May 26, 2018

श्रृंगार प्रेम है वासना नहीं -------mangopeople

   
हम अपने परिवार के सभी सदस्यों से जैसे चाहे वैसे अपने प्रेम का प्रदर्शन कर सकते है | माँ की गोद में सर  रख सो गए , भाई बहन को गले लगा लिया , पिता का हाथ पकड़ पार्क में दौड़ भाग लिए , दोस्तों के कंधे पर हाथ रख बतिया लिया , तो अपने बच्चो को  हमने चुम लिए | ये सभी हमारे परिवार के सदस्य है और हम सार्वजनिक रूप से इन सभी  के साथ अपने प्यार का इजहार भावनात्मक रूप से और शारीरिक रूप से कर सकते है | समाज और लोग सभी सहज और सामान्य रहते है उन्हें कोई समस्या नहीं होती , लेकिन जैसे ही बात जीवनसाथी पति या पत्नी की आती है उनके प्रेम दर्शाने के तरीको पर तुरंत  पाबन्दी लगा दी जाती है | कितना अजीब है ना जिन दो लोगो को प्रेम से रहने के लिए जोड़ा जाता है उनके ही प्रेम का प्रदर्शन समाज  स्वीकार नहीं करता है | शारीरिक ( गले लगाना ,  हाथ पकड़ना , करीब बैठे रहना ,  चूमना ) तो दूर की बात यहाँ भावनात्मक रूप से भी प्रेम के प्रदर्शन पर लोगो की भवे तन जाती है |  ऐसा नहीं है की हमारी संस्कृति में प्रेम था ही नहीं कृष्ण और राधा का होना बताता है कि प्रेम हमारी संस्कृति धर्म का हिस्सा  है | एक कदम और बढे तो रति और कामदेव के रूप में पति पत्नी के प्रेमी जोड़ी भी विद्यमान है | जहा शिव पार्वती और राम सीता सात्विक जोड़ियां थी वही विष्णु  लक्ष्मी और रति कामदेव के रूप में रजो जोड़े  का होना बताता है कि कम से कम धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से ये हमारे लिए यह वर्जित नहीं है | मंदिरो , स्तूपों और गुफाओं में हजारो आलिंगनबद्ध , प्रेमरत , श्रृंगारिक मुर्तिया और पेंटिंग गवाह है कि ये भारतीय समाज के लिए वर्जित कभी नहीं थे |  फिर न जाने कब हमारे समाज ने पति पत्नी के बीच से श्रृंगारिक प्रेम को निकाल दिया और उनके प्रेम दर्शाने को लज्जा का पाप का विषय बना दिया |
                                   


                                                  अंग्रेजो ने हमारे पुराणिक ग्रंथ हमसे पहले पढ़े और श्रृंगार का अनुवाद इरॉटिक यानि कामुकता बना दी ,  जबकि हम प्रेम और  कामुकता (वासना) के फर्क को जानते है | नतीजा हम भारतीय भी इसी घालमेल में फंसते  चले गए और पत्नी प्रेम की जगह भोग्य वस्तु बनती चली गई | इसे बढ़ाने में साथ दिया वो विचार जो तथाकथित भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए उनके नाम की दुहाई  के साथ बोला जाता था | ज्यादा नियंत्रण न हो रहा तो विवाह कर लो , ये सब शादी के बाद , शादी के बाद जो चाहे वो करो ,  आदि इत्यादि इन संस्कृति बचाओ विचारो ने विवाह को शारीरिक जरूरते पूरी करने वाली संस्था और पत्नी को साधन बना दिया | पत्नी प्रेम की जगह कामुक नजरो से देखी जाने लगी उसकी कदर और इज्जत नजरो में गिरती गई | संस्कृति बचाते बचाते  विवाह प्रेम और पत्नी तीनो को मार दिया | पति पत्नी के बीच से प्रेम गायब और बस बची तो वासना नतीजा उनके हर क्रिया कलाप को वासना युक्त समझा गया | आप माँ  बाप भाई बहन दोस्त चाचा चाची जिसे चाहे उसे प्रेम कर सकते है लेकिन जैसे ही बात पत्नी की आती है , प्रेम का स्वरुप बदल जाता है और लोगो की सोच भी | पत्नी का प्यार से हाथ पकड़ लेना , उसे गले लगाना  , उसकी गोद में सर रख सो जाना , उसके करीब बैठ जाना जैसे प्रदर्शन आप कर ही नहीं सकते है  क्योंकि   समाज की नजर में आप पत्नी को प्रेम कर ही नहीं सकते उसे एक ही नजर से देख सकते है और उस वासना युक्त नजर से देख कुछ भी सार्वजनिक रूप से नहीं कर सकते है , वह वर्जित है | नतीजा विवाह है पत्नी  है लेकिन श्रृंगारिक प्रेम के लिए वहां  कोई जगह नहीं है |



             






                                             











     


                   


                                 
               







3 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बुन्देलखण्ड की प्रतिभाओं को मंच देगा फिल्म समारोह : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. बहुत बंदिशे है हमारे देश मे, आलम ये हो गया है कि यदि पत्नी को प्रेम जताओ तो पत्नी को ही शक होने लगता है

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