ज्ञान देने वाले गुरु की पूजा हमारे देश में ऐसे ही नहीं होती | गुरु किसी ज्ञान और विधार्थी के बीच एक पुल का काम करता है | ज्ञान के लिए जिस आयु में हम कदम बढातें हैं , तब ना तो हमारी समझ बड़ी होती है और ना हमें संसार का अनुभव होता है | ग्रंथो किताबों में लिखी बातों को हमारी समझ के हिसाब से हमें बताने का काम गुरु ही करता है | पुराने समय में जो ग्रन्थ लिखे जातें थे उनकी तो भाषा और श्लोक वाली शैली भी कठिन होती थी | इसलिए पहले गुरुजनो द्वारा उन्हें शिष्यों को समझाया जाता | जैसे जैसे शिष्यों की समझ बढ़ती भाषा का ज्ञान होता और जीवन का अनुभव मिलता उसके बाद वो उस ग्रन्थ को खुद पढ़ने और समझने में सक्षम होते | कुछ उसे अपने हिसाब से समझते विश्लेषण करते , कुछ गुरु के कहे को ही सही मानते कुछ उसका कुछ अन्य ही अर्थ निकालते | सभी का अपना नीजि अनुभव और सोच ही उसे ग्रंथो के विश्लेषण उनके राय में दिखाता है |
एक बार हमारी बिटिया बोली कबीर के "साईं इतना दीजिये" वाले दोहे का अर्थ बता दू | मेरे कहने पर कि कबीर यहाँ स्वार्थी ना हो कर दूसरों के बारे में भी सोचने की सीख दे रहें है , वह बोली लेकिन टीचर ने तो हमें लालच नहीं करना चाहिए ऐसा बोला है | अब कबीर ने क्या सोच कर ये दोहा लिखा है ये कबीर से बेहतर और कोई नहीं बता सकता है लेकिन आज हम उनका कई अर्थ निकाल सकतें है अपने सोच के हिसाब से | ये अर्थ सब सही भी हो सकता है और सब गलत भी और शायद थोड़ा थोड़ा सब सही और गलत |
आगे की कड़ियों में मै जो लिखने जा रहीं हूँ , वो मेरे गुरु का दिया ज्ञान , हिंदी के दो अनुवाद टिका ( जिसमे से एक प्रथम अनुवाद टिका है दूसरा ८० के दशक का) और मेरा नीजि सोच विचार उनके कहे पर का मिश्रण है | किसी अन्य जगह पर उसी एक ग्रन्थ के बारे में आप को कुछ भिन्न या ऐसा ही अर्थ पढ़ने सुनने को मिल सकता है ,क्योंकि सभी अपने तरीके से इन संस्कृति के श्लोंको का अर्थ निकालतें हैं | अतः यहाँ कहा गया ही परम सत्य है ये जरुरी नहीं लेकिन यहाँ कहा सब व्यर्थ है और गलत अर्थ है ऐसा भी नहीं है |
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुम्भ की पावनता से निखरी ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद
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