हर नागरिक को झंडा फहराने की आजादी मिलने के बाद आम आदमी अब ज्यादा झंडे से जुड़ा दिखता है आज रास्ते से गुजरते समय आधे से ज्यादा लोगों के सिने पर झंडा लगा दिखा और रास्ते में चल रहे लगभग सभी बच्चे के हाथ में छोटे छोटे झंडे इस दिन को बच्चो से भी जोड़ रहे थे इन बच्चो में हमारी बिटिया भी थी हाथ में झंडे को झुलाती चली आ रही थी तो लगा जब उन्हें ये दिलाया है तो उससे जुडी कुछ जिम्मेदारिया भी बताते चले सो उन्हें कहा की कभी भी अपने तिरंगे को जमीन से छूने नहीं देते है और ना ही उसे कभी नीचे करते है उसे हमेसा ऊपर की और रखते है | बिटिया ने कहा की ये करना बैड मैनर्स होता है मम्मी, मैंने जवाब हा में दिया तो उन्होंने तुरंत तिरंगे वाला हाथ ऊपर कर लिया |
हमें याद है की हमारे बचपन में हमें इस तरह तिरंगे को हाथ में लेने की आजादी नहीं थी और ना ही हमें कोई देश के बारे में बताने वाला था देश को लेकर जो विचार बने वो अपनी समझ से बने | जो देखा सुना उसी के आधार पर अपने दिमाग से देश के लिए एक विचार बना लिया | ऐसे ही अपने देश के लिए भी मन में भी बचपन में एक विचार बना की हमारा देश दुनिया में सबसे अलग है सबसे ज्यादा गर्व करने के लायक | जितने अलग अलग तरह के लोग विभिन्न संस्कृति, परम्परा, खान पान, भाषा बोली के लोग यहाँ मिल जुल कर रहते है वो और किसी भी देश में नहीं होगा | ये विचार यु ही नहीं बना इस के पीछे की वजह थी हमारे " दूरदर्शन " के वो धारावाहिक जिसमे दिखाया जाता था की कैसे एक ही ईमारत में पंजाबी, मद्रासी ( उस समय हम लोगों के लिए हर दक्षिण भारतीय मद्रासी ही होता था ) बंगाली मराठी मुस्लिम ईसाई सब साथ में रहते है और बड़े ही प्यार से मिलजुल कर रहते है हर मुसीबत में एक दूसरे का साथ देते है | क्या करे बच्चे थे उन्हें देख कर लगता था की ये भले ये नकली है पर वास्तव में सब लोग ऐसे ही रहते होंगे | अब बनारस में तो इतने तरीके के लोगों से सामना होता नहीं था ये पता था की हा मुंबई में ये कहानिया बनती है वहा ये सब ऐसे ही मिल कर रहते होंगे |
बचपन में ये भ्रम बना गया और विवाह के बाद मुंबई आने तक ये अपने देश पर अतिरिक्त गर्व की भावना बनी रही | अब भ्रम है तो एक ना एक दिन तो उसे टूटना ही था और मुंबई आते ही वो टूटने लगा | बड़े होने के साथ मुंबई में हो रही राजनीति से तो परिचित होने लगे थे पर ये भरोसा था की ये सब बस राजनीति तक ही सिमित होगा | लेकिन भला हो मुंबई वालो का जो उन्होंने ये वाला भ्रम ज्यादा दिनों तक नहीं बने रहने दिया और ये ये भ्रम जल्द ही तोड़ दिया की ये सब बस राजनीति है | यहाँ आने पर पता चला की कैसे हमारे देश के अन्दर ही कितने देश पल रहे है सभी का अपना देश है और सभी के दिलो में एक दूसरे के लिए कितना द्वेष नफरत भरा पड़ा है खुद को दूसरो से श्रेष्ठ समझने की नाजीवादी सोच भी यहाँ पल रही है | कोई अपनी विपन्नता के लिए दूसरो को दोष मढ़ा रहा है तो कोई अपनी सम्मपनता का दुश्मन किसी को बता रहा है , कोई किसी को फूटी आँख भी नहीं सुहाता | अपने देश के अन्दर ही लोगों के साथ परायो जैसा व्यवहार किया जा रहा है देश के एक हिस्से के लोगों को दूसरे हिस्से में रहने की आजदी नहीं है उन्हें वहा से भगाया जाता है | बाजार हर जगह हावी है तो यहाँ भी है बाजार में आते ही सब एक दुसरे से बिल्कुल धंधे से जुड़ जाते है पर धंधा ख़त्म होते ही ये मिल कर काम करने की गांठ भी खुल जाती है |
ऐसा नहीं है की यहाँ तलवार ले कर एक दूसरे को मारने पर उतारू है लोग यहाँ भी लोग वैसे ही रहते है जैसे देश के दूसरे हिस्से में , सभी पड़ोसी जानने वाले एक दूसरे के यहाँ आते जाते है दोस्ती बनाते है मिलते जुलते है वैसे ही यहाँ भी करते है किन्तु एक दूसरे के लिए मन में एक गांठ बना कर चलते है | यहाँ पर आप से मिलने पर आप के नाम पूछने के बाद दूसरा सवाल ये होता है की तुम्हारा गांव कहा है मतलब आप अपना गांव बताइये ताकि वो जान सके की आप देश के किस हिस्से से आये है और आप के लिए किस तरह की ग्रंथि मन में बनाई जाये | देश के अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग तरह की सोच है और सम्मान देने का स्तर भी है यहाँ सभी को समान रूप से सम्मान नहीं दिया जाता है आप को इज्जत की नजर से देख जाये या घुसपैठिये की नजर से ये आप के जड़ो पर निर्भर होगा | ये सब केवल मुंबई में नहीं हो रहा है ये सब देश के लभग सभी हिस्से में हो रहा है और हर लगभग हर जगह के लोगों की सोच ऐसे ही बनी हुई है या बनती जा रही है | ये सब कुछ केवल राजनीति की देन नहीं है और ना ही केवल उनके द्वारा मन में भरा गया है | असल में ये बिज तो हम सभी के दिल की गहराई में हमेसा से था , उन्होंने तो बस उसे खाद पानी दे कर बड़ा किया है और हमने उन्हें खाद पानी देने की छुट और मौका दोनों दिया है | वैसे भी ये राजनीति आज की नहीं है ये तो देश के आजाद होने के बाद दो देश के रूप में सामने आया फिर देश के अन्दर राज्यों की सीमा खीचने की वजह बना | ऐसा नहीं है कि अब ये सब देखने के बाद देश के लिए सम्मान नहीं रहा या हम देश पर शर्मिंदा है पर हा वह जो बचपन में अतिरिक्त गर्व वाली भावना थी वो चली गई |
कभी कभी लगता है कि आखिर देश का मतलब लोग क्या लगाते है आखिर देश का मतलब लोग समझते क्या है, क्या लोगों के लिए देश का मतलब सिर्फ जमीन के एक खास टुकडे से है | कभी तो लगता है कि हम केवल जमीन के टुकडे से प्यार करते है और उसे ही देश मानते है यहाँ रह रहे लोगों को हम देश कि गिनती से नहीं रखते है और ये प्यार भी किस जमीन के टुकडे से, उस जमीन के टुकडे से जिसके बारे में हमें बचपन में ही भ्रम बना दिया जाता है कि ये हमारा है उस टुकडे को भी जो कभी हमारा था ही नहीं और ना कभी भविष्य में होगा और उस टुकडे को भी जो कब का हमारे हाथ से जा चूका है और कभी वापस नहीं मिलने वाला है | बस उसे तो कागजो पर लकीर खीच खीच कर हमारा बना दिया गया है | हमारे देश के जमीन के एक खास टुकडे से हमें कितना प्यार है , कितना प्यार है हमें उससे हम अपना सब कुछ गवा देंगे उसके लिए मर मिटेंगे पर उस टुकडे को देश से अलग नहीं होने देंगे सच्चा देश प्रेम है हमारा, और वहा के लोग निकाल फेको उन सभी को जो हमसे हमारे जमीन का टुकड़ा छिनना चाहते है निकाल फेको उन सब को जिनकी वजह से वो हमारे हाथ से जा सकता है मार डालो उन सब को चाहे जो भी हो कश्मीरी हो, नक्सली हो, बरगलाये भटके नौजवान हो, उपेक्षा के शिकार दलित आदिवासी हो जो ईसाई बनते जा रहे हो और हम उनकी बढाती संख्या से बड़े परेशान है तो सभी को मार डालो या देश से निकाल दो , क्यों ? क्योकि हमारे देश की परिभाषा में लोग नहीं आते है बस जमीन का टुकड़ा आता है और देश प्रेम के नाम पर हम बस उसे ही प्यार करते है |
चलते चलते
एक बार एक किसान ( किस्से में तो पंजाब का किसान है पर यहाँ सिर्फ किसान ही काफी है ) अपनी गरीबी कर्ज से परेशान हो कर चढ़ गया पानी की टंकी पर धर्मेन्द्र की तरह सुसाइड करने के लिए, अब माँ आई बोली, बेटा नीचे आ जा तू मर गया तो मेरा क्या होगा मेरा बुढ़ापा ख़राब हो जायेगा, बेटा बोला नहीं आऊंगा, फिर पत्नी आई बोली तुम चले गये तो मेरा क्या होगा जीवन कैसे कटेगा, वो बोला नहीं आऊंगा, फिर बच्चे आये बोले पिता जी आप चले गये तो हमारा क्या होगा हमारा तो पुरा जीवन ख़राब हो जायेगा, फिर भी किसान उतरने को तैयार नहीं हुआ बोला नहीं जीना है जीवन से उब गया हु परेशान हो चूका हु | तभी एक पड़ोसी आ कर बोला जल्दी नीचे आ अभी तू मरा नहीं और तेरे जमीन पर तेरे चचेरे भाई हल चला रहे है | किसान आग बबूला हो कर जल्दी जल्दी नीचे आने लगा और गुस्से में बोला माँ लाठी निकाल मै अभी नीचे आ कर एक एक को मजा चखाता हूँ |
बचपन में हमें संस्कृत का एक श्लोक पढ़ाया जाता था जिसका अभिप्राय यह था कि परिवार के हित के लिये व्यक्तिगत हित, कुल के हित के लिये परिवार का हित, राज्य हित के लिये परिवार हित एवम इसी तरह बड़ी ईकाई के हित के लिये छोटे हितों का त्याग करने को तैयार रहना चाहिये। अंतिम लक्ष्य संपूर्ण विश्व का कल्याण। सीरियल्स का जिक्र आपने कर ही दिया। ऐसी शिक्षा, ऐसे माहौल के बाद भी आज हम इस हालत में हैं तो जो शिक्षा और माहौल आज के बच्चों को मिल रहे हैं, उसका अंजाम क्या होना है, हम सोच सकते हैं।
ReplyDeleteदेश से मतलब केवल जमीन का टुकड़ा नहीं, उस पर बसने वाले समस्त जीव जगत से है, प्राकृतिक साधनों से है। लेकिन उपेक्षित, बरगलाए और ऐसी दूसरी वजहों के चलते अपनी जमीन को खो देना कैसे भी उचित नहीं है। हमारी व्यक्तिगत जमीन पर कोई कब्जा करना चाहे तो हम चुप नहीं बैठेंगे तो जो जमीन हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है, उसपर कोई आंख रखे ये भी गवारा नहीं हो सकता।
अजी पंजाबी होते ही ऎसे हे, देश के बात हो तो सब से आगे निकलेगे, बहुत सुंदर, लेकिन आज लोगो को पता नही क्या हो गया हे सब को अपनी अपनी पडी हे....चाहे वो किसी भी प्रांत का क्यो ना हो..... देश के लिये नकली प्यार ही बचा हे
ReplyDeletesahi bat sahi samay par aur bas kuchh nahi ....
ReplyDeleteप्रतीकों में फँसा गणतन्त्र।
ReplyDelete@ संजय जी
ReplyDelete@ देश से मतलब केवल जमीन का टुकड़ा नहीं, उस पर बसने वाले समस्त जीव जगत से है, प्राकृतिक साधनों से है।
देश की परिभाषा में इन सबके साथ मै वहा रह रहे लोगों को भी मानती हूँ यदि हम किसी टुकडे को बचाने के लिए वहा रह रहे लोगों को ही वहा से निकलने की या मार डालने की बात करते है तो हमारे पास क्या रहेगा सिर्फ वहा की जमीन | हमारे पड़ोसी क्या कर रहे है उन्हें भी तो बस जमीन ही चाहिए और ये सब वो उसके लिए ही कर रहे है तो क्या हम भी उन्ही की तरह बन जाये और सिर्फ जमीन के लिए ही लड़े | बिल्कुल सही बात है की हम किसी भी कीमत पर अपने जमीन का एक हिस्सा भी दूसरो को नहीं देंगे लेकिन क्या हमारे शरीर के किसी अंग पर घाव हो जाता है तो हम उसका इलाज करते है या उस अंग को ही काट कर फेक देते है यदि हमारा भाई हमसे बटवारा चाहता है तो हम घर बचाने के लिए उसे समझायेंगे सही गलत की पहचान कराएँगे या उसे मार डालने की बात करेंगे | यदि किसी को ख़त्म करना है तो हमें घाव पैदा करने की जड़ को ख़त्म करना होगा भाई के मन से उस शंका को मरना होगा होगा जिसकी वजह से वो बटवारे की बात कर रहा है ना की भाई को | मुझे लगता है जब हम देश प्रेम की बात करते है तो हमें देश से जुड़े हर चीज के प्रति प्रेम लगाव रखना चाहिए |
सही कह रही है आप सबको अपने अपने की पडी है, और जब सबको अपने अपने की पडी ही है तो जमीन का वो टुकडा भी तो हमारा ही है उसकी फिक्र भी तो हमे ही होनी चाहिए।
ReplyDelete@ यहाँ पर आप से मिलने पर आप के नाम पूछने के बाद दूसरा सवाल ये होता है की तुम्हारा गांव कहा है मतलब आप अपना गांव बताइये ताकि वो जान सके की आप देश के किस हिस्से से आये है और आप के लिए किस तरह की ग्रंथि मन में बनाई जाये|
ReplyDeleteसही नब्ज़ पकड़ी है आपने अंशुमाला जी। ये सब चीज़ें देख/सुन/पढ़ कर बहुत तकलीफ़ होती है।
सहमत हूँ। अच्छी पोस्ट के लिये बधाई।
ReplyDeleteबहुत अच्छी बात कही है आपने. मैं आपसे सहमत हूँ.
ReplyDeleteबहुत ही व्यथित मन से लिखी गयी यह पोस्ट दुखी दिल को और दुखी कर गयी...
ReplyDeleteकल मैने भी इसी आशय की टिप्पणी की थी, कहीं कि अगर कोई जगह विशेष हमारा है तो वहाँ के लोग भी हमारे हैं. उन्हें बरगलाया गया है...वे भटक गए हैं तो उन्हें वापस लाने की कोशिश की जानी चाहिए ना कि उनसे नाता तोड़...सिर्फ जमीन से ही वास्ता रखने का प्रयत्न होना चाहिए.
सच कहती हो ...सबको अपनी अपनी पडी है ..
ReplyDeleteअरे किसी चीज़ को अपना कहते हो तो उसकी फिकर भी तो करो .
क्या कहें दुखी मन नजर आ रहा है पोस्ट में.
मैं आपसे सहमत हूँ.
ReplyDeleteजब मैं धड़ल्ले से हिंदी,अंगरेज़ी, उर्दू,बांगला और मलयालम बोलता हूँ तो लोगों का रिऐक्शन यही होता रहा है कि कमाल है यार बिहारी होकर भी इतनी भाषाएँ बोल लेते हो... कलकत्ता में अच्छे का पर रिकमेंडेशन के समय मेरे बॉस ने कहा था कि तुम्हारा नाम रिकमेंड नहीं करूँगा, उसका करूँगा क्योंकि वो मेरा पुराना साथी है, जबकि खुलकर नहीं कह पा रहे थे कि तुम बिहारी हो..
ReplyDeleteमेरे साथ 13 लोगों के तबादले हुए..दस दिनों के भीतर 12 मन मुताबिक बदल गये सिर्फ एक को छोड़कर.. उस पूरी लिस्ट में वो एक बंदा बिहारी था...
पढ़ा लिखा हूँ, भटका हुआ नहीं हूँ और चेतना जीवित है, इसलिये इसे व्यक्ति विशेष की मानसिकता समझकर भूल गया. और जिस ज़मीन के टुकड़े के लिये वो धर्मेंद्र टंकी से उतर आया,वो महज़ ज़मीन का टुकड़ा नहीं था, उसके साथ एक लम्बी वंशावलि है... उनकी ज़मीन पर वह हल तो कहला सकता है, लेकिन कोई और उनकी छाती पर हल चलाए बर्दाश्त नहीं कर सकता..
मेरेदएश की धरती सोना उगले सुनकर हर कोई खुश होता है, लेकिन जब कुछ ख़ास लोगों के घरों की धरती सोना या नोट उगलने लगती है तो यह सोचने पर विवश होना पड़ता है कि क्या वाक़ई भू के मानचित्र पर अंकित यह त्रिभुजाकार भूखण्ड हम सबका है!!
भीड़ बहुत से सवाल खड़े करती है. ...
ReplyDeleteखुली जगहों पर रहने वालों की बात कुछ और होती है...
७५से ८६ तक मुंबई में रही |उसके बाद भी मुंबई आना जन लगा ही रहता है पर जिस तरह अपने महसूस किया है आज के २५ साल पहले मुझे ऐसा कभी नहीं लगा | मराठी बहुल समाज में भी रहने का अवसर मिला |
ReplyDeleteऔर ऐसी बिल्डिग में भी जहाँ सारे प्रदेशो. के लोग रहते थे |सबसे ज्यादा अंतरजातीय विवाह भी मुंबई में ही होते है, परिवार बनते है समाज बनता है फिर दिलो में ये कड़वाहट क्यों ?
देश जमीन का टुकड़ा भी नहीं है देश हमारी भावना है | देश मै नहीं, हम है |
ये मेरे विचार है |
आपका आलेख मन को उद्वेलित करने वाला है जिस तरह समाज में आपस में दूरिया बढ़ रही है उनके कारणों को खोजता सार्थक आलेख |
यह सबसे बडी विडम्बना है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की.....
ReplyDeleteकश्मीरी आवाम से मेरी सहानुभूति हैं जिसकी आवाज को अनसुना करने के हम दोषी हैं लेकिन अतिवादियों ,उनके सक्रीय कार्यकर्ताओं जो कि हार्डकोर स्टोन पेल्टर्स भी हैं.से मुझे कोई हमदर्दी नहीं.ये बरगलाये हुए नहीं हैं बल्कि ये तो खुद आम कश्मीरियों को भडकाने का काम करते हैं.और हिंसा भडकने पर खुद पीछे हो जाते हैं.यही बात नक्सलियों और आम आदीवासियों के बारे में हैं.कुछ समय पूर्व तक जो लोग उनके द्वारा की जा रही हिंसा को हिंसा नहीं मानते थे अब मानने लगे है.जब तक वे हथियार नहीं छोडते देश की जनता का रुख उनके प्रति नहीं बदलने वाला.
ReplyDeleteजब पढ़ा था उसी समय लगा था कि आप हालात के चलते व्यथित हैं। मैंगोपीपल होने के नाते हमें भी वेदना महसूस होती है। जमीन के टुकड़े को बचाने के लिये वहाँ बसे लोगों को मारने की या भगाने की हिमायत हम भी नहीं करते। आम जनता हमेशा शांति ही चाहती है। हमें ऐतराज है, तो उस मानसिकता पर जो कभी धर्म और कभी भाषा और कभी ऐसे ही दूसरे मुद्दों पर देश को बांटने की कोशिश करते हैं। इस मानसिकता वाले लोगों में वो भी शामिल हैं, जो चार सौ रुपये की दिहाड़ी पर पत्थर फ़ेंकने में शामिल होते हैं(गौरतलब है नरेगा में दैनिक मजदूरी शायद सौ रुपया प्रतिदिन है)और वो भी जो वोट और सत्ता के लालच में कभी ये पैकेज और कभी वो राहत बांटते हैं|
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
अंशुमाला जी,
सही कहूँ तो India as a nation state का कॉन्सेप्ट नहीं रहा कभी भी हम लोगों के पास... लंबे इतिहास के दौरान कुछ शक्तिशाली शासक अवश्य रहे जिनका भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े भूभाग पर शासन रहा परंतु समाज वही रहा... भाषाओं, जातियों व क्षेत्रीयता में गौरव का अनुभव करने वाला व खुद को मुल्क के अन्य से श्रेष्ठ मानने का झूठा अभिमान भी रखने वाला... यह प्रवृत्ति आज भी आप देख सकती हैं... बंगाली, तमिल, पंजाबी, गंगा-जमनी ब्राह्मण, मलयाली ... किस किस को गिनाऊँ... स्वयं को श्रेष्ठ व परिष्कृत कौम समझते हैं व अन्य को कमतर...
एक बड़ा मौका मिला हमें आजादी के बाद... पर दुर्भाग्य कि हमें बौने नीति निर्धारक मिले जिनमें इन चीजों को देख पाने का विजन तक नहीं था... नतीजा... हमारे जो राज्य बनने थे प्रशासन करने की सहजता के आधार पर वे बने जातीय-क्षेत्रीय-भाषाई आधार पर... रही सही कसर इस बात ने पूरी कर दी कि राजपत्रित पदों को छोड़ अन्य सरकारी पदों पर उसी राज्य के निवासी ही रखे जायेंगे... नतीजा सारे मेंढक अपने ही कुंओं में रहे, प्रसन्न व जोर शोर से टर्राते, मुटाते हुए...
अब तो यह जातीयता, क्षेत्रीयता व भाषा-समूहों का स्वयं पर अभिमान इतना बढ़ चुका है कि राजनीति को दिशा देने लगा है... केन्द्रीय मंत्रिमंडल जहाँ योग्यता एकमात्र पैमाना होना चाहिये था वहाँ पर भी इन्हीं आधारों पर बैलेंसिंग होने लगी है...
बढ़ता रहेगा यह सब... शीघ्र ही हम India के बजाय United States Of India होंगे... शायद ठीक भी रहेगा वह क्योंकि हम इसी के लायक हैं भी...
...
आपकी पोस्ट सराहनीय है ...एक एक शब्द बहुत गंभीर ....पर क्या कहें इस देश के बारे में ...आपका आभार इस सार्थक पोस्ट के लिए
ReplyDelete@ राज भाटिया जी
ReplyDeleteधन्यवाद | ये केवल आज की बात नहीं है ये हमेसा से था बस आज ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है |
@ सुनील जी
जरुरी है लोग समय रहते बात समझ जाये |
@ प्रवीण जी
असल में गणतंत्र ही बस प्रतिक रह गया है |
@ दीपक जी
जमीन के साथ वहा के लोग भी हमारे है उनकी फिक्र भी हमें करनी चाहिए |
@ सोमेश जी
अब तो आदत सी हो गई है |
@ निर्मला जी
धन्यवाद |
@ मुक्ति जी
धन्यवाद |
@ रश्मि जी
ReplyDeleteये बात सब समझे तब ना |
@ शिखा जी
सभी लोग, चीजो को बस अपने नजर से ही देखते है |
@ रचना जी
धन्यवाद |
@ सलिल जी
पूरे देश का यही हाल है आप के बारे में क्या राय बनाई जाये ये आप के व्यवहार और चरित्र पर नहीं आप किस जगह से है उस पर निर्भर होता है | नहीं जी वो पुरा भूखंड हमारा नहीं है बाप की संपत्ति की तरह हमने देश के हिस्से भी आपस में बाट लिए है ये हमारा और ये तुम्हारा |
@ काजल जी
धन्यवाद |
@ शोभना जी
आज से पच्चीस साल पहले क्या था ये मै नहीं जानती पर आज के हालत वही है जो मैंने कहा | हा ये दुर्भावना कभी भी आप के सामने नहीं कही जाएगी जैसे आप मराठी से मिलिए तो वो आप को आप को छोड़ दूसरे क्षेत्र के लोगों की बुराई आप से कर डालेगा वैसे ही गुजराती मारवाड़ी आदि सभी यही करेंगे | मै भी यही कह रही हूँ की देश मै नहीं हम की भावना से बनती है |
@ मोनिका जी
ReplyDeleteधन्यवाद |
@ राजन जी
चाहे बात कश्मीर की हो नक्सलियों की हो या कही और की जब तक आप पत्थर फेकने के लिए और बन्दुक उठाने के लिए उकसने वालो को नहीं पकड़ेंगे तब तक कोई फायदा नहीं होगा, आप एक को मारेंगे वो दस और पैदा कर देंगे ये दिखा कर की देखो वो तुम्हारे दुश्मन है आप कब तक उन्हें मारते रहेंगे | जरुरी है की बड़े लोगों को पकड़ा जाये जड़ो को नष्ट किया जाये उनके शक्ति के स्रोतों को बंद किया जाये पर वो नहीं होता क्योकि कश्मीर से ले कर नक्सलियों तक के नेताओ को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है | प्यान्दो को मार कर आप कोई भी जंग नहीं जीत सकते है |
@ संजय जी
४०० में पत्थर फेकने वाले देश का ज्यादा नुकसान नहीं कर पाते जो नुकसान होता है वो बस फौरी होता है लेकिन एक पाउच और मुर्गे की टांग के लिए या अपनी जाती, धर्म,भाषा क्षेत्र आदि के नाम पर वोट दे देने वाले देश का ज्यादा नुकसान करा देते है पूरे देश का वर्त्तमान और भविष्य दोनों ख़राब कर देते है | ये मानसिकता पूरे देश की लोगों की है तो कश्मीर के लोगों की मानसिकता अलग कैसे होगी आखिर वो भी तो भारतीय ही है ना |
@ प्रवीण जी
पहली लाइन से आखरी लाइन तक आप की बात से सहमत हु | आप ने मेरी बात को और अच्छे तरीके से कह दिया |
United States Of India तो हम हमेसा से थे लेकिन गठबंधन की राजनीति ने इसे और ज्यादा स्थापित कर दिया |
@ केवल राम जी
धन्यवाद |
नमस्कार........
ReplyDeleteमैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......
http://harish-joshi.blogspot.com/
आभार.
पढने लायक एक बहुत बढ़िया लेख ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
saare hindustaaniyon ke dil ke tukde jod jod kar ye desh bana hai....
ReplyDeletebhale hi kuch logon ko ye baat samajh nahi aati hai, lekin jis din is desh ko koi haani huyi na, usi din hamara dil bhi kaam karna band kar dega......