पहली क़िस्त यहाँ पढ़े |
दूसरा और आखरी भाग
ऊपर भाभी के कानो में भी बाउजी की आवाज जा चुकी थी , वो सब काम छोड़ निचे की और भागी | अब तो मेरा ससुराल और पति दोनों छूटा , सब उसी पर ननद को बिगाड़ने का इलजाम लगायेंगे और सजा के तौर पर उसे उसके घर पंहुचा दिया जायेगा | निचे आई तब तक बाउजी बैठक के दरवाजे पहुँच चुके थे सामने हक्के बक्के खड़े दामाद को देख चौक पड़े | अरे दामाद जी आप अचानक यहां कैसे और दामाद के जैसे ठंड ने होठ सील दिये हो उसे सूझी नहीं रहा क्या जवाब दे | तभी पीछे से हड़बड़ाई सी भाभी ने जवाब दिया अरे शारदा चाची से मिलने आये थे इनकी रिश्ते से बुआ लगती है ना पर चाची थी नहीं तो यहाँ गये हम लोगो मिलने | अब जा कर दामाद जी को होश आया और ससुर के पैर पड़ते पूछा भाभी ने बताया आप कचहरी गये है हमें तो लगा किसी से मुलाक़ात ही न हो पायेगी ,क्या हुआ वापस कैसे आ गये | अरे चौक तक ही गया था तो गांव के एक लोग मिल गये बोले वकीलों की हड़ताल हो गई है , जाने से कोई फायदा नहीं है कुछ होने वाला नहीं है | शाम को वकील साहब से पूछ लूंगा फोन कर अगली तारीख कब की पड़ी है | लेकिन भाभी की चिंता दूसरी थी उन्हें कमरे में सीमा कही नहीं दिख रही थी जैसे ही बाउजी अपना झोला अलमारी में रखने के लिए मुड़े उन्होंने इशारो में नन्दोई से पूछा सीमा कहा है | नन्दोई के इशारो में ये बताने पर की सीमा चौकी के निचे है उनके होश उड़ गये | पहले तो उसने सुबह चौकी पर नई चद्दर बिछाते समय चद्दर को आगे लटका के चौकी के निचे के हिस्से को छुपाने के लिए खुद को धन्यवाद दिया फिर दूसरा ख्याल आया हाय राम एक तो उसने कोई शॉल या स्वेटर न पहना है एक हलकी सी साड़ी ही पहन रखी है उस पर से चौकी के नीचे ठंडी जमीन पर पड़ी है | अब कुछ पल के लिए ही बाउजी को किसी तरह भी कमरे से निकाला जाए तभी कुछ हो पायेगा | बाउजी चलिये आप के पैर धुला देती हूँ बाहर से आये है उसने एक प्रयास किया | अरे उसकी जरुरत नहीं है चौक तक ही तो गया था पैर साफ़ है और वो दामाद के साथ चौकी पर बैठ बातो में लग गए | जबकि उस बेचारे से न बोला जाए न कुछ समझ आये | तभी भाभी वापस कमरे में आई उसने अपने शॉल के निचे एक और शॉल छुपा रखा था | धीरे से बाउजी के पीछे जा कर पूछा क्या लाउ बाउजी और इसी बीच उसने शॉल निचे गिरा कर पैरो से उसे चौकी के अंदर धकेल दिया | ये ओढ़ लिया तो कम से कम ननद की जान तो बचेगी नहीं तो आज चाहे शर्म से चाहे ठंड से उसका मरना तो तय है उसने मन की मन सोचा | बाउजी से चाय लाने की बात सुन तुरंत उसके दिमाग में एक उपाय कौंधा | फटा फट वहा रखी चाय उसने गर्म कर उन्हें दिया और ठंड बहुत है कर पुरे आधे ग्लास भर चाय उन्हें पकड़ा दिया | रसोई में आ कर उसने तय किया की आज बाउजी और ननद की जान में से वो ननद की जान बचायेगी | बाउजी शुगर के मरीज है , अभी आधा ग्लास चाय पीया है अभी मिठाई दे कर एक ग्लास और पानी पिलाऊंगी और फिर दोपहर के लिये बनाई खीर दूंगी उसके बाद एक और ग्लास पानी | इतने के बाद तो जरूर उन्हें हल्का होने गुशलखाने जाना होगा | उतना समय काफी है ननद को वहा से निकालने के लिए | मीठा उन्हें मिलता नहीं और आज कोई रोकने वाला है नहीं जरूर मेरे जाल में फसेंगे | चाल कामयाब रही लेकिन इन सब में पुरे एक घंटा निकल गया |
ईधर बाउजी कमरे से बाहर निकले भाभी और दामाद जी तुरंत चौकी के निचे झुक चद्दर हटाया | अंदर सीमा अपने पैरो को घुटनो से मोड़ दोनों हाथो से जकड सीने से लगा सिकुड़ कर लेटी पड़ी ठंड से कांप रही थी और दांतो से आवाज ने निकले इसलिए मुंह में आँचल ठूस रखा था | भाभी ने धीरे से पूछा शॉल था उसे क्यों नहीं ओढ़ लिया | उसके मुंह से सिर्फ घु घु आवाज आई तब भाभी ने हाथ आगे बढ़ा उसके मुंह से आँचल निकाला | ज़रा भी हिलती डुलती तो पिताजी को पता चल जाता जीते जी मर जाती मै उससे तो अच्छा था कि यही डंठी से धरती मैया के गोद में मेरी अर्थी सज जाती | अच्छा ठीक है अब जल्दी बाहर निकल बाउजी के आने से पहले यहां से चल | अरे भाभी मेरे तो हाथ पैर जाम हो अकड़ गए है खुल ही नहीं रहे | अरे देख क्या रहे है नन्दोई जी इसे बाहर खिचिये भाभी ने अपनी चीख को रोकते कहा | अभी तक हक्का बक्का हो सारा तमाशा देख रहा पति फटाफट थोड़ा अंदर घुसा और गठरी बनी अपनी पत्नी को बाहर खींचा | भाभी ने वहा पड़ी शॉल उसे ओढ़ा कहा जल्दी उठाइये और बगल में रसोई में ले चलिए | उसने भी ठंड से कांपती पत्नी को गोद में उठाया और रसोई की तरफ चल पड़ा जो बैठक के बगल में ही थी |
कोई और मौका या समय होता तो ये पल कितने रोमांटिक और खुशनुमा होता जब पति पत्नी को गोद में लिया जा रहा हो | कुछ देर पहले जिसे पत्नी के एक स्पर्श के लिए गले लगाने के लिए पति उतावला हुआ जा रहा था अभी उसी पत्नी को बाहो में भरे होने के बाद भी कोई उत्साह और प्रेम नहीं था बल्कि डर और खौफ भरा पड़ा था दोनों के मन में | भाभी ने उसे चूल्हे के पास पीढ़े पर बैठाने के लिए कहा चूल्हा गर्म ही था भाभी जल्दी जल्दी अपने हाथ गर्म करके उसके हाथ पॉंव मलने लगी और सीमा अभी भी सर से पैर तक खड़खड़ा रही थी | भाभी को हाथ पैर मलता देख पति को भी होश आया की उसे भी बूत की तरह खड़ा नहीं रहना चाहिए उसे भी अपनी पत्नी के लिए कुछ करना चाहिए लेकिन जैसे ही उसने पत्नी का दूसरा हाथ पकड़ उसे मलने की कोशिश की | भाभी बोली नन्दोई जी जल्दी से बैठक में जाइये बाउजी आ गये और आप को देखे लिया तो सारी पोल खुल जायेगी | बेचारा पति जिस पत्नी से मिलने के लिए इतने जतन किये उसी को इस हाल में छोड़ कर जाना पड़ रहा था | लेकिन बड़े बुजुर्गो का डर उस ज़माने में जो करवाये वो कम था | पति महोदय अगले एक घंटे तक ससुर के साथ बातो में उलझे रहे | घंटे भर बाद अचानक से बाउजी ने बड़ी बहु को आवाज लगाई वो अभी भी सीमा को गर्म तेल मल उसे ठंड से बचाने में लगी थी |
बैठक में आते ही बाउजी बोले भाई दामाद जी इतनी दूर से आये है सीमा को बुलाओ मिल ले | अब भाभी को काटो तो खून नहीं सीमा की ये हालत ही नहीं थी की उसे यहां लाया जाये | लेकिन बाउजी को जवाब क्या दे वो हा कर चली गई | सीमा को दो स्वेटर पहनाए ऊपर से शॉल भी दिया ताकि उसका ठंड से खड़कना तो बंद हो लेकिन वो रुके तब ना | भाभी किसी तरह उसे पकड़ कर बैठक में ले गई | अब पिता जी के सामने उसने नजर उठा कर भी पति को न देखा | ऐसा है बहु दामाद जी को अम्मा के कमरे में ले कर चली जाओ दोनों आराम से बाते कर लेंगे | ये सुन तो जैसे तीनो शून्य हो गए ये क्या हो गया आज बाउजी इतने उदार कैसे हो गए , घर के संस्कार ही बदल दिए | अब ये बदलते जमाने की हवा थी या जमाने बाद इतना मीठा खाने की ख़ुशी लेकिन बाउजी ये बात सुन भाभी की पकड़ सीमा से ढीली हो गई और वो फिर से सर से पांव तक हिलना शुर हो गई | अरे इसे क्या हुआ बहु | कुछ नहीं ज़रा ठंड लग गई है तबियत ठीक नहीं है | अरे इसे तुरंत इसके कमरे में ली जाओ बोरसी जलाओ और इसे रजाई में सुलाओ | ऐसा करो अजवाइन तेल में गर्म करके इसके हथेलियों में मलो ठीक हो जायेगी | जी बाउजी कह भाभी सीमा को लेजाने लगी दामाद जी भी उदारता का लाभ उठाते हुए उनके साथ जाने को उठे ही थे कि पिताजी ने कहा आओ बेटा हमारे पास बैठो सीमा को आराम करने दो |
दमाद जी शाम तक ससुराल में रुके थे बाउजी से घंटो बात की भैया लोगो से भी मिले और शाम तक अम्मा भी आ गई उससे भी मिले | लेकिन जिससे मिलने आये थे जिसके लिए इतने किरिया करम किये उसे जी भर देख भी न सके | भाभी सारे दिन दामाद जी के खूब आव भगत में लगी रही साथ में बीमार पड़ी सीमा की भी देखभाल करती रही , रात तक थक कर चकनाचूर हो चुकी थी | और सीमा ऊपर कमरे में रजाइयों में पड़ी रही , उसे तो कुछ होश ही न था | और तीनो यही सोच रहे थे जो काम बस बाउजी की मिठाईया खिला कर आसानी से हो सकता था उसके लिए सब ने क्या क्या किया और सफल भी न हुए | समाप्त
#ये_उन_दिनों_की_बात_है
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, देश के सब से बड़े अनशन सत्याग्रही को ब्लॉग बुलेटिन का नमन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद |
Delete