शादी के कुछ ही महीने हुए थे एक शाम निश्चल मै सब्जी लेने के लिए निकले , उसके पहले उन्हें बनारस की ढ़ेर सारी बाते बता रही थी, बताते बताते पुरे बनारसी मूड में आ गई थी | बाहर निकल दरवाजे में ताला लगाया और हाथ आगे बढ़ा कर बोला ताली दो , उन्होंने झट मेरे हाथ पर अपने हाथ से ताली दे दी | मै हँसी और फिर हाथ आगे बढ़ा कर बोला ओके वैरी फनी अब ताली दो उन्होंने फिर हाथ आगे बढ़ाया और मेरी हाथ पर अपने हाथ से ताली दे दी | चलो अब मजाक मत करो चाभियाँ दो देर हो रही है | अरे तुमने चाभियाँ कब मांगी | मांगी तो दो बार और तुमको मजाक सूझ रहा है | तुमने तो ताली मांगी थी मैंने दी | फिर याद आया कि ना मै बनारस में हूँ और ना ये बनारसी | अरे यार हमारे बनारस में चाभियों को ही ताली कहते है, ताला और ताली कितना सिंम्पल है | मैंने कभी सूना ही नहीं तो मुझे क्या समझ आयेगा | उलटा मुझे लग रहा था ये बार बार ताली क्यों मांग रही हो मुझसे | सुनो एक बात बताओ ये कई महीने से मै तुमसे बात कर रही हूँ तुमको कुछ समझ में आती है कि मै क्या बोल रही हु , या बस सुन लेते हो | थोड़ा रुके और सोच कर बोले कभी कभी कुछ कुछ बात समझ नहीं आती | तुम्हे मेरी बात समझ नहीं आती और तुम मुझे आज बता रहे हो इतने महीनो बाद | हद है आज मै नहीं पूछती तो मै सारी जिंदगी बड़बड़ करती और तुमको समझ कुछ नहीं आता | ये कह हँसते हुए एक गाना गा दिया पंजाबी लडके को मद्रासी लड़की से प्यार हुआ और शादी हो गई | अब ये क्या है | लो अब तुमने ये गाना भी नहीं सुना है | मतलब ऐसे कपल के बीच लैंग्वेज प्रॉबलम हो गई दोनों के एक दूजे की बात समझ ही ना आती |
दुनियां में लोग ऐसे लोग चाहते है जो उन्हें समझे उनकी बातो को सुने समझे ताकि वो अपना दिल खोल कर उसके सामने रख दे | लेकिन वो भूल जाते है कि जैसे जैसे हम अपना दिल खोलते है सुनने वाला की अपनी सोच , पूर्वाग्रहों की मिलावट उसमे होती जाती है और हमारी एक छवि उसके मन में बन जाती है | लोग कहने वालो को अपने हिसाब से जज करने लगते है और वो हमारे लिए पूर्वाग्रह पाल कर बैठ जाते है | समझने वाला अपनी समझ से समझने लगता है वो नहीं समझता जो हम कहना चाहते है | मेरे हिसाब से तो अपना दिल खोल कर रखने के लिए सबसे अच्छा वो इंसान है जो असल में आप की बात समझता ही नहीं और जब समझता है तो बस उतना ही जितना आप उसे समझाते है | जीवन में पहली बार कोई ऐसा मिल गया , जिसे सब कुछ कहा जा सकता है दिल में जितना भी जहर,प्यार, गुस्सा, नाराजगी , ईर्ष्या , जलन सब बक दो जिसे बात ही ठीक से समझ न आ रही हो वो बस सुनेगा लेकिन मुझे जज नहीं करेगा | इंसानी भावो के आने जाने से होने वाली स्वाभाविक परिवर्तनों से वो हमारे लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं बनाएगा , हमारे लिए जजमेंटल नहीं होगा | जब किसी मित्र की सफलता पर खुश होते कहती कि निश्चल जलन हो रही है उससे, तो कभी ये नहीं सोचा की जलनखोर मित्र हूँ , समझा तो बस इतना की ख़ुशी के आँसू की तरह एक ख़ुशी वाली जलन भी होती है | जब उसी मित्र के किसी उसके किसी कठिन समय में उसे फोन पर हिम्मत बंधाते मजाक करती और फोन रखते कहती कि मुझे उसके लिए डर लग रहा है उसकी चिंता हो रही है तो ये न समझा की ढकोसला कर रही हूँ | इंसान समझे या न समझे बाते अवचेतन मन में जाती रहती है , एक सेफ स्टोरेज में और एक दिन जरूर बाहर आयेगी एक विश्वास भरोसे रूप जब उनकी जरुरत होगी |
#अधूरीसीकहानी_अधूरेसेकिस्से
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ज़िन्दगी का बुलबुला - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद |
Deleteआम की खास बातेंं । सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद |
Deleteधन्यवाद |
ReplyDeleteनिमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।