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कुछ और कहने से पहले अब ये साफ कर दू की इससे बाद लिखा गया लेख इस आम महिला के आम से विचार है कोई विचारधारा नहीं जो उसने अपने अनुभव और अपने आस पास घट रहे घटनाओं को देख कर बनाया है | ये कही से भी कोई बौद्धिक बहस या विचार नहीं है बस हल्की- फुल्की सी बाते है | अत: ज्यादा की उम्मीद रखने वाले यही से लौट जाये |
कुछ लोग भारतीय मुसलमानों पर कुछ सवाल उठाते है कुछ जानबूझ कर और कुछ अनजाने में उनमें से कुछ सवाल और मेरे निजी विचार |
१- क्या भारत के सारे मुसलमान आतंकवादी है ?
नहीं जी ऐसा तो बिल्कुल नहीं है |
दुनिया में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए लोगो को धर्म ,जाती ,समुदाय ,भाषा ,विचार धारा और क्षेत्र के आधार पर उलटी सीधी बाते कह कर उन्हें भड़काते है और इन सब का असर सिर्फ मुस्लिमों पर नहीं होता है सभी पर होता है तभी तो हमारा पूरा देश बटा हुआ है |
२-क्या भारत के सारे मुसलमान पाकिस्तानपरस्त है ?
नहीं जी ऐसा नहीं है |
शायद कुछ लोगों का जुड़ाव है उससे धर्म के आधार पर है लेकिन ये जुड़ाव बिल्कुल वैसे ही जैसे हमारे देश में कुछ लोगों का जुड़ाव हिन्दू राष्ट्र नेपाल के प्रति था और उसके धर्म निरपेक्ष बनने पर लोगों को दुख हुआ |
३-मुस्लिम गद्दार होते है उनमें भारत से प्रेम की कोई भावना नहीं होती है |
देश प्रेमी और देश के लिए कुछ करने वाले मुसलमानों का नाम लिखना शुरू करुँगी तो लिस्ट तो बड़ी लंबी बन जाएगी सबका नाम क्या लू पाठक तो जानते ही है |
रही बात गद्दारी करने की भावना की तो इस पर किसी एक धर्म का एकाधिकार नहीं है कोई माधुरी डबल एजेंट बन जाती है तो कोई अमेरिका को सारी ख़ुफ़िया सूचना दे कर वहा का नागरिक बन जाता है क्या कर सकते है ये तो व्यक्ति का अपना चरित्र है |
४-राजनीतिक दलों के तुष्टिकरण की नीति |
मुझे भी इससे बड़ी नफरत है गुस्सा आता है राजनीतिक दलों पर
लेकिन इसमे मुस्लिमों का क्या दोष वो हमेशा से राजनीतिक दलों के लिए एक वोट बैंक की राजनीति से ज्यादा कुछ समझे ही नहीं गये जैसे दलितों को समझा जाता है | दोनों के लिए हर सरकारों ने काफी कुछ किया पर उनकी स्थिति वही की वही रही जितने जतन उतने पतन | काश की सभी पार्टियाँ उन्हें सिर्फ भारत का एक आम आदमी समझती तो शायद उनकी स्थिति इतनी बुरी नहीं होती |
५-ये बहुत ही कट्टर और धर्म के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है इनके मुकाबले हिन्दू धर्म काफी उदार है |
५-ये बहुत ही कट्टर और धर्म के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते है इनके मुकाबले हिन्दू धर्म काफी उदार है |
कभी कभी और कही कही ये सच दिखता है पर
मुझे लगता है कि अपने प्रारंभिक समय में एक हिन्दू भी शायद उतना ही कट्टर और धर्म भीरु होता रहा होगा जितना की आज कोई मुस्लिम है पर समय के साथ हमने धर्म को अपने रोज मर्रा के जीवन से जोड़ना कम कर दिया और एक सुविधाजनक आधुनिक जीवन अपना लिया फिर भी आज भी कुछ कट्टरवादी हिन्दू मिल जायेंगे | तो उन्हें अभी सब कुछ समझने और थोड़ा और आधुनिक सोच बनने के लिए और समय दिया जाना चाहिए |दोनों धर्मों की तुलना करना तो वैसे ही लगता है जैसे ये कहना कि अमेरिका के मुकाबले भारत ने कितनी कम तरक्की की है भाई ये तुलना करते समय ये बताओ की अमेरिका को आज़ाद हुए कितना समय हुआ है और भारत को आज़ाद हुए कितना समय हुआ है | आज ६३ सालों में हमने जितनी तरक्की की है मुझे नहीं लगता है की अमेरिका भी अपने आज़ादी के ६३ सालों के बाद इतनी तरक्की की होगी | इसलिए ये तुलना व्यर्थ है थोड़ा समय दीजिये | अब इस उदाहरण का शाब्दिक अर्थ ना निकालिएगा मूल बात को समझिये दोनों धर्मों को आयु में काफी फर्क है |( सिर्फ आयु की बात हो रही है परिपक्वता की नहीं )
६-मुस्लिम अनपढ़ गवार गरीब सिर्फ धर्म की बात करने वाला मासाहारी हिंसक होता है, मुस्लिमों की ये छवि |
मुस्लिमों की एक छवि ज़बरदस्ती बना दी गई है जैसे दुनिया में भारत की छवि एक सपेरो के देश के रूप में बना दी गई थी या है | बचपन से अब तक कई सहेलियाँ मुस्लिम रही है और कई जान पहचान वाले भी उनमें से कुछ के घर के पुराने लोग तो परंपरा वादी मुस्लिम थे पर वो और उनके जेनरेशन के लोग नहीं थे ना तो वो बुर्क़ा पहनती थी और ना हर बात में धर्म को सामने लाती थी उनकी सोच हमारी तरह ही सामान्य थी | दो मुस्लिम दोस्त तो शुद्ध शाकाहारी थी जब मैं घर पर ये बताती थी तो लोग विश्वास नहीं करते थे और यहाँ मुंबई में कई मुस्लिम परिवारों के करीब से जानती हुं वो तो किसी भी आम भारतीय परिवार से ज्यादा आधुनिक सोच और रहन सहन वाले है | जैसे जैसे दूसरे धर्म के लोगों की तरह उनमें भी शिक्षा का प्रसार पढ़ रहा है उनकी भी सोच बदल रही है | भारत ने अपनी सपेरो वाली छवि कुछ हद तक तोड़ दी है वो भी अपनी ये छवि धीरे धीरे तोड़ देंगे |
७- मुस्लिमों से जुड़ीं नकारात्मक ख़बरे ही क्यों आती है |
इस छवि और नकारात्मक खबरों के लिए मीडिया भी कम दोषी नहीं है किसी मुल्ला मौलवी ने दिया कोई फ़िजूल का फतवा और आने लगी ब्रेकिंग न्यूज़ हो सकता है की एक आम मुस्लिम इन फतवों को कोई भाव ना देता हो पर न्यूज़ चैनलों में इसे पूरा भाव मिलता है | मुझे याद है की एक बार देव बंद ने एक बड़ी रैली की थी और युवाओं को आतंकवाद से नही जुड़ने को कहा था साथ ही बताया था की ये कैसे इस्लाम के खिलाफ है और युवा इनके झासे में ना आये | ये खबर एक बार सिर्फ एक टीवी चैनल पर देखी थी किसी और पर नहीं देखी और ना अखबार में पढ़ी | शायद ये खबर और वो रैली चैनल वालो को टी आर पी बढ़ाने वाली नहीं लगी होगी इसलिए किसी ने भी उसे ठीक से कवर करने की जरुरत नहीं समझी | अभी हाल ही में देव बंद ने कश्मीर और कश्मीरी मुस्लिमों पर भी एक बयान भारत के पक्ष में दिया था उसकी खबर भी कही नहीं दिखी मुझे भी ये खबर तब पता चली जब अख़बार ने इस पर सम्पादकीय लिखा गया |
८- सरकार तो इतनी सुविधाएँ दे रही है पर इनका कुछ होता ही नहीं |
इस मामले में ज्यादा गुस्सा मुस्लिम बुद्धिजीवियों और पढ़े लिखे लोगों पर आता है | क्यों नहीं वो आगे आ कर अपने समुदाय की तरक्की के लिए कुछ करते है | मुस्लिम गरीब है अन पढ़ है उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है उन पर अत्याचार हो रहा है जैसी बातों पर वो चीखना चिल्लाना तो खूब जानते है पर आगे बढ़ कर इनके विकास के लिए कुछ करते नहीं है | मैंने देखा है मुस्लिम और दलितों दोनों ही वर्गों के कुछ लोग सरकार द्वारा दिये जा रहे आरक्षण, सुविधाओं और पैसे का उपयोग खुद की तरक्की के लिए करते है और अपने समुदाय को भूल जाते है असल में जिसके विकास के लिए उन्हें ये सारी चीज़े दी जाती है | बस खाना पूर्ति के लिए उनकी बदहाली पर धडियाली आसु बहा कर अपना काम ख़त्म कर लेते है |
९- मुस्लिम महिलाओ की बड़ी बुरी स्थिति है |
बस बस अब इस मामले में मैं अपना मुँह बंद ही रखु तो अच्छा है वरना मुस्लिमों पर लिखा ये लेख अभी नारीवादी बन जायेगा | इतना ही कहूँगी की उन पर अपनी एक उँगली उठाने वाले जरा ध्यान से देखे की आपकी ही तीन उंगलिया आप की ही ओर इशारा कर रही है जरा अपने घर की महिलाओ की स्थिति देख लीजिये फिर किसी और की बात कीजियेगा | उन्हें किसी की सहानुभूति की जरुरत नहीं है कम से कम उनसे तो बिल्कुल ही नहीं जो खुद ये गलत काम करते है | वो अपनी लड़ाई खुद लड़ भी लेंगी और उसमे जीत भी सकती है |
इन सब बातों के बाद भी ये कहूँगी की ऐसा नहीं है की कुछ समस्याएँ है ही नहीं , हा है ओर बहुत सारी है पर जरुरत इस बात की है की उनके धर्म की तरफ उँगली उठा कर ओर हर जगह मीन मेख निकाल कर बार बार उन पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर उन को हतोत्साहित करने के बजाये उन समस्याओं को सुलझाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें सिर्फ मुस्लिम समझने के बजाये एक आम आदमी समझना चाहिए |
इस लेख को लिखने की प्रेरणा देने के लिए खास तौर पर मैं एन डी टीवी के बिहार के उस संवाददाता को धन्यवाद दुँगी जिसे आज सुबह बिहार में हो रहे मतदान पर रिपोर्टिंग करते हुए देखा | वोट दे कर आये तीन चार लोगों से बात करते हुए उसने एक से पूछा कि आप ने किस मुद्दे पर वोट दिया उसने कहा विकास दूसरे ने कहा विकास, उसे जो जवाब चाहिए था नहीं मिल रहा था उसने सवाल बदल और तीसरे से पूछा की आप किस मुद्दे पर वोट दे रहे है जाती या धर्म तीसरे ने भी कहा ये दोनों नहीं विकास पर दिया है अब चौथे से सीधे पूछा की आप ने किसको वोट दिया है उसने कहा ये नहीं बताऊंगा, तो रिपोर्टर ने तीसरे से पूछे सवाल को दोहरा दिया तो उन्होंने कहा की मैं तो जिसको मान लिया तो मान लिया उसी को वोट देता हुं | तो रिपोर्टर कहता है की आप मुस्लिम वोटर है आपने किस आधार पर कांग्रेस को वोट किया अब बताइये उसने कब कहा की वो मुस्लिम है और उसने कांग्रेस को वोट दिया है | | मतलब की बाकी लोग सिर्फ वोटर थे और वो मुस्लिम वोटर उनके हिसाब से वो अलग है और उसके सोचने का तरीका अलग है वो केवल धर्म के आधार पर वोट करता है और जब उसने उनके मन का नहीं बोला तो वो उसके मुँह में ज़बरदस्ती अपने शब्द भरने की कोशिश कर रहे थे | बोलिये ये हमारे पढ़े लिखे तबके की सोच है बाकियों को क्या कहु |
हो सकता है आप के विचार मुझसे काफी अलग हो आप के हर आलोचनात्मक टिप्पणी और सवाल का स्वागत है |
९- मुस्लिम महिलाओ की बड़ी बुरी स्थिति है |
बस बस अब इस मामले में मैं अपना मुँह बंद ही रखु तो अच्छा है वरना मुस्लिमों पर लिखा ये लेख अभी नारीवादी बन जायेगा | इतना ही कहूँगी की उन पर अपनी एक उँगली उठाने वाले जरा ध्यान से देखे की आपकी ही तीन उंगलिया आप की ही ओर इशारा कर रही है जरा अपने घर की महिलाओ की स्थिति देख लीजिये फिर किसी और की बात कीजियेगा | उन्हें किसी की सहानुभूति की जरुरत नहीं है कम से कम उनसे तो बिल्कुल ही नहीं जो खुद ये गलत काम करते है | वो अपनी लड़ाई खुद लड़ भी लेंगी और उसमे जीत भी सकती है |
इन सब बातों के बाद भी ये कहूँगी की ऐसा नहीं है की कुछ समस्याएँ है ही नहीं , हा है ओर बहुत सारी है पर जरुरत इस बात की है की उनके धर्म की तरफ उँगली उठा कर ओर हर जगह मीन मेख निकाल कर बार बार उन पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर उन को हतोत्साहित करने के बजाये उन समस्याओं को सुलझाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें सिर्फ मुस्लिम समझने के बजाये एक आम आदमी समझना चाहिए |
इस लेख को लिखने की प्रेरणा देने के लिए खास तौर पर मैं एन डी टीवी के बिहार के उस संवाददाता को धन्यवाद दुँगी जिसे आज सुबह बिहार में हो रहे मतदान पर रिपोर्टिंग करते हुए देखा | वोट दे कर आये तीन चार लोगों से बात करते हुए उसने एक से पूछा कि आप ने किस मुद्दे पर वोट दिया उसने कहा विकास दूसरे ने कहा विकास, उसे जो जवाब चाहिए था नहीं मिल रहा था उसने सवाल बदल और तीसरे से पूछा की आप किस मुद्दे पर वोट दे रहे है जाती या धर्म तीसरे ने भी कहा ये दोनों नहीं विकास पर दिया है अब चौथे से सीधे पूछा की आप ने किसको वोट दिया है उसने कहा ये नहीं बताऊंगा, तो रिपोर्टर ने तीसरे से पूछे सवाल को दोहरा दिया तो उन्होंने कहा की मैं तो जिसको मान लिया तो मान लिया उसी को वोट देता हुं | तो रिपोर्टर कहता है की आप मुस्लिम वोटर है आपने किस आधार पर कांग्रेस को वोट किया अब बताइये उसने कब कहा की वो मुस्लिम है और उसने कांग्रेस को वोट दिया है | | मतलब की बाकी लोग सिर्फ वोटर थे और वो मुस्लिम वोटर उनके हिसाब से वो अलग है और उसके सोचने का तरीका अलग है वो केवल धर्म के आधार पर वोट करता है और जब उसने उनके मन का नहीं बोला तो वो उसके मुँह में ज़बरदस्ती अपने शब्द भरने की कोशिश कर रहे थे | बोलिये ये हमारे पढ़े लिखे तबके की सोच है बाकियों को क्या कहु |
हो सकता है आप के विचार मुझसे काफी अलग हो आप के हर आलोचनात्मक टिप्पणी और सवाल का स्वागत है |
पोस्ट में अलग तरह की बात है , अलग अन्दाज है
ReplyDeleteपढकर अलग तरह की खुशी हुई
अच्छा लगा
धन्यवाद
nariyon baare men bhi likh hi deti to achha Tamacha hota
ReplyDeleteniceeeeeeeeeeeeee poooooooooooost
ReplyDeleteआपकी पिछली पोस्ट पर सोचता था कुछ लिखुंगा, सोचता ही रह गया
ReplyDeleteआज भी काफी अच्छा लिखा है
लेकिन इधर इस पोस्ट पर चुप्पी मार जाऐंगे
मेरा प्रयास करूंगा ऐसा न हो
nice post
ReplyDeleteहल्के फ़ुल्के से भ्रांतिया तोडने का आपका प्रयास अच्छा लगा।
ReplyDeleteउत्तम
ReplyDeleteमेरा देश महान
ReplyDeleteटिप्पणी देने के लिए सभी का धन्यवाद |
ReplyDelete@ पहली बात बेनामी जी मैंने ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है की आप को बेनामी बन कर या किसी और तरीके से यहाँ टिप्पणी करना पड़े | दूसरी बात मुझे नहीं लगता है कि आप कोई गंम्भीर पाठक है और अच्छी पोस्ट की प्रसंसा कर रहे है मुझे लगता है कि आप जान बुझ कर मेरी टिप्पणियों की संख्या बढ़ाने का प्रयास कर रहे है शायद आप मेरे पोस्ट को जल्द से जल्द चिटठा जगत में ऊपर लाना चाहते है ताकि ये सब पढ़ सके तो इस के लिए आप को मै धन्यवाद नहीं कहने वाली हु आप ये करना तुरंत बंद कीजिये | और एक बात और की ये लेख किसी के विरोध में नहीं लिखा गया है और ना ही किसी को तमाचा मारने के लिए, जिन सवालो की बात मै कर रही हु वो किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं उठाये जाते है इसलिए खुश भी मत हो जाइये | आप के ऐसा करने से सभी को यही लगेगा की मै खुद ये कर रही हु और लोग पोस्ट को गंभीरता से नहीं लेगे | तो निवेदन है की ऐसा ना करे मै सभी टिप्पणी हटा दुँगी |
Excellent post!
ReplyDeleteमेरा देश महान
ReplyDeletegood work must have done a lot of research to write such posts
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पर टिप्पणियों को देख कर तो यही लगता है की ज्यादातर लोग इसे मुद्दा नहीं मानते, जिसे मैं अच्छा संकेत ही समझता हूँ, तमाचा तमाचे खाने लायक आदमी पर ही पड़ना चाहिए, पूरी तरह निरपेक्ष रूप से, वो प्यार से समझ जाए तो और भी बेहतर ... बाकी मौज मस्ती के लिए किसने किसको मारा, देखो क्या मारा , वाह मज़ा आ गया , ... वो सब बातें अपनी जगह ठीक ही है ... अब मुझे ही देख लीजिये, मुझे कुछ भी टिपण्णी करने लायक नहीं लगा, फिर भी मैंने ३-४ लाईनें तो जमा ही दी ...
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
कुछ ज्यादा ही सकारात्मक पोस्ट नहीं हो गई | फिर बहस भी नहीं करने वाली हो तो कोई आलोचना और सवाल कैसे करे |
ReplyDelete@रचना जी
ReplyDeleteमैंने पहले ही कहा है की ये मेरे निजी अनुभव पर आधारित ही किताबे पढ़ना रिसर्च करना मेरे बस की बात नहीं है | ब्लॉग मेरे लिए अपने विचार रखने का माध्यम लगता है और मै वही करती हु |
@ मजाल जी
आप सही कह रहे है की लोगो का इसे मुद्दा नहीं मानना एक अच्छा लक्षण है लेकिन कही ऐसा तो नहीं की लोगो के विचार कुछ ज्यादा ही आलोचनात्मक है और वो उसे कहने से बच रहे है | मै कब से एक आलोचनात्मक टिपण्णी का इंतजार कर रही हु ताकि पता चले की कोई इस पोस्ट को अच्छे से समझ रहा हैकि नहीं | चार लाइनों की इस टिपण्णी के लिए धन्यवाद किसी ने कुछ तो कहा |
@देबू जी
पोस्ट पूरी तरह से सकरात्मक नहीं है बस नकारात्मकता खोजने की नजर चाहिए | बहस करने से फायदा क्या है और मेरे विचारो पर उठे सवालो का जवाब जरुर दूंगी |
भ्रान्ति उन्मूलन का आपका ये प्रयास काबिलेतारीफ है....
ReplyDeleteहालाँकि बहुत सी भ्रान्तियाँ हैं, लेकिन कहीं पर्दे के पीछे कुछ सच्चाई भी नजर आती है....
देखिए, समूचे विश्व में इस्लाम ही अकेला ऎसा धर्म है जो राष्ट्रीयता से अलग हटकर सोचता है.ये दुनिया भर के स्वधर्मियों के भाई-भाई होने पर जोर देता है.सार्वभौम-इस्लामवाद का सिद्धान्त, जिसका अर्थ है संसार भर के मुस्लिम राष्ट्रों अथवा मुसलमानों के बीच मौखिक संन्धि अथवा सहयोग अथवा एकता....ये सिद्धान्त ही इस्लाम को राष्ट्रीयता की धारा में नहीं बहने देता, उसकी आस्था, उसके विश्वास को उसकी जन्मभूमी, उसके राष्ट्र से अलग निज धर्म पर केन्द्रित कर देता है....इस्लाम के साथ ये सबसे बडी कमी है....
दूसरे अपने देश की बात की जए तो यहाँ जो धर्म और राजनीति का आपसी घालमेल हुआ पडा है, वो भी इसके लिए कम दोषी नहीं... जब तक धर्म का लोगों के सामाजिक या सार्वजनिक जीवन से सम्बन्ध विच्छेद नहीं होगा, तब तक धर्म, सम्प्रदायों के बीच ऎसी ही विसंगतियाँ जन्म लेती रहेंगी. हिन्दु मुस्लिम को कोसता रहेगा और मुस्लिम हिन्दू में कमियाँ निकालता रहेगा. एक दूसरे पर दोषारोपण चलता ही रहेगा....
taliaan. bharat ka koi bhee muslim , uske masael pe pakistaan ki dhakhalandazi pasand nahin kerta.
ReplyDeleteईश्वर इस सारे ब्रह्माण्ड का राजा है। इन्सानों को उसी ने पैदा किया और उन्हें राज्य भी दिया और शक्ति भी दी। सत्य और न्याय की चेतना उनके अंतःकरण में पैवस्त कर दी। किसी को उसने थोड़ी ज़मीन पर अधिकार दिया और किसी को ज़्यादा ज़मीन पर। एक परिवार भी एक पूरा राज्य होता है और सारा राज्य भी एक ही परिवार होता है। ‘रामनीति‘ यही है। जब तक राजनीति रामनीति के अधीन रहती है, राज्य रामराज्य बना रहता है और जब वह रामनीति से अपना दामन छुड़ा लेती है तो वह रावणनीति बन जाती है।
ReplyDeleteअरे हटाईये ..आप भी कहाँ इन सभी चीजों के पीछे पड़ गयीं...
ReplyDeleteवैसे भी बात बहुमत की है यानी की majority यानी कितने प्रतिशत मुसलमान ऐसे हैं...अब बात बदल रही है और पत्रकारों का तो काम ही यही है...
हमारे देश में २४ आवर्स कॉमेडी चैनल्स चल रहे हैं..
हाहाहा...
@ वत्स जी
ReplyDeleteइस टिप्पणी के लिए धन्यवाद | आप की दोनों बातो से सहमत हु अपने लेख में मैंने भी दोनों का जिक्र किया है |
@ जमाल जी
अपनी पोस्ट के प्रचार के साथ ही कुछ मेरी पोस्ट पर टिप्पणी कर जाते तो लगता की आप ने पोस्ट पढ़ी भी है |
.
ReplyDelete.
.
अंशुमाला जी,
आलेख अच्छा है...
पर मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहूँगा आज... न जाने क्यों मेरा मन सा कर रहा है...
हमारे एक महापुरूष जापान गये... एक जापानी बच्चे से मिले... बातों बातों में उस बच्चे से पूछा कौन से धर्म को मानते हो... बच्चा बोला 'बौद्ध'... फिर पूछे अगर मैं किसी जापानी 'बौद्ध' को तुम्हारे सामने गाली दूँ तो क्या करोगे... बच्चा बोला " तुमको उससे दुगुनी गालियाँ दूँगा"... महापुरूष ने फिर पूछा " अगर खुद बुद्ध को गाली दूँ ?... बच्चा बोला तब मैं तुम्हारा सर काट दूँगा... फिर महापु्रूष ने पूछा " अगर खुद बुद्ध बौद्धों की फौज ले कर तुम्हारे देश पर चड़ाई कर दें, तो"... बच्चा बोला " अगर ऐसा हुआ,तब तो सबसे पहले खुद बुद्ध का ही सर काटूंगा"
काश मेरे देश का हर नागरिक उस जापानी बच्चे सा हो पाता...
भारत में अल्पसंख्यक तो और भी हैं... सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई, यहूदी, पारसी, बौद्ध, बोहरे आदि आदि... पर यह आलेख आपको एक धर्मविशेष के संबंध में ही लिखना पड़ा... कुछ न कुछ समस्या तो है ही... जितनी जल्दी हम पूरी इमानदारी से इसे टैकल करेंगे, उतना ही अच्छा होगा हमारे देश के लिये...
क्षमा करेंगी, पूरा प्रयत्न करने के बाद भी पोलिटिकली करेक्ट शायद नहीं रह पाया हूँ...
आभार!
...
१- क्या भारत के सारे मुसलमान आतंकवादी है ?
ReplyDeleteइस बात का जवाब तो बाबरी मस्जिद के खिलाफ किये गए ग़लत फैसले के बावजूद मुसलमानों की ख़ामोशी है. अगर इसका उल्टा होता तो शायद आज हिंदुस्तान जल रहा होता. उच्च न्यायालय के एक जज के द्वारा की गयी टिप्पणी का भावार्थ भी यही है.
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम.
वह क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता.
pt 1,2 and 3 आपसे सहमत।
ReplyDelete4 = असहमत - राजनैतिक पार्टियों पर क्यों गुस्सा आये? क्यों एक समुदाय खुद को एक वोटबैंक के रूप में प्रोजैक्ट होने देता है?
5, 6 = आमीन।
7, 8 = आपसे दो सौ प्रतिशत सहमत।
9 = नो कमेंट।
@ ....... उन्हें सिर्फ मुस्लिम समझने के बजाये एक आम आदमी समझना चाहिए - ये बात मुस्लिम समुदाय भी समझ ले तो ज्यादा कारगर होगा ये।
और आपने जो लिखा कि एक आम महिला के विचार हैं, तो इसीलिये हम कमेंट कर रहे हैं नहीं तो खास लोग तो बहुत से विश्लेषण करते ही रहते हैं, बिना राशन के भाषण वाले।
उस्तादजी नहीं दिखे आपके यहां?
ज्यादा भारी अल्फाजों का इस्तेमाल नहीं करूंगा. क्यूंकि आपने बेबाक तरीके से अपनी बात राखी है. जो आपने लिखा है वो न तो अच्छी पोस्ट है, न ही उत्तम जैसा कुछ है , नहीं तारीफ के काबिल है. बल्कि आपने कुछ ऐसे सवालातों का जवाब देना चाहा है जिन सवालों के आधार बनाकर ही तरह तरह कि साजिशें रची गयीं है आजतक. आपने हर उस इंसान को शीशा दिखाया है, उनमे मैं भी शामिल हूँ, जो हालातों को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और चीज़ों को देखने के लिए आज भी सदियों पुराने चश्मे का इस्तेमाल करते हैं. दिली ख़ुशी हुई कि कि देश के एक और हिस्से से कुछ मन की बात जानने को मिली. शुक्रिया
ReplyDeleteयह विडियो पहले भी देखा था..बहुत अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपने आम मुसलमान की बात की है. आपसे सहमत हूँ. दुनिया भर में आम आदमी अच्छा ही होता है. उसी से दुनिया चलती है.
ReplyDelete.
ReplyDeleteकाश कोई मुस्लिम भी आपकी तरह उदार होकर , हिन्दुओं पर भी इतनी प्यारी पोस्ट लिखता।
.
प्रश्न न. २ के उत्तर में एक बात और भी है, कि अधिकतर मुस्लिम के रिश्तेदार पकिस्तान में हैं, इसलिए भी पाकिस्तान के साथ थोडा-बहुत जुड़ाव होता ही है. अक्सर अपनों का नुक्सान अपना लगता भी है. कुछ लोग ज़बरदस्ती मुसलमानों को पाकिस्तान के साथ जोड़ने के प्रयासों भारत की जीत को भारत की जीत ना कह कर हिन्दुओं की जीत के रूप में ज़ाहिर करने जैसे छोटे-छोटे कारणों के कारण भी ना चाहते हुए भी पाक्स्तान के साथ ना सही लेकिन उसकी टीम के साथ अवश्य ही जुड़ जाते हैं.
ReplyDeleteजहाँ तक प्रश्न नो., ५ की बात है तो धर्म के प्रति अत्यधिक लगाव से भी किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. हमारे गाँव में अक्सर हिन्दू-मुस्लिम बहुत अधिक धार्मिक थे, लेकिन आपसी लगाव भी उतना ही अधिक था.
एक बहुत ही बढ़िया लेख के लिए बधाई!
ReplyDeleteमैं आपकी बहुत सी बातों से सहमत हूँ पर प्रश्न ५ पर अपक्से सहमत नहीं हूँ. मेरी नज़र में धार्मिक कट्टरता कोई अपराध नहीं है. बहुत से धर्मों में कट्टर लोग हैं. मैं खुद ब्रह्मण परिवावर से हूँ पर हमारी धार्मिक कट्टरता हमें आतंकवाद कि ओर नहं धकेलती. बहुत से धर्म ऐसे हैं जिन्हें अत्याचार का सामना करना पड़ा और वहां भी धार्मिक कट्टरता हैं पर विश्व सत्रार पर आतंकवाद में उनका योगदान लचर है. इस्लामिक आतंकवाद का झंडा सबसे ऊँचा है. आप यहूदियों को ही लें . क्या उनमे धार्मिक कट्टरता नहीं है. क्या विश्व भर में उन्हें नहीं सताया गया पर विश्स्व के अलग अलग हिस्सों में उनके कितने आतंकवादी संगठन हैं. आप हिन्दू धर्म में निहित मूल बातों पर जाएँ तो आपको एहसास होगा कि हमारी धार्मिक कट्टरता धर्म के नियमों को लेकर हो सकती है पर दूसरों को काफ़िर समझ कर उन्हें लुट लेने कि शिक्षा हमारा धर्म नहीं देता. इस धर्म में प्रकृति कि हर चीज ईश्वर का ही एक रूप हैं अतः पूजनीय है. इस्लाम में सिर्फ कुरान ही अंतिम सत्य है जो और किसी चिंतन को बढावा नहीं देता. मैं समझता हूँ कि बुराई धार्मिक कट्टर में नहीं बल्कि धर्म में होती है.
ReplyDelete@ प्रवीण जी
ReplyDeleteये ब्लॉग जगत है यहाँ पे किसी को भी पोलिटिकली करेक्ट होने की मुझे तो कोई जरुरत नहीं लगती है ये माध्यम ही ऐसा है जहा पर हम खुल कर अपने विचार किसी भी विषय पर रख सकते है और यदि हम ऐसा ना कर सके तो ये भी दूसरे माध्यमों की तरह बेकार है |
आप की बात से बिल्कुल सहमत हुं हर इन्सान को पहले अपने राष्ट्र के बारे में सोचना चाहिए | इस बात से भी सहमत हुं की की मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग राष्ट्र से पहले धर्म लाता है | मैं आप को अपनी बात बताती हुं मैं एक सामान्य धार्मिक परिवार से हुं जब होस संभाला तो सभी को ईश्वर पर विश्वास करते देखा और घर के पुरुष और बच्चों को नानवेज खाते, मैं भी नासमझी में वही करने लगी पर १२-१३ साल की आयु में जब मेरी समझ बढ़ी तो मुझे ये दोनों चीज़े ही गलत लगी और मैंने दोनों का छोड़ दिया | एक मुस्लिम बच्चा क्या करे जब उसे बचपन से यही बताया जाता है या वो देखता है की धर्म सबसे पहले है | वो वही सिख जाता है और करता है पर अब उनकी समझ बढ़ रही है भले रफ़्तारकम हो पर ये हो रहा है | और रही बात इन पर ही सवाल क्यों उठ रहे है तो याद दिला दू की ८४ से कुछ पहले से लेकर उसके बाद तक सिक्खों पर भी ऐसे ही सवाल उठते थे उनको भी ऐसे ही सक की नजर से देखा जाता था | पर वो दौर धीरे धीरे निकाल गया ये भी निकाल जायेगा | ये अविश्वास ९\११ के बाद ज्यादा पनपा है | मैं तो उम्मीद करती हुं की वो जल्द ही अपना भरोसा वापस पा लेंगे और ये उनके साथ ही हमारे देश के भी हित में है |
@ शरीफ खान जी
ReplyDeleteसही कहा मैं भी आप की इस बात से सहमत हुं | लोगो के सोचने का तरीका बदला है और मैं चाहूँगी ये ऐसे ही और बदलता रहे |
@ संजय जी
४- अब लोगो को डराया जाये की उनको वोट दिया तो मार डालेगे सब को देश से निकाल देंगे हमें वोट दो तभी जिंदा रह पाओगे तो बेचारा आम आदमी ( मैं तो आम आदमी ही कहूँगी ) क्या करे | आप को नहीं लगता की जहा तक वोट बैंक की बात है तो पूरा देश ही बटा पड़ा है दलित, पिछड़े ,बहुजन समाज , आदिवासी ,क्षेत्र भाषा सभी के नाम पर | फिर भी कहूँगी की आज इनके वोट पहले की तरह एक तरफ़ा नहीं पड़ते है कुछ बाते तो ये समझने लगे है कि उनका कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है | तभी तो देखिये इनके वोट पाने के लिए कैसे कुछ पार्टियाँ हर तरह के तिकड़म करने पर उतारू हो जाती है |
९- हमने भी यही कहा है |
शुक्र है कि आप ने भाषण नहीं समझा सबसे ज्यादा डर इसी बात का लग रहा था कि सब के सब यही ना कहने लगे कि अच्छा भाषण दिया |
उस्ताद जी आज कल दूसरे शागिर्दों को नंबर देने में व्यस्त है मुझे नहीं लगता है कि जल्दी वहा से छूटने वाले है |
@ मनुदीप जी , समीर जी ,भूसन जी
ReplyDeleteसभी का टिप्पणी के लिए धन्यवाद
@ दिव्या जी
पोस्ट कि तारीफ के लिए धन्यवाद| क्या पता ऐसा लिखा जा चुका हो या या लिखा जा रहा हो लेकिन वो हमारी नज़रों में ना आया हो |
@ शाह नवाज जी
२- हा ऐसा भी है कि रिश्तेदारियो की वजह से भी लोग जुड़े है | ये बात ध्यान में था पर लिखना भूल गई याद दिलाने के लिए धन्यवाद |
५- धर्म से अत्यधिक लगाव से किसी को कोई आपत्ति नहीं है पर हर बात में धर्म को बीच में लाने से लोगो को आपत्ति होती है|
अन्शुमाला जी,
ReplyDeleteबात वही है, शायद हम अलग अलग कोण से देख रहे हैं इसलिये नजरिया अलग दिखता है। मैं राजनैतिक पार्टियों को कोई क्लीनचिट नहीं दे रहा, बल्कि ये कह रहा हूँ कि किसी भी दल का अजेंडा एक ही है। इन द्लों से यह आशा करना फ़िजूल है कि वे सुधर जायेंगे और नफ़रत नहीं फ़ैलायेंगे। गुंजाईश है तो आम आदमी के सुधरने की, और ये तब संभव है जब भेड़चाल से हटकर अपने खुद का अनुभव भी प्राप्त करें। बहरहाल, धन्यवाद कि असहमति को विरोध नहीं समझतीं आप।
उस्ताद जी आयेंगे जरूर, देख लेना। हा हा हा।
@ विचार जी
ReplyDeleteचलिए आप ने लिख दिया की सभी धर्मों के लोग कट्टर होते है अच्छा किया, इस लेख में यदि मैं ये लिखती तो लोग कहते की मैं सब पर गलत इल्जाम लगा रही हुं |
मुझे लगता है की किसी धर्म या धर्म शास्त्र मे कोई बुराई नहीं होती है बुराई तो उसकी व्याख्या करने वाले पैदा करते है | वो जानबूझ कर अपने स्वार्थ के कारण धर्म और धर्म ग्रंथो की गलत और अपने हिसाब से व्याख्या करते है | एक आम आदमी को क्या पता की वेद पुराण गीता कुरान बाइबिल में क्या लिखा है और उसका क्या मतलब है | समझाने वाला कुछ भी समझा सकता है भगवान ,धर्म और धर्म ग्रंथो में विश्वास करने वाला तो उसे ही सही मान लेगा और वैसा ही आचरण करेगा | अब एक पादरी कह रहा है की मैं कुरान को जलाऊंगा या योग तो शैतानी शक्ति है | बोलिए आप क्या कहेंगे पादरी हो कर वो ऐसा कैसे कह सकता है वो अपने धर्म की गलत व्याख्या नहीं कर रहा है कुछ धर्म से अत्यधिक जुड़े लोग उसकी बात मानेंगे बाकि समझदार उसे अनसुना कर देंगे | फतवा जारी हुआ फिर भी सलमान आराम से गणेश पूजा में और उसके विसर्जन में शामिल होते है , सानिया ने फ़िजूल की बातो पर कान नहीं दिया , जाहिर इरफान सभी आज भी निकर में प्रैक्टिस करते है कोई समझदार इनकी बात नहीं सुनता है इमराना के लिए पंचायत बैठती है पर वो अपने ससुर के खिलाफ केस वापस नहीं लेती और ना उनके पास जाती है पर बेचारी गुड़िया को उनकी बात सुननी पड़ती है वो मजबूर है | एक दिन सभी इन बातो को ख़ारिज कर देंगे | और समझ जायेंगे की कोई भी धर्म और धर्म ग्रन्थ उस समय और माहौल के हिसाब से लिखा और बनाया गया था जो आज प्रसांगिग है वही मानेगे नहीं तो नहीं |
और इसराइल अपने सुरक्षा के नाम पर क्या क्या कर रहा है जाने ही दीजिये एक नई पोस्ट बन जाएगी |
@ संजय जी
ReplyDeleteऐसी असहमतियो से ही पता चलता है की पढ़ने वाले ने पोस्ट को गंभीरता से पढ़ा है और कुछ सोचा है और लिखने का कुछ फायदा हुआ की किसी ने मेरे विचारों को सीरियसली लिया नहीं तो महिलाओ वो भी आम महिलाओ के विचारों के बारे में लोगो की क्या सोच है धीरे धीरे पता चल गया है इसलिए लिखने में भी डर लगता है |
और उस्ताद जी के लिए हम इंतजार करेंगे तेरा - -- - - -
और हा आप की पिछली पोस्ट पर टिप्पणी अभी देखी है उसका भी जवाब शाम तक उसी पोस्ट पर दे दूंगी समय मिले तो पढ़ लीजियेगा |
आपके लेख से मेरी भावना मजबूत हुई है के राजनेताओं के आलावा मीडिया में भी खास तौर से एन दी टी वी ज्यादा ही मुसलमानों को उकसाने का काम करता है मुस्लिम आबादी में जो बदलाव इन दिनों आया है वह किसी से छुपा नहीं है
ReplyDeleteविचारोत्तेजक पोस्ट।
ReplyDeleteभारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
पक्षियों का प्रवास-१
aapke jajbe ko salam!!
ReplyDeletekaash ham sab sirf bhartiya ho jayen.....:)
बहुत ही सुलझे हुए तरीके से सारी बातें सामने रखी हैं....अधिकाँश लोगों की अवधारणायें ऐसी ही हैं...और वो इसलिए हैं कि उनलोगों ने कभी करीब से इस समुदाय को जानने की कोशिश नहीं की. मेरे कुछ करीबी उच्च शिक्षित ,अच्छे पद पर कार्यरत लोग है , वे भी ऐसी गलत धारणाओं के शिकार थे पर जब कुछ अच्छे मुस्लिम दोस्त बने उनके, तो उनकी सारी सोच बदल गयी.
ReplyDeleteजरूरी है कि दोनों समुदाय अधिक से अधिक एक दूसरे के संपर्क में आए, घुले-मिले, एक दूसरे के विचारण को समझें जाने तो ये गलत अवधारणायें मिट जायेंगी.
उस्ताद जी को बहुत याद किया जा रहा है यहाँ....सतीश पंचम जी की पोस्ट पर भी लोग इंतज़ार कर रहें थे...वे मेरी पोस्ट पर भी नहीं आते...मुंबई वालों से शायद दूर ही रहते हैं...:)
ReplyDelete.
ReplyDeleteCheck it out
http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.com/2010/10/blog-post_21.html
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भारत की धरती मे इंसानियत की हवा बहती है, फिर हिन्दू हों या मुसलमान सभी सबसे पहले मानवता की ही बात करते हैं। अपवाद हर जगह हैं..विवाद हर जगह है ..भड़काने वाले व नीजी स्वार्थ के लिए राजनैतिक रोटियाँ सेकने वाले भी हैं लेकिन हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति इतनी मजबूत है कि वो सभी को धता बता कर विकास के मार्ग को ही श्रेष्ठ समझती है। ताजा उदाहरण अयोध्या फैसले के बाद उभरे मजबूत भारत में देखा जा सकता है।
ReplyDelete..उजले पक्ष को ही लेखनी में दिखाना चाहिए..नकारात्मक बातों से कोई फायदा नहीं होता। इस दृष्टी से आपका यह लेख उच्च कोटि का है।
बेहतरीन विचार करने योग्य पोस्ट .मुशर्रफ साहब का चेहरा देख कर मजा आ गया.
ReplyDelete@ राजेंद्र जी
ReplyDeleteये काम तो सारी मिडिया कर रही है अलग अलग रूपों में वो नेताओ से काम थोड़े ही है |
@ राजभाषा हिंदी जी
धन्यवाद
@मुकेश जी
बहुत सारी समस्याओ का हल यही है कि हम सब बस भारतीय ही बन जाये |
@ रश्मि जी
सही कहा आपने एक दूसरे के करीब आ कर भी कई चीजो को हल किया जा सकता है ये अविश्वास कम किया जा सकता है| रश्मि जी उस्ताद जी तीन बार मेरी पोस्ट पर आ चुके है एक बार फेल कर दिया था और दो बार ठीक ठाक नंबर दिये थे आज कल में ना ही आये तो ठीक है देख रही हु सबको लड्डू बाट रहे है |
@ दिव्या जी
इनको मै एक दो बार पहले भी गलती से पढ़ चुकी हु और इसको भी गलती से पढ़ लिया था | सही कहु तो इन कामरेडो की बात तो मेरे भी पल्ले नहीं पड़ती है उनकी बाते तो सिर्फ बंगाल और केरल के लोग ही समझ पाते है | वही समस्या है साम्यवाद की गलत व्याख्या करना और इसे हर जगह और हर समय लागु करने की गलती करना |
@ सुधीर जी
आपका भी धन्यवाद
भारतिया मुसलमानो के बारे मै बस इतना ही कहुंगा कि इन लोगो का सम्मान दुनिया मे इस लिये हे क्योकि यह भारतिया हे, मैने अकसर देखा हे, युरोप अमेरिका मै मुसलमानो को ज्यादा चेक करते हे, लेकिन जब एक मुसलमान भारतिया हो तो उसे कम ही चेक करते हे, वेसे भी सभी भारतिया मुसलमान ऎसे नही कि हम इन्हे शक की नजर से देखे, कुछ खराब मुसलमानो की वजह से शरीफ़ मुसलमान भी बदनाम होते हे,बाकी भारत जितना मेरा हे उतना ही एक मुस्लिम भाई का हे, तो कोन चाहेगा अपने देश को गुलाम बनाना, दुसरो के हाथो सोंपना, इस लिये सभी मुसलिम भाई को शक की नजर से नही देखना चाहिये, आप के इस सुंदर लेख के लिये आप का धन्यवाद
ReplyDelete@अंशुमाला जी,आपका प्रयास सराहनीय है।बिना किसी पूर्वाग्रह के ही कोई ऐसा लिख सकता हैं, ये दिख जाता है इसलिए निश्चिंत रहा करें।....मेरा मानना हैं कि जिस समाज में धर्म का दखल आम जीवन में जितना ज्यादा होगा वह उतना ही कट्टर होगा। हर बात में धर्म को बीच में लाने और उसकी हर गलत सलत बात को जायज ठहराने की बीमारी हिन्दूओं की तुलना में मुसलमानों में थोडी ज्यादा रही हैं।परन्तु अब ऐसा लगता हैं कि आम मुसलमान अपनी ये छवि खुद तोडना चाहते हैं। उनका विश्वास लोकतांत्रिक मूल्यों में बढ रहा हैं पाकिस्तान में भी जम्हूरीयत के लिये उनका संघर्ष हम देख चुके हैं।वे अब खुद को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करने वाले छद्म सेकुलरों को पहचानने लगे हैं जो एक अच्छा संकेत हैं। इस्लाम में विधर्मीयों के बारे में कुछ गलत नहीं कहा गया हैं (इस विषय में पढ भी चुका हूँ)फिर भी काफिर या जेहाद जैसे शब्दों की आड में कुछ मुस्लिमों को बरगलाया जाता रहा हैं परंतु इसके कारण आम मुस्लिमों को बदनाम करना एक तरह से ज्यादती हैं।वहीं उन्हे भी यह समझना चाहिये की ऐसा करने वाले भी कुछ ही हिंदू हैं और उन्हें भी भडकाया ही जाता हैं।
ReplyDeleteआपकी टीपों को कुछ समय से देखता हुआ पहली बार यहाँ आया हूँ ........आकर और अधिक प्रसन्नता हुई ! आम मुस्लिम को अपने राष्ट्रवाद और धर्म के बीच की रेखा को पुनः परिभाषित करना ही होगा .....आखिर ऐसा कम जागरूक समाज ...बाहर की इस्लामी समस्याओं पर कैसे इतनी जल्दी प्रतिक्रया देने लगता है ....गहन आश्चर्य और शोध का विषय हो सकता है |
ReplyDeleteयह किस्सा भी बेशर्म भारतीय राजनीति में निर्लज्जता का ही अध्याय है
गज़ब का और महत्वपूर्ण लेख लिखा है आपने अंशुमाला जी ! आपकी पकड़ का मैं कायल हो गया ! मौलाना महमूद मदनी का यह अंदाज़ विश्व के सामने, भारत की शान में बेहद महत्वपूर्ण कदम था ! भारतीय मुसलमानों के व्यवहार के बारे में निश्चित हो जनरल परवेज मुशर्रफ को बेहद झटका लगा होगा !
ReplyDeleteकई बार मैं इस पर लेख लिखना चाहता था पर सोचता रह गया ...इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक लेख के लिए आपको बधाई !
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआप के प्रश्नों का उत्तर है नीचे दिया लिंक
ReplyDeleterahulworldofdream.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+blogspot%2FccBy+(राहुल+पंडित++(कर्त्तव्य+पथ+पर))
अंशु जी आपके ब्लाग पर पहली बार आना हुआ। सही कहूं तो आपकी टिप्पणियां यहां खींच लाईं।
ReplyDeleteआपने जो कुछ लिखा है और जिस तरह से लिखा है उससे सहमत हूं यह बात आपकी पोस्ट को पढ़कर ही कह रहा हूं। इस विषय पर विमर्श का आपका यह संतुलित तरीका अच्छा है।
कल रात जिस तरह से एक ब्लाग पर आपकी,मेरी और अन्य टिप्पणीकारों की असहमति वाली टिप्पणियां हटा दी गईं, वह तालिबानी मानसिकता का परिचायक हैं।
@अभिषेक जी
ReplyDeleteजो लिंक आप ने दिया है उस पर वही कहा गया है जो मै कह रही हु यही की कुछ नेता लोग मंच पर चढ़कर अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए लोगों को भड़काते है और अपना उल्लू सीधा करते है और मेरी सभी को यही सलाह है की किसी भी नेता की या किसी की भी बात जिसमे मै भी शामिल हु आँख मूंद कर ना सुने थोड़ी अपनी अक्ल लगाये |
आप की दूसरो टिप्पणी में धर्म ग्रन्थ के बारे में कुछ लिखा है इसलिए प्रकाशित नहीं कर रही हु पर आप के सवालो का जवाब दे देती हु |
आप ने कलाम के साथ ही सलमान को धर्मनिरपेक्ष माना है और दूसरी बात लव जेहाद की उठाई है तो आप को बता दू की सलमान का तो पूरा परिवार ही लव जेहाद में शामिल है फिर भी आप उन्हें धर्म निरपेक्ष मान रहे है | तो इस सवल का जवाब तो आप ने खुद ही दे दिया है |
एक सवाल है की जहा हिन्दू घटा वहा देश बटा जैसे कश्मीर और पूर्वोतर | आप मुसलमानों को देश से भागना चाहते है ठीक पूर्वोतर में ईसाई है आप उनको भी भागना चाहते है ठीक फिर नक्सली समस्या भी है तो आदिवासियों को भी भगाना पड़ेगा ,खबर आ रही है की एक बार फिर ब्बर खालसा उठने का प्रयास कर रहा है तो फिर सिखों को भी आप भगायेंगे , इसके आलावा नागा विद्रोही भी है उनको भी भगा देना चाहिए ,असम में उल्फा भी है असमियो को भी भगा देना चाहिए , महाराष्ट्र में भड़के हुए लोग मराठी के नाम पर देश बात रहे है उन मराठियों को भी भगा देना चाहिए , दक्षिण में कुछ लोगों के मान में हिंदी विरोध भी है उनको भी भगा देना चाहिए बहुत सारे बौद्ध भी है जो हिन्दुओ को कोसते है ( आप उन्हें हिन्दू मानते है पर उनमे से ज्यादातर ने हिन्दू धर्म छोड़ कर ही बौद्ध धर्म अपनाया है जिसका कारण हिन्दुओ के उछ वर्ग को मानते है ) उनको भी भगा देना चाहिए बोलिये किस किस को भागाईयेगा देखिये आप के आलावा कोई देश में बचा है | आप युवा है और आप के मन में उनके लिए इतनी नफरत है तो यही बात तो उनके मन में भी हो सकती है | हमारा एक पड़ोसी चाहता है की हम ऐसे ही धर्म के नाम पर हर चीज के नाम पर लड़ते रहे और वो देश बाटने में कामयाब हो जाये और हम वो कर रहे है दूसरा पड़ोसी कश्मीर में हमें इतना उलझा देना चाहता है की वो आसानी से हमसे अरुणाचल ले जाये और हम वो कर रहे है दुनिया का दादा चाहता है की हम सभ बस ऐसे ही लड़ते रहे और विकास के पैसे से उससे हथियार खरीदते रहे और वो उन पैसो से अपना विकास करता रहे दादा गिरी करे और हम लड़ते रहे और हम सब वही कर रहे है | हम सुई से कहए जख्मो को ले कर रोते रहे और कोई तलवार आ कर हमारी गर्दन काट जाये हम कुछ ना कर सके | धर्म के नाम पर लड़ना छोडिये अपनी उर्जा देश के विकास में लगाइये एक विकसित सम्प्पन देश कभी नहीं टूटता है उसमे सिर्फ जुड़ता है | जुड़ने से बढ़ता है लड़ने से ख़त्म होता है | उम्मीद है मेरी भाषणबाजी में कुछ तो समझ आया होगा |
@ देवेन्द्र जी, शिखा जी , राज भाटिया जी , राजन जी , प्रवीण त्रिवेदी जी ,
ReplyDeleteसभी का धन्यवाद
@ सतीश जी
ब्लॉग जगत में ये होता रहता है की हम सोचते है और कोई और लिखा देता है आप ने सोचा और मैंने लिखा दिया एक बार मैंने सोचा था सरदार जी वाले मजाक पर लिखने का तो उसे गौरव जी ने लिखा दिया था मुद्दे सामने आ गये यही अच्छी बात है
@ राजेश जी
मैंने अपना लेख अपने अनुभव के आधार पर लिखा था मेरा अनुभव अच्छा रहा तो लेख भी वैसा ही लिखा शायद किसी और का अनुभव इतना अच्छा ना रहा हो क्या कह सकते है |
सलमान ने अपनी बहन की शादी अतुल नाम के लडके से की है . अगर वो लव जेहाद में होता तो ऐसा कभी न करता
ReplyDeleteआप के पास मेरे प्रश्नों के जवाब नही थे .मैंने जो भी लिखा था सब तत्थ्यात्मक था . क्या पाकिस्तान और बंगलादेश हिन्दुओ की मांग पर बना है और कश्मीर में पंडित क्यों मारकर भगाये गए और अब पाकिस्तान से मिलाने की मांग क्यों कर रहे है ?
ReplyDeleteक्यों की वहा अब हिन्दू नही है .यह पर तो ये मौज काट रहे है पर पाकिस्तान का बच खुचा हिन्दू किस हाल में है ये आप को पता है .
क्यों पाकिस्तान से श्रद्धालु बन कर आये हिन्हुओ ने वापस जाने से इंकार कर दिया था .?
देश में हिन्दुओ ने कहा से मुस्लिमो या कभी ईसईयो को निकला है . आप अगर इतनी ही सेकुलर है तो सिर्फ कुछ दिन कश्मीर में रह कर दिखाईये . कोरी बाते मत कीजिए
cvbcvbcvb vbvcb cvbv
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