एक शाम मन किया आज पनीर टिक्का मसाला बनाया जाये बाकि सब घर में था बस पनीर लाना था | पास के ही दुकान पर मलाई पनीर न था , सादा पनीर था | सोचा जब खाना हैं तो अच्छा खाओ वरना मत खाओ , यहाँ नहीं मिला तो दूर वाली दुकान से लाती हूँ | लेकिन जब वहां पहुंची तो वो बंद था तब याद आया दुकान तो पांच बजे खुलती हैं और अभी बीस मीनट बाकि हैं | अब इतनी मेहनत की थी तो वापस क्या आती बीस मीनट फल वाले के पास ना चाहते हुए ढेर सारे फल लिए और अपनी पसंद का मलाई पनीर ले घर आई |
पनीर , शिमला मिर्च , टमाटर और प्याज सब अच्छे से चौकोर टुकड़ो में काट , मेरिनेट करने के लिए अदरक लहन का पेस्ट तैयार कर प्लेटफार्म पर सजाया था कि जोरदार बारिश और पतिदेव का आगमन एक साथ हुआ | इस समय मैं रसोई में होती नहीं कुछ खास हैं सोच पतिदेव सीधा रसोई में ही आये और सारी तैयारी देख खूब खुश हो कर बोला " क्या बात हैं तुम तो मेरे पेट की आवाज सुन लेती हो | सोच ही रहा था घर चलके तुमको बोलता हूँ लेकिन तुम तो पहले ही पकौड़ो की तैयारी करके बैठी हो | वाह प्याज के साथ पनीर और शिमला मिर्च के भी पकौड़े , बस मजा आ जायेगा जल्दी बनाओ |
मैं हक्का बक्का अरे मेरी तैयारी से इन्हे ये क्यों लगा की पकौड़े बनने वाले हैं , जबकि मेरा मन तो पनीर टिका मसाला खाने का था और ये डिनर की तैयारी हैं | अंदर से स्वार्थनेस ने जोर का धक्का मारा और मैं जैसे ही कहने गई की पकौड़े नहीं बन रहें हैं तभी उछलती हुई बिटिया आ गई मुझे भी पनीर पकौड़े खाने हैं मेरा फेवरेट हैं ( जबकि ऐसा नहीं हैं ) |
लो जी अब तो कोई चांस ही नहीं था , उस तैयारी को देखते सोचने लगी बाकी सब तो ठीक हैं लेकिन ये टमाटर कैसे पकौड़े से जुड़ा , तभी पीछे से आवाज आई , अच्छा किया टमाटर की चटनी बना रही हो सॉस में वो बात नहीं होती |
मेरी सारी मेहनत बेकार गई मेरे मन का तो ना हुआ , सबको पकौड़े खिलाये और आखिर में बिना मन के अपनी प्लेट ले ड्राईंग रूम में आई तो सामने जिंदगी आराम से सोफे पर पैर फैलाये पसरी थी | बोली यार ये तुम लोगो का कुछ समझ ना आता मुझे , तुमको शिमीला मिर्च , प्याज ,पनीर, टमाटर खाने थे और मैंने वो सब तुम्हे खिलाया फिर भी खुश नहीं हो | शुक्र मनाओ की स्वाद बढ़ाया मैंने , कितनी बार तुमने पकौड़ो के साथ टमाटर की चटनी बनाई हैं , आज तो तुमको वो भी खिलाया | जरा भी अतिरिक्त मेहनत नहीं कराया जो तुम्हारी तैयारी थी वही मिला तुमको |
इधर मैं हैरान परेशान सोचती ये जिंदगी सबके साथ कैसे खेलती हैं | उसने पहले इच्छा जगाई , फिर उसके लिए मेहनत भी करवाया , अपनी मर्जी का होता देख जब इच्छाएं अपने चरम पर पहुँच गई तो एक झटके में सब पलट कर रख दिया | हां वो सब कुछ था मेरी प्लेट में जिसके खाने की तैयारी मैंने की थी लेकिन सब होने के बाद वो उसका रूप वो नहीं था जिसकी चाहत थी | दिल कहता हैं ऐसा तो नहीं सोचा था |
पकौड़े अपने आप में बुरे नहीं थे शायद मन में कुछ और पाने की इच्छा न होती तो यही बड़ा स्वाद देते , लेकिन अब बेस्वाद लग रहें थे उनमे वो मजा ही नहीं था , क्योकि मन किसी पर टिका था , चाहते कुछ और पाने की थी , मेहनत तैयारी किसी और चीज के लिए किया गया था |जिंदगी हमेशा ही ऐसा करती हैं वो हसीन ख्वाब किसी और चीज का दिखती हैं और जैसे ही हम उसे छूने चलते हैं वो आप को नींद से जगा देती हैं |
#सालीजिंदगी
पनीर , शिमला मिर्च , टमाटर और प्याज सब अच्छे से चौकोर टुकड़ो में काट , मेरिनेट करने के लिए अदरक लहन का पेस्ट तैयार कर प्लेटफार्म पर सजाया था कि जोरदार बारिश और पतिदेव का आगमन एक साथ हुआ | इस समय मैं रसोई में होती नहीं कुछ खास हैं सोच पतिदेव सीधा रसोई में ही आये और सारी तैयारी देख खूब खुश हो कर बोला " क्या बात हैं तुम तो मेरे पेट की आवाज सुन लेती हो | सोच ही रहा था घर चलके तुमको बोलता हूँ लेकिन तुम तो पहले ही पकौड़ो की तैयारी करके बैठी हो | वाह प्याज के साथ पनीर और शिमला मिर्च के भी पकौड़े , बस मजा आ जायेगा जल्दी बनाओ |
मैं हक्का बक्का अरे मेरी तैयारी से इन्हे ये क्यों लगा की पकौड़े बनने वाले हैं , जबकि मेरा मन तो पनीर टिका मसाला खाने का था और ये डिनर की तैयारी हैं | अंदर से स्वार्थनेस ने जोर का धक्का मारा और मैं जैसे ही कहने गई की पकौड़े नहीं बन रहें हैं तभी उछलती हुई बिटिया आ गई मुझे भी पनीर पकौड़े खाने हैं मेरा फेवरेट हैं ( जबकि ऐसा नहीं हैं ) |
लो जी अब तो कोई चांस ही नहीं था , उस तैयारी को देखते सोचने लगी बाकी सब तो ठीक हैं लेकिन ये टमाटर कैसे पकौड़े से जुड़ा , तभी पीछे से आवाज आई , अच्छा किया टमाटर की चटनी बना रही हो सॉस में वो बात नहीं होती |
मेरी सारी मेहनत बेकार गई मेरे मन का तो ना हुआ , सबको पकौड़े खिलाये और आखिर में बिना मन के अपनी प्लेट ले ड्राईंग रूम में आई तो सामने जिंदगी आराम से सोफे पर पैर फैलाये पसरी थी | बोली यार ये तुम लोगो का कुछ समझ ना आता मुझे , तुमको शिमीला मिर्च , प्याज ,पनीर, टमाटर खाने थे और मैंने वो सब तुम्हे खिलाया फिर भी खुश नहीं हो | शुक्र मनाओ की स्वाद बढ़ाया मैंने , कितनी बार तुमने पकौड़ो के साथ टमाटर की चटनी बनाई हैं , आज तो तुमको वो भी खिलाया | जरा भी अतिरिक्त मेहनत नहीं कराया जो तुम्हारी तैयारी थी वही मिला तुमको |
इधर मैं हैरान परेशान सोचती ये जिंदगी सबके साथ कैसे खेलती हैं | उसने पहले इच्छा जगाई , फिर उसके लिए मेहनत भी करवाया , अपनी मर्जी का होता देख जब इच्छाएं अपने चरम पर पहुँच गई तो एक झटके में सब पलट कर रख दिया | हां वो सब कुछ था मेरी प्लेट में जिसके खाने की तैयारी मैंने की थी लेकिन सब होने के बाद वो उसका रूप वो नहीं था जिसकी चाहत थी | दिल कहता हैं ऐसा तो नहीं सोचा था |
पकौड़े अपने आप में बुरे नहीं थे शायद मन में कुछ और पाने की इच्छा न होती तो यही बड़ा स्वाद देते , लेकिन अब बेस्वाद लग रहें थे उनमे वो मजा ही नहीं था , क्योकि मन किसी पर टिका था , चाहते कुछ और पाने की थी , मेहनत तैयारी किसी और चीज के लिए किया गया था |जिंदगी हमेशा ही ऐसा करती हैं वो हसीन ख्वाब किसी और चीज का दिखती हैं और जैसे ही हम उसे छूने चलते हैं वो आप को नींद से जगा देती हैं |
#सालीजिंदगी
:)
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वीरांगना रानी झाँसी को नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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