May 07, 2010

क्या कोई निरुपमा की मौत के लिए जिम्मेदार मूल कारण पर गौर करेगा

निरुपमा के मुद्दे को ले कर ब्लॉग जगत दो धड़ो में बट गया है एक धड़े का मानना है कि उसकी हत्या उसके परिवार ने कि है और वो ही इसके लिए जिम्मेदार है तो दूसरा धड़ा भी ये मान रहा है कि उसकी हत्या भले ही उसके परिवार ने कि है पर वह  निरुपमा के चरित्र पर उँगली उठा कर जिम्मेदार उसे मान रहा है | पर मुझे लगता है कि चाहे उसकी हत्या की गई हो या उसने आत्महत्या की हो इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार हम और आप है जो मिल कर समाज को बनाते है | ब्लॉग जगत में कितने लोग होंगे जो निरुपमा और उसके परिवार को जानते होंगे या इस घटना कि पूरी सच्चाई को जानते होंगे पर हम सब ने अपनी तरफ से एक कहानी बना ली कोई उसके माँ बाप को कोसने लगा तो कोई उसके चरित्र का चिर फाड़  करने लगा क्या हक़ है हमें ये सब करने का | सोचिये कि उसकी मौत के बाद हम सब जैसे लोग जो खुद को पढ़े लिखे की श्रेणी में रखते है उसके चरित्र पर इतना कीचड़ उछाल रहे है तो यदि वो जीवित होती तो उसके रिश्तेदार और जान पहचान वाले तो उसका और उसके परिवार का जीना ही मुश्किल कर देते | समाज का यही वो रवैया है जिसने आनर किलिग़ जैसी प्रथा को जन्म दिया है | एक सवाल उनसे जो निरुपमा पर सवाल उठा कर इस हत्या (यदि हुई है तो ) को कही न कही जस्टिफाई कर रहे है या उसके परिवार के जुर्म को ( यदि उन्होने किया है तो ) कम आकाने की कोशिश कर रहे है | क्या किसी बेटी का विवाह पूर्व गर्भवती हो जाना इतना बड़ा जुर्म है की उसकी हत्या कर दी जाए यदि ये इतना बड़ा पाप है तो इस पाप में बराबर का भागीदार उसका प्रेमी भी है तो क्या उसकी भी हत्या कर दी जाए क्या आप उस हत्या को भी इसी तरह सही ठहराने का प्रयास करेंगे | सोचिये की जब समाज के ये तथाकथित विद्वान लोगों का ये हाल है तो एक आम जात पात की रुढियो में लिपटे समाज के लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी | हमारी यही सोच परिवारों को बेटियों की हत्या करने तक क्रूर बना देता है और लड़कियों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देता है |
                    जो लोग ये मानते है की निरुपमा की हत्या सिर्फ उसके गर्भवती होने के कारण किया गया तो वो सभी इस सारी घटना के मूल कारण को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर रहे है | जो परिवार उसकी  हत्या करने (यदि उन्होंने किया है तो ) की हिम्मत दिखा सकता है तो वो बड़े आराम से उसका गर्भपात भी करा सकता था लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि मुख्य समस्या जात पात और बड़ी जात छोटी जात का था जो निरुपमा के जीवित रहते ख़त्म होने वाली नहीं थी इसलिए उसको मार दिया गया | समस्या थी कि ऊँची जात की बेटी ने एक छोटे जात के लड़के से विवाह करना चाहा | एक तो लड़का दूसरी जात का था उस पर से छोटी जात का | मैं दावे से कह सकती हुं कि यदि लड़का समान जात का या लड़की से बड़ी जात का होता तो परिवार कि आपत्ति इतनी बड़ी नहीं होती कि उसकी हत्या कर दी जाए और शायद थोड़े ना नकुर के बाद परिवार राजी भी हो जाता |  पर इस समस्या की तरफ किसी की नजर ही नहीं पड़ रही है सब लगे हुए है अपना अपना नज़रिया थोपने में या ये कहे की बच रहे है इस पर लिखने से क्योंकि लिखे क्या हम सभी तो जकडे है इस बुराई से तो दूसरों को क्या उपदेश दे | यदि इसके पक्ष में लिख दिया तो हर जगह थू थू होगी समझदार और विद्वान होने का तमगा छीन जायेगा | विरोध में लिखे क्या जब दिमाग में ऐसा कोई विचार ही नहीं है | इस लिए लगे है सब बड़ी सफाई से मुख्य मुद्दे को किनारे कर एक दूसरी ही समस्या खड़ी कर उस पर बहस करने में | कोई नारी का झंडा उठाये है तो कोई युवाओं कि आज़ादी का रोना रो रहा है तो कोई समाज में गिरती नैतिकता कि दुहाई दे रहा है |
                यदि कोई परिवार इस जात पात को किनारे कर अपनी बेटी की खुशी के लिए अंतर्जातीय विवाह कर भी दे तो उनके प्रति लोगों का व्यवहार भी बड़ा अजीब होता है | सबसे पहले तो लोग ये कहना शुरू करते है कि "वो तो काफी कमजोर निकला जो बेटी के आगे हार मान गया हम होते तो अपनी बेटी को दो हाथ लगा कर उसका विवाह अपनी मर्ज़ी से कर देते " या फिर "ये सब तो वो दहेज़ बचाने के लिए कर रहे है अपनी जात में करते तो काफी दहेज़ देना पड़ता लड़की ने दूसरे जात में लड़का पसंद कर लिया और बाप का सारा दहेज़ बच गया " या फिर उस परिवार से ऐसे बात करते कि जैसी उनकी बेटी कि मौत हो गई है " क्या किया जाए आज कल जमाना ही ऐसा है बच्चों के आगे किसी का बस नहीं चलता " या "आज कल के बच्चे तो माँ बाप को कही मुँह दिखने लायक ही नहीं छोड़ते अब आप की बाकी दो बेटियों कि शादी में बड़ी परेशानी आएगी " | बेचारे परिवार को ऐसी बाते सुन कर अपने फैसले पर अफ़सोस होने लगता है जो हिम्मत वो इस बुराई से लड़ने के लिए बनाये होते है लोग उसे ही तोड़ देते है | क्यों नहीं हम ऐसे लोगों के पास जा कर ये कहते है कि" आप ने इस जात पात कि बुराई को तोड़ कर अच्छा काम किया " या "आप ने समाज कि इस बुराई से लड़ने कि अच्छी हिम्मत दिखाई समाज को आप से प्रेरणा लेनी चाहिए " या "आप काफी समझदार है जो आप ने अपने बच्चों के लिए जीवन साथी चुनते समय उनकी जात की जगह उनकी योग्यता देखी"| इन शब्दों से उन्हें लगेगा कि उन्होंने जो किया वो गलत नहीं था और उन्हें समाज में शर्मिंदा होने कि जरुरत नहीं है और दूसरों को भी ऐसा करने कि हिम्मत आयेगी |
नहीं रखा हम अपनी ही जाती में विवाह को जोर देते है भले ही वह बे मेल विवाह हो | निरुपमा कि मौत ने समाज में तेजी से उठ रहे एक समस्या कि तरफ हमारा ध्यान खींचा है अच्छा हो हम उस पर गम्मभिरता  से सोचे और उससे ज्यादा ज़मीनी रूप से कुछ करे नहीं तो ऐसी घटाने समाज में आम होते देर नहीं लगेगी | जरूरी नहीं कि तब वो सारी घटाने हमारी और मीडिया कि नजर में आये  पर वो समाज को ज़रुर पिछड़ा बनाती रहेंगी और हमारे आप की प्रगति में बाधक बनेगी |

2 comments:

  1. जी कुछ लोगों ने तो ध्यान दिया है पर उन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया

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  2. निरूपमा के मामले में जाति एक मजबूत कारक है। लेकिन यही लड़का निम्न जाति का होता और आईएएस होता तो भी शायद बात बन जाती निरुपमा को मरना नहीं पड़ता।

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