सही समय पर सही जगह होना कई बार ना केवल आपका जीवन बदल सकता है बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी बेहतर जीवन दे सकता है । तमाम संजोग मिल कर जीवन को कुछ का कुछ बना सकतें हैं ।
इतने साल से अपने पचहत्तर साल से ज्यादा के पड़ोसी के घर की दिवार पर टंगें सेना के मैडल और पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी से मैडल लेते फोटो देख रही थी । लेकिन उसके पीछे की पूरी कहानी को सुनने का मौका अब जा कर मिला ।
हमारे पड़ोसी महाराष्ट्र के ही एक बहुत ही गरीब गांव और परिवार से थें । नौवी या दसवीं देने के बाद वो छुट्टियों मे पहली बार मुंबई एक रिश्तेदार के पास आयें । साथ मे गांव के दो और गरीब साथी थें ।
रिश्तेदार के बड़े बेटे के साथ घुमने गेटवे गयें तो देखा वहां सेना भर्ती का कैंप लगा है । वो सन था 1962, चीन से युद्ध छिड़ चुका था । उसके कारण ऐसे सीधी भर्ती सैनिको की हो रही थी ।
रिश्तेदार के बेटे ने कहा चलो हम सब भी ट्राई करते हैं । गांव से आये दो लड़को मे से एक जो बड़ी आयु का था उसने जाने से इंकार कर दिया । बाकि बचे तीन लड़के शारीरिक नाप जोक के लिए चले गयें । नाप जोक मे गांव से आया दूसरा लड़के का भी चयन नही हो पाया ।
इनका और रिश्तेदार के बेटे का हो गया । आगे बढ़ कर जब नाम पता आयु पूछा गया तो रिश्तेदार तो अट्ठारह का था लेकिन ये तो बस सोलह के थें ।
मुझे किस्सा बताते वो बड़े आदर से उस ऑफिसर का नाम ले कहतें है कि उसने कहा शरीर मे दमखम है तुम्हारे उमर अट्ठारह लिख दूं । तो मैने तुरंत ही खुशी खुशी हां कर दिया ।
साथ मे उस ऑफिसर का बहुत धन्यवाद करते दुआ देतें कहतें है कि उसने ये राय दे कर मेरा जीवन बदल दिया । वरना अपने उजाड़ से गांव मे खेती किसानी करता गरीबी का जीवन जी रहा होता आज ।
फिर आगे परिवार भी उसी अभाव मे जीता जैसे आज भी उनके साथ वाले वो दो लड़के गांव मे अभी भी जी रहें हैं । फक्र से बतातें हैं कि अपने गांव का पहला लड़का था जिसने किसी भी सरकारी नौकरी मे जगह पायी थी । पूरे गांव ने उन्हे कंधे पर उठा लिया था जब सबको उनके चयन का पता चला था ।
उसके बीस साल बाद तक भी कोई गांव से किसी अच्छे काम पर नही लग पाया था । नब्बे के दशक मे आ कर एक दो लड़कों का सरकारी नौकरी लगना शुरू हुआ। आज भी गांव मे बहुत गरीबी है और खेती एकमात्र आजीविका ।
62 और 65 के युद्ध मे तो जाने का मौका उन्हे नही मिला लेकिन 71 के युद्ध मे उनको फ्रंट पर जाने का तार जब मिला तो वो छुट्टी पर गांव मे थे और अगले दिन उनकी शादी थी ।
उन्होनें बिना शादी किये जाने का मन बना लिया था लेकिन रिश्तेदार घर वाले बोले कल सुबह शादी करके फिर जाओ । सुबह शादी किया और पत्नी के चेहरे की बस एक झलक देखी और ड्यूटी के लिए निकल गये ।
मुस्कराते हुए बताने लगे आज जीवित हूँ तो पत्नी के भाग्य से । शायद शादी किये बिना जाता तो मर जाता लेकिन पत्नी के भाग्य मे अच्छा जीवन लिखा था तो मै बच गया । मुझे कुछ हो जाता तो गांव वाले पत्नी को नाम देतें ( दुर्भावना से उसे कोसते , उसे अशुभ मानते)
दो गोलियां लगी मुझे उस युद्ध मे एक यहां सीने के ऊपर कंधे पर । ये कहते वो साथ ही अपने शर्ट का बटन खोल हम दोनो को कंधे का निशान दिखाने लगें । शायद किसी सैनिक के लिए ऐसे निशान किसी मैडल से बड़े होतें हैं ।
साथ मे गर्व से बताते हैं कि सामने से लगी पर पीठ मे अटक गयी । जैसे कहना चाह रहें हो कि सीने पर गोली खायी थी भागते बचने के प्रयास मे पीठ पर नही ।
दूसरी पैर मे टखने के पास वो निशान भी पैंट को ऊपर कर दिखातें हैं । बोला पूरे टाइम होश मे था अस्पताल आने तक । फिर उधर जा कर बेहोश हुआ तो पता नही कब उठा । जब उठा तब तक गोली निकाल दी थी ।
उसके बाद रिटायर कर दिया गया । पर तब आज के जैसा इतना कुछ सेना से मिलता नही था । बस थोड़ा बहुत ही मिला नाम का । ये कहते वो अफसोस सा करतें हैं पर तुरंत ही खुश हो बोलतें हैं अब तो अच्छा है बहुत कुछ मिलता है ।
बहुत बाद मे कई सालों बाद उन्हे राज्य सरकार की तरफ से किसी स्किम मे कुर्ला बाजार मे एक दुकान दी गयी । लेकिन बुरा समय ऐसा कि कुछ महीन बाद ही मुंबई मे दंगे हो गयें । दिसंबर 1992 के बाद वाले दंगें ।
पूरा बाजार जला दिया गया साथ उनकी दुकान भी जला दी गयी । जलाने वाले हिन्दू ही थें लेकिन इलाका मुस्लमानों का था और जिसे दुकान किराये पर दी थी वो मुसलमान था ।
फिर उसके बाद ना कभी वो बाजार बना दूबारा ना कभी दुकान मिली। आज भी वैसे ही खंडहर बना पड़ा है । कहतें हैं अब मुंबई में सब जगह सब बन रहा है मेरे जीते जी वो भी बन जाये तो छोटी बेटी के नाम कर दूं वो । मर गया तो फिर नही मिलेगा ।
दो बेटियों एक बेटे कि शादी हो गयी है बेटा भी साफ्टवेयर इंजीनियर है । बेटियां भी बैंक मे काम करतीं है लेकिन छोटी बेटी ने अभी तक शादी नही की है । बेटे के अलग होने के बाद वही साथ रहती है ।
बेटे को एक फ्लैट रहने के लिए दे दिया है या ये कहें उसने ले लिया है । इस फ्लैट मे बेटी के साथ रहतें है । एक और फ्लैट किराये पर दिया है । उसका किराया और पेंशन पर उनका गुजारा आराम से होता है । बेटी एक हास्पिटल मे काम करती है वो अपने खर्चे खुद उठा लेती है।
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