दुनिया में माँ से महान कोई नहीं होता
दुनिया में माँ के बराबर का दर्जा कोई नहीं ले सकता
माँ जितना सहनशील और धैर्यवान कोई नहीं होता
माँ नाम तो सृजन का है
माँ से ही परिवार और देश बनता है
हम कभी माँ की ममता का कर्ज नहीं उतार सकते है
आदि आदि आदि
आदि आदि आदि
लेकिन मेरा मानना है की जितना कठिन और जिम्मेदारी भरा आप काम इसे मान रहे है वास्तव में ये उतनी बड़ी जिम्मेदारी और कठिन काम नहीं है अपने अनुभव से बता सकती हूँ , ये हमारी आप की सोच से कही ज्यादा कठिन काम है जिसका अंदाजा हम तब तक नहीं लगा सकते जब तक की हम स्वयं माँ नहीं बनते है | ज्यादातर महिलाये एक समय आने के बाद इसको समझ भी लेती है किन्तु पुरुष इस बात को कभी नहीं समझ पाते है क्योकि वो कभी माँ नहीं बन सकते है | कई बार मैंने इस बात का एहसास किया है की ज्यादातर पुरुष माँ बनने की कठिनाइयों के बारे में बात तो करते है किन्तु वास्तव में वो उसे समझते नहीं है उसका सम्मान नहीं करते है |
" सारे दिन करती क्या हो घर में बैठ कर" , " एक बच्चा क्या आ गया बाकि काम से तो बिलकुल छुट्टी ही ले लिया है ", " एक घर एक बच्चा नहीं संभाल सकती ", " छोटे से बच्चे तक को नहीं संभाल सकती तो और क्या कर सकती हो ", " जन्म दे कर मुझ पर एहसान नहीं किया है ", " बस जन्म ही तो दिया है और किया क्या है मेरे लिए " इस तरह के न जाने कितने जुमले माँओ को बोला जाता है जिससे साफ लगता है की वास्तव में पुरुष सिर्फ कहने के लिए माँ की महिमा मंडन करता है दिल से उस बात को नहीं मानता या उस कठिनाई को नहीं समझता है | शायद इसी करना मुझे एक बार "नारी" ब्लॉग पर ये लिखा पढ़ने को मिल गया था की " भारतीय महिलाओ के लिए प्रसव पीड़ा वास्तव में पीड़ा न हो कर प्रसव आन्नद होता है " जी हा ये कथन एक पुरुष का था किन्तु वो एक बड़े पुरुष वर्ग की सोचा को दर्शा रहा था साफ था की वो तनिक भी इस दर्द और परेशानी को नहीं समझ रहे थे जो एक नारी को माँ बनते समय सहना पड़ता है | जवाब में मैंने भी ये टिपण्णी कर दी
- "अच्छा है की भगवान ने माँ बनने की शक्ति नारी को दी है यदि पुरुष को दी होती तो समाज में सेरोगेट बाप बनने का व्यापर शुरू हो गया होता लोग पैसे दे कर अपने बच्चे दूसरो से पैदा करवा रहे होते और कुछ दुसरे पुरुष "पैसे" के लिए ये कर रहे होते क्योकि प्रषव पीड़ा दो दूर की बात प्रेगनेंसी के पहले तीन महीनो की परेशानियों को भी वो झेल नहीं पाते और बच्चे पैदा करने का काम भी रेडीमेड बना देते | लेकिन फिर भी जो लोग इस तथा कथित प्रषव आनन्द का आन्नद लेना चाहते है तो उनको उसके पहले के आन्नदो का भी आन्नद लेना चाहिए | सुरुआत कीजिए की हर रोज खाना खाने से पहले नमक पानी का घोल पी लिजिए जब वमन आने लगे तो खाना खाने की कोशिश कीजिए हर रोज माई फेयर लेडी झूले के बीस चक्कर लगाइए जब आप को सारी दुनिया घुमती सी दिखे तो इसी अवस्था में सारे दिन काम कीजिए पैरो में दो दो किलो का वजन और पेट में चार से पांच किलो का वजन बांध कर सारे दिन काम कीजिए और फिर रात में उसी अवस्था में सोने की कोशिश कीजिए नीद आना दूर की बात कभी अभी तो इस अवस्था में किसी भी तरीके से लेटा भी नहीं जाता और पूरी रात एक आराम दायक अवस्था पाने में ही निकाल जाता है | ये सब कुछ नौ महीनो तक करिए फिर बताईये की किस किस को कितना आन्नद आया | प्रषव आन्नद का आनन्द कैसे लिया जाये ये तो मुसकिल है मेरे लिए बताना लेकिन उसके बाद बच्चो की देखभाल बता सकती हु सबसे पहले तो रोज रात में हर दो घंटे बाद का अलार्म लगा ले जब वो बजे तो उठ कर उसे बंद करे और फिर से दो घंटे बाद का अलार्म लगा दे जब तक आप वापस नीद के झोके में जायेंगे तब तक अलार्म दुबारा बज जायेगा ये क्रिया एक साल तक हर रात करे और सुबह बिलकुल फ्रेस मुड में उठिए| सिर्फ इतना ही कीजिए और फिर बताइये की कितना आन्नद आया | बाकि सारी परेशानिया छोड़ दे हफ्ते दस दिन में ही जो सिर्फ इन परेशानियों को झेल लेगा वो समझ जायेगा की पीड़ा और आन्नद में क्या अंतर है प्रषव पीड़ा को सहना तो दूर की बात है |"
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ReplyDeleteबाप रे ....
ReplyDeleteहमें नहीं बनना माँ ...अगले जनम की छोडो किसी जनम में नहीं :-(
अनूठा एवं अद्वितीय लेख .....इस ढंग का मेरे द्वारा पढ़ा यह पहला लेख है ! हार्दिक शुभकामनायें अंशुमाला !
पुरूष यदि माँ बन सकते तो महिला की तरह ही ममता व वात्सल्य का भाव प्रकृति उनमें भी भरती.ये एक प्राकृतिक व्यवस्था है.आपका ये कहना सही है कि बहुत से पुरुष मातृत्व का सम्मान नहीं करते है आपकी इस टिप्पणी ने मुझे भी बहुत प्रभावित किया था.लेकिन ये भाग्यशाली और दुर्भाग्यशाली टाईप की बातों में टाईम खोटी करने से अच्छा है कि स्त्री पुरुष दोनों एक दूसरे की प्राकृतिक विभिन्नताओं का सम्मान करें.जो कि पुरूषों की तरफ से नहीं होता.
ReplyDeleteजिसके पांव न फटी बिवाई क्या जानै वो पीर पराई
ReplyDelete:)
प्राकृतिक विभिन्नताओं की जगह प्राकृतिक भिन्नताओं पढे.
ReplyDeleteअंशुमाला जी प्रकृति ने स्त्री की शारीरिक संरचना संतानोत्पत्ति के अनुकूल बनाई है तभी तो अति प्राचीन काल से वो एक बच्चा पैदा करने के उपरांत भी दोबार इस कार्य के लिए तैयार हो जाती है. चलिए माना की इंसानों में पुरुष स्त्री को दोबार बच्चा पैदा करने के लिए बाध्य करता है पर पशुओं व दुसरे जंतुओं में क्यों एक मादा प्रसव पीड़ा झेलने के बाद भी दोबारा संतानोत्पत्ति के लिए तैयार हो जाती है.
ReplyDeleteआपके पिछले कमेन्ट में मुझे एक बात पसंद आई और जिससे मैं सहमत भी हूँ की संतान कब पैदा होनी है और कितनी होनी है इसका पूरा अधिकार स्त्री के पास होना चाहिए. प्राकृतिक रूप से बहुत से दुसरे पशुओं में मादा के पास ये अधिकार होता है. अभी कहीं पढ़ा था की कंगारू मादा लग्भव एक या दो वर्ष तक नर का वीर्य अपने पास सुरक्षित रखती है और यही उसे अनुकल अवसर मिले तभी संतान जन्मति है वर्ना इसका त्याग कर देती है. जाने क्यों होमो सेपियंस मादा इस अधिकार से वंचित है.
वैसे अपने अनुभव से तो मैं यही कह सकता हूँ की एक पुरुष के लिए संतान पैदा करना तो बेशक बहुत आसान और मजेदार हो परन्तु एक अच्छा पिता बन पाना आसन कार्य बिलकुल भी नहीं है.
अरे पुरुष संवेदनाये नहीं समझ पाते ,प्रसव पीड़ा क्या समझेंगे ...हाँ अपना जुखाम भी जानलेवा लगता है उन्हें :)
ReplyDeletePurushon waalee maansiktaa leke kya kabhee koyee maa ban sakta hai????!!!!???
ReplyDeleteसेरोगेट माये भी मिलती हे आज कल,पुरुष अपना काम बाखुबी करते हे, ओर नारी अपना काम यानि दोनो ही मिल जुल कर एक घारोंदा तेयार करते हे,इस मे कोई एक दुसरे से मुकाबला नही करता... बस एक किसी की भुल या गलती से यग घारोंदा बर्वाद हो जाता हे
ReplyDeleteक्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
ReplyDeleteअगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
अंशुमाला जी!
ReplyDeleteआपकी बातों को कुतर्क से भले ही काट दे कोइ, तार्किक और भावनात्मक तौर पर कोइ खंडित नहीं कर सकता.. कभी मेरी धर्मपत्नी से पूछ कर देखिये.. अगले जन्म पर मेरा भरोसा नहीं है,लेकिन हमेशा कहा है मैंने कि अगर अगला जन्म हुआ तो तुम्हारी कोख से ही जन्मूंगा!
माँ बनाना आसन नहीं है..... शारीरिक मानसिक वेदना का यह सफ़र एक स्त्री कितनी तकलीफें उठाकर तय करती है वो ही जानती है...... फिर भी ममता के लिए सब कुछ न्योछवर करने को तैयार जीवन भर ........ मैं तो इसे सौभाग्य ही मानती हूँ की स्त्री माँ बनकर जीवन को गढ़ती है.....
ReplyDelete*आसान
ReplyDeleteसुंदर सार्थक ...तार्किक पोस्ट अन्शुमालाजी
क्या बात है अंशुमलाजी, धो-डाला :]
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
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ReplyDelete.
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अपने ढंग का अनूठा लिखा है आपने, पर जैविक दायित्व तो पुरूषों का भी है और वह निभाते भी हैं उसे... मिसाल के तौर पर नाइट ड्यूटी करते ड्राईवर भी अपनी नींद कुरबान करते हैं और चमड़ा कारखानों के मजदूर बदबूदार अमानवीय स्थितियों में काम करते हैं... अपने जैविक दायित्व को निभाने के लिये ही न...
...
सच तो यह है कि प्रकृति ने सबको काम सौंपा है, वह उसे निभाना ही है। सबके काम के अपने आनंद और अपनी पीड़ाएं हैं।
ReplyDeleteनिश्चित तौर पर गर्भधारण करना और फिर प्रसव की पीड़ा झेलना सबके बस की बात नहीं। रही बात संवदेनशीलता या उसे महसूस करने की तो यह तो स्त्री या पुरुष होने से तय नहीं होता। यह तय होता है व्यक्ति के अपने सोच से।
@ सतीश जी
ReplyDeleteधन्यवाद |
@ राजन जी
मेरी बातो से सहमती जतलाने के लिए धन्यवाद | जब माँ की तरह किसी बच्चे की परवरिश करेंगे तो उस दिन ये शब्द खोटे नहीं लगेंगे | अगली पोस्ट में इस बात का जवाब होगा |
@ काजल जी
धन्यवाद बिलकुल सही कहा आप ने |
@ दीप जी
मै यहाँ ये नहीं कहा रही की पुरुष को भी माँ बन जाना चाहिए या नारी माँ नहीं बनना चाहती यहाँ कहने का ये अर्थ है की एक बार पुरुष भी उन सभी कष्टों को हसे ताकि वो माँ बन रही महिला के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो उसके कष्टों को समझ सके उसकी बढ़ी जिम्मेदारियों को समझ सके |
जानवरों और इंसानों की प्रकृति बिलकुल अलग है सिर्फ जन्म देने की समान प्रकृति के कारण आप उन दोनों की तुलना नहीं कर सकते है | मादा जानवर सिर्फ संतान के लिए ही नर के पास जाती है उसका जीवन केवल खाना खाना, खुद को जीवित रखने का संघर्स करना और संतान उत्पन्न करना है उससे ज्यादा कुछ नहीं क्या किसी महिला का जीवन भी बस इतना ही है ? याद रखियेगा की मादा जानवर केवल उसी नर के पास जाती है जो समूह में सबसे ताकतवर और शक्तिशाली हो, कमजोरो की वहा कोई पूछ नहीं होती है यहाँ तो यही कह सकती हूँ की मानव नर को शुक्र मानना चाहिए की मादा मानव जानवर की प्रकृति नहीं अपनाती और कमजोर से कमजोर नर का भी वरन कर लेती है ( चुकी आप ने नर और मादा शब्द का प्रयोग किया है इसलिए मैंने भी इसी शब्द का प्रयोग किया नहीं तो किसी नारी के लिए मादा शब्द प्रयोग करना बड़ा अजीब सा लगता है और जानवर की तुलना महिला से करना :(
पुरुष के लिए माँ बनना आसन है तो मेरे लिखी बात को एक बार आजमा लीजिये पता चल जायेगा की ये कितना आसन है | और मुंबई दिल्ली से लेकर छोटे शहरो में भी अब अनेक महिलाए है जो पिता की भूमिका को बखूबी निभा रही है घर की देखभाल के साथ ही बाहर काम पर भी जाती है और वो सारे काम करती है जो पिता को करनी चाहिए क्योकि या तो वो अकेली है या पिता काम में व्यस्त है समय नहीं मिलाता या उनका काम टूर वाला है या वो निक्कमा नालायक है |
आजकल गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक पति को भी पत्नी के साथ ही रहना पड़ता है साथ ही प्रशिक्षण भी लेना होता है। विदेशों में यह परम्परा प्रारम्भ हुई थी लेकिन आजकल बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों में पति को प्रशिक्षित किया जाता है। इसकारण वह बच्चे के लालन-पालन में भी पूर्ण भूमिका निभाता है। यह बदलाव अच्छा है। पुरानी बातों के लिए कब तक रोएंगे अब तो नवीन बदलाव का स्वागत करिए।
ReplyDelete@ शिखा जी
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा एक सर दर्द में झट से दर्दनिवारक की शरण में जाने वाले ये पुरुष माँ बनाने को नहुत आसन समझते है |
@ क्षमा जी
जी हा पुरुष मानसिकता के कारण ही तो वो कई बार पिता हो कर भी पिता नहीं बन पते तो माँ क्या बनेगे |
@ राज भाटिया जी
सेरोगेट मदर महिलाओ की मजबूरी है शारीरिक रूप से माँ बनाने में सक्षम नहीं होती वही इसका सहारा लेती है | दोनों का काम बिलकुल अलग है किन्तु दोनों को एक दुसरे की परेशानीय और कष्टों को भी समझनी चाहिए घरौंदा तभी ज्यादा मजबूत होता है |
@ रमेश जी
कम से कम पोस्ट पढ़ा लेते |
@ सलिल जी
धन्यवाद | काश की आप की तरह सभी इस बात को समझ सके |
@ मोनिका जी
धन्यवाद | इतना कष्ट परेशानी सह कर भी धैर्य बनाये रखना एक माँ के बस की ही बात होती है |
@ कविता जी
धन्यवाद |
@ प्रवीण जी
ReplyDeleteरात में काम करते लोग दिन में आ कर सो कर अपनी नीद पूरी कर लेते है किन्तु माँ को दिन में घर के सारे काम बच्चे की देखभाल करने के बाद रात में भी जगाना पड़ता है | आप को मालूम नहीं एक बड़ी संख्या में महिलाए ठीक से नीद पूरी न होने के कारण अपच, एसिडिटी , जी मचलने जैसी परेशानियों से घिर जाती है और ठीक से खाना न खाने के कारण कमजोर हो जाती है | और अमानवीय परिस्थिति में काम करने वाले ये लोग कसाई की तरह हो जाते है मानवता बचती नहीं जबकि महिला में एक तरह का अमानवीय स्थिति में काम करने के बाद भी और ममता आती है मानव बनी रहती है धैर्य बनाये रखती है |
@ राजेश जी
बिलकुल सही कहा ये व्यक्ति की सोच पर निर्भर है और मै भी वही कह रही हूँ कुछ लोगो को अपनी सोच में थोडा बदलाव करना चाहिए |
@ अजित जी
मै जिन लोगो की बात कर रही हूँ और जिस टिपण्णी के जवाब में ये लिखा था ये कल की नहीं वो आज की सोच है | आज भी पुरुषो का एक बड़ा वर्ग यही सोचता है की माँ बनना कोई बड़ी बात नहीं है और बच्चे पालना तो महिलाओ के काम है उनके नहीं | आप ने सही कहा की आज कई जगह कई पुरुषो की सोच में बदलाव आ रहा है किन्तु इनकी संख्या काफी कम है और मै यही कहना चाहती हूँ की बाकि लोग भी इन्ही पुरुषो की तरह बच्चे के पालन में मदद करे |
अंशुमाला जी,लगता है मैं अपनी बात ठीक से रख नहीँ पाया(या आपकी बात समझ नहीं पाया).आप ये भाग्यशाली,दुर्भाग्यशाली वाली बात को केवल अपनी पोस्ट से जोड रही है जबकि मैंने ये इसलिये कहा क्योंकि जब भी माँ के बारे में बात होती है ये कहा जाता है कि माँ न बनना पुरुष का दुर्भाग्य है या सौभाग्य है कल भी ऐसे दो लेख पढें.जबकि मुझे समझ नहीं आता कि ये क्यों जरूरी है.आपकी अगली पोस्ट का इंतजार है.
ReplyDeleteमाननीय अंशुमाला जी, इन दिनों मैं बहुत परेशान चल रहा हूँ और अपने जीवन का एक-एक दिन,एक-एक घंटा, एक-एक मिनट व एक-एक सेकंड कम होते देख रहा हूँ. यहाँ मैं डरपोक ब्लोगर नहीं हूँ. अपने ब्लॉग पर अपना फ़ोन नं., अपनी फोटो और पूरा पता दे रखा है. मेरे ब्लोगों पर शायद दुसरे लोगों से कम पोस्ट हो. मगर एक-एक पोस्ट में प्रयोग शब्दों को अपनी जान पर खेलकर और सर पर कफन बांधकर लिखा है. आप ने एक बार मेरे सारे ब्लोगों की एक-एक पोस्ट को पढ़ लीजिये. सबमें थोड़ी-थोड़ी मेरी पीड़ा देखने को मिलेगी. मुझे अभी तकनीकी की जानकारी जयादा नहीं है और बीमारी के कारण से ही अभी तक ब्लोगों पर मेरी विचारधारा आप लोगों तक ठीक से नहीं पहुँच रही हैं. मेरे ब्लोगों पर बेशक किसी कारण (डर) टिप्पणियाँ नहीं आती हैं, मगर मुझे (ब्लॉग से देखकर) सब से ज्यादा फ़ोन और लोग मिलने आ रहे हैं. इन दिनों जितनी भी यथासंभव मदद कर सकता हूँ, कर रहा हूँ . चाहे बेशक किसी ब्लॉग पर मैं टिप्पणी करने का समय या पोस्ट लिखने का समय न निकल पाऊं. मेरी कोशिश यह रहती हैं पीड़ित की ज्यादा से ज्यादा मदद कर पाऊं. मेरे विचार में किसी पीड़ित की मदद करना ही और मदद का जज्बा रखना ही सही व सच्ची पत्रकारिता है और यहीं एक निष्टावान पत्रकार का उद्देश्य भी होना चाहिए. जहाँ तक आपकी पोस्ट की बात है-उसे पढ़ा भी था. मगर एक बड़ी से टिप्पणी भी करना चाहता था. मगर निजी कारणों से समय नहीं दें पाया था. इसलिए जनहित में संदेश ही छोड़ा था. उसके लिए क्षमा चाहता हूँ. फ़िलहाल इतना ही कहूँगा कि-मैंने माँ की ममता भी देखी है और कुमाता भी देखी हैं अपने घर में. अगर आपके पास समय हो तो "मुबारकबाद" ब्लॉग पर 27 जनवरी की पोस्ट के साथ ही "सच का सामना" की मात्र पांच पोस्ट पढ़ लेने का निवेदन कर रहा हूँ.
ReplyDeleteकल माँ का दिन था-मुझे कल ही मेरी माँ ने आर्शीवाद दिया है और वादा किया है कि-मेरी मौत पर अब एक भी आशू नहीं बहेगी. मैंने भी वादा किया है कि-अगर "जैन" तपस्या के दौरान बेशक जान चली जाये तो कह नहीं सकता मगर कभी आत्महत्या नहीं करूँगा. अब भ्रष्टाचारियों से लड़कर ही मरूँगा और साथ में 10-20 भ्रष्टों को भी साथ लेकर ही मरूँगा. इन दिनों मुझे परेशान देखकर बहुत दुखी रहती हैं, क्योंकि मेरा इन दिनों स्वास्थ्य बहुत ज्यादा गिरता जा रहा है. एक अकेला और ईमानदार व्यक्ति भ्रष्ट न्याय व्यवस्था से कितने दिन लड़ सकता है. अपनी से दुगनी आयु (72) की माँ को अपनी सेवा करते देखकर मेरा मन कितना दुखी रहता है. आप नहीं समझ सकती हैं. मैं यहाँ ब्लॉग पर धन-दौलत कमाने नहीं आया हूँ. बल्कि अपने ब्लॉग की मदद से कुछ पीड़ित लोगों की मदद करना चाहता हूँ. इन दिनों मेरे समाचार पत्र निजी कारणों से बंद है और मेरा मदद करने का जज्बा खत्म नहीं हो. बस इसलिए अपने विचार और अनुभवों को यहाँ पर बाँट रहा हूँ. आज संचार माध्यमों से कुछ ज्यादा लोगों तक अपनी पहुँच बनाने का प्रयास कर रहा हूँ. लेकिन आज भी बहुत बड़ा वर्ग इन्टरनेट की दुनियां से अनजान है और आज भी जमीनी स्तर पर समाज के निर्धन वर्ग के लोगों के बहुत कुछ करने की जरूरत है.किसी प्रकार की गुस्ताखी के लिए क्षमा करें.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
" छोटे से बच्चे तक को नहीं संभाल सकती तो और क्या कर सकती हो "
ReplyDeleteइस जुमले ने मेरी एक दूर की ननद को अपने डेढ़ महीने के बेटे को छोड़ इस दुनिया से जाने पर विवश कर दिया था |
मेरी ननद के हाथका संतुलन (एक बार वो गिर गई तो उस हाथ में प्लास्टर चढ़ा था ) बच्चे को उठा ने में बिगड़ गया और बच्चा हाथ से फिसल कर गोद में गिर गया |तब उनके पति ने यही शब्द कहे थे जिसे वो सहन नहीं कर पाई और अपने को आग के हवाले कर दिया था |
आपकी इस पोस्ट ने १७ साल पहले घटी और मई माह में घटी इस दुर्घटना को ताजा कर दिया और बेटी की म्रत्यु की खबर माँ नहीं सह पाई तो उसी समय बैठे बैठे उनके प्राण पखेरू उड़ गये |
ऐसी होती है माँ |माँ तो ऐसी ही होती है महिमामंडन की जरुरत ही नहीं
बहुत सुन्दर सार्थक पोस्ट|धन्यवाद|
ReplyDeleteअंशुमाला जी म्याऊँ म्याऊँ, हाँ म्याऊँ म्याऊँ करादी आपने हम सब मर्दों की. बहुत भों भों करते फिरते रहतें हैं.पर आपका यह लेख जानदार है,जो भी पढ़ेगा उसकी भों भों तो बंद ही हों जानी चाहिये.
ReplyDeleteसुन्दर लेख के लिए आभार.
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं बहुत अच्छा लगा.आपको यद्धपि अध्यात्म में रूचि न भी हों,तो भी आपसे गुजारिश है फिर एक बार आयें.आपको अच्छा जरूर लगेगा मेरी नई पोस्ट पढ़ कर.
@ रमेश जी
ReplyDeleteदो चार दिनों की छुट्टी पर जा रही हूँ आ कर अवश्य आप का ब्लॉग पढूंगी |
@ शोभना जी
बहुत ही दुखद घटना है ये जान कर दुख हुआ |
@ Patali-The-Village
धन्यवाद |
@ राकेश जी
धन्यवाद | जी जरुर आप का ब्लॉग पढ़ती रहूंगी |
अंशुमाला जी,यहाँ मैं आया तो ये बताने के लिये ही था कि मैंने ऐसा क्यों कहा और क्यों इसे भाग्य से जोडे बिना बात की जाए(जैसा आपने पहले भी किया था).लेकिन लगता है मेरी बात का आपको बहुत बुरा लगा है.अब मैं आपको और परेशान नहीं करना चाहता.मैने आपके सवाल से ही असहमति जताई है न कि पोस्ट से.फिर भी आप उसे मेरी गलती मानकर भूल जाइये,आपको दुख पहुँचा इसके लिये खेद है.
ReplyDeleteक्या कहा जाए, अंशु जी..
ReplyDeleteबच्चों के साथ रात भर जागना तो दूर की बात....कितनी जगह सुना है,पढ़ा है......अगर रात को बच्चा रोता भी है,...तो माँ को बातें सुननी पड़ती हैं...कि नींद में खलल पड़ रही है...बच्चे को दूसरे कमरे में ले जाओ...वे क्या जानेंगे बच्चे पालने का दर्द.
प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
ReplyDeleteदोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
एक कमेंट को पुरुषों के एक बड़े वर्ग का मत कैसे माना जा सकता है?
ReplyDeleteआसान कुछ भी नहीं है, यदि खुद करना पड़े तो। अन्यथा दूसरे का काम आसान ही लगता है।
आपकी पोस्ट आठ तारीख की है और मैं सात तारीख से ही कम्प्यूटर से दूर था। आज ही लौटा हूँ अत: देरी क्षम्य मानी जानी चाहिये।
ReplyDeleteआपकी लेखनी देखकर मुझे तो धोबीघाट और धोबीपाट याद आ जाते हैं, पीट पीटकर धोने में माहिर हैं आप:) फ़िलहाल इतना ही, अगली धुलाई, सॉरी पोस्ट जल्दी से लिख मारिये अभी गूगल बाबा कुपित नहीं हैं।