अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने गई तो एक अजीब सी दहशत सबके चेहरे पर थी और एक सवाल " कल अपनी बच्ची को स्कूल भेज रही हो क्या मैं तो नही भेज रही हुं " सबके चेहरे पे व्याप्त दहशत की लकीरें और सवालों ने मुझे भी डरा दिया जो अब तक नहीं था | कुछ नहीं होगा का नारा जो मैं अब तक लगा रही थी अब मेरा ही विश्वास उस पर से उठ गया है अब तो लग रहा है की जैसे वास्तव में कुछ होने वाला है | सही स्थिति जानने के लिए जब कोई न्यूज़ चैनल देख रही हुं ( शायद यही मेरी बेवकूफी है ) तो वह और भी डरा रहा है | पूरा देश हाई एलर्ट ,३२ शहर और चार राज्य संवेदनशील घोषित चारों तरफ सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद हो गई है सेना को भी एलर्ट कर दिया गया है कही गड़बड़ी होने पर वहा पर दस मिनट में सुरक्षा कर्मी पहुँच जायेंगे सरकार की अपील की शांति बनाये रखे और ख़ुशियाँ ना मनाये | मानव रहित विमान और मिग भी सुरक्षा के लिए तैनात है वायु सेना और थल सेना दोनों मिल कर काम कर रहे है ये कामनवेल्थ की सुरक्षा से जुड़ीं खबर है पर एक साथ ये खबर दिखाने से पूरा घालमेल हो जा रहा है इतनी सारी ख़बरे सुनने के बाद तो डर और भी बढ़ गया जब सरकार ही माने बैठी है की कुछ होने वाला है तो हम कौन होते है ये सोचने वाले की कुछ नहीं होने वाला है | इस तरह की ख़बरे जब टीवी चैनलों द्वारा सरकारें फैलाती है तो उससे आम आदमी का डर कम नहीं होता है बल्कि उसे और डरा देती है | अरे सरकार को कोई सुरक्षा व्यवस्था करनी है तो वो चुप चाप कर सकती है उसके लिए इतना शोर मचाने की क्या आवश्यकता है | अगर वो ये समझती है कि इस तरह की ख़बरे फैला कर वो किसी दंगाई गुंडे मवाली या गड़बड़ी फ़ैलाने वाले को रोक सकती है या डरा सकती है तो मैं इसको उनका भोलापन ही कहूँगी इन खबरों से दंगाई या गड़बड़ी फ़ैलाने वाले नहीं आम लोग डरते है | उनको तो जो करना है और जब करना है कर ही लेंगे उनको सुरक्षा बलों का डर नहीं होता है जो होता तो शायद दुनिया में कही भी कोई अपराध नहीं होता | इस तरीके से तो आप उनको और सावधान कर रहे है और अपनी रणनीति ठीक से बनाने का मौका दे रहे है वरना ये बताने की जरुरत ही क्या है कि कहा कितने सुरक्षा कर्मी होंगे कहा क्या सुरक्षा व्यवस्था है | सरकार ने तो सीधे कहा दिया है की अंशु जी आप का शहर और राज्य दोनों ही संवेदनशील है अब आप ही बताइए की जब सरकार ही ऐसी बात कहेगी खुले आम तो क्या है मुझ में हिम्मत की अपनी छोटी सी बच्ची को सात किलोमीटर दूर उसके स्कूल भेज दू कल | मैंने तो अपने पति को भी आज हिदायत दे दी की कल यदि जरुरत नहीं है तो आँफिस से छुट्टी ही ले लो या कम से कम उन क्षेत्रो में मत जाना जहा एक समुदाय के ज्यादा लोग रहते है या जहा पर एक राजनीतिक पार्टी का ज्यादा दबदबा है हमारा शहर राज्य दोनों संवेदनशील है | इस संवेदनशील शहर के किसी संवेदन शील इन्सान की संवेदना को कही फैसले से चोट लगी तो पता नहीं वह असंवेदना दिखाते हुए किस किस को कितनी चोट पहुचायेगा |
जो सरकार को आम लोगों की चिंता होती उनके सुरक्षा की चिंता होती तो मीडिया के साथ मिल कर इस तरह की दहशत फैलाने की जगह अपना ख़ुफ़िया तंत्र मजबूत करती उनको काम पर लगाती और अंदर ही अंदर उन लोगों का पता करवाती जो इस तरह के मनसूबे बना रहे है और उन्हें अंजाम तक पहुँचाने से पहले ही पकड़ती | जो कल किसी ने फैसले के बाद ख़ुशियाँ मनानी शुरू कर दी या किसी ने कोई गड़बड़ी की उसके बाद उसे रोकने का क्या फायदा क्योंकि एक बार किसी की की गई ये हरकत और लोगों को भी ऐसा करने का बढ़ावा देगी | आप सिर्फ बल्क एस एम एस भेजने पर रोक लगा कर ये सोच रहे है कि आज की संचार क्रांति के युग में खबरों को फैलने से रोक लेंगे तो ये आप की नादानी ही है |
शायद सरकार को मालूम ही नहीं है कि इस तरह के मामलों से कैसे निपटा जाता है या कही ऐसा तो नहीं की सरकार जानबूझ के ये ख़बरे लोगों में फैला रही है ताकि लोगों का और मीडिया का भी इस समय किसी और मुद्दे से ध्यान हट जाये कामनवेल्थ से जुड़े घपलो की तरफ से | जिस तरह महँगाई के मुद्दे को कामनवेल्थ के घपलो की खबरों ने खा लिया उसी तरह अयोध्या पर आ रहे फैसले के मुद्दे को इस तरह उछालो की लोग घपलो को भूल जाये | इससे अच्छा मामला और क्या होगा जिसमे सरकार कोई पक्ष नहीं है और उससे कोई सवाल भी नहीं करेगा और ना ही उसको घेरेगा और न्यायलय के खिलाफ कोई कुछ बोल नहीं सकता है | जो कही कोई गड़बड़ी हुई भी तो उसमे सरकार का कोई दोष नहीं निकल पायेगा जो बड़ी गड़बड़ी हो गई तो देखा जायेगा पर कम से कम कामनवेल्थ में फसी गर्दन तो बाहर आ जाएगी | वैसे भी हमारी सरकारें फौरी इलाज में विश्वास करती आई है बाद में आये परिणाम से बाद में निपट लेंगे |
वैसे इन सारी सुरक्षा व्यवस्था का क्या मतलब है सरकार के लिए और वो उस पर कितना भरोसा करती है वो कल आये शीला दीक्षित के बयान से जाहिर हो जाता है जब वह बाहर से आये खिलाड़ियों और अधिकारियों को ये कह रही है की यदि उनके समान चोरी हो रहे है तो वो अपने कमरों का दरवाज़ा बंद करके जायेस्वदेशियो को तो इन सब की आदत है |
वैसे आप बताइये की सरकार द्वारा घोषित संवेदनशील राज्य की निवासी मैं कल अपनी बेटी को स्कूल ले जाऊ की नहीं |
सरकार की घोषणा भी उसी तरह होती है जैसे उसके बाकी काम । आप खुशी से जाईये और चैनल वालों को साथ ले जाना न भूलें तकि वो समझ जायें कि उनकी या सरकार के3ए किसी बात का न भरोसा है न डर। शुभकामनायें।
ReplyDeleteDeepawali me ALI
ReplyDeleteaur Ramjam me RAM hai
fir kahe ka dar.........:)
ये पहली बार नहीं है जब सरकारे अपने मतलब के हिसाब से काम करती है सरकारे हमेसा हवा के रुख के साथ चलती है जिस तरफ वोटो की हवा बहती है उसी तरफ वो भी बहती है यदि वोट मिले तो किसी एक धर्म के लोगो के लिए कानून बना देती है नहीं तो वो धर्म निरपेक्ष है यदि उसका फायद लोगो को डराने में है तब तो डर के ही रहिये क्योकि हमारे यहाँ तो दंगे भी सरकारों द्वारा प्रायोजित होते है |
ReplyDeleteपता नहीं सरकार कब क्या उछाल दे , दिमाग हटाने के लिए। लेकिन दिमाग से कुछ हटता है क्या ?
ReplyDeleteमोहल्ले का सबसे धूर्त व्यक्ति सब की ओर आरोपों की अँगुली उठाता रहता है ताकि उसकी अपनी ओर से सब का ध्यान हटा रहे. राजनीति करने वाले इस औज़ार का भरपूर प्रयोग करते हैं.
ReplyDeleteअंशुमाला जी,यदि सरकार का मीडिया पर इतना ही प्रभाव होता तो वह खेल आयोजनों से पहले की तमाम नकारात्मक खबरों को क्यों प्रसारित होने देती?और जो अयोध्या वाला मामला है वो वास्तव में संवेदनशील हैं।यदि सरकार को भय बढाने की ही एक्सरसाइज करनी होती तो वह दूरदर्शन जैसे सरकारी भोंपू का इस्तेमाल जोर शोर से करती लेकिन वहाँ आपको ऐसा गैर जिम्मेदार रवैया नहीं देखने को मिलेगा।निजी चैनल अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे तो इसमें सरकार क्या करे।मुम्बई हमले के समय भी इनका यही हाल था।
ReplyDelete@ निर्मला जी
ReplyDeleteअब तो किसी पे भी भरोसा नहीं है
@मुकेश जी
सही बात कही
@ देबू
इन हवाओ के रुख से ही तो डर लगता है
@ दिव्या जी
आम लोगो के दिमाग से तो हट ही जाता है
@ भूषण जी
पर वो भूल जाता है की तीन उंगलिया उसकी और इशारा कर रही है बस लोगो को उन तीन उंगलियों को देखना चाहिए |
@ राजन जी
आप सही कह रहे है मीडिया तो हल्ला मचा ही रही है टी आर पी के लिए पर अब हम और आप उस पर इतना विश्वास नहीं करते है मेरा सवाल तो ये था की सरकार को क्या जरुरत थी की वो मीडिया में ये सब बाते बताये की कौन से राज्य शहर सवेदनशील है और वह कितना सुरक्षा का इंतजाम कर रही है ये काम तो वो चुपचाप भी कर सकती थी उसके इस कदम ने मीडिया को और मौका दे दिया हो हल्ला मचाने का और लोगो को डराने का |
यदि हम डरे नहीं तो कोई भी हमें डरा नहीं सकता है यदि हम सब सामान्य रहे तो स्थिति खुद ब खुद सामान्य रहेगी |
ReplyDeleteसामान्य स्थिति को भी बढ़ा चढ़ा कर बताना सरकार का काम है और उससे भी ज्यादा बढ़ा चढ़ा कर दिखाना न्यूज़ चेनेल्स का.....
ReplyDelete@अंशुमाला जी ,
ReplyDeleteआपकी आवासीय स्तिथि को देखते हुए मैं तो यही कहूँगा की " prevention is better than cure " ,आगे आपकी मर्जी
महक
मेरे ख्याल मे आम आदमी को वो चाहे मुस्लिम हो या हिंदु इस फ़ेसले से कोई फ़र्क नही पडने वाला, फ़र्क इन नेताओ को पढने वाला है, इस लिये बार बार डरा रहे है, मुझे कोई मंदिर मुफ़त मे खाने के लिये नही देगा, ओर मेरे पडोसी को मस्जिद से कोई खाने के लिये नही भेजे गा, यह बात मै भी ओर मेरा पडोसी भी जानता है, फ़िर डर केसा, भाई से बढ कर पडोसी होता है, बाकी इस शीला दिक्षित को बार बार यह बताने की क्या जरुरत कि खिलाडी अपने कमरे को लांक रखे, अरे यह तो हर देश मै लोग जब घर से बाहर कही भी ठहरते है तो अपने कमरे को लांक तो करते ही है, ओर चोरी.... अरे बाबा अगर यह मेहमान ही निशानी के तॊर पर हमारी चादरे ऊठा कर , चोरी कर के ले गये तो, पता नही क्यो अपने पागल पन के व्यानो से यह देश ओर देश के लोगो को बदनाम करते है, सब से बडे चोर तो यह नेता ही हे.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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अंशुमाला जी,
हम लोगों के साथ यह समस्या तो है ही... बहुत ही तेजी से 'भीड़' में तब्दील हो जाते हैं हम लोग...कोई भी सरकार कितने भी पुख्ता इंतजाम कर ले...पर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता...
मेरी बिटिया की तो छुट्टी है कल...आप भी बिटिया को कल घर में ही मजे करने दीजियेगा...अनावश्यक तनाव से बची रहेंगी!
आभार!
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@ प्रेम
ReplyDeleteआप ने सही कहा हम सामान्य रहे तो सब ठीक रहेगा
@ मोनिका जी
डराने का काम तो दोनों मिल कर ही कर रहे है |
@ महक जी
अच्छी सलाह के लिए धन्यवाद
@ राज भाटिया जी
सही कहा मंदिर मस्जिद एक आम आदमी को मुफ्त में खाना नहीं देता है पर कई नेताओ की रोजी रोटी इसी से चलती है
@ प्रवीण जी
इन्सान जब भीड़ बन जाता है तो इन्सान भी नहीं रहता है और न उसकी कोई धर्म जाति | उचित सलाह तनाव से बचा जाये वही सही है पर कल आप की बिटिया की छुट्टी क्यों है कही इसी वजह से तो नहीं |
हमने तो पिछले कई सालों से इसीलिये टी वी देखना बन्द कर दिया है ।हमारे घर मे भी टी वी नही है ।
ReplyDelete"इस संवेदनशील शहर के किसी संवेदन शील इन्सान की संवेदना को कही फैसले से चोट लगी तो पता नहीं वह असंवेदना दिखाते हुए किस किस को कितनी चोट पहुचायेगा |"
ReplyDeleteजबरदस्त पंच है।
रिस्क मत लीजिये।
छह दिसंबर १९९२ को जिस दिन बाबरी ढांचा गिरा था, उस रात मेरी ट्रेन में रिज़र्वेशन थी और गाड़ी को अलीगढ़ होते हुये जाना था। पेरेंट्स के लाख मना करने के बावजूद मैं गया। स्लीपर कोच में कुल आठ सवारियाँ थीं, सबके चेहरे फ़क्क थे और सबने आंखों में ही रात गुजारी। ये तो था अपना हाल, मां-बाप की क्या कैफ़ियत रही, जब ये अगले सप्ताह पता चला तो उस रात सफ़र करने का फ़ैसला एक बेवकूफ़ी से ज्यादा कुछ नहीं लगा। खुद के लिये एकबारगी रिस्क हम उठा लेंगे, लेकिन अपने बच्चों के बारे में कमोबेश हर मां बाप की एक जैसी ही सोच होती है। नासमझों की बस्ती में रहा तो मजबूरी में जा सकता है लेकिन सावधाम रहना अपना फ़र्ज़ है।
वैसे मैं मेरे बच्चों को स्कूल भेज रहा हूँ। कम से कम यहाँ इस मुद्दे पर ज्यादा बवाल नहीं है।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
बहुत सुंदर सामयिक पोस्ट । मुझे विश्वास है कि आपने बच्चों को स्कूल जरूर भेजा होगा । सरकार अगर ना भी बताये तो मीडिया वाले सूंघते हुए पहुँच जायेंगे और एक की दस सुनायेंगे मेरा मतलब है वही चीज दल क्या दिन में सौ सौ बार अब आप भी इन्सान हैं असर तो होगा ही ।
ReplyDeleteइतिहास यहाँ आपका इन्तजार कर रहा है
ReplyDeleteवो कहते नहीं तो क्या हुआ......
आपकी चिंता जायज है, यह हर माँ-बाप की चिन्ता है।
ReplyDelete................
.....ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
निश्चित रूप से प्रशासन ने भय का माहौल पैदा कर दिया था | लेकिन जहां शांतिप्रिय आदमी को कुछ असुविधा हुई वहीं फ़सादियों की हिम्मत फसाद करने की भी नहीं हुई |
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