अश्वाथामा मारा गया
किन्तु हाथी
जी हा सभी जानते है की आतंकवादी रूपी अश्वाथामा अजर अमर है वो कभी मर नहीं सकता है दुनिया में वो किसी न किसी रूप में मौजूद रहेगा | लादेन रूपी जो अश्वाथामा मारा गया है वो तो इस आतंकवाद के युद्ध में सिर्फ एक हाथी था जिसके मरने से इस युद्ध पर कुछ खास असर नहीं होने वाला है कम से कम हम भारतीयों के आतंकवाद के युद्ध के लिए तो ये ज्यादा महत्व नहीं रखता है | इसलिए जरुरी है की इस हाथी के मरने के शोर में असली आतंकवाद रूपी अश्वाथामा को नहीं भूलना चाहिए, जैसे पांडव उसे भूल कर युद्ध को समाप्त समझ बैठे थे और उसके बाद उस अश्वथामा ने युद्ध नीति और धर्म के खिलाफ जा कर द्रौपती के पांच पुत्रो की हत्या कर दी थी और उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव वंश की आखरी निशानी को भी समाप्त कर पांडव वंश को समाप्त करने का प्रयास किया था | आतंकवादी भी किसी धर्म या नीति को नहीं मानते है उनके लिए सब कुछ जायज है यदि उन्हें अपनी महत्वाकांक्षाओ को पूरा करने के लिए इस पुरे मानव वंश को भी नष्ट करना पड़े परमाणु युद्ध द्वारा तो वो उससे भी पीछे नहीं हटेंगे | इसलिए अब जरुरत इस बात की है की अपना ध्यान और इस युद्ध पर लगाया जाये ताकि बदले की कार्यवाही से बचा जा सके |
खुद अमेरिका के लिए भी ये हाथी ही होगा क्योकि पिछले दस सालो में नहीं लगता है की लादेन आतंकवाद को बढ़ाने में और अलकायदा के संचालन में उतना सक्रिय रहा होगा जितना की ९/११ के पहले था , असल में तो अल कायदा की कमान काफी पहले ही कई दुसरे आतंकवादियों के हाथ में चली गई थी और लादेन के मरने से उनके मनोबल तो गिर सकता है किन्तु जमीनी रूप से ज्यादा फर्क उन्हें नहीं पड़ेगा | इसलिए ये जरुरी है कि अमेरिका इसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई का एक पड़ाव भर माने उससे ज्यादा कुछ नहीं | वैसे तो हम सभी जानते है की दुनिया को आतंकवाद से मुक्ति दिलाने के नाम पर आमेरिका अपनी निजी लड़ाई लड़ रहा है और उस नाम पर वो तेल का खेल भी खेल रहा है किन्तु हमें ये तो फायदा हुआ ही है की इन दस सालो में अलकायदा अमेरिका से ही लड़ने में व्यस्त था जिससे उसका ध्यान भारत और कश्मीर में हो रहे आतंकवाद से थोडा हटा था और कश्मीर में कुछ दुसरे पाकिस्तान परस्त गुट ही सक्रीय थे | यदि अलकायदा अमेरिका से उलझा नहीं होता तो शायद वो अपना सारा धन बल हथियार की ताकत भारत के लिखाफ लड़ने में लगा सकता था | साथ ही अमेरिका के पाकिस्तान में मौजूदगी के कारण वो अब जान चूका है की पाकिस्तान किस तरह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है खुद लादेन तक को अपने यहाँ पनाह दे रखा था वो इस बात को भले सार्वजनिक रूप से न माने क्योकि ये उसकी मजबूरी है वो उस पाकिस्तान के खिलाफ अभी कुछ नहीं कह और कर सकता जिसके बल पर वो अफगानिस्तान में टिका है और उसे पैसे दे कर उसके सैनिको से अपना युद्ध लड़वा रहा है किन्तु अब वो पाकिस्तान की वास्तविकता से अच्छे से परिचित है जो हमारे काम तब आएगा जब अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी गर्दन बचा कर बाहर निकल जायेगा | तब तक तो हमें इस तमाशे को देखना ही पड़ेगा |
मुझे नहीं लगता है की प्रत्यक्ष रूप से अमेरिका हमारी आतंकवाद से लड़ने में कोई मदद करेगा ये काम तो हमें ही करना होगा | अपने आतंकवाद की लड़ाई हमें ही लड़नी होगी क्योकि एक तो हमारे दुश्मन अलग अलग है वही हमारी और हमारे दुश्मनों की स्थिति दुनिया में अलग अलग है हम उस तरह से अपना युद्ध नहीं लड़ा सकते है जैसे की अमेरिका लड़ रहा है जहा अमेरिका आक्रमण नीति अपना रहा है क्योकि उसकी लड़ाई अविकसित सैन्य शक्ति में कमजोर देशो से है वही हम गुरिल्ला युद्ध जैसी स्थिति में फंसे है जहा हम पर छुप कर पीछे से वार किया जा रहा है हमारे दुश्मन सामने नहीं दिख रहा है | हम भले जानते हो की इसके पीछे कौन है किन्तु उसके खिलाफ हम सीधी लड़ाई नहीं लड़ सकते है वो अन्य देशो से कही ज्यादा सैन्य शक्ति में ताकतवर है और उसे दुनिया के दुसरे ताकतवर देशो और हमारे दुसरे दुश्मनों का साथ भी मिला है साथ ही हम अमेरिका जैसे आर्थिक और सैनिक ताकत भी नहीं रखते है | इसलिए हमें ये युद्ध रक्षात्मक रूप में लड़नी होगी मतलब हमें खुद की इन हमलो के प्रति सुरक्षित बनाना होगा इन हमलो को होने से पहले रोकना होगा अपनी सुरक्षा व्यवस्था और तगड़ी करनी होगी | जो हम अभी तक नहीं कर पाए है सबूत के तौर पर मुंबई हमला करने के लिए आतंकवादी बड़े आराम से समुंद्री रास्ते हमारे देश में घुस गए | जब हमारी सीमाओ का ये हाल है तो हम कैसे इस युद्ध को जितने का सोच सकते है या अमेरिका जैसे किसी सफलता की उम्मीद कर सकते है |
अमेरिका ने तो दस सालो में दुसरे देश में घुस कर अपने दुश्मन को मार दिया और हम तो किसी आतंकवादी हमले का मुक़दमा ही तेरह सालो तक चलाते रहते है वो भी निचली आदालत में जैसे १९९३ के मुंबई हमलो का मुक़दमा | दुसरे मुकदमे का फैसला आ जाये तो उसे सजा देने में इतनी देर करते है जैसे अफजल गुरु और हद तो तब है जब बाहर से आ कर सरेआम लोगो को मारने वालो को जिसकी फोटो हर किसी ने देखी सब करते हुए उसके खिलाफ भी मुक़दमा दो साल तक चलता जा रहा है जैसे कसाब का मुक़दमा अभी भी अदालत में ही है | अब ये देखने के बाद क्या हम कह सकते है की हमें भी अमेरिका की तरह दुसरे देश में घुस कर अपने दुश्मनों को पकड़ लेना चाहिए या उन्हें मार देने चाहिए | जब हम अपने देश के अन्दर उनके खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे है तो किसी दुसरे देश में घुस कर उन्हें क्या खाक पकड़ेंगे |
कल टीवी पर देखा दुनिया के साथ ही भारत में भी इस बात की खुशिया मनाई जा रही है की लादेन मारा गया | लगा जैसे लोग खुद को धोखा देने का प्रयास कर रहे है की हम अपने देश के दुश्मनों का तो कुछ नहीं कर सकते अपने लिए हम इस तरह कोई ख़ुशी नहीं मना सकते तो कम से कम दूसरो के दुश्मनों को या अपने दूर के दुश्मन के मरने की ही ख़ुशी मना लेनी चाहिए | अब आम आदमी और कर भी क्या सकता है जिस देश की राजनीतिक इच्छा शक्ति इतनी कमजोर हो जिस देश के नेता मंत्री हर बात में वोट की राजनीति करते हो खबरों में बने रहने के लिए कुछ भी बकते हो उस देश की जनता कर क्या सकती है | दिग्विजय सिंह की बयान रूपी बेफकुफियो की लिस्ट काफी लम्बी है कल उन्होंने उस में एक और जोड़ ली ये कह कर की " कोई कितना बड़ा आतंकवादी क्यों न हो उसके मरने के बाद उसके अंतिम संस्कार में उसके धार्मिक रीति रिवाजो को पूरा किया जाना चाहिए |" ये हमारे देश के नेता है ये इनकी सोच है इस पुरे प्रकरण में इन्हें अपने मतलब की जो सबसे सही बात दिखी वो ये था की एक खूंखार आतंकवादी का धर्म और उसका रीति रिवाज | वास्तव में कहू तो दिग्विजय सिंह की ये बेफकुफिया बर्दास्त के बाहर होती जा रही है |
मानवता के लिए कलंक था यह अश्वत्थामा ....दुआ करें कि कहीं फिर जिन्दा न हो जाए ! शुभकामनायें अंशुमाला !
ReplyDeleteलादेन के मरने से आतंकवाद खतम हो गया यह मानना बहुत बड़ी भूल होगी.सतर्क रहने की अब ज्यादा जरुरत है.
ReplyDeleteसही कहा आपने.तालिबान समेत दूसरे आतंकी संगठनों की प्रतिक्रीया से तो लगता है कि वो लोग अब बोखला गये है.यहाँ तक कि पाकिस्तान ने जिस तरीके से रक्षात्मक रूख अपनाया है उससे भी लगता है कि वह आतंकियो से खुद भी डरा हुआ है.लेकिन एक बात समझ नहीं आई जब पिछले साल अगस्त में ही अमेरीका को लादेन के ठिकाने की खबर मिल गई थी तो उसने कार्रवाही में इतनी देर क्यों लगाई?पाकिस्तान में अमेरिकी गुप्तचरों को क्या ये जानकारी पहले से ही नहीं होगी?और क्या सचमुच पाक सरकार की मंजूरी बिना ही इस कार्रवाही को अंजाम दिया गया?विश्वास करना कठिन है.
ReplyDeleteखुशदीप जी के ब्लॉग पर आपकी 'म्याऊं म्याऊं' और 'भों भों' पढकर चला आया आपके ब्लॉग पर पहली बार.आपका विश्लेषणात्मक लेख और आपके स्पष्ट विचारों को जानकर अच्छा लगा.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप आइयेगा ,आपका हार्दिक स्वागत है.
और हाँ खुशदीप जी के ब्लॉग पर आपसे बन्दर की 'खों खों' और बकरी की 'मैं मैं' के लिए भी आग्रह किया है मैंने.कृपया,हों सके तो वह भी सुना दीजियेगा.आभार.
कमाल का विश्लेषण किया है आपने। इस समकालीन घटना को पौराणिक आख्यान से बखूबी जोड़ा है आपने। आपके तर्कोँ और निष्कर्षों से सहमत हूँ।
ReplyDeleteमीडिया भी भूमिका निभा सकता है-ऐसी बेवकूफियों को जगह न देकर।
ReplyDeleteसही है अभी केवल लादेन मरा है, मानसिकता तो फल-फूल रही है और ना जाने कितने मासूम लोगों को इस मानसिकता का जहर पिलाया जा रहा है। बहुत ही सावधानी से कार्य करने का आवश्यकता है।
ReplyDeleteइस समकालीन घटना को पौराणिक आख्यान से बखूबी जोड़ा है | सही समय पर अच्छी पोस्ट बधाई
ReplyDeleteदूसरे लगभग सभी देश अपने देश के हित में फ़ैसले लेते हैं, हमारे कर्णधार बयान तक सत्ता के समीकरणों के हिसाब से देते हैं।
ReplyDeleteआवश्यकता अपने घर को सुरक्षित रखने की है, ये काम ही ठीक से हो जाये तो बहुत है।
आपका विश्लेषण एक परिपक्व विश्लेषण है।
बहुत अच्छा आलेख है. मैं भारतीय और अमेरिकन नेताओं की मानसिकता के इस बहुत बड़े अंतर से बेहद दुखी हूँ. उन लोगों ने अपने देशद्रोही को ऐसी सजा दी की अगले को कब्र तक न नसीब हुयी और हमारे नेता हर बात अपने वोट बैंक को ध्यान में रखकर करते हैं.
ReplyDeleteदाउद के काराची में होने की खबर तो सरे आम है....मुंबई बम धमाकों में भी उसकी सहभागिता सबकी जानी-पहचानी है....क्या कर लिया हमारी सरकार ने......हाँ, जोश-खरोश से अमेरिका को बधाई देने में कोई कोताही नहीं की.
ReplyDeleteसत्य कहा आप ने, लेकिन हमारी सरकार तेयार हे लडाई के लिये, उस मे दम हे?
ReplyDelete@ सतीश जी
ReplyDeleteलादेन तो आतंकवाद का बस एक रूप भर था अभी तो कई जिन्दा है |
@ शिखा जी
सही कहा अब बदले की कार्यवाही हो सकती है और निशाने पर कोई भी देश हो सकता है |
@ राजन जी
बेचारा पाकिस्तान क्या करे उसके लिए तो एक तरफ कुआं एक तरफ खाई वाली स्थिति है |
@ राकेश कुमार जी
धन्यवाद |
वैसे मेरी म्याऊ और भो की बात खास मतलब से थी जिसे खुशदीप जी ने समझ लिया होगा |
@ सोमेश जी
धन्यवाद | काफी दिनों बाद दिखे लगता है ब्लोगिंग से छुट्टी ली थी क्या |
@ राधारमण जी
बिलकुल सही कहा मुझे भी उससे बचना चाहिए था, मैंने उन्हें जगह दे कर गलती की, पर क्या करे नेताओ का चरित्र दिखने के लिए उनकी ये बेफकुफिया तो दिखानी ही पड़ेंगी |
@ अजित जी
ReplyDeleteजो हमारे घरो में घुस कर लोगो को मानसिक जहर पिला रहे है वो लादेन से भी ज्यादा खतरनाक है |
@ सुनील जी
धन्यवाद |
@ संजय जी
जब आतंकवादी को सजा मिलने के बाद भी उसके परिपालन में भी सत्ता का समीकरण देखा जाता है तो फिर इससे ज्यादा और क्या घटिया होगा |
@ दीप जी
धन्यवाद | बस हमें दुआ करनी चाहिए की एक दिन आतंवाद से लड़ाई भी नेताओ के लिए वोट बटोरू कार्यक्रम बन जाये तो शायद इसमे तेजी आयेगी |
@ रश्मि जी
आप को पता होगा की कुछ दिन पहले जब एक दाउद के साथी की किसी अन्य देश में गिरफ़्तारी हुई थी तो मुंबई पुलिस में हड़कंप मचा गया क्योकि उस अपराधी के फिंगर प्रिंट ही पुलिस फाईल से गायब थे वो समझ नहीं पाए की उसका प्रत्यर्पण किस आधार पर कराये बाद में कहा गया की वो कोई और था | आप को लगता है की दाउद भारत आ भी गया ( ये सपने में भी संभव नहीं है ) तो हम उसे सजा दिला पाएंगे |
@ राज भाटिया जी
यही तो समस्या है हमारी सरकारों में दम ही कहा है |
बहुत ही सुंदर पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं अंशुमाला जी !
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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अच्छा विश्लेषण,
हमारी सरकारें देश के भीतर मौजूद सिर उठाये, रात-दिन पनपते और संख्या में बढ़ते 'लादेनों' को ही अगर काबू कर लें तो काफी होगा हमारे लिये...
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सटीक और प्रभावी विश्लेषण .....
ReplyDeleteजिस देश की राजनीतिक इच्छा शक्ति इतनी कमजोर हो जिस देश के नेता मंत्री हर बात में वोट की राजनीति करते हो खबरों में बने रहने के लिए कुछ भी बकते हो उस देश की जनता कर क्या सकती है | दिग्विजय सिंह की बयान रूपी बेफकुफियो की लिस्ट काफी लम्बी है कल उन्होंने उस में एक और जोड़ ली ये कह कर की " कोई कितना बड़ा आतंकवादी क्यों न हो उसके मरने के बाद उसके अंतिम संस्कार में उसके धार्मिक रीति रिवाजो को पूरा किया जाना चाहिए |" ये हमारे देश के नेता है ये इनकी सोच है इस पुरे प्रकरण में इन्हें अपने मतलब की जो सबसे सही बात दिखी वो ये था की एक खूंखार आतंकवादी का धर्म और उसका रीति रिवाज | वास्तव में कहू तो दिग्विजय सिंह की ये बेफकुफिया बर्दास्त के बाहर होती जा रही है |
शब्दशः सहमत हूँ.....
@अंशु जी,
ReplyDeleteदाउद के भारत आने की संभावना तो खैर है ही नहीं...पर सबको दाउद की आतंकवादी गतिविधियों की खबर है...पर हम उसकी महफ़िलों में बॉलिवुड सितारों की शिरकत देखते हैं....उसकी बेटी की शादी की कवरेज देखते हैं....लेकिन उसे कोई सजा नहीं दे सकते.
अमेरिका में हमले के बाद लादेन छुपता रहा ... फिर भी अमेरिका उसे ढूंढ कर उसका खात्मा कर ही डाला.
भारत की न्यायव्यवस्था से किसी भी भारतीय नागरिक की तरह मैं भी खुश नहीं है...पर एक सच ये भी है...कि प्रजातांत्रिक देश में किसी भी अभियुक्त को न्यायिक प्रक्रिया के द्वारा सजा देने में बहुत देर लगती है...हाल में ही एक आर्टिकल पढ़ा है...जिसमे अमेरिकी जेल में भी ऐसे कितने ही अभियुक्त २०,२२ सालों से कैद है...जिन्हें वहाँ की सरकार सजा नहीं दे पा रही है. कुछ को तो मौत की सजा मिल भी चुकी है...पर उसे कार्यान्वित नहीं कर पा रहे वे लोग...क्यूंकि ढेरो NGO...उसके विरोध में मुहिम चला रही हैं.(जो जाहिर है...उन अपराधियों के पैसे पर ही चल रही हैं )
बहुत बढिया विस्तार से आलेख लिखा है। रक्तबीज की तरह के हो गये हैं आतंकवादी एक मारो तो 10 और निकल जाते हैं\ सब हमारे नेताओं की शह पर होता है भले किसी भी पार्टी का हो। शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteमैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे.ऐसा मेरा विश्वास है.
ReplyDeleteअन्शुमालाजी
ReplyDeleteबहुत ही साध हुआ आलेख
साथ हीउतनी ही सधी हुई टिप्पणिया|
आभार
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteविलम्ब के लिए खेद.. परेशानियां हैं.. विकीलीक्स ने खुलासा कर दिया है कि पाक हमेशा बिन लादेन को आगाह कर दिया करता था.. लिहाजा अमेरिका ने घुस कर मारा और व्हाईट हाउस ने कह दिया कि इसके लिए माफी नहीं मांगना है..
हमें तो अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी,कोइ किसी को नहीं बचाता.. रही दिग्गी राजा की बात,तो आज कहीं और भी कहा है मैंने कि मुझे उनसे सहानुभूति है.. वैसे भी मानसिक रूप से लाचार व्यक्तियों के व्यवहार पर क्रोध उचित नहीं,उनसे सहानुभूति दिखाएँ और जल्द अच्छा होने की दुआ करें!!
- सलिल
@ जयकृष्ण राय तुषार जी
ReplyDeleteधन्यवाद |
@ प्रवीण जी
बिलकुल सही कहा आप ने हम इसी से बच सकते है |
@ मोनिका जी
धन्यवाद |
@ रश्मि जी
कुछ फ़िल्मी सितारों की मजबूरी भी होती है आखिर वो डान उसे कौन मना कर सकता है |
ये सही है की दुनिया के हर देश में न्याय को ले कर देरी होती है पर मै यहाँ बात सिर्फ आतंकवाद से जुड़े मुकदमो की कर रही हूँ यदि हमें आतंकवाद से लड़ना है तो देश के और बाहर के सभी आतंकवादियों को ये कड़ा सन्देश देना होगा की भारत में उन्हें उनकी किये की तुरंत और कड़ी सजा दी जाएगी ताकि उन में खौफ पैदा हो यदि आतंवाद से जुड़े मामलों को भी हम अन्य मामलों के समान एक आम मामला मान कर हर जगह चाहे पुलिसिया जाँच हो या न्यायलय में लड़ा जा रहा मुक़दमा जैसा व्यवहार करेंगे तो हम कैसे इससे लड़ेंगे | जब हम बलात्कार जैसे मामले को भी फास्ट ट्रैक अदालतों में ले जा कर फैअसले करने का पक्ष लेते है तो आतंकवाद तो कई जिंदगियो से जुड़ा होता है |
@ निर्मला जी
ReplyDeleteधन्यवाद | हा यहाँ भी हमारे नेता ही ज्यादा सह देते है अपने निजी फायदे के लिए |
@ हास्यफुहार जी
धन्यवाद |
@ रमेश जी
अपनी राय मैंने आप के ब्लॉग पर दे दी है |
@ शोभना चौरे जी
धन्यवाद |
@ सलिल जी
लादेन आतंकवाद और पाकिस्तान के बिच का रिश्ता जानने के लिए हम भारतीयों को किसी विकिलीक्स के खुलासे की जरुरत नहीं है हम सभी के अपने दिमाग के केबल ही इन सब को समझाने के लिए काफी है | और दिग्गी राजा "जी" कांग्रेस रूपी हाथी के वो दिखने वाले दांत है जिसे वो एक खास समुदाय के लिए बाहर निकाल कर चमका कर उन्हें भ्रम में डालने का प्रयास करता है |