डिस्कवरी पर कुछ समय पहले एक कार्यक्रम देखा , एक लड़की अपना लिंग बदल लड़का बनना चाह रही थी | वैज्ञानिको ने उसके साथ कुछ मनोवैज्ञानिक रिसर्च के तहत उसके दिमागी परिवर्तन को जांचा | जब लड़की थी तो उसे कुछ तस्वीरें दिखाई गई | तस्वीरों को उसने अपने दिमाग का केवल पांच प्रतिशत ( ५ % ) ही खर्च कर पहचान लिया | तस्वीरों में ख़ास ये था की वो भावनाओं के साथ थी जैसे खिलखिलाता बच्चा , शांत सा बूढ़ा , मुस्कुराती लड़की , उदास सी महिला कुछ इस तरह की ही तस्वीरें थे | बस टेस्टोस्टेरोन के इंजेक्शन के पुरे डोज के बाद लड़का बन गई अंदर से तो बिलकुल उन्ही जैसी तस्वीरों को पहचानने में उसे अपने दिमाग का पछत्तर ( ७५ % ) प्रतिशत भाग प्रयोग करना पड़ रहा था | चुकी तस्वीरों का विश्लेषण दिमाग अपने हिसाब से करता है अगर तस्वीर बच्चे के हंसने की है तो दिमाग उसे सिर्फ बच्चे की फोटो नहीं पढ़ता उसके भाव को भी पढ़ता है और इसी में दिमाग ज्यादा प्रयोग हो जाता है |
मतलब पुरुष भाव नहीं पढ़ पाते भावनाए नहीं समझ पाते तो उनका दोष नहीं है ये पुरुष होने का केमिकल लोचा है अगर ऐसा आप सोच रहे है तो पोस्ट फिर से पढ़िए | मैंने नहीं कहा की पुरुष भाव नहीं पढ़ सकते बस दिमाग ज्यादा खर्च करना पड़ता है जो की वो खर्च करने की जरुरत नहीं समझते और सीधा डायलॉग मार देते है कि इन औरतो को तो समझना मुश्किल है | जो पुरुष दिमाग शादी के पहले किसी लड़की को पटाने , ताडने , प्रेमिका बनाने , मनाने में तीन सौ प्रतिशत जी हा पुरे तीन सौ प्रतिशत लगा देता है | खुद का डेढ़ सौ प्रतिशत औकात से ज्यादा , फिर उस कमीने दोस्त का पूरा दिमाग जिससे खुद एक भी लड़की न पटी लेकिन बनता लव गुरु है और पचास प्रतिशत दिमाग उस गधे दोस्त का जिसके पास असल में दिमाग है ही नहीं लेकिन इस यज्ञ में वो भी अपनी आहुति देता है | इस प्रकार तीन सौ प्रतिशत दिमाग लगाने वाला शादी के बाद पछ्त्तर प्रतिशत भी दिमाग खर्च करने को राजी नहीं होता ताकि पत्नी की कही गई बातो के साथ उसके भावनाओं को समझ सके | तो आगे से दिमाग खर्चिये बचा के रखने पर न ब्याज मिलेगा और न बढ़ेगा |
#तेरेप्यारकापंचनामा
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आप,आप, आप और आप - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमेरो पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए धन्यवाद |
Deleteवाह ! रोचक विश्लेष्ण
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