एक बार कृष्ण की राधा से लड़ाई हो जाती हैं | राधा कृष्ण से नाराज हो उनसे बात करना बंद कर देतीं हैं | कृष्ण परेशान हो कर बार बार उन्हें मनाने का प्रयास करतें हैं लेकिन राधा नहीं मानती हैं | अंत में कृष्ण कहतें हैं ठीक हैं राधा तुम्हे इतना मना रहा हूँ लेकिन तुम नहीं मान रहीं हो मैंने अपने तरफ से सभी तरह के प्रयास कर लिए अब तो एक ही काम बचा हैं कि तुम अपने पांव उठा कर मेरे सिर पर धर दो और ऐसा कहते हुए बदमाश कृष्ण घाघरा पहनी हुई राधा के एक पांव को ऊपर उठा कर अपने सर के ऊपर रख लेतें हैं | कृष्ण बदमाश क्यों , सोचिये घाघरा पहनी हुई किसी महिला का एक पांव उठा कर अपने सर पर रखेंगे तो आपके नेत्र क्या देखेंगे |
गोपियाँ माता यशोदा से शिकायत करतीं हैं कि ये बदमाश कृष्ण यमुना से नहा कर निकल रहीं गांयों के बहाने हम गोपियों की गिनती करता हैं उंगलियां दिखा दिखा आँखें मटकाते इशारे करते हुए | ये इतना बड़ा बदमाश हैं कि गांयों के हांकने के लिए जो लाठी ले कर जाता हैं उसे पर अपने हाथ ऐसे उल्टा टिका कर ( हथेलियों की वह मुद्रा जैसे हम हाथ से इशारा कर पूछते हैं कौन है जिसमे उंगलिया फैली होती हैं , अलपद्म कहते हैं उसे ) ऐसे खड़ा हो हमें घूरता हैं जैसे वो उन हांथो से हमारे उरोजो को तौल रहा हो | इसके अलावा हम शास्त्रीय नृत्यों में कृष्ण और गोपियों के छेड़छाड़ के ना जाने कितने प्रसंग को देखतें हैं
जब हम कृष्ण को प्रेम , ममता आध्यात्म , ज्ञान जैसी चीजों से जोड़ कर ही मात्र देखतें हैं तो इस तरह के गीत और प्रसंग कानों में शीशा घोल कर डाले जाने के समान लगते हैं | भरतनाट्यम के क्लास में जब इस तरह के प्रसंगो और गीतों को सुना तो हमने कहा मैम ये सब कृष्ण नहीं हैं | असल में ये लिखने वाले का अपना छिछोरा , गंदा दिमाग हैं जिसने कृष्ण के नाम पर उलट कर उसे गीत काव्य भक्ति श्रृंगार कह दिया हैं | ये सब भक्ति के बाद रति काल में जन्मे कवियों की ये अपनी रति सोच हैं जिससे कृष्ण को रंग पर खुद की छिछोरी सोच को स्वीकारे जाने योग्य बनाये जाने की चेष्टा की हैं |
#हेकृष्णा!
गोपियाँ माता यशोदा से शिकायत करतीं हैं कि ये बदमाश कृष्ण यमुना से नहा कर निकल रहीं गांयों के बहाने हम गोपियों की गिनती करता हैं उंगलियां दिखा दिखा आँखें मटकाते इशारे करते हुए | ये इतना बड़ा बदमाश हैं कि गांयों के हांकने के लिए जो लाठी ले कर जाता हैं उसे पर अपने हाथ ऐसे उल्टा टिका कर ( हथेलियों की वह मुद्रा जैसे हम हाथ से इशारा कर पूछते हैं कौन है जिसमे उंगलिया फैली होती हैं , अलपद्म कहते हैं उसे ) ऐसे खड़ा हो हमें घूरता हैं जैसे वो उन हांथो से हमारे उरोजो को तौल रहा हो | इसके अलावा हम शास्त्रीय नृत्यों में कृष्ण और गोपियों के छेड़छाड़ के ना जाने कितने प्रसंग को देखतें हैं
जब हम कृष्ण को प्रेम , ममता आध्यात्म , ज्ञान जैसी चीजों से जोड़ कर ही मात्र देखतें हैं तो इस तरह के गीत और प्रसंग कानों में शीशा घोल कर डाले जाने के समान लगते हैं | भरतनाट्यम के क्लास में जब इस तरह के प्रसंगो और गीतों को सुना तो हमने कहा मैम ये सब कृष्ण नहीं हैं | असल में ये लिखने वाले का अपना छिछोरा , गंदा दिमाग हैं जिसने कृष्ण के नाम पर उलट कर उसे गीत काव्य भक्ति श्रृंगार कह दिया हैं | ये सब भक्ति के बाद रति काल में जन्मे कवियों की ये अपनी रति सोच हैं जिससे कृष्ण को रंग पर खुद की छिछोरी सोच को स्वीकारे जाने योग्य बनाये जाने की चेष्टा की हैं |
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