October 05, 2010

क्या हमारे सिस्टम की ये लापरवाही माफ़ी के लायक है - - - - - -mangopeople

आज सुबह नव भारत टाइम्स में एक खबर बढ़ी पढ़ कर जितना दुख हुआ उतना ही गुस्सा आया देश की व्यवस्था पर | मुंबई में एक व्यक्ति एक्सीडेंट के बाद ब्रेन डेड हो गया उसकी पत्नी ने इस दुख की घड़ी में भी अपने दुःख को एक तरफ रख अपने पति के अंग दान करने की सोची तो उसे पुलिस से एन ओ सी लाने को कहा गया पहले तो उन्हें दो पुलिस स्टेशन के बीच दौड़ाया गया फिर उससे कहा गया की अभी तो उसके पति की सांसे चल रही है वो क्यों उसको मार रही है बेचारी घबरा कर अस्पताल आ गई वहा पर फिर से उनकी काउंसलिंग करके मनाया गया तो इस बार पुलिस ने कहा दिया की उसे अंग दान के कानून के बारे में जानकारी नहीं है | इस पर उस अस्पताल ने दूसरे अस्पताल से कमिश्नर के आदेश की वो कापी मगाई जिसमे कहा गया है ऐसे मामलों में पुलिस खुद अस्पताल में आ कर कार्यवाही करे तब तक रात हो चुकी थी फिर भी वो महिला तीन चक्कर लगने के बाद भी आदेश की कॉपी ले कर वापस पुलिस स्टेशन गई जहा पर उससे कहा दिया गया की पुलिस  गणपति के ड्यूटी में व्यस्त है और तब तक उसके पति के अंग ख़राब हो चुके थे और उसने भी हार मान लिया कुछ घंटो बाद उसके पति की मौत हो गई  | अब आप बताइये की इस तरह की लापरवाही माफ़ करने लायक है सोचिये उन तीन लोगों के बारे में जो जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे थे जिन्हें अंग प्रत्यार्पित करने के लिए तैयार कर लिया गया लेकिन रात होते होते उनको फिर से एक नया जीवन मिलने का मौका हाथ से चला गया | उन तीनों लोगों और उनके परिवार पर क्या गुज़री होगी | क्या पुलिस और हमारी ये व्यवस्था इतनी असंवेदनशील हो गई है क्या उन पुलिस वालो को मामले की गंभीरता और जरुरत की जरा भी समझ नहीं थी | इस मामले में अस्पताल भी कम दोषी नहीं है कहने को तो वो अस्पताल मुंबई का काफी नामी प्राइवेट अस्पताल है क्या उसकी ज़िम्मेदारी नहीं थी की सारी कागजी कार्यवाही वो खुद करे ना की उस महिला को भाग दौड़ करने के लिए भेजे जो महज ३५ साल की आयु में अपने पति को मरते हुए देख रही थी | मैं तो उस महिला के हिम्मत की दाग दूंगी जो खुद पर आये इतने बड़े दुःख को भुला कर इतना नेक काम करने का प्रयास कर रही थी पर उसके सारे प्रयास सिस्टम की लापरवाही के कारण बेकार हो गये और बेकार हो गई तीन लोगों को फिर से जीवन मिलने की आस जो उसके पति के अंगों से फिर से जीवन पाने वाले थे | 
   अखबार के मुताबिक अकेले मुंबई में १५०० लोग किडनी और ६५ लोग लीवर के इंतजार में है | पूरे देश में कितने होंगे हम अंदाजा लगा सकते है | हमारे देश में अंग दान को ले कर वैसे ही कई भ्रान्तिया है अंग दान करने वालो की संख्या बहुत ही कम है उस पर से यदि जो देने के बारे में सोचे  उसके साथ इस तरह का व्यवहार हो तो वो इन्सान निराश होगा ही  दूसरों पर भी  इसका बुरा असर होगा | इस तरह की घटना को सुन कर तो कोई भी यही कहेगा की कौन इस झंझट में फसेगा | इस तरह के नेक कामों को तो और सहूलियत भरा बनना चाहिए ताकि और भी लोग प्रोत्साहित हो पर क्या कहा जाये हमारे देश की व्यवस्था को जहा पुलिस को कानून की जानकारी नहीं होती है उसे किसी काम की प्राथमिकता की समझ नहीं होती है या ये कहु की पुलिस है ही इतना असंवेदनशील की उसे किसी के जीवन और मौत से फर्क ही नहीं पड़ता है | अब इस केस के सामने आने के बाद तो लगता है की ना जाने ऐसा कितने लोगों के साथ ऐसा हुआ होगा और लोग चाह कर भी ये नेक काम नहीं कर पाये होंगे |  क्या हम कभी भी सरकारी काम में कागजी कार्यवाही के जंजाल से बाहर आ पाएंगे | क्या कभी भी और किसी भी मामले पर हमारी ये देशी व्यवस्था सुधरेगी या थोड़ी भी गंभीरता दिखायेगी |


 

28 comments:

  1. बहुत ही शर्मनाक हादसा, अब सरकार को चाहिये कि इन तीन लोगो को हत्या करने के जुर्म मै सजा दिलवाये, ओर उस अस्पताल की मान्यता रद्द कए दे, क्योकि सब से बदी ग्लती उसी अस्पताल ने की है, इस दुखद घटना ने बहुत दुखी कर दिया, धन्यवाद

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  2. शर्मनाक और अफसोसजनक है.... अच्छे मुद्दे पर बात की आपने....

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  3. इसका एक आयाम और है. कई अस्पताल पैसे बनाने के चक्कर में व्यक्ति के मस्तिष्क की मृत्यु के बाद भी उसे मृत घोषित नहीं करते जबकि वे क्लीनिकली मृत होते हैं.

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  4. mere bahan ki maut pichhle dino kidney failure ke karan hua.........hame pata hai, har ang anmol hota hai............uff!! sach me ye amanviya ghatna kab band hogi........:(

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  5. लोग असंवेदनशील हैं। कोई मरे- जिए उन्हें फरक नहीं पड़ता । अगर अस्पताल प्रशासन सही रुख रखे तो ऐसे हादसों को टाला जा सकता है। पुलिस से अपेक्षाएं कम हैं।

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  6. मैने भी यह खबर पढ़ी....और उस महिला के हिम्मत की दाद दी...जिसने अपना दुख किनारे रख..इतने लोगों के भले का सोचा.....पर अंजाम वही, दुखद...पुलिस की असंवेदनशीलता कभी कभी सीमा पार कर जाती है...
    हाल में ही एक व्यक्ति का शव पूरे दिन...स्काई वाक पर पड़ा रहा...और रेलवे पुलिस और स्थानीय पुलिस में बहस होती रही कि यह मेरे क्षेत्र में नहीं..यह मेरे क्षेत्र में नहीं

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  7. so sad rest i am numb no words to say anything

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  8. बहुत ही दुखद घटना है ऐसी घटनाए सुन कर वास्तव में खीज आती है और पता चल जाता है कि कोई इन्सान कितना असंवेदनशील हो सकता है |

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  9. शर्मनाक और अफ़सोसजनक घटना है
    क्या कहा जाए?? ... शब्द भी कम पड़ेंगे इस पर तो

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  10. क्या कहें इस नाकारा व्यवस्था को.... बेहद अफसोसजनक ....

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  11. वास्तव में शर्मनाक और अफ़सोसजनक घटना है!

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  12. देश की इस हालत पर चिंता होती है ऐसे अफसोस करने वाली घटनाओ की एक लम्बी सूची है उसमे एक और जुड़ गई |

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  13. प्रशासनिक तन्त्र की असंवेदनशीलता का शर्मनाक उदाहरण।वो भी तब जबकि यह महिला कोई मदद माँग नहीं रही थी बल्कि मदद करना चाहती थी ताकि कुछ और जिन्दगियाँ बचाई जा सके।

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  14. सामाजिक व्यवहार और असल पुलिसिया कार्य के कसौटी पे अगर इस देश के पुलिस और उसके अधिकारीयों को जांचा और परखा जाय तो 80 प्रतिशत पुलिस वाले उच्च अधिकारी सहित झाड़ू लगाने के योग्य पाए जायेंगे | लेकिन इस देश में भर्ती की प्रक्रिया और लोकसेवा आयोगों की चयन प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और अनैतिकता इस कदर व्याप्त है की ज्यादातर योग्य लोग जो सही मायने में पुलिस के योग्य है बेरोजगारी की मार झेल रहें हैं और चोर उच्चके पुलिस बन देश और व्यवस्था को चौपट कर रहे हैं ,पुलिस के एक-एक कर्मचारियों की हर साल सामाजिक व्यवहार की जाँच होनी चाहिए और योग्य पाए जाने पर ही उनको आगे सेवा में लिया जाना चाहिए ,अयोग्य पुलिस वाले से अच्छा है की पुलिस हो ही नहीं ...लोग अपनी रक्षा खुद कर लेंगे ...

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  15. माफ़ करें, केवल आपकी पोस्ट की कुछ पंक्तियाँ पढ़कर ही कमेंट कर रहा हूँ...
    संभव है कुछ लोगों को मेरी यह बात बुरी लगे पर मुझे इस बात पर बहुत हद तक विश्वास होने लगा है की भारत में एक तरह का जंगल राज ही चल रहा है.

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  16. क्या कहें इस नाकारा व्यवस्था को.... बेहद अफसोसजनक ....

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  17. शर्मनाक और अफसोसजनक....

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  18. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  19. बहुत ही अफसोसजनक हादसा है.. भारत में किसी भी चीज के लिए काफी औपचारिकताएं हैं और उसपे से अफसरों के चोचले..
    मेरे ब्लॉग इस बार मेरी रचना ...

    स्त्री

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  20. देश की पुलिस न सिर्फ़ अंसवेदनशील बल्कि निहायत ही गैरजिम्मेदार और अमानवीय है ..इसे आम आदमी ही महसूस कर सकता है जैसा कि आपने हमने किया ....मगर मुझे अफ़सोस देश के इस मीडिया पर भी होता है जो ऐसे समाचारों को क्यों नहीं एक बडे मुद्दे के रूप में जनता और देश के सामने रखता है ...उसे मुन्नी की बदनामी दिखाने से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती ..हम दोनों पति पत्नि ने अपने नेत्र दान किए हुए हैं ..पता नहीं ऐसी स्थिति में ..हमारे पीछे किन्हें पुलिस के चक्कर लगाने होंगे ....बहुत ही सारगर्भित और सार्थक पोस्ट

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  21. यों छोटी खबर, यानि जिस पर ध्‍यान नहीं जाता, लेकिन सचमुच दहला देने वाली.

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  22. हृदय को झंझ्कोर कर रख दिया आपने तो.

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  23. मार्मिक अफसोसजनक् और शर्मनाक।

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  24. घटना पढ़कर अफ़सोस होना स्वाभाविक है.इंसान की भौतिकवादी प्रवृत्ति के कारण मानवतावाद दम तोड़ने की कगार पर है. लोग संवेदनहीन हो गए हैं.ऐसी अनगिनत घटनाएँ रोज़ घट रहीं हैं.कहते हैं कि चक्र एक न एक दिन पूरा होगा. दम तोड़ता हुआ मानवतावाद फिर जी उठेगा परन्तु कब और कैसे ये किसी को नहीं मालूम. जिस देश में नेता भ्रष्ट हों वहां पुलिस वाले क्या पूरा लोकतान्त्रिक ढांचा चरमरा जाना स्वाभाविक है.
    बस अल्लाह मालिक है.

    नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.

    समय निकालकर मेरा ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com भी कृपया देखें.

    कुँवर कुसुमेश

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  25. अगर आपको चर्चा आगे बढ़ाने का विचार हो तो हम भी कुछ १०० २०० प्रश्न तैयार कर लेते हैं ...... पहले ही बता दें तो बड़ी कृपा होगी आपकी

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