मैंने ये कहा था की माँ बनने के दौरान होने वाले कष्टों को देखते हुए हम कह सकते है की शायद पुरुष शौभाग्यशाली है जो उसे माँ नहीं बनना पड़ता और उन कष्टों से नहीं गुजरना पड़ता है जो एक नारी को सहना पड़ता है, किन्तु पुरुषो को कम से कम उन कष्टों के प्रति थोडा संवेदनशील होना चाहिए और माँ बन रही पत्नी को हर संभव मदद करनी चाहिए | आज इस पोस्ट में इस बात का जिक्र करुँगी की ये पुरुष का दुर्भाग्य है की वो माँ नहीं बन सकता, वो माँ बनने के बाद मिलने वाली ख़ुशी को नहीं पाता, जबकि बिना किसी कष्ट , दर्द, परेशानी के वो इसे पा सकता है |
कुछ साल पहले पति और उनके मित्रो के साथ पिकनिक पर गई थी, मित्रो की मंडली में एक के सपुत्र आ कर उनकी गोद में बैठ गये वो बड़े फक्र से बताने लगे की वो अपने बेटे को अकेले अपने पास रख सकते है उसे माँ की जरुरत नहीं है | बताने लगे की कैसे दो बार उन्होंने अपने ढाई साल के बेटे को अकेले दो दिन तक अपने पास रखा, उसे माँ की याद ही नहीं आई और उन्होंने दो दिनों तक बड़े आराम से उसकी देखभाल की, उनकी सुन मेरे पति देव भी कहा चुप रहने वाले थे उन्होंने भी गर्व से सीना फुला कर कहा की मै भी अपनी बेटी को आराम से रख सकता हूँ, ( अभी तक अकेले रखने का मौका नहीं मिला है ) वो भी मेरी लाडली है और माँ के बैगेर भी मेरे पास रह सकती है | बाकियों ने सवाल किया खाना वाना भी खिला लेते हो और तुम्हारे साथ सो भी जाती है ये दो कम तो हम नहीं कर पाते | दोनों मित्रो ने फिर एक बड़ी मुस्कान के साथ कहा की हा थोड़े नखरे तो खाने में करते है, वो तो माँ के साथ भी करते है, पर बाकि कोई परेशानी नहीं होती है हमारे बच्चे हमारे बड़े करीब है | फिर दुसरे मित्रो ने भी बताना शुरू किया की हा हमारे बच्चे भी आफिस से आने के बाद हमारे ही पास रहते है , हम उन्हें घुमा देते है हमारे साथ खेलते है और घंटो बात करते है | पर जो गर्व, ख़ुशी, मुस्कान मेरे पतिदेव और उनके उस दुसरे मित्र के चेहरे पर थी वो किसी और के नहीं थी क्योकि उन्हें गर्व इस बात पर था की वो अपने बच्चो के लिए माँ के बराबर ही थे बच्चो के लिए उतने ही महत्वपूर्ण थे जितने की माँ और वो गर्व वो ख़ुशी उनके चेहरे पर अपने बच्चे के माँ बनने की थी ,भले पार्ट टाइम के लिए ही सही | अपने बच्चे की पूर्ण रूप से देखभाल उसके लालन पालन करने में जो आन्नद और उसके बदले में उन्हें बच्चे से जो प्यार और लाड मिल रह था वो उनके लिए एक अलग ही एहसास था जो कम से कम भारत में बहुत कम ही पिता को नसीब होता है वजह वही सोच है की बच्चे पालने का काम माँ का है पिता का नही | इन के बीच एक मित्र और भी थे जिनकी बेटी पुरे समय अपनी माँ की गोद में ही चिपकी रही, वो बाकियों की बातो पर मुंह बिचकाते रहे और बीच बीच में ताने कसते रहे की ये "जनाने" काम उन्हें नहीं करने है, वो अलग बात है जब सभी के बच्चे अपने अपने पापा के साथ खेलने और झरने में नहाने में मस्ती कर रहे थे तो उनके लाख बुलाने पर भी उनकी बेटी एक बार भी उनके पास नहीं आई और वो इस बात पर भी अपनी बेटी और पत्नी पर खीज रहे थे |
कई बार कुछ लोग ये भी कहते है की बच्चे हमारे पास आते ही नहीं आते है तो जल्द ही माँ के पास चले जाते है या उसका लगाव हमसे ज्यादा नहीं है या बच्चो की देखभाल जितने अच्छे से माँ कर सकती है पिता नहीं कर सकता इसलिए ये काम माँ को ही करना चाहिए | आप को बताऊ एक प्यार भरे स्पर्स को जितने अच्छे से एक बच्चा महसूस कर सकता है कोई और नहीं कर सकता इसलिए जब पिता बच्चे को एक बोझ की तरह गोद में ले कर चलता है (जैसे की पत्नी बेचारी बच्चे का इतना बोझ ले कर कैसे चल सकती है है सो मै ले लेता हूँ ) तो बच्चा जल्द ही ऐसे पिताओ के गोद से निकल कर माँ के पास चले जाते है उन्हें पता होता है की कहा उन्हें प्यार से गोद में लिया जायेगा न की बोझा की तरह | बच्चा होना ही अपने आप में किसी को भी उसके प्रति लगाव पैदा कर सकता है किन्तु कुछ लोग इतने पाषाण होते है की उन्हें अपने बच्चे से भी कोई लगाव नहीं होता ( कई बार समझ नहीं आता की वो पिता बनते ही क्यों है शायद वो इस बारे में सोचते ही नहीं उनके लिए पिता बनना अपनी मर्दानगी दिखाने का एक साक्ष्य भर होता है ) अपने आस पास ही देखा है पत्नी को सख्त निर्देश होते है की मेरे आने से पहले बच्चे को सुला देना, रात को उसके रोने की आवाज नहीं आनी चाहिए मेरी नीद ख़राब होगी , उसकी नैपी गन्दी होते ही बदबू की शिकायत कर वह से भगा जाना | जी नहीं मै ये सब किसी पुरातन काल का वर्णन नहीं कर रही हूँ मै आज के समय की ही बात कर रही हूँ यदि आप ऐसे पिता नहीं है या आप के घर में ऐसे पिता नहीं है तो थोड़ी नजर ध्यान से आस पास घुमाइये आप को इस तरह के कई पिता आज भी मिल जायेंगे, बच्चे इनके लिए सदा के पे चिल्ल पो करने वाले मुसीबत ही होते है |
एक और आम सी बात प्रचलित है कि बच्चे की देखभाल जितने अच्छे से माँ कर सकती है पिता नहीं कर सकता | मुझे नहीं लगता है की कोई भी नारी ये गुण ले कर पैदा होती है यदि होती तो सभी नारी सभी बच्चो से वैसे ही जुड़ जाती जैसे की अपने बच्चो से, असल में तो ये एक प्रक्रिया है सबसे पहले तो हम दूसरी माँओ को देख कर ये सीखते जाते है और फिर माँ बनने के बाद जैसे जैसे हम बच्चे के साथ समय बिताते है उस पर ध्यान देते है उसकी हर हरकत पर नजर रखते है हम उसको उसकी जरूरतों को उसकी परेशानियों को अच्छे से समझने लगते है और ये काम कोई भी पुरुष अपने बच्चे से थोडा जुड़ाव रख समझ सकता है यदि उसमे थोडा धैर्य हो तो ये काम और भी आसन हो जाता है | जबकि होता ये है की बचपन से ही ये सुन सुन कर की बच्चे तो माँ को पालना है पिता कभी उससे जुड़ने की सोचता ही नहीं है या इस बारे में सोचता तक नहीं तो फिर कैसे उसमे ये गुण आयेंगे | मेरी बात वो कई पिता साबित कर सकते है जो अपने बच्चे की खुद देखभाल करते है उससे जुड़े है और उसकी हर परेशानी बात को समझते है |
मुझे याद है जब मेरी बेटी के जन्म के १५ दिन बाद ही मैंने नाउन( जो बच्चो को नहलाती है उसकी मालिश आदि करती है ) वाली को उसे नहलाने से मना कर दिया की अब मै ही इसे स्नान कराऊंगी, तो वो मुझसे शिकायत करने लगी की ये तो उसका हक़ है उसे ही करना चाहिए, तो मैंने कहा की मुझे तो एक ही बेटी होनी है उसके नहलाने मालिश करने उसे तैयार करने का आन्नद तो मुझे एक ही बार मिलेगा एक बार जो बड़ी हो गई तो फिर ये दिन लौट कर न आयेंगे फिर न होगी मेरी बेटी वापस छोटी तो मै कब इन सब चीजो का आन्नद लुंगी आखिर बेटी तो मेरी है उसकी देखभाल में मिलने वाली ख़ुशी पर पहला हम तो मेरा बनता है | उसके छोटे छोटे हाथो का पकड़ना उसकी नन्ही नन्ही उंगलियों को सहलाना उसके मासूम से चेहरे को घंटो तक देखते रहना, जब वो ठीक से बोल भी नहीं पाती थी तब भी उससे बाते करना और उसकी टूटी फूटी जबान को समझना उसे सीने से लगा थपकी दे सुलाना न जाने कितनी अनगिनत खुशिया है जो हम दोनों उसके साथ पा चुके है जो फिर कभी लौट कर नहीं आयेंगे जिन्हें याद कर के ही हम पति पत्नी का दिलो दिमाग आन्नद से भर जाता है समझ नहीं आता उसे पाने से कैसे कुछ लोग वंचित होना ठीक समझते है उसे मजबूरी एक बोझा एक काम मानते है उसे करने से भागते है | ऐसे पुरुषो को देख कर यही कहा जा सकता है की शायद ये पुरुष का दुर्भाग्य ही है की वो बिना किसी कष्ट के माँ बनने का मौका गवा देता है |
बचपन स्वर्णकाल है। जिसने गंवाया,उसका जीवन अंधकार-युग।
ReplyDelete"जनाने" काम हमने किये कि नहीं, ये नहीं बतायेंगे लेकिन इतना जरूर है कि मेरे दोनों बच्चे मेरे साथ बहुत कम्फ़र्टेबल फ़ील करते हैं। यही नहीं, भाई के बच्चे भी और अपनी ससुराल के बच्चे हों या मेरे खुद के भांजे - मैं खुद बच्चों के साथ बहुत एन्जाय करता हूँ। आपकी पोस्ट से शायद भटक रहा हूँ लेकिन किसी इन्सान को पहचानने का अपना तो ये लिटमस टेस्ट है कि बच्चे उसे किस रूप में देखते हैं। सिर्फ़ बच्चे ही हैं जो प्यार की भाषा, प्यार का स्पर्श निर्दोष तरीके से पहचानते हैं। न उन्हें सामने वाले के रूप से मतलब है, न धन, पद और प्रतिष्ठा से। सिर्फ़ प्यार ही अकेला मापदंड है।
ReplyDeleteसौ प्रतिशत सहमत इस निष्कर्ष से कि शायद ये पुरुष का दुर्भाग्य ही है की वो बिना किसी कष्ट के माँ बनने का मौका गवा देता है |
पुरुष की माँ बनने की कोशिश उसे बच्चों के बहुत करीब ले आती है...... यह अहसास बच्चों को भी बहुत संबल देता है....
ReplyDelete"एक प्यार भरे स्पर्स को जितने अच्छे से एक बच्चा महसूस कर सकता है कोई और नहीं कर सकता "
ReplyDeleteबच्चों से ही निर्मल और निश्छल प्यार का अहसास होता है.पुरुष को यदि 'माँ' बनने का अनुभव हों जाये,तो ही स्त्री का त्याग और तपस्या उसे समझ आ सकती है.अनुभव न हों पर यदि अहसास ही वह कर पाए तो भी उसका हृदय कोमल और पवित्र हों जायेगा.इसीलिए भगवान को याद करते हुए सर्वप्रथम कहते हैं 'त्वमेव माता ..'
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
आपकी यद्धपि अध्यात्म में रूचि नहीं,तो भी आपको अपने ब्लॉग पर आमंत्रित करने का मन कर रहा है.आपके पास माँ होने का सुन्दर अहसास है.उसी नजर से मेरी पोस्ट पर कृपा वृष्टि कीजियेगा.
पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझावअपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.
ReplyDeleteबाप की जगह मां ले सकती है,
ReplyDeleteमां की जगह बाप ले नहीं सकता,
ओ लोरी दे नहीं सकता.
ओ सो जा, सो जा...
(फिल्म दर्द का रिश्ता के इस गाने में आपकी पोस्ट का मूल छुपा है)
जय हिंद...
बच्चों के साथ, समय बिताने..उनकी भोली बातें सुनने......उनकी शरारतें....उनका भोलापन निरखने का अवसर ...जो गँवा देता है...वो एक स्वर्गिक सुख से वंचित रहता है.
ReplyDeleteबहुत ही सीधी और सच्ची बात कह दी आपने.सच कितना आसान है पिता के लिए माँ बनना और कितना आनंद दायक परन्तु गवां देते हैं वे यह पल.
ReplyDeleteपश्चिमी देशों में प्रसव के समय पिता को प्रसव कक्ष में ही रहने की सलाह दी जाती है जिससे वह अपने बच्चे को दुनिया में आता देख सके.माँ की पीड़ा को समझ सके और इस अनुभव के बाद पिता और बच्चे का बंधन बड जाता है.
आप से सहमत हूँ की कुछ बाप बिना कष्ट के माँ बनने का मौका गवा देते है
ReplyDeleteलोग बड़ी खुशी के चक्कर में छोटी छोटी खुशियो को गवा देते है
आभार
एक बात और कहनी भूल गया था, वे औरतें और भी दुर्भाग्यशाली हैं जो माँ होकर भी अपने बच्चों को सही से नहीं पालतीं।
ReplyDeleteअंशुमाला जी मेरी नज़र में तो एक बच्चे के लिए माता से बढकर कुछ नहीं और अगर पुरुष बच्चे को जन्म देता तो शायद वो ही सबसे बढ़कर होता. जो प्रकृति ने व्यवस्था की है उसके ऊपर ऊँगली उठाना मैं जायज नहीं समझता. मैं तो सिर्फ यही कहूँगा की एक पुरुष एक अच्छा पिता बन पाए ये ही बहुत है, उसे माँ बनाने की जरुरत ही क्या है. कम से कम शुरू के पञ्च वर्ष तो एक बच्चे के लिए माँ एक बहुत बड़ी आवश्यकता होती है.
ReplyDelete@ राधारमण जी
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा धन्यवाद |
@ संजय जी
पिता के साथ कम्फर्टेबल होना यही तो बच्चे चाहते है | वरना आज भी कई घर देखे है जहा बच्चो को पिता के नाम से डराया जाता है ( पिता न हुआ गब्बर सिंह हो गया ) और पिता के घर आते ही बच्चे दुबक कर अपने कमरों में चले जाते है और मेरी बात से सहमति जताने के लिए धन्यवाद | आज से ही पूरा प्रयास कर रही हूँ की वर्तनी की गलती न हो और पोस्ट ध्यान से लिखा करुँगी |
@ मोनिका जी
जी हा इससे बच्चे से आत्मविश्वाश में काफी फर्क पड़ता है |
@ राकेश जी
पिता यदि माँ बनने की सोच भी ले तो भी उसमे काफी सेंवेदानाये आ जाएँगी | आप की पोस्ट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा आगे से नियमित रूप से पढ़ने का प्रयास करुँगी |
@ रमेश जी
टिपण्णी देने के लिए धन्यवाद |
@ खुशदीप जी
एक प्रयास करे तो माँ की जगह भले न ले उसके करीब का दर्जा तो मिल ही सकता है |
@ रश्मी जी
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आप ने पर ये पिता इस बात को नहीं समझ पाते है |
@ शिखा जी
और कई पिताओ को ये पल गवाने का अफसोस भी नहीं होता है | भारत में कई ऐसे पिता को भी देखा है जो पत्नी को प्रसव का दर्द होने पर अस्पताल पहुंचा कर उसे घरवालो के भरोसे छोड़ घर या अपने काम पर चले जाते है और कुछ तो पिता बनने की खबर सुनने के बाद भी बड़े आराम से शाम को अस्पताल पहुंचाते है फुरसत पाने के बाद |
@ दीपक जी
ये छोटी छोटी खुशिया ही हमें हमारे बच्चो से जोड़ती है |
@ संजय जी
पर ये भी देखा जाना चाहिए की वो ऐसा क्यों कर रही है कही ऐसा तो नहीं की वो खुद भी अभी बच्ची है , कही ऐसा तो नहीं वो बच्चे की जिमेदारी उठाने लायक समझदार हुई ही नहीं है या मानसिक रूप से तैयार ही नहीं है माँ बनने के लिए या दुसरे कामो का बोझ उन पर इतना ज्यादा है की वो बच्चो पर ध्यान ही नहीं दे पा रही है | अभी टीवी पर देखा एक अमेरिकी माँ ने अपनी आठ साल की बच्ची को बोटाक्स दे दिया उसके वैक्स किये ताकि वो एक सौन्दर्य प्रतियोगिता में भाग ले सके | जिस तरह वो टीवी पर ये सब बता रही थी उससे साफ था की वो इन सब से अपनी बेटी पर होने वाले शारीरिक और मानसिक नुकसान के बारे में समझ ही नहीं पा रही थी इसलिए ये सब किया ना की वो अपनी बेटी की दुश्मन थी और जानबूझ कर ये सब कर रही थी | अब ऐसी कम समझदार या जानकार माँ को आप किस श्रेणी में रखेंगे | फिर भी ये मानती हूँ की कुछ महिलाए बच्चे के प्रति लापरवाही करती है वो बच्चे को उस जिम्मेदारी से नहीं पालती जीतनी की हम और आप |
@ दीप जी
ReplyDeleteमै ये नहीं कह रही की पिता को माँ की जगह ले लेनी चाहिए और बच्चे को माँ की जरुरत ही ना पड़े मरे कहने का अर्थ ये है की पिता भी माँ की तरह की बच्चे से जुड़ सकता है बस वो थोडा और प्रयास करे, वो भी उस भावनाओ को महसूस कर सकता है जो माँ और बच्चे के बीच होता है | क्या ये बच्चे के लिए अच्छा नहीं होगा की उसे एक की जगह दो माँ अपना प्यार और देखभाल दे या जब किसी कारण वश या मजबूरी में कुछ समय के लिए माँ से दूर हो तो खुद का अकेला बेचारा असहाय ना महसूस करे पिता के रूप में एक माँ उसके पास मौजूद रहे | सिर्फ जन्म देने से कोई माँ नहीं बनता है यदि ऐसा होता तो हम कृष्ण की माँ के रूप में यशोदा को नहीं जानते और जब माँ और बेटे के प्यार की दुलार की बात होती तो इन दोनों का नाम नहीं लेते ,क्योकि जन्म देने से बड़ा बच्चे की परवरिश करना होता है और वही बड़ा होता है माँ होता है जो कम एक पिता भी कर सकता है फुल टाइम तो नहीं पर पार्ट टाइम माँ तो बन ही सकता है | पञ्च साल तक के बच्चे को अच्छे देखभाल और प्यार की जरुरत होती है जो पिता भी उसे दे सकता है माँ के साथ |
मेरे दो बच्चे हे, उन के जन्म के समय मै अपनी पत्नी के संग था, इस लिये मै वो दर्द महसुस करता हुं, बाकी बच्चे तो बाप के बिना या मां के बिना कुछ दिन रह लेते हे, मुंह से कुछ नही कहते लेकिन अंदर से उदास हो जाते हे, ओर उस समय बच्चे मां या बाप के ज्यादा करीब आ जाते हे, मेरे बच्चे भी जब कभी मुझे अकेले कही जाना पडा तो मां से ही चिपकए रहे, मां कभी बिमार हुयी तो मेरे बहुत करीब आ जाते हे,ओर जब बच्चे अपने दोस्तो के साथ जाते हे तो हम दोनो को फ़िक्र के कारण नींद नही आती...इस लिये इस मे बाप का दुर्भाग्या कहां से आ गया? बाप बच्चो को वक्त से लडना सीखाता हे तो मां उस मे संस्कार भरती हे, बाप बाहरी आफ़तो से बचता हे ब्च्चो को, तो मां अच्छी आदते डालती हे बच्चे मे, दोनो ही बराबर की जिम्मे दारी निभाते हे.
ReplyDeleteईश्वर ने दो बात महत्वपूर्ण तय कीं हैं जिसे इस तरह सकारात्मक कहना/समझना चाहिये
ReplyDeleteपुरुष को शमशान वैराग्य का अवसर मिलता है जो नारी को नही मिलता क्या उसे अभागी कहूं न मैं इतना अल्पग्य नहीं
नारी को मातृत्व भाव का अवसर मिलता है . ये दौनो ही क्रियाएं(अवसर) अदभुत हैं
कभी सोचा आपने वैग्यानिक कारणों से पुरुष गर्भधारण नही करता स्तनपान नहीं करा सकता तो क्या उसमें संतान के प्रति कोई भाव नहीं है ?
अपनी आठ साल की बच्ची को बोटॉक्स देने वाली माँ को तो मैं दुर्भाग्यशाली महिला की कैटेगरी में ही रखूँगा। कम समझदार या जानकार न होना अगर पैमाना माना जाये तो फ़िर सिर्फ़ महिलाओं को क्यों छूट दी जाये? जो पुरुष ऐसे हैं, उन्हें भी अधिकार होना चाहिये न? लेकिन क्या ये छूट देने से जिन बच्चों का बचपन छिन गया, आगे का जीवन नष्टप्राय हो गया उसकी जिम्मेदारी से चाहे मां हो या पिता, वह बच सकते हैं? कुछ अपराध अक्षम्य होते हैं, और मेरी नजर में ये ऐसा ही अपराध है।
ReplyDelete@ राज भाटिया जी
ReplyDeleteआप जो अपने बच्चो के लिए कर रहे है या किया है वही मै सभी पिता को करने के लिए कह रही हूँ ताकि जब कभी माँ कुछ समय के लिए साथ न हो तो बच्चे पिता के पास रह सके पिता भी बच्चो के करीब आ सके | पर कई पिता ऐसा नहीं करते है वो बच्चों को माँ की गैर मौजुदगी में वो प्यार साथ नहीं देते जो आप देते है वो पिता दुर्भाग्यशाली है आप नहीं|
@ गिरीश मुकुल जी
आप मेरे दोनों लेख पढेंगे तो समझ जायेंगे की मै यहाँ ये नहीं कह रही की पुरुष को भी बच्चे को जन्म देना चाहिए, यहाँ कहने का अर्थ बस इतना है की पिता को भी बच्चो की देखभाल में भी सहयोग करना चाहिए ताकि बच्चे पिता से भी उतना ही जुड़ सके जितना माँ से होते है और पिता को भी उतना ही प्यार दे जितना माँ को, मै बच्चो के प्यार को पाने को शौभाग्य मान रही हूँ उसे श्मशान में जाने से न जोड़े |
दूसरी बात महिलाए घर पर रहेंगी और पुरुष घर के बाहर काम करेगे ये भगवान ने नहीं मानव ने तय किया है |
@ संजय जी
बिलकुल सहमत हूँ आप से , मैंने आप को दी दूसरी टिप्पणी में ये बात कही है कि हा कुछ माँ लापरवाही करती है ,और उनकी सजा उन्हें मिलती भी है उनके लापरवाह बच्चे या बड़े होने के बाद बच्चो के द्वारा उन पर ध्यान न देना | जहा तक इस महिला की बात है तो उन्हें भी सजा मिल चुकी है उनसे उनकी बेटी को अलग कर दिया गया है | वैसे यदि अपने देश को देखा जाये तो यहाँ ज्यादातर माँ बाप आप को इतने ही लापरवाह दिखेंगे क्योकि यहाँ पर लोग माँ बाप बनते समय कुछ भी नहीं सोचते बस विवाह हुआ और बच्चे का जन्म हो गया सो बन गये माँ बाप तकनीकी तौर पर |
बहुत ही विचारणीय पोस्ट है.
ReplyDeleteवे व्यक्ति दुर्भाग्यशाली हैं चाहे पुरुष हों या स्त्री ,जो बच्चों के सही तरीके से प्यार नहीं दे पाते.
आपके आलेख की दोनों कडियों से अलग कुछ याद आ गया, एक बार एक ट्रेन में एक महिला को दूसरी से कहते सुना था, "आय हेट बीइंग प्रैगनैंट, आय लव बीइंग अ मॉम दो"
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