अरे उस घर की बेटी से शादी की बात मत चलाइये उस घर मे वैधव्य विधवा होना लिखा है । जब एक पढ़े लिखे समझदार दिल्ली मे केन्द्रीय विभाग मे उँचे पोस्ट पर बैठे रिश्तेदार ने ये कहा तो थोड़ा अजीब लगा।
वो ऐसे स्त्री पुरुष या किसी तरह का भेदभाव करने वाले रूढ़िवादी सोच के भी नही थें इसलिए उनकी बात और अजीब लगी । मैने पूछा ऐसा क्यों बोल रहें है ।
तो कहतें है उस घर मे चार स्त्रियां रहतीं हैं जिसमे से तीन विधवा हैं । मैने कहा कौन कौन तो बोलते है एक दादी हैं दूसरी मां तीसरी चाची । सब कम आयु मे ही विधवा हुयीं ।
मैने पूछा कोई बुआ और बेटी नही है । तो कहतीं है दो बुआ है एक की शादी यहां एक की वहां हुयी है । बड़ी बेटी की यहां हुयी है ये छोटी बेटी है । इसके एक बड़ा भाई है एक छोटा और चाची को भी एक लड़का ही हैं ।
हमने कहा विधवा लोगों मे कोई घर की बेटी है तो कहतें है नही । तब हमने कहा फिर तो वैधव्य जैसा कुछ है तो घर के बहुओ मे है बेटी मे नही । बेटियां कहा विधवा है घर मे ।
इस हिसाब से तो उस घर मे अपनी बेटी नही ब्याहनी चाहिए क्योंकि उस घर के पुरुषों की आयु छोटी है या उनका रहन सहन ऐसा है लोग मर रहें है या खानदानी बीमारी से मरे जा रहें हैं । बेटियां तो मजे से है तो किसी के बेटे को नुकसान नही होने वाला है उनके बेटियों से ।
फिर ऐसी बात उनके घर की बेटी के बारे मे क्यों फैलाई जा रही है ये तो सही नही है । ये सुन वो भी सोच मे पड़ गयें और बाकि लोगों ने भी कहा हां ये तो ठीक ही बात है ।
फिर हमने पुछा पुरूषो की मौत हुयी कैसे तो बोलतें हैं इस बारे मे जानकारी नही है । हमने कहा अचानक से कैंसर जैसी कोई बिमारी हो गयी , किसी का एक्सीडेंट हो गया जैसा कुछ हुआ तो उसे अकाल मृत्यु कह सकते है । फिर उस घर के लड़को से ब्याह से बचने का भी सोचा जा सकता है ( ऐसा अंधविश्वास पालना )
लेकिन खानदानी बिमारी है , रहन सहन सही नही है तो इसका तो इलाज हो सकता है और लाइफ स्टाइल मेंटेन कर जल्दी मौत से बचा जा सकता है । तो लड़के भी कोई खराब नही हुए उस घर के।
लेकिन ये सब सुन लगा कि वाकई दुनिया क्या इतनी ज्यादा स्त्री द्वेषी विचार रखती है कि बेटों की गलती ,मौत को बेटियों पर अपसगुन के रूप मे थोप दिया जाये उन्हे बदनाम कर दिया जाये ।
या ये सब कुछ दुष्ट रिश्तेदारों , जानने वालों की जलन , कुंठा , दुश्मनी का नतीज है जो जानबूझ कर किसी परिवार , स्त्री के प्रति ये सब समाज मे फैलाया जाता है ।
और लोग जैसे आज सोशल मीडिया पर सब कुछ बिना सोचे समझे फारवर्ड करते जातें हैं वैसे ही सदियों से ऐसी बातें किसी से सुनतें हैं खासकर स्त्रियों को लेकर तो उस पर ज्यादा विचार नही करते और उसे सच मान आगे बढ़ा देतें हैं , कह देतें हैं ।
अगली बार कोई किसी स्त्री के बारे मे कुछ कहे तो कही बात ध्यान से सुन एक बार खुद सोचियेगा कि ये सच भी है या नही। फिर कोई राय बनायेगा या किसी को आगे कहियेगा ।
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