गया तो यह गलत है।

    ReplyDelete


  13. @भाई संजय जी आप बचते बचते ही सही राय बनाने और देने की प्रोसेस आ ही गये।बधाई :)
    सहमत :)
    @कश्मीर की समस्या केवल वहाँ की जनता की पैदा की नहीं है बल्कि इसके और भी पक्ष हैं
    सही कहा वहा के बारे में और पता करेंगे तो पता चलेगा की वहा का भिण्डरावाला किसने खड़ा किया और आजादी के इतने दसक बाद वहा आतंकवाद और अलगाववाद इतना कैसे बढ़ा ।
    कश्मीर और ३७० के बारे में कुछ भी कहने या बात करने का शायद मै एक विश्वसनीय व्यक्ति नहीं है हमें किसी विश्वशनीय श्रोत से सूचना लेने के बाद उस पर बात करनी चाहिए , आप को कोई लिंक मिले तो मुझे भी दीजियेगा , जहा मेरी जानकारी में गलती है मै भी सुधार लुंगी ।
    मै बात नियत की कर रही हूँ , किसी खास जगह और वहा रहने वाले को संरक्षित करना और वहा के संसाधनो पर उनका हक़ होना जैसी नियत, जिसके तहत ही उत्तराखंड अलग हुआ मैदानी इलाको से और छत्तीसगढ़ और झारखण्ड जैसे आदिवासी इलाके अपने राज्यो से , दूसरी बात की कश्मीर के विलय के समय उसके विलय की जो शर्ते भारत सरकार , मै फिर से कहती हूँ नेहरु ने नहीं भारत सरकार ने मानी थी क्या उसका अब तोड़ा जाना सही होगा , क्या इससे कश्मीर की समस्या हल हो जायेगी इस पर भी विचार कर लिया जाये । ३७० में एक धारा तो उसमे ऐसा भी है जिसका समर्थन खुद बीजेपी भी करती रही है और केंद्र से उस कानून के दुरुपयोग की सबसे बड़ी पीड़ित भी वही रही है ।
    मै उनके कामरेड कहने से नाराज नहीं हूँ उससे ज्यादा तो उनका तरिका गलत था किसी और की खुन्नस मुझ पर क्यों निकाल रहे थे , वयक्तिगत मुझ पर निशाना क्यों लगा रहे थे और कोई नाराजगी की बात है ही नहीं तो मेरे भाजपा समर्थक कहने से इतना क्यों नाराज होने लगे जो असल में मैंने बाद में जानबूझ कर कहा था , टिप्पणियों में मैंने दोनों ही बड़ी पार्टी की बात की थी किसी एक की नहीं ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अंशुमाला जी,सबसे पहले तो आप यह विश्वास रखिए कि न मैं नरेन्द्र मोदी से अंधप्रभावित होता हूँ न उमर अब्दुल्ला से।मुजे पता है कि कश्मीर समस्या किस किसकी पैदा की हुई है और उसमें क्या क्या पड़ाव आए थे।पर अभी हम यहाँ उसकी बात नहीं कर रहे।यहाँ बात हो रही है धारा 370 की जो कि विलय की प्रक्रिया पूरी होने के बाद जोड़ी गई थी नेकां के नेहरू जी पर दबाव की वजह से न कि विलय के समय जैसा बताया जाता है।और इसीमें यह भी कहा गया था कि यह बहुत थोड़े समय के लिए है और इसे खत्म करने का तरीका भी बताया था हालाँकि वह थोड़ा जटिल है।मैं भी बात नियत की ही कर रहा हूँ।उस समय इसके समर्थन में तर्क यह दिया गया था कि हमारी सभ्यता हमारी कश्मीरियत का संरक्षण होना चाहिए।यानी जैसे आज ठाकरे परिवार मराठी अस्मिता पर कर रहा है कलको वो मराठी मानुष भी कहेगा न कि हमें भी अपने लोगों के लिए धारा 370 चाहिए?जम्मू कश्मीर को उतनी ही स्वायत्ता हो जितनी अन्य राज्यों को और इससे अलगाववाद न हो तो आप इसमे से झाडखण्ड अलग करो या छग हमें मतलब नहीं है।लेकिन नही मकसद तो इस धारा की आड मे अपनी मनमानी करने का है।

      Delete
    2. वर्ना जो काम बहुत हद तक दूसरे राज्यों ने बिना धारा 370 के कर दिखाया इसके लिए कश्मीर को ही विशेष दर्जे की क्या जरूरत ?आप बड़े भोलेपन से दूसरे राज्यों का उदाहरण केवल ऊपरी लक्षणों के आधार पर दे रही हैं जबकि अंतर यह है कि दूसरे राज्य केन्द्र से शक्ति लेते हैं जबकि इस धारा की वजह से खुद केन्द्र को कश्मीर का मुँह ताकना पडता है बात बात पर ।उसे हटाने से समस्या कम नहीं होगी पर बहुत हद तक कमजोर पडने लगेगी।कश्मीर की जनता के दिमाग से यह निकलने लगेगा कि कोई उनके मिलकर नहीं रह सकता क्योंकि वह सबसे विशेष है।अलगाववादियों की चाल कमजोर पड जाएगी।पंचायतें मजबूत होंगी।वहाँ के हाइकोर्ट को अधिकार मिलेंगे।वहाँ का पढ़ा लिखा तबका दूसरे राज्यों की तरह प्रगतिशील कानून जैसे शिक्षा का अधिकार की माँग करने लगेगा।केंद्र से मिलने वाली मदद का हिसाब देना होगा।महिलाओं पर से शरियत आधारित कानून खत्म होंगे।वहाँ अल्पसंख्यको और दूसरे पिछडे वर्गों के लिए विशेष रियायतें करनी होंगी।यूँ ही नहीं अलगाववादियो से लेकर वहाँ के नेताओ और पाकिस्तान तक इस धारा को बनाए रखने के लिए जी जान एक किए हुए है।

      Delete
    3. मैं अनुराग जी का पक्ष नहीं ले रहा हूँ।आप पार्टी पर उठ रहे सवालों के कुछ वैसे ही जवाब देता जो आपके हैं।मुझे वहाँ आपकी टिप्पणी से ऐसा लगा जैसे आप कम्यूनिस्टों के विरोध को ही गलत मानती है।जबकि वो खुद भी भाजपाईयों और कांग्रेसियों से कम नहीं है।

      Delete
    4. @राजन -
      सीटी मारे या सोटी मारे, अपने को सब मीठा लगता है :)
      राय तो बनी हुई है, कभी कभी और कहीं कहीं बताने के प्रोसेस में जरूर आ गया हूँ लेकिन जल्दी ही आभास हो जाता है कि ये सब हम जो करते हैं वो सिर्फ़ शब्दविलास है और कुछ नहीं। अच्छा है कि आजकल नेट के लिये समय कम मिल पाता है।
      कश्मीर में अलगाववादी वाले वाक्यांश पर फ़िर वही शब्दविलास शुरू हो जायेगा - किसने कहा है कि सब कश्मीरी या सब मुसलमान या सब कश्मीरी मुसलमान अलगाववादी हैं? इसके उलट किसी एक ऐसे दोषी के सामने आते ही एक बड़ा समूह इस बात का राग अलापने लगता है कि सब कशमीरी अलगाववादी नहीं हैं। कन्फ़्यूज़न तो ऐसे वक्ता पैदा करते हैं।

      Delete
    5. संजय जी,आपकी पहली लाईन से तो सोमनाथ दा की लालू जी पर टिप्पणी याद आ गई,'लालू एंड आलू बोथ आर वेरी स्वीट' :) बाकी अपने को तो ठीक से सीटी ही नहीं मारनी आती सोटी क्या मारेंगें।हाँ अपनी एक टीचर के हाथों बचपन में सोटी खाई खूब हैं।आपको कई बार देखा आप किसीको जवाब देने बहस करने से अक्सर बचते हैं शायद इस वजह से कि आप किसीको नाराज नही करना चाहते।एक तरह से सही भी है लेकिन कई बार इसी वजह से गलत तथ्यों की काट नहीं हो पाती और इसीलिए वह अपनी जगह पब्लिक के बीच सीमेंट कर लेते हैं जो अच्छा संकेत नहीं।पर अभी आपको प्रतिटिप्पणी करते देखना अच्छा लगा।आपसे और अंशुमाला जी से इस विषय पर पूरी तरह सहमत या असहमत नहीं हूँ हालाँकि बिल्कुल सही और तटस्थ होने का दावा मेरा भी नहीं।कश्मीरियों के बारे में आपकी टिप्पणी से जो समझ आया वो कह दिया लेकिन एरर ऑफ जजमेंट पर थोडा हक अपना भी बनता है न :) ।शब्द विलास आदि के बारे मे यह ही कहूँगा कि जो बात आपको कम महत्वपूर्ण लगती है हो सकता है मेरे लिए उसका बहुत महत्तव हो ठीक ऐसे ही इसका उल्टा भी हो सकता है।यहा वैसे भी कोई हमारे साथ जबरदस्ती तो कर ही नही सकता।पिछली पोस्ट पर एक लिंक देने की बात थी खोज जारी है।

      Delete
    6. धारा 370 के side इफेक्टस-
      www.one.in/webdunia-hindi/जम्मू-कश्मीर-में-नहीं-ले-सकते-बच्चे-गोद-376389.html

      Delete
    7. आतंक के शिकार बच्चों को भी मा बाप का प्यार नसीब नहीं होने दे रहा article 370.हे भगवान इस धारा 370 को उठा ले!

      Delete
  14. बात यदि शब्दों की हो तो प्रशांत भूषण जी दुनिया की हर समस्या को चुटकियों में सुलझा सकते हैं ।लेकिन ऐसा होता नहीं ।केजरिवाल समझदार हैं जो उनकी बातों से खुद को अलग कर लेते हैं।और प्रशांत भूषण साहब को चाहिए कि कश्मीरी असंतुष्टों और अलगाववादियों को फिलहाल रहने दें जरा उन लोगों का ही "दिल जीतकर" बताएँ जो बार बार आपकी पिटाई करने चले आते हैं।केवल बड़ी बड़ी बातें न करें जो मानते हैं वो करके भी दिखाएँ।अभी से लग जाइए ।

    ReplyDelete
  15. .
    .
    .
    अंशुमाला जी,
    फेसबुक पर सक्रिय होइये न, आपको बहुत मिस करते हैं वहाँ।

    प्रवीण
    https://www.facebook.com/praveenblogger


    ...

    ReplyDelete
  16. एक ब्लॉग ये भी था जिसे हम पढ़ा करते थे, अब तो यहाँ ताला सा लगा है....

    ReplyDelete