हमारी नई नई काम पर लगी कामवाली प्रेगनेंट हैं जबकि अभी उसका एक चार महीने का ही बच्चा हैं | तीन और बच्चे भी हैं ढाई , चार और दस का | वो घरों में काम करती हैं और उसका पति मजदुर हैं | बिहार से हैं मुंबई में रहने का कोई अपना ठिकाना नहीं हैं , बिल्डर जहाँ अपनी ईमारत बनाता हैं वही निचे टिनशेड बना कर रखता हैं | कुछ साल बाद इनके रहने का ठिकाना बदल जाता हैं |
दस दिन काम किया और फिर पैसे ले गई कहतीं हैं खाने को नहीं हैं , पति अपनी कमाई दारू में उड़ा देता हैं आदि इत्यादि जो गरीबी का रोना रोया जाता हैं वो सब |जबकि उसके आते ही पूछा था मैंने इतने बच्चे क्यों पैदा किया हैं जब कमाई नहीं हैं रहने का ठिकाना नहीं हैं पेट नहीं भर पाते | तो बोली रोकने का उपाय नहीं पता था ,कहा चलो बगल में प्राथमिक स्वस्थ केंद्र हैं उपाय कर देतें हैं , तो जवाब था अब गोली खा रहीं हूँ किसी ने बताया हैं , स्वस्थ केंद्र में मुफ्त मिल जाता हैं |
अब मुझे बोला फिर से प्रेगनेंट हूँ ( गोली खाने के नाम पर मुझे गोली खिला दिया था ) पूछा तुम तो गोली खा रही थी फिर क्या हुआ | बोली बंद कर दिया खाना , तो बच्चा रखने वाली हो पूछने पर बोली नहीं रखना हैं आप ले चलिए अस्पताल | पास में ही सरकारी अस्पताल में पति के साथ जाने को बोल दिया | अस्पताल से कर अपनी बीमारी का नाम ले कर फिर दस दिन के काम का पूरा पैसा ले गई |
चार दिन की छुट्टी भी ले लिया वापस आई मैंने कहा करवा लिया तो बोली नहीं करवाया पैसे नहीं हैं |
हमने कहा करवा के आना फिर काम पर रखूंगी , तुम बीमार भी हो काम करते समय तुमको या तुम्हारे बच्चे को कुछ हुआ तो कौन जिम्मेदारी लेगा | तो जवाब था हजार रुपये एडवांस दे दें दीदी करवा लेती हूँ |
मुझे पता हैं वो कुछ नहीं करवाने वाली उनका धर्म इसकी इजाजत नहीं देता | उपाय भी नहीं करेंगी मुंबई जैसी जगह में जो बहुत आसान हैं | मेरी माँ और बहन के घर दिल्ली में जो काम करती हैं उनके भी छः और सात बच्चे हैं | निहायत ही गरीब हैं लेकिन बच्चे पैदा करने में कोई रोक नहीं हैं |आने वाला दो हाथ लेकर आयेगा की सोच उन्हें ये नहीं समझा पाती साथ में एक पेट भी लाएगा जिसे ठीक से नहीं भरा गया तो वो दो हाथ या तो इतने कमजोर रहेंगे की कुछ कमा ही नहीं पाएंगे या कमाने की हालत में जाने तक जिन्दा ही नहीं रहेंगे |बहन के घर जो काम करती हैं उसके बच्चे को दौरा पड़ता हैं , मेरी काम वाली के बच्चे को अभी डायरिया भी हुआ था , ऐसी बिमारियों में भी काफी पैसा चला जाता हैं |
लेकिन यंहा कोई समझने के लिए तैयार नहीं हैं कि ज्यादा बच्चे केवल उनके लिए ही नहीं पुरे देश और समाज के लिए बोझ बनते हैं | गरीब तबके लिए आबादी के हिसाब से अस्पताल और स्कूल की जरुरत भी पूरी नहीं कर पाता देश , अच्छे इलाज और पढाई का तो सोचिये भी नहीं | टैक्स का मिला कितना ही पैसा गरीबों के लिए योजनाओं में चले जाते हैं , ( जो पूरा उन तक पहुंचता भी नहीं हैं ) सस्ते अनाज , इलाज , पढाई आदि इत्यादि में |
कम जनसँख्या इन योजनाओं के स्तर को सुधारता ना की इनकी संख्या को गिना जाता , जहाँ कुछ भी ढंग का प्राप्त नहीं हो रहा हैं | जनसंख्या विस्फोट को रोकना हम सभी की जिम्मेदारी होनी चाहिए हर रूप में , ये घूम फिर कर भारत के हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में प्रभावित कर रही हैं |
सही कहा आपने। कई बार धर्म की पट्टी के कारण भी लोग बच्चे करना नहीं रोकते। कई बार उन्हें पता नहीं होता कि रोकना कैसे है। कई बार वो तो मान जाएगी लेकिन पति नहीं मानेगा। कई पैरामीटर्स काम करते हैं। समझने वाले समझते हैं और नहीं समझने वाले नहीं ही समझते हैं।
ReplyDeleteसमस्या यही है की भीड़ एक और भीड़ पैदा बस पैदा करने पर आमादा है और फ़िक्र करना तो दूर इनके सिलेबस में ये बातें है ही नहीं | सख्ती से निपटना ही होगा अन्यथा पहले से बिगड़े हालात और बेकाबू हो जाएंगे
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