बात कुछ साल पहले की हैं जब अख़बारों में खबर आती थी कि बड़ी बड़ी डिग्री वाले लोग सफाईकर्मचारी के नौकरी के लिए आवेदन कर रहें हैं | साथ ही ये खबर भी थी कि स्वर्ण जाति के लोग भी अब सफाई कर्मचारी की पोस्ट के लिए आवेदन कर रहें हैं |
इसके लिए सरकारों को बेरोजगारी आदि को खूब कोसा गया और अफसोस जाहिर किया गया योग्य लोगों को इस तरह मजबूरी में इतने नीचे के स्तर का काम करना पड़ रहा हैं |
अब जरा इसके पीछे की एक सच्चाई को सुनिए | जब हम छोटे थे तो बनारस में हमारे घर की गली में रोज झाड़ू लगता और सफाई रहती थी | लेकिन इन खबरों बीच अचानक हमारी गली में एक दिन छोड़ कर झाड़ू लगना शुरू हो गया | कभी कभी दो दिन तक झाड़ू नहीं लगता , अच्छा खासा साफ़ गली गंदी रहने लगा |
फिर जब पता किया गया ऐसा क्यों हो रहा हैं तो पता चला कि हमारी गली का सफाईकर्मचारी तो कभी झाड़ू ही लगाने हमारी गली में आता ही नहीं था | एक दिन बाद जो झाड़ू लगाने आता हैं वो तो दूसरी गली का कर्मचारी हैं |
वो भला ऐसा क्यों कर रहा था , इसके पीछे थी उन दोनों की साठगांठ | हमारी गली का सफाईकर्मचारी ऐसे ही डिग्रीधारी कोई था , जो बस सरकारी नौकरी के नाम पर नौकरी में लग गया था , लेकिन कभी काम पर नहीं आता था | अपनी जगह वो दूसरे सफाईकर्मचारी को अपने वेतन से कुछ पैसा दे देता था और वो अपना काम ख़त्म करके फिर हमारी तरफ सफाई करता | निश्चित रूप से उसे पुरे पैसे तो नहीं मिल रहें थे इसलिए वो रोज नहीं आता था |
बनारस जैसी जगह पर कौन देखने जा रहा हैं कि हर गली में सफाई रोज हुई या नहीं या कौन शिकायत करने नगर निगम जा रहा हैं कि रोज सफाई नहीं हो रही हैं | बस इसी बात का फायदा उठाया जा रहा था कुछ सरकारी नौकरी के नाम पर अपना जेबखर्च निकालने वालों लोगों द्वारा |
इसलिए अगली बार इस तरह की कोई खबर पढ़े तो सोचियेगा कि वास्तव में हमारे चारो तरफ काम की इतनी कमी हैं कि लोग इतने योग्य होने के बाद ऐसे काम करें , या तो नौकरी सरकारी होगी या डिग्री फर्जी |
इसके लिए सरकारों को बेरोजगारी आदि को खूब कोसा गया और अफसोस जाहिर किया गया योग्य लोगों को इस तरह मजबूरी में इतने नीचे के स्तर का काम करना पड़ रहा हैं |
अब जरा इसके पीछे की एक सच्चाई को सुनिए | जब हम छोटे थे तो बनारस में हमारे घर की गली में रोज झाड़ू लगता और सफाई रहती थी | लेकिन इन खबरों बीच अचानक हमारी गली में एक दिन छोड़ कर झाड़ू लगना शुरू हो गया | कभी कभी दो दिन तक झाड़ू नहीं लगता , अच्छा खासा साफ़ गली गंदी रहने लगा |
फिर जब पता किया गया ऐसा क्यों हो रहा हैं तो पता चला कि हमारी गली का सफाईकर्मचारी तो कभी झाड़ू ही लगाने हमारी गली में आता ही नहीं था | एक दिन बाद जो झाड़ू लगाने आता हैं वो तो दूसरी गली का कर्मचारी हैं |
वो भला ऐसा क्यों कर रहा था , इसके पीछे थी उन दोनों की साठगांठ | हमारी गली का सफाईकर्मचारी ऐसे ही डिग्रीधारी कोई था , जो बस सरकारी नौकरी के नाम पर नौकरी में लग गया था , लेकिन कभी काम पर नहीं आता था | अपनी जगह वो दूसरे सफाईकर्मचारी को अपने वेतन से कुछ पैसा दे देता था और वो अपना काम ख़त्म करके फिर हमारी तरफ सफाई करता | निश्चित रूप से उसे पुरे पैसे तो नहीं मिल रहें थे इसलिए वो रोज नहीं आता था |
बनारस जैसी जगह पर कौन देखने जा रहा हैं कि हर गली में सफाई रोज हुई या नहीं या कौन शिकायत करने नगर निगम जा रहा हैं कि रोज सफाई नहीं हो रही हैं | बस इसी बात का फायदा उठाया जा रहा था कुछ सरकारी नौकरी के नाम पर अपना जेबखर्च निकालने वालों लोगों द्वारा |
इसलिए अगली बार इस तरह की कोई खबर पढ़े तो सोचियेगा कि वास्तव में हमारे चारो तरफ काम की इतनी कमी हैं कि लोग इतने योग्य होने के बाद ऐसे काम करें , या तो नौकरी सरकारी होगी या डिग्री फर्जी |
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