पहला सवाल सभी पाठकों से यही है की क्या आप आत्मा, पुनर्जन्म और भगवान पर विश्वास करते है | इस सवाल पर ९९% का जवाब हा में होगा | अब एक कहानी सुनिये बचपन में सुना होगा एक बार फिर सुनिये और फिर इसका जवाब दीजिये |
एक चोर था एक दिन जब वो चोरी के लिए गया तो साथ में अपने १२ साल के बेटे को भी ले गया बोला की बेटा मैं अंदर चोरी के लिए जा रहा हुं तुम बाहर खड़े हो कर देखते रहो की कोई हमें ऐसा करते देखे नहीं यदि हमें कोई देखे तो मुझे इशारा कर देना | बाप जैसे ही अंदर गया बेटे ने कहा की पिता जी कोई देख रहा है वो तुरंत बाहर आ गया और फिर दूसरे घर में गया बेटे ने फिर कहा की कोई देख रहा है इसी तरह जब कई घर में ऐसा हुआ तो पिता ने पूछ ही लिया की ऐसा कैसे हो रहा है कि आज कोई ना कोई देख ले रहा है कौन है ये जो हमें देख रहा है | तो बेटे ने कहा की भगवान हमें देख रहा है आप ने ही तो कहा है की वो हर जगह व्याप्त है और वो हमें हमेशा देखता है | क्या वो हमें चोरी करते हुए नहीं देख रहा है |
कहानी में क्या कहा जा रहा है मुझे बताने की जरुरत नहीं है सब समझ गये है अब बताइये की क्या आप वास्तव में भगवान में विश्वास करते है |
आत्मा कभी नहीं मरती है किस आधार पर लोग ये बात कह देते है मुझे समझ नहीं आता है यदि आत्मा नाम की कोई चीज है तो मैं तो रोज उसे मरता हुआ देखती हुं | लोग भूखे मर रहे है और सरकार में बैठे लोग अनाज को सडा कर बर्बाद कर रहे है, हमारे दिये जिस टैक्स के पैसों से देश का विकास होना चाहिए था वो खेलो के नाम पर चंद लोगों द्वारा डकार लिए गये , सैनिकों के खाने के पैसे भी लोग खुद खा जाते है , पहले देवी मान कन्या को भोजन कराते है फिर एक कन्या को पैदा होने से पहले ही मार देते है , पिता ने ही पैसे के लिए अपने ही १० साल के बेटे का अपहरण किया और फिर हत्या कर दी , अमीर होने के लिए एक परिवार ने अपने ही दो बच्चों की बलि चढ़ा दी , अपने स्वार्थ के लिए हम रोज कोई ना कोई गलत काम करते है | क्या आप को नहीं लगता की ये सब करने के बाद आत्मा नाम की चीज मर जाती होगी |
पुनर्जन्म लेने के बाद आप क्या बनेगे जो लोगों के गलत काम करने की रफ़्तार है उसे देखते हुए तो लगता है की आगे के बीस तीस साल बाद धरती पर रीड विहीन जीवो की संख्या सबसे ज्यादा होगी |
आज तक मैंने तो किसी को भी भगवान के डर से कुछ गलत करने से डरते हुए नहीं देखा है | ना ही कभी देखा है की कोई गलत काम करते हुए ये सोचता है की हमें इसका फल अगले जन्म में क्या मिलने वाला है | पर कहते सब है की हम सब में विश्वास करते है | पता नहीं किस तरह का ये विश्वास है | आखिर लोग अपने आप से ये झूठ क्यों बोलते है कि वो इन सब पर विश्वास करते है शायद अपने नाकामयाबी और अपनी गलती का ठीकरा भगवान के ऊपर फोड़ने के लिए कि भगवान की यही मर्जी थी | अब अपने आप से ईमानदारी से फिर से पूछिये की क्या आप वास्तव में इन सभी चीजो पर विश्वास करते है और अब जवाब दीजिये |
जब किसी रोड पर ये चेतावनी लिखी हो कि -
ReplyDelete"आगे खतरा है गाड़ी धीरे चलाये।"
फिर भी यदि कोई गाड़ी तेज चलाये तो कसूरवार कौन है?
बस ...ऐसे ही ईश्वर रूपी सत्ता हमे चेताती रहती है लेकिन हम सुनना नही चाहते। रही बात विश्वास की तो वह भी उसी तरह है ।मानना चाहो तो मान लें... नही मानाना चाहते तो ना मानें।
किसी के मानने या ना मानने से सत्य नष्ट नही होता।
@ परमजीत सिँह बाली जी
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए धन्यवाद | मै इस बात पर सवाल नहीं उठा रही हु की ये सब दुनिया में है या नहीं मै तो बस इतना पूछ रही हु कि क्या आप वास्तव में इन सब चीजो पर विश्वास करते है या नहीं |
कई प्रश्न हमेशा अनुत्तरित रहते है
ReplyDeleteपरमसत्य तो सर्वज्ञ ही जानते है, और हम गलत व्याख्याओं में गोते लगाते है।
इसलिये समझदार आस्था सहित आगे बढता है।
मूर्ख अंधश्रद्धा में गोते लगाता है।
महामूर्ख यही ढूंढने में समय व्यर्थ करता है कि अंधश्रद्धा हैं कहां कहां।
अगर आपने किसी को मरते हुए देखा है, कोई हादसा नहीं, बस यूँ ही बूढ़ा हो कर बिस्तर पकड़ कर, धीरे धीरे मरते हुए... अगर देखा है आपने ऐसे किसी लोग या लोगों को, तो एक बात तो कह सकते है की वो मरते ही इसलिए है क्योकि उन्हें और आगे जीवन की सम्भावना नज़र नहीं आती.... बाकी होता है या नहीं, ये तो किसी को नहीं मालूम, इसलिए सब अपनी अटकले लगते रहते है ... when no one knows, manipulation grows ....
ReplyDeleteपुनर्जन्म की अवधारणा धूर्तता की देन है.
ReplyDeleteभगवान तो है और हर जगह है पर अपने स्वार्थ का पर्दा आँखों पर इस तरह का पड़ा है की हम को वो दिखाई ही नहीं देता है और हम आराम से अपने सभी अच्छे बुरे काम करते चले जाते है | आप ने सही कहा है कि हम सभी अपनी आत्मा को खुद ही मारते है और रोज मारते है अपने स्वार्थो के लिए | पुनर्जन्म में तो मेरा विश्वास नहीं है |
ReplyDelete1-आत्मा नश्वर नहिं, सही कहते है आत्मा अजर-अमर है।
ReplyDelete2-नष्ट या घात होती है प्राणों की, जो आत्मा से जुडे होते है।
3-आत्मा अनंत है,अनंत आत्माएं मोक्ष गई और अनंत जन्म-मृत्यु के चक्र में है।
4-एक शरीर के छूटते ही आत्मा दूसरा शरीर धारण कर लेती है।
84 लाख योनियां है, और अनंत सुक्षम जीवराशी भी है,अतः जनसंख्या का प्रश्न बेमानी है।
5-शुभ आत्माओं का निरंतर पवित्रता विकास होता रहेगा, कर्म-सत्ता यह प्रबंध करती रहेगी। बेहतर गुणवत्ता की कक्षाएं होती है।
6-आत्माओं का कोई नामरूप धर्म नहिं होता, वस्तूत: जिसे हम धर्म कह्ते है वह आत्मा का निज-स्वभाव ही है। इसी लिये कोई व्यक्ती हिंसाप्रधान धर्म में जन्म लेकर भी, स्वभावत: अहिंसक हो सकता है। और कोई अहिंसा प्रधान धर्म में जन्म लेकर भी 'क्रूरता का सहभोजी' सम्भव है। अर्थार्त अपने परिवेश से पृथक भी हम देखते है।
7- हां, प्रत्येक व्यक्ति से उसकी आत्मा संवाद करती है,'मैं कौन हूं', 'क्या मैं एक आत्मा हूं' आदि प्रश्न भी उस आत्मा के ही होते है।
8- चेतना, ज्ञान और दर्शन आत्मा के ही गुण है।
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ReplyDelete.
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मैंने चैक किया और पाया...
*** आत्मा और पुनर्जन्म पर तो कतई विश्वास नहीं करता मैं...
*** भगवान के मामले में फिलहाल संशयवादी या अज्ञेयवादी कहलाना चाहूँगा।
आपने आलेख के शुरू में जो कहानी सुनाई है वह लोगों के अंतर्विरोधों को खुल कर एक्सपोज करती है... वैसे तो कहा जायेगा कि यह धर्म ही है जिसने अनर्थ होने से रोका हुआ है... पर ऊपरवाले पर इतना विश्वास करने वाला वह आदमी खुद कुछ गलत करते हुऐ न जाने कैसे यह मान लेता है... कि इस समय ऊपरवाले का ध्यान कहीं और है...
एक बात और, जो ९९% मामलों में आप सत्य पायेंगी... वह यह है कि धर्म से जुड़े किसी सार्वजनिक आयोजन में यदि आप जायें तो आप पायेंगी कि उस आयोजन के अगुवों में ९०% से अधिक वह लोग हैं जिन्हें आप बिना किसी अपराधभाव के बेहिचक SCUM OF SOCIETY कह सकती हैं।
...
मैँ आत्मा परमात्मा या पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं करता ।और न ये मानता हूँ कि बुरे कर्मों से बचने के लिये आज के समय में ईश्वर के नाम पर मनोवैज्ञानिक भय कायम रखने की जरूरत हैं।बल्कि इसकी वजह से कई दूसरी तरह की समस्याऐं उत्पन्न हो जाती हैं ।मैं धर्म को एक निजी आस्था का मुद्दा मानता हूँ यदि इसके नाम पर हर गलत बात को सही न ठहराया जाए। पर ऐसा होता कहाँ हैं?
ReplyDeleteनास्तिक हो हकिक़त में नास्तिक होते हैं ... पर आज तक मैंने ऐसे आस्तिक नहीं देखा जो सच में आस्तिक हो ...
ReplyDeleteआत्मा-परमात्मा, भाग्य, पुनर्जन्म ... इत्यादि में विश्वास करने वाले बहुत हैं पर धर्म, भगवान, अल्लाह, GOD, में विश्वास करने वाला कोई नहीं है ...
अगर कोई कहता है कि वो विश्वास करता है तो यह एक झूठ है .. जो वो दुसरे से और खुद से बोल रहा है ...
@ सुज्ञ जी
ReplyDelete@कई प्रश्न हमेशा अनुत्तरित रहते है
सही कहा आपने इस लिए तो इन के होने ना होने पर सवाल नहीं उठाया है सवाल ये है कि आप का इन पर विश्वास कैसा है | क्या आप वास्तव में इन चीजो पर विश्वास करते है या सिर्फ सुविधानुसार मानते है और ख़ारिज कर देते है | मेरे समझ से महा मुर्ख उन्हें कह सकते है जो अपने विश्वास को तो श्रद्धा की श्रेणी में रखते है और दूसरे के विश्वास को अंधश्रद्धा की श्रेणी में
@ majaal ji
मेरा सवाल उन्ही से था जो इसके होने का दावा करते है और इस पर विश्वास करते है | वैसे मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो सालो से बीमार है बूढ़े हो चुके है जीवन के सुख भोग चुके है फिर भी मरना नहीं चाहते है और जीना चाहते है पता नहीं क्यों भगवान पर विश्वास करते है पर उसके पास जाना नहीं चाहते है |
@ भूसन जी
ये आप और हम कहते है पर इस पर भरोसा करने वाले नहीं |
@ देबू जी
मतलब वही हुआ की उस पर विश्वास करना या ना करना जो फायदे का सौदा है वही ठीक है |
@प्रवीण जी
@भगवान के मामले में फिलहाल संशयवादी या अज्ञेयवादी कहलाना चाहूँगा।
नास्तिक से सीधे संशयवादी लगता है की मेरी टिप्पणी जो कल की पोस्ट पर दी थी सही होने जा रही है चीजे बदल रही है | ये बदलाव दूसरो के विचारो के कारण है या स्वं का अनुभव | :)
पर इस अंतर्विरोध को कोई मानता नहीं है सब कहते है जी हम को तो पूरा विश्वास है पर अन्दर ही अन्दर खुद भी शंकित रहते है | और ये SCUM OF SOCIETY वाली बात बिलकुल सही है | सामने ही ९ दिन पूजा पंडाल लगा था और रात भर जागरण करने वाले पंडाल में बैठ कर जुआ खेलते थे और बगल में बोतल होती थी पुरे ९ दिन यही होते मैंने देखा |
@अंशुमाला जी ,आपकी इस पोस्ट को नमन करने का जी चाहता है,बिलकुल हू-ब-हू यही प्रश्न या विचार मेरे मन में भी उठते हैं ,आपकी सभी बातों से सहमत हूँ
ReplyDeleteमहक
अन्शुमालाजी,
ReplyDeleteदोनो ही धूर्त है
एक वो जो धर्म के नाम धंधा (अपना पूर्वाग्रह) चलाए हुए है।
दूसरे वो जो रोज़ी (अपनी विचारधारा) के लिये धर्म से ही इन्कार किये हुए है।
धर्म को सीरे से खारिज करने वाले धूर्त,
दूसरों की गंदगी कुरेदने वाली यह विचारधारा धर्मशास्त्रों को पूरा कूडा ही मानती है।
ईश्वर या धर्म की मान्यता बढे तो, तो इनकी 'रोज़ी' पर लात पडती है।
एक मात्र आत्मा है या नहिं प्रश्न पर तो विज्ञान संचार के प्रयास मिट्टी में जा पड़ते हैं।
यह'क्रूरता के सहभोजी' अपने स्वादेंद्रिय की तृप्ती के लिये, हिंसक लोगों को आदर देकर, उनके संग मांसाहार में लिप्त हो जाते है।
@सुज्ञ जी
ReplyDeleteसबसे पहले आप को स्पष्ट कर दू की मैंने धर्म या धर्म शास्त्र या भगवान या आत्मा या किसी की श्रद्धा किसी पर सवाल नहीं उठाये है | मेरा मानना है इन चीजो पर विश्वास का तर्क से कोई सम्बन्ध नहीं है ये तर्क के आधार पर नहीं बनती है | मेरा सिर्फ इतना कहना है कि जो लोग ये कहते है कि ये सभी चीजे है और हम पूर्ण रूप से उस पर विश्वास करते है तो
१ - लोग गलत काम करते समय भगवान से डरते क्यों नहीं है वह हर जगह है और सब देख रहा है |
२- आत्मा नहीं मरती है मै आत्मा को दूसरे रूप में लेती हु हमारे अन्दर कि इंसानियत ही हमारी आत्मा है और सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए दूसरो को मार देने तक का काम करने के बाद भी हम आराम से जीते है तो मै नहीं मानती कि उस व्यक्ति के पास आत्मा नाम की चीज बची होती है |
३- पुनर्जन्म में लोगों का विश्वास है सभी कहते है की हमारे कर्म ही इस बात का निर्धारण करेगा की हम अगले जन्म में क्या बनेगे तो क्या समझा जाये की जो लोग गलत कर रहे है पाप कर रहे है ( ऐसा तो सभी कर रहे है ) क्या उन्हें अगले जन्म में रीड विहीन जीव बनने का कोई डर नहीं है यदि नहीं है तो फिर कैसे माने की वो इन चीजो में वास्तव में विश्वास कर रहे है |
मै अपने क्या किसी भी धर्म को ख़ारिज नहीं करती हु पर हा मै आँख मूंद कर उसकी हर बात को नहीं मानती हु | और पूरी कोशिश करती हु कि इस मामले में चुप रहू पर जब कोई अपने हिसाब से धर्म की उल जलूल व्याख्या करने लगे अपनी बेमतलब की बात को धर्म से जोड़ने लगे अपनी बात को साबित करने के लिए धर्म और धार्मिक पुस्तकों की अपने हिसाब से व्याख्या करने लगे तो उसका एक हद तक विरोध करती हु |
ReplyDeleteअंशुमाला जी
ReplyDeleteचलो इस चर्चा के बहाने आपके सात्विक विचारों से तो अवगत हुए।
@राजन जी
ReplyDeleteसही कहा ईश्वर के नाम पर मनोवैज्ञानिक भय कायम रखने की जरूरत नहीं है ऐसी बातो से केवल अनपढ़ गरीब ही भयभीत होता है कोई और नहीं |
@ सैल जी
@नास्तिक हो हकिक़त में नास्तिक होते हैं ... पर आज तक मैंने ऐसे आस्तिक नहीं देखा जो सच में आस्तिक हो ...
आप की बात से सहमत हु मै भी यही कहना चाह रही थी |
@ महक जी
धन्यवाद
@ सुज्ञ जी
दो तीन दिनों से ब्लॉग जगत में यही ज्ञान गंगा बह रही है सोचा इतना ज्ञान लेने के बाद कुछ अपने विचार भी कह देना चाहिए
अरे भाई अगर इतने खतरनाक सवालों का जवाब देना पड़ा तो मैं तो ब्लॉग्गिंग करना ही छोड़ दूंगा.
ReplyDeleteकुछ आसान सी बात पूछे और कहें अगर हमने अपनी गिरेहबान में झाँक लिया तो हम लोग अपनी नज़रों में ही गिर जायेंगे और भगवान भी उठा नहीं पायेगा....
बेहतरीन विचारोत्तेजक पोस्ट है ...
ReplyDeleteमेरे जेहन में भी ऐसी ही बातें, ऐसे ही सवाल उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं ...
विज्ञान के नियमों से वाकिफ होने की वजह से ऐसी बातें जिनका कोई वैज्ञानिक तथा तार्किक आधार न हो, पर यकीन करना थोडा कठिन है ...
अन्शुमालाजी,बहस करने की कोई बात नही चलो दोनो मिल कर चलते हे भगवान के पास, फ़िर दुध का दुध पानी का पानी.....
ReplyDeleteक्या हमें सिर्फ नकारात्क चिंतन ही करना चाहिए .हर चीज के दो पक्ष होते है . यहाँ पर तो सिर्फ नकारात्मक चिन्तन कर पोस्ट लिखी गयी है .
ReplyDelete@अन्सुमाला जी , नकारात्मक तो आप को दिखा पर क्या सकारात्मक पक्ष है ही नही ?
आस्तिक हो या नास्तिक सब कुछ चरित्र पर ही निर्भर करता है .अतः ये प्रश्न ही व्यर्थ है की भगवान को मानने वाले ऐसा क्यों करते है .
विचारणीय बात है... आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी की गलत काम करने में ईश्वर का भय नहीं और कुछ गलत हो जाए तो सारा कुछ ईश्वर की मर्ज़ी पर ..... इस विषय में भी इन्सान की स्वार्थी प्रवृत्ति ही पता चलती है.....
ReplyDeleteपहले के शब्दकोष के एक शब्द था...सब्र.
ReplyDeleteक्या फायदा है उत्तर देने का? जो मानते भी हैं वो कहाँ सुनते है अपनी आत्मा की ? जो मानना चाह भी रहे है तो अब उनकी आत्मा ही मर चुकी है..!ऐसे में किस प्रश्न को प्रश्न समझा जाए? क्या आवश्यक है हमारे लिए ? इनको प्रश्न मानना या या इसको उत्तर समझ कर आत्मा जगाना ! सच तो यह है की हारे हुए हैं हम ...और बहला रहे है इन बातो से अपने आप को !!!
ReplyDelete@ विचार जी
ReplyDeleteअसल में तो जवाब तो अपने आप को ही देना है और वहा कोई चाह कर भी बेईमानी नहीं कर सकता है |
@कोरल जी
वैज्ञानिक बात छोडिये ये तो आम बात है पर इसका भी जवाब किसी के पास नहीं है |
@ राज भाटिया जी
चलेंगे जरुर पर उस दिन जब वहा जाने के साथ ही वापस आने का भी रास्ता होगा | अभी तो हम दोनों को काफी ब्लोगिंग करनी है |:)
@ अभिषेक जी
ये तो हमारे चरित्र पर निर्भर है की हम किसी बात को सकारात्मक लेते है या नकारात्मक | आप को ये पोस्ट नकारात्मक लगती ही जबकि मुझे सकारात्मक लगा रही है | इसे पढ़ कर कम से कम हम अपने विश्वास के बारे में एक बार फिर से गंभीर चिन्न्तन कर सकते है |
@ मोनिका जी
बिल्कूल सही कहा धन्यवाद |
@ काजल कुमार जी
जैसे की आपने कहा की पहले के शब्द कोष में था ये शब्द अब शायद गायब हो गया है |
@ रतुल जी
@क्या आवश्यक है हमारे लिए ? इनको प्रश्न मानना या या इसको उत्तर समझ कर आत्मा जगाना|
आप बिल्कूल पोस्ट की मूल बात को समझ गये है | धन्यवाद
...जो लोगों के गलत काम करने की रफ़्तार है उसे देखते हुए तो लगता है की आगे के बीस तीस साल बाद धरती पर रीड विहीन जीवो की संख्या सबसे ज्यादा होगी |...
ReplyDeletepurntaya sahmat hun.
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नमस्ते जी,
ReplyDeleteपहले कभी नमस्ते करने की जरूरत नहीं समझी, आज लगा कि पहले नमस्ते करना ठीक रहेगा। बड़े गुस्से में पोस्ट लिखी लगती है।
आपकी बताई कहानी, उठाये गये सवाल और दिये गये तर्क सब ठीक हैं। आपने पूछा है इसलिये बता रहे हैं कि हम इन चीजों पर विश्वास करते हैं। इतना जरूर है कि औरों को अपनी राय मानने के लिये मजबूर नहीं करते और ऐसा ही व्यवहार दूसरों से चाहते हैं।
इस दुनिया में अगर नकारात्मक प्रवॄत्ति के लोग हैं तो सकारात्मक प्रवृत्ति के लोग भी है, इसीलिये ये दुनिया है, कोई स्वर्ग या नरक नहीं।
एक बात तो ये है कि भगवान, आत्मा. अंतरात्मा जैसी चीजों का मतलब सब के लिये एक जैसा नहीं है। ये सच है कि हममें से अधिकांश लोगों ने भगवान को एक हाकिम मान लिया है, जिससे डरते भी हैं, रिश्वत भी चढ़ाते हैं, खुश भी रखना चाहते हैं(मूल में अपना स्वार्थ ही है)।
आपने कहा कि आज तक कोई ऐसा नहीं देखा जो भगवान से डरकर गलत काम न करता हो, ये आपका अनुभव है। अंशुमाला जी, मैंने आजतक समुद्र नहीं देखा,आल्प्स पर्वत नहीं देखा और बहुत कुछ नहीं देखा, लेकिन ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। इसका मतलब ये न समझियेगा कि ये चीजें हैं नहीं।
रीढ़विहीन लोगों से तो बीस तीस साल बाद क्या, आज भी ये संसार पटा पढ़ा है।
विषय बहुत पेचीदा है और ऊपर विज्ञजन बहुत कुछ कह चुके हैं, हमने अपनी बेसिरपैर की हाँकनी थी, हाँक ली। अब चलते हैं नहीं तो फ़िर पोस्ट का पोट लिखा जायेगा।
आपसे असहमति सिर्फ़ दस प्रतिशत है, बाकी नब्बे प्रतिशत आपकी भावनाओं का समर्थन ही करते हैं हम. इतनी बोल्डली नहीं कहना आता बस।
@संजय जी
ReplyDeleteलोग अपने सुख चैन के लिए क्या नहीं करते है मैंने तो बस एक पोस्ट ही लिखी थी | आप की गैरहाजरी में ब्लॉग जगत में आत्मा , परमात्मा , पुनर्जन्म छाया हुआ था खूब लिखा गया वो भी गूढ़ और क्लिष्ट भाषा में एक लेख को जब तक समझते टिप्पणी देते तब तक दूसरा पोस्ट आ जाता और उन सब पर भारी भारी टिप्पणिया सब जगह सबको खूब पढ़ा पढ़-2 कर दिमाग में इतनी हलचल हो गई और ऐसे सवाल उठने लगे की सुख चैन गायब हो गया जानते है ब्लगिंग बड़ी बुरी चीज है जब तक सब कुछ उगल नहीं देते चैन नहीं मिलता | दूसरो की पोस्ट पर इतना कुछ तो उगलना मुश्किल था सो खुद ही एक पोस्ट लगनी पड़ी ताकि चैन से जी सके | :)
मै खुद किसी की आस्था पर सवाल नहीं उठाती हु क्योकि जानती हु की आस्था तर्कों पर नहीं बनते है ( पिछले ४-५ दिनों में कम से कम ६-७ बार यही बात कई जगह लिख चुकी हु ) मैंने सवाल बस इतना उठाया था कि लोग अपनी ही आस्था पर भरोसा क्यों नहीं करते है उसे थोडा और मजबूत करे |
@क्या आवश्यक है हमारे लिए ? इनको प्रश्न मानना या इसको उत्तर समझ कर आत्मा जगाना !
ये रतुल जी कि टिप्पणी है असल में मै यही करना चाह रही थी | सोचिये की सभी को भगवान आत्मा सभी पर पूरा विश्वास हो तो दुनिया में सारे बुरे काम ही बंद हो जायेंगे | दुनिया कितनी अच्छी बन जाएगी समस्या दुख रहित |
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteअपने सुख चैन के लिये लोग दूसरों का सुख चैन तक छीन लेते हैं, आपने तो एक पोस्ट ही निकाली है। इसमें कैसा स्पष्टीकरण? वैसे भी आज के समय का मूलमंत्र - टैंशन लेने का नहीं, देने का:)
सवाल उठाना कहीं से गलत नहीं मानता, मैं खुद उल्टे सीधे सवाल करता ही रहता हूँ, आपने कम से कम एक ज्वलंत सवाल तो उठाया।
पोस्ट भी पढ़ी और सभी कमेंट्स भी, अपने को तो अच्छा ही लगा। हाँ, हो सोचने के लिये आपने कहा, लाख नॉन-प्रैक्टिकल होने के बावजूद ऐसे ख्वाब मैं नहीं देख पाता। आप सोचिये, राम,कृष्ण, गौतम, नानक, यीशु, मोहम्मद जब इस दुनिया को नहीं बदल सके तो हम और आप किस.....। अपने हाथ में है, खुद को बदलना, वो कोशिश हम कर सकते हैं। खैर, लेटेस्ट पोस्ट रैंक एक पर देखना अच्छा लगा, आप कहेंगी कोई फ़र्क नहीं पड़ता, फ़र्क तां पैंदा है जी। हा हा हा
उस्ताद जी का इस पोस्ट पर कोई जिक्र नहीं करूंगा, :)
भगवान इंसान की ख़ूबसूरत कल्पना है...हर युग में आदमी ने अपने ही हिसाब से भगवान की व्याख्या की है... अगर कुछ सच है तो वो क़ुदरत है...नेचर...पंचतत्व.. अग्नि, जल, वायु, आकाश, धरती..ये सब मिलकर दुनिया की किसी भी ताक़त से बढ़े हैं, साइंस से बढ़े हैं... असल मायने में क़ुदरत ही सर्वशक्तिमान है..
ReplyDeleteबाकी दुनिया इकॉनॉमिक्स के डिमांड एंड सप्लाई के रूल पर कायम है...अगर लोग बढ़ेंगे, संसाधन घटेंगे तो क़ुदरत भी रूख उसी हिसाब से बदलेगी... जो आज हम सब देख रहे हैं....धरती भी इसी वजह से नष्ट होगी...आख़िर एक दिन ऐसा आएगा जब लेने वाले हाथ तो कई होंगे मगर क़ुदरत के पासे देने के लिए कुछ नहीं होगा...भगवान नहीं असल जो है, वो इंसान है और उसके साथ उसका ज्ञान है..