कितने लोगों को लगता हैं कि चार महीने बाद कोरोना चला जायेगा और सब कुछ इतना सामान्य हो जायेगा कि स्कूल खोल दिए जायेंगे | शायद दुनियां के सबसे आशावादी व्यक्ति को भी ऐसा नहीं लगता होगा , बल्कि तब तक शायद हालत आज से भी ज्यादा ख़राब हो जाये |
फिर किस आधार पर ये कहा जा रहा हैं कि JEE NEET की प्रवेश परीक्षाएं चार महीने के लिए टाल दिया जाये | चार महीने टालने की बात असल में बस एक बहाना हैं उसके बाद फिर ऐसा ही विरोध होगा क्योकि हालत इससे भी ख़राब होंगे | फिर कहा जायेगा जब इससे बेहतर हालत में परीक्षायें टाल दी गई तब अब क्यों कराया जा रहा हैं | ये मान कर चलिए परीक्षाये टालने का अर्थ हैं इस पूरे सत्र को ख़त्म करना | तो इससे बेहतर होगा कि जो लोग कोरोना के डर से या किसी अन्य कारण से परीक्षा नहीं देना चाहते वो ना दे और अगले साल इसके लिए प्रयास करे और जो देना चाहतें हैं उन्हें देने दिया जाये |
सबसे पहले तो प्रवेश परीक्षा देने वालों को बच्चा कहना बंद कीजिये वो सभी अठारह साल से ऊपर के बालिग युवा हैं और उनमे से ज्यादातर पांच महीनो से घरों ,में कैद नहीं हैं और वैसे ही बाहर निकल कर अपने काम कर रहें हैं जैसे अन्य लोग |
इस साल की प्रवेश परीक्षा रद्द होने अर्थ उन सभी मेहनती विद्यार्थियों की मेहनत तैयारी पर पानी फेर देना हैं जो परीक्षा देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और देना चाहतें हैं | उन सामान्य घरों के विद्यार्थियों के साथ भी अन्याय हैं जिन्होंने बड़ी मुश्किल से कोचिंग सेंटरों की फ़ीस भरके तैयारी की हैं और अब दुबारा एक साल के लिए कोचिंग की फ़ीस नहीं भर सकते और घर पर रह कर पढाई पर फोकस करना उस तरह संभव नहीं हैं |
उन लड़कियों के साथ भी अन्याय हैं जो बड़ी मुश्किल से अपने घर वालों को मना पाती हैं इंजीनियरिंग और मेडिकल में प्रवेश के लिए और उन्हें बस एक या दो वर्ष मिलते हैं ऐसी प्रवेश परीक्षाओं को देने और उनमे चुने जाने की | उसके बाद बीए बीएससी करो और फिर शादी | उन लडको के साथ भी अन्याय हैं जो अपने पिता के काम दुकान बिजनेस आदि से अलग कुछ करना चाहते हैं और उन्हें भी सिर्फ एक दो साल ही मौका मिलता हैं | फिर उन्हें भी दूकान , खेती और बिजनेस में लगा दिया जाता हैं |
उन विद्यार्थियों के साथ भी जो अगले साल परीक्षा देने की अधिकतम आयु पार कर लेंगे | उन सामान्य विद्यार्थियों के साथ तो घोर अन्याय हैं जिन्हे अगले साथ दुगने प्रतियोगियों के साथ मुकाबला करना होगा और अच्छे नंबर लाने के बाद भी प्रवेश नहीं मिल पायेगा | क्योकि सीट उतनी ही होगी और दावेदार हर साल से दुगने | उन विद्यार्थियों के साथ भी अन्याय हैं जिन्होंने पिछले साल डेंटल और आयुर्वेद आदि में प्रवेश को छोड़ एक बार फिर से एमबीबीएस के लिए तैयारी की थी | उन गरीब और मिडिल क्लास के बच्चों के साथ भी जो बेहतर नंबर ला सरकारी संस्थान या अपने मनचाहे कॉलेज आदि में प्रवेश की सोच रहें हैं | क्योकि अगले साथ दुगने प्रतियोगी में वो प्रवेश तो पा जायेंगे लेकिन फिर ख़राब या महंगे प्राइवेट कॉलेजों में प्रवेश लेने के लिए फ़ीस और इच्छा नहीं होगी | इस तरह के अनेक विद्यार्थी हैं जो परीक्षाये टालने से नुकशान में होंगे |
जो ईमानदारी से विद्यार्थियों के हित का सोचता तो वो बेहतर सुविधाओं की मांग करता , ज्यादा से ज्यादा सेंटर बनाने की मांग करता | छोटे छोटे शहरों में सेंटर बनाने की मांग करता या गांवों से विद्यार्थियों को सेंटर तक ले जाने लाने के लिए वाहनों को इंतजाम की बात करता | दूर दराज से आ रहें अभिवावको के रहने का इंतजाम मांगता | दूसरे देशों में जैसे JEE की ऑनलाइन परीक्षाएं दूतावासों में हो रही हैं वैसे ही NEET की परीक्षाओं के लिए भी उन देशो के दूतावासों में परीक्षाओं की मांग करता |
लेकिन यहाँ मिडिया कोटा वाले कोचिंग माफियाओ को बुला कर उनसे पूछ रहा हैं कि बताइये प्रवेश परीक्षा होनी चाहिए की नहीं | वो तो कहेगा ही कि परीक्षाये ना हो , सुविधा संपन्न वर्ग का युवा एक साल बाद दूसरे साल भी उसके यहाँ कोचिंग करने आएगा और फ़ीस भरेगा | अपने सुपर 30 कोचिंग वाले माफिया कहते हैं कि बच्चा लोग मास्क लगा कर परीक्षा कैसे देंगे उनको साँस नहीं आएगी उनका दिमाग काम नहीं करेगा | तीन महीने होने जा रहा हैं अनलॉक हुए कितने लोगों का दिमाग काम नहीं कर रहा हैं मास्क लगाने के बाद बताये जरा और कितने युवाओं ने मास्क का मुंह नहीं देखा होगा अभी तक |
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