कसाब कौन कसाब ? अरे वही २६/११ वाला आमिर अजमल कसाब, अब ये २६/११ क्या है, अरे भाई मुंबई में ताज ओबराय पर जो आतंकवादी हमला हुआ था, हाँ हाँ याद आया टीवी पर एक बार देखा था दीदी हा तो ये कसाब कौन है, वही जो जिन्दा आतंकवादी पकड़ा गया था, अच्छा | ये वार्तालाप करीब सात महीने पहले की है और बात कर रही थी दिल्ली के एक २२ साल के युवा से जो कसाब और २६/११ दोनों को या तो भूल चूका था या ये कहे की उसे पता ही नहीं था | इस ब्लॉग को पढ़ने वाले को लगेगा की ऐसा कैसे हो सकता है हमें तो एक एक बात की खबर भी है और याद भी है (तो मै आप जैसे निठल्लो की बात नहीं कर रही जो खबरे पढ़ने और सुनाने का बेकार सा काम करते है ) कोई दूसरा इतनी जल्दी वो सब कैसे भूल सकता है | ये तो हमारे टीवी चैनल और अखबार वालो के लिए डूब मरने वाली बात होगी जो एक संवाददाता को बस ये देखने के लिए काम पर लगाये रखते है की वो कैसे हँसा कैसे रोया कैसे बोला क्या खाया क्या पिया | पर वो सब बेकार गया क्योकि हमेसा एम टीवी और वी टीवी देखने वाला और अखबार का केवल सप्लीमेंट्री पेज पढ़ने वाला युवा के टीवी रिमोट में न्यूज़ चैनल का बटन ही नहीं होता | पर बात बस युवाओ की नहीं है मुंबई से बाहर जा कर और न्यूज़ चैनल न देखने वालो से जरा इस बारे में पूछिए शायद ही अब किसी को याद होगा २६/११, उनका सीधा सा जवाब होगा कि किस किस हमले को याद रखे ये तो भारत के लिए आम बात होती जा रही है अमेरिका की तरह ९/११ थोड़े ही है की एक हमले के बाद दूसरा हुआ ही नहीं सो लोग एक तारीख को हमेसा याद रखते है अब हम किस किस तारीख को याद रखे मुंबई याद रखे की दिल्ली, अहमदाबाद, बनारस, सूरत, पूना अरे किस किस शहर को याद रखे | बात तो सही है कि किस किस तारीख को याद रखे और क्यों याद रखे क्या याद रखने से हमारा कुछ भला हो जायेगा जिन लीगो को याद है और एक एक खबर की जानकारी है उससे उनका क्या भला हो गया | असल में जिसे याद रखना चाहिए वो तो उसे कब का भूल चुके है हमारी सरकारे हमारे मंत्रिगढ़ हमारी पुलिस हमारी सुरक्षा एजेंसिया | यदि हमारी सरकारे चाहे केंद्र कि या राज्यों की आतंरिक सुरक्षा, सुरक्षा एजेंसियों की आधुनिक ट्रेनिग और ख़ुफ़िया जानकारियों को ले कर सतर्क होती तो न तो दंतेवाडा जैसे हादसे होते और न हीं माधुरी जैसे गद्दार को पकड़ने में इतनी देर होती | हम सब ने भी याद रख कर कौन सा तीर मार लिया क्योकि जो याद रखना चाहिए था वो हमने याद ही नही रखा सतर्क रहना सरकार से सवाल करना और उसे इस मसाले पर सोने न देना | पर इसमे से एक काम भी हमने नहीं किया यदि हमें तारीख और घटाने याद है तो वो भी न्यूज़ चैनलों की कृपा से | हममे से कितने लोग है जो आज भी लावारिस सामानों अनजान संदिग्ध लोगों के प्रति सतर्क है | मै आप को मुंबई के अपने सोसायटी की बात बताती हु हमारी बिल्डिंग में गाड़ी पार्किंग नहीं है चूँकि दो चार बिल्डिंगो के बाद रास्ता बंद है इस लिए सभी की कार रास्ते में कही भी खड़ी रहती है जिसमे से आधी से ज्यादा कार किसकी है इस बात की किसी को जानकारी नहीं है और न ही कोई ये जानने की कोशिश करता है की कोई अजनबी अपनी गाड़ी यहाँ क्यों खड़ी करके जा रहा है | लोकल ट्रेनों में आज भी लोग सीट के नीचे रखे सामान को देखा कर ये पूछने की जहमत नहीं उठाते की ये किसका है (क्योंकी लोग अपना सामान ऊपर बने रैक पर रखते है ) यदि पुरे डब्बे में वो अकेले है तो भी यही मानते है की कोई अपना सामान भूल कर चला गया होगा पर वह उसकी जानकारी भी पुलिस को नहीं देते है | यदि कभी आप भूल कर पुछ ले कि ये सामान किसका है तो लोग आप की तरफ हँस कर ऐसे देखने लगते है की आप को लगेगा की आप ने कौन सी बेवकूफी की बात पूछ ली है और आप को खुद पर ही शर्म आने लगेगी | यही हाल पूरी मुंबई का या ये कहे पुरे देश का है यदि अमेरिका में भी लोगों का यही रवैया होता तो आज हम सभी टीवी पर टाइम्स स्क्वायर में हुए धमाके की खबर को देख रहे होते | वहा पर आतंकवादियों द्वारा कार बम रखने के बाद भी लोगों की सतर्कता ने उस हमले को नाकाम कर दिया | हमें सरकार से सवाल करना था की वो लोगों की सुरक्षा के लिए क्या कर रही है पर हम सभी खुद गेटवे पर मोमबत्ती जला कर अपने घरो में जा कर सो गये | कुछ दिनो तक खबरे आती रही की इतने करोड़ की फला सुरक्षा उपकरण खरीदी गई इतने करोड़ की फला उपकरण , फला फला स्टेसन पर मेटल डिडेक्टर लग गये या सी सी टीवी कैमरा लग गया हम सब खुश हो गये चलो कुछ हो रहा है हम सब संतुष्ट हुए और सब भूल गये | इस कदर भूल गये की उसके बाद होने वाले चुनावों में सुरक्षा व्यवस्था कोई मुद्दा ही नहीं रहा | हमने कभी सवाल नहीं किया की करोडो में ख़रीदे गये सुरक्षा उपकरण क्या काम कर रहे है स्टेसनो पर लगे मेटल डिडेक्टर अब क्यों नहीं काम कर रहे है क्या वो कभी ठीक होगे क्या सी सी टीवी ठीक से काम कर रहे है क्या उनकी कोई मानेट्रिंग हो रही है या हम सब को बस हाथी के दात दिखा कर बेवकूफ बनाया जा रहा है | हा सवाल तो लोगों ने उठाये पर उलटे कि स्टेसनो पर क्यों मेटल डिडेक्टर लगाये गये है उससे हम सभी को परेशानी होती है क्यों हर जगह चेकिंग हो रही है हमें परेशानी हो रही है क्यों नाकेबंदी कर के गाडियों की जाँच हो रही है हमें देर होती है क्यों केरायदारो का वेरिफिकेसन करवाया जा रहा है हमें परेशानी हो रही है क्यों कसाब को जिन्दा पकड़ा अब उसकी सुरक्षा कारण रास्ते बंद है हमें परेशानी हो रही है हमारी ही सुरक्षा के लिए होने वाली हर जाँच हमारे लिए परेशानी है यहाँ तक की अमेरिका में जब शाहरुख खान की तलाशी ( यदि उनके कहे को सच्च माने तो ) पर भी हम हो हल्ला मचाने लगाते है | ये सारी बाद सिर्फ मुंबई के लिए नहीं है पुरे देश में यही हो रहा है हर जगह लोगों का यही रवैया है | तो जब हम ही अपनी सुरक्षा को लेकर गंम्भीर नहीं है और हम खुद सो रहे है तो हम सरकार को क्या जगायेंगे | जो आम आदमी को सबसे अच्छे से करने आता है वो उसने किया सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को भला बुरा कहना |
अब तो कसाब दोषी साबित हो गया है कल परसों में उसे बिना किसी संदेह के फाँसी की सजा भी सुना दी जाएगी | लेकिन अभी इतनी जल्दी उसे फाँसी पर चढ़ाया नहीं जायेगा क्योकि जब अभी तक अफजल को फाँसी पर नहीं चढ़ाया गया क्योकि उसका नंबर २७ है तब तो कसाब का नंबर काफी बाद में आएगा | तब तक उसकी जान की सुरक्षा के लिए करोडो खर्च होंगे ताकि जिस दिन उसका नबर आये पुलिस उसे फाँसी पर चढ़ा कर उसको मार सके | तब तक तो न्यूज़ चैनल वाले भी उसे भूल जायेंगे और हम सभी भी और शायद तब तक कोई और हमला या कोई और कसाब हमारे लिए कोई नई याद और टीस ले कर आ चूका हो |
aapne bahut achha likha hai... very good
ReplyDeleteहम सभी के भूल जाने का ही नतीजा है की हम पर एक के बाद एक हमले होते जा रहे है यदि पहला हमला याद रखते तो आज देश आतंकवाद की समस्या से इस तरह जुझ नहीं रहा होता
ReplyDeleteआप सही कह रही है इन सब के लिए कही न कही हम सब ही जिम्मेदार है
ReplyDeleteअफजल और कसाब क्या हम तो लादेन को भी अपना सरकारी मेहमान बना कर पूरी हिफाजत से रख सकते है
ReplyDeleteसच्ची बात..अच्छी बात
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