कितना बुरा लगता है जब आप कोई गंभीर लेखन करे और लोग उसे व्यंग्य कहे दिल से आत्मा से किसी की बुराई करे और लोग उसे समझे ही नहीं उसका मतलब ही उलटा निकालने लगे | लगता है जैसे सारी मेहनत बेकार गई इतने हिम्मत से ये जहर उगला था और सभी इसको अमृत समझने की भूल कर गये | इसलिए अपना ये लेख नारी ब्लॉग के बाद एक बार फिर यहाँ दे रही हु इस उम्मीद में की शायद कोई मेरे इस गंभीर शिकायत को गंभीरता से लेगा | लेख थोड़ा लंबा है कोई बात नहीं कोई ब्याज नहीं लगेगा किस्तों में पढ़ लीजिये |
एक बात समझ में नहीं आती है की कुछ महिलाओ को दूसरे के जीवन में टाँग अड़ाने या दूसरों के घरों में ताका झाकी करने की आदत क्यों होती है | मैं तो बड़ी परेशान हुं एक ऐसी ही महिला से कुछ लोग उनको नारीवादी कहते है तो कुछ लोग उनको वो क्या कहते है हा याद आया घर तोडू औरत | कहते है उनको दूसरों के घर तोड़ने की आदत है | तलवार जी की बहु का एक साल में दूसरी बार मिस कैरेज हो गया बेचारी को पहले से ही दो लड़कियाँ है | हमारी नारीवादी वहा चली गई कहने लगी क्या बात है मिसेज तलवार आपकी बहु के साथ दूसरी बार ये घटना हो गई किसी अच्छे डाक्टर को दिखाइये मिसेज तलवार ने कहा की नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं है हम तो खुद काफी अच्छे डाक्टर को दिखाते है | बेचारी बहु का उतरा सा मुँह देख कर उसे कह दिया की जब अगली बार फिर से प्रेग्नेंट होना तो अपने मायके चली लाना यदि बच्चा सुरक्षित चाहती हो | लो जी उनकी बहु ने तो सच में यही कर दिया अब तलवार परिवार का तो गुस्सा होना लाज़मी था | जिस बात का डर था उन बेचारो को वही हो गया तीसरी बार भी बेटी | उन्होंने भी साफ मना कर दिया की बहु हमारे इजाज़त के बिना मायके गई कैसे, अब हम उसे नहीं लायेंगे | तलवार साहब ने खुद कहा कि उन्हें बेटी होने का गम नहीं है पर बहु की आदते ख़राब हो गई थी देखिये अपनी मर्ज़ी से मायके चली गई अब पड़ी रहे वही पर हमें उसकी जरुरत नहीं है | बोलो तोड़ दिया उसका घर अरे अपने ससुराल में होती तो क्या होता ज्यादा से ज्यादा एक दो बार और उस का मिसकैरेज हो जाता जहा दो जन्म से पहले मार दी गई वहा एक और मार दी जाती क्या फर्क पड़ता पर कम से कम उसका घर तो बना रहता बाकी दो बेटियों को तो उनके पिता का प्यार मिलता आप जानते नहीं कितना प्यार है उसको बेटियों से अब बताओ वो भी पिता के प्यार से महरूम हो गई | उन नारीवादी की अपनी दो बेटिया है उनको बेटे की चाह नहीं है पर इसका मतलब ये तो नहीं की दूसरों को भी इसकी चाह नहीं हो अरे बेटा कुल का चिराग होता है माँ बाप का सहारा होता है पर इनको कौन समझाये | अरे मुझे तो लग रहा है की तलवार परिवार अच्छा कर रहा था देश की जनसंख्या बढ़ने से रोक रहा था नहीं तो आदमी बेटे के चक्कर में कितनी बेटियों को जन्म देते चले | कुछ बेवकूफ़ लोग इसे भ्रूण हत्या कहते है और इसको लड़के लड़कियों के अनुपात ख़राब होने का कारण मानते है | पर मुझे नहीं लगता है कि कुछ ऐसा होता है ,ब्लॉग जगत के एक ज्ञानी ने हमें बताया की ऐसा कुछ होता ही नहीं है ये तो प्राकृतिक कारण है जो आज लड़कियाँ कम जन्म ले रही है और लड़के ज्यादा | जय हो उस ज्ञानी बाबा की और उफ़ ये घर तोडू औरते |
जी उनकी हिमाकत यही नहीं रुकी मिस्टर नारायण ने पार्टी दी उनका बेटा आस्ट्रेलिया जा रहा था पढ़ने के लिए सभी वहा गये वो भी गई और कहने लगी वहा नारायण जी आप के बच्चे तो बड़े होसियार है भाई इस साल बेटे को आस्ट्रेलिया भेज रहे है अगले साल लड़की भी ग्रेजुएशन कर लेगी उसे कहा भेज रहे है पढ़ने के लिए | नारायण जी ने कहा नहीं भाई बेटी को नहीं भेज रहा हुं लड़की है आप समझ सकती है थोड़ा सुरक्षा का मामला है तो कहने लगी की नारायण जी आप बेटा बेटी में इतना फर्क करते है बेटी कि इतनी चिंता आप को बेटे की जरा भी फ़िक्र नहीं है रोज टीवी पर आस्ट्रेलिया से भारतीय छात्रों के पीटने की खबर आ रही है आप को उससे डर नहीं लगता है | लो जी लगा दी आग नारायण जी के घर में वो दिन है और आज का दिन उनकी बेटी ने जब से ये बात सुनी है तब से ज़िद पर अड़ी है की पाप मैं तो भईया से ज्यादा पढ़ने में तेज हुं मुझे भी आगे पढ़ाई के लिए बाहर जाना है और नारायण जी उसे जाने नहीं दे रहे है भंग हो गई घर की शांति | अब आप ही बोलो की लड़कियों की पढ़ाई में कोई इतने पैसे खर्च करता है क्या अरे उनको तो फिर ससुराल चले जाना है उनकी पढ़ाई माँ बाप के क्या काम आयेगा बेटा पढ़ेगा कुछ अच्छा बनेगा उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा आज इन्वेस्ट किया है कल वही कमाई बनेगा | फिर ये भी तो डर रहता है कि लड़कियों को बाहर भेजो तो उनको कुछ ज्यादा ही पर निकल आते है बाहर पढ़ने को भेजा तो क्या पता वहा से किसी थॉमस पीटर को लेकर चली आवे का इज़्ज़त रह जाएगी नारायण जी की | पर उन नारीवादी को ये बात समझ आये तब ना उफ़ ये घर तोडू औरते |
हद करती है राय साहब के बेटी की तो शादी ही तोड़ दी हुआ ये की लड़के वालो ने कुछ भी नहीं मागा था बड़े भले लोग थे राय साहब तारीफ करते नहीं थक रहे थे राय साहब काफी पैसे वाले थे सब जानते थे सो लड़के वालो ने कह दिया की बेटी की ख़ुशी के लिए जो देना है आप खुद ही दे दे | लड़का बैंगलोर (बैंगलुरू) में साफ्टवेयर इंजीनियर था उन्हें जा कर बोल आई की भाई पैसे दे रहे हो अच्छा कर रहे हो बेटी का भी पिता के धन पर हक़ बनता है आप के पास है तो अवश्य उसकी खुशी के लिए दे ऐसा करे की अपनी बेटी के नाम पैसे डाल दे बैंगलोर जाएगी तो वही पर अपने घर गृहस्थी का समान ले लेगी फैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स किया है अपना बुटिक खोल लेगी एक अनजान शहर में वो कहा पैसों के लिए भाग दौड़ करेगी | राय साहब की मति मारी गई थी और उनकी बात मान ली शादी के चार दिन पहले जब लड़कों वालो के हाथ कुछ नहीं आया और उन्हें पता चला की सारा पैसा लड़की के नाम है तो उन्होंने शादी ही तोड़ दी | अब बोलो तो "आप को जो देना है खुद ही दे दो हमारे पास तो भगवान का दिया सब कुछ है" अरे ये सब बाते तो कहने के लिए होती है मानने के लिए नहीं | बिना लड़के वालो को कुछ मिले शादी संभव है क्या लड़के को पढ़ाने लिखाने में इतना खर्च किया है माँ बाप ने क्या उसको नहीं वसूलेंगे | अग्रवाल जी की लड़की को तो थाने तक ले कर चली गई हुआ ये की बेचारे के दामाद को बिज़नेस के लिए पैसे चाहिए था सो पत्नी को भेज दिया मायके की जाओ पापा से पैसे ले कर आना उसे ससुराल नहीं आने दे रहे थे | अग्रवाल जी को लेकर थाने चली गई और दामाद के खिलाफ रपट लिखा दी कि पैसे के लिए पत्नी को पिटता है और अब उसे साथ नहीं रख रहा है | तोड़ दिया एक और घर अग्रवाल जी को दे देने थे पैसे बेटी का घर बसा रहे ये ज़रुरी नहीं था और बेटी भी मार खा के चली आई ये नहीं कि मार सह कर भी अपना घर बचाती | कौन समझाये इनको उफ़ ये घर तोडू औरते |
आप बताइये की एक नारी के जीवन में उसके घर गृहस्थी पति परिवार से भी बड़ा कोई होता है अरे भगवान ने उसे बनाया ही इसीलिए है की वो सारा जीवन दूसरों की देखभाल करे उनकी सेवा करे क्या और कोई जीवन है उनका | पति उनका परमेश्वर होता है सारा जीवन उनके चरणों में गुजार देना चाहिए कभी कदार यदि उसको गुस्सा आये और पत्नी को पिट दे तो उसका प्यार समझ कर ग्रहण कर लेना चाहिए और कुछ नहीं कहना चाहिए पर इनको देखो वर्मा जी अपनी पत्नी को पिटते थे उनके बीच में कूद पड़ी अरे भाई ये उनके परिवार का आपस का मसला है जब वर्मा जी के बड़े भाई भाभी और पिता जी माता जी कुछ नहीं कर रहे है तो आप को पति पत्नी के बीच जाने की क्या जरुरत है कभी कदार पति ने पिट दिया तो क्या हुआ आखिर प्यार भी तो करता है एक दो झापड़ खा लेने में क्या बुराई है मुझे तो सारी गलती औरतों की ही लगाती है क्या जरुरत है पति से झगड़ा करने की चुप चाप वो जो कहे गाली दे सुन लेना चाहिए ज्यादा बोलेंगी तो मार तो खायेंगी ही ना | चुप रहेंगी तो दो झापड़ में पति शांत हो जायेगा और कुछ देर में भूल जायेगा आप भी भूल जाइये | पर ये समझती नहीं है उफ़ ये घर तोडू औरते |
एक नारी तो अपना अस्तित्व खो कर ही सही जीवन पाती है उसका काम तो बस बच्चे पैदा करना उसे अच्छे संस्कार देना और उनका पालन पोसन करना है | जब तक कोई स्त्री प्रसव आनंद सह कर किसी पुत्र को नया जीवन नहीं देती है वो संपूर्ण नहीं होती है | पर ये निकल पड़ी है कि बेटियों की भी पहचान होनी चाहिए उनका भी नाम होना चाहिए उनका अपना अस्तित्व होना चाहिए उनको भी घर से बाहर निकल कर काम करना चाहिए का नारा लेकर | एक ज्ञानी ने हमें बताया है देश में महिलाओ के खिलाफ अपराध इसी के कारण बढ़ गये है क्योंकि वो घर से बाहर निकल रही है | सीधा हिसाब है की जब वो घर के बाहर निकलेंगी ही नहीं तो उनके खिलाफ कोई अपराध होगा ही नहीं ना | चुपचाप घर में बैठिये ना, किसने कहा है घर से बाहर जाने के लिए | पहले घर से बाहर निकल कर पुरुषों को उकसायेंगी फिर जब वो कुछ कर देगा तो तमाशा खड़ा कर देंगी | दोष तो महिलाओ का है आप गई ही क्यों उसके सामने ना आप उसके सामने जा कर उसे उकसाती ना वो कुछ करता उसमे उस बेचारे का क्या दोष है | पर ये मानती कहा है उफ़ ये घर तोडू औरते |
अरे इन्होंने तो कामवालियों तक के घर नहीं छोड़े उसे भी तोड़ डाला वो कामवाली भी बेवकूफ़ एक दिन रोते हुए इनके पास चली आई कहने लगी की जो कमाती है वो सब पति छीन लेता है और अपनी मर्ज़ी से उसे खर्च करता है शराब जुए में उड़ा देता है बच्चों के फ़ीस के पैसे नहीं है | लो जी चली गई उसके घर और उसके पति को धमका आई की आज के बाद यदि उसने पैसे छीने तो उसकी शिकायत पुलिस से कर देंगी और उसे छोड़ आया वहा जी वही जहा शराब वराब छुड़ाने है | क्या किया क्या जाये इनका इनको इतनी भी समझ नहीं है की जब अपना सब कुछ पति का है तो क्या पैसा उसका नहीं है आखिर कोई महिला कमाती ही क्यों है इसीलिए ना की पति के साथ खर्च में हाथ बटा सके जब बेचारे पति के शराब जुए का खर्च कम पड़ेगा तो पत्नी से नहीं लेगा तो किससे लेगा | आखिर एक नारी का धर्म ही क्या है अब जा कर जाना है की पुरुषों को खुश रखना तभी तो वो अपने पत्नी माँ या बेटी बहन को खुश कर सकते है वो दुखी रहेंगे तो सभी को दुखी करेंगे | पर उफ़ इन घर तोडू औरतों को क्या पता |
याद करीये हमारी सभ्यता हमारी संस्कृति को कैसे नारिया अपना सर्वस्त्र निक्षावर करके भी अपना घर बचाती थी | भले पति पिट पिट कर मार डाले ससुराल वाले दहेज़ के लिए जला दे पर कभी मायके वापस नहीं आती थी अपना घर नहीं तोड़ती थी | माँ की वो सिख नहीं भूलती थी की बेटी जिस ससुराल में तेरी डोली जा रही है वही से तेरी अर्थी निकलनी चाहिए | पर आज इन नारी वादियों के कारण लोगो के घर टूट रहे है ये नारियो को बिगाड़ रही है हमारी संस्कृति का ख़राब करके रख दिया है | इनकी इन हरकतों से तो सीता माता भी दुखी है |
खुद इनको तो सब कुछ मिल गया है एक समझदार पति दो प्यारी बेटिया सम्मान और प्यार करने वाले सास ससुर समाज में नाम और पहचान खुद का घर तो ये खूब संभालती है पर दूसरों का घर तोड़ती है | उफ़ ये घर तोडू औरते |
कल आई थी मैडम जी मेरे पास सबकी खबर सुनाने कहने लगी " आज कल दिन ठीक नहीं चल रहे है तलवार जी के कुल के चिराग उनके बेटे ने उन्हें घर अपने नाम करके घर से निकल दिया है बेचारे बेटी के पास रह रहे है | नारायण जी का बेटा वही आस्ट्रेलिया में ही बस गया है पर वो किसी को बताते नहीं क्या बताये किसी के साथ रहता है किसी थॉमस के साथ हा बेटी बड़ी अच्छी पोस्ट पर पहुँच गई है सीना फूला कर सबको बताते है | राय साहब की बेटी की शादी उसी लड़के के साथ हो गई है | लड़के ने अपने घर वालो की मर्ज़ी के खिलाफ शादी कर ली | अग्रवाल जी की बेटी का तलाक हो गया है उसकी भी दूसरी शादी तय हो गई है | वर्मा जी तो पुलिस की एक झाड़ के बाद ही सुधर गए | कामवाली के पति की भी शराब जुए की लत छूट गई है अब ढंग से काम करता है कही | " अपनी झूठी वाह वही करके मैडम जी चलती बनी | पर जो भी हो वो है तो घर तोडू औरत ही |
RAJAN said...
ReplyDeleteहे ईश्वर ! इन घर फोडू औरतों को थोडी अक्ल दे।ये इन्हे क्या हो गया हैं?हमने इनके लिये क्या क्या नहीं किया ।इन्हे गृहशोभा,गृहलक्षमी या देवी जैसे तमगे दिये।देवी मानकर इन्हे तेरे बगल में बिठा दिया।ये समझाने के लिये की पति की सेवा में क्या सुख हैं,घर घर में हमने लक्षमी,विष्णु जैसे आदर्श जोडे की तस्वीरें लगवाई।लेकिन इन्हें लक्षमी के पैर दबाना तो याद रहता हैं पर उसके चेहरे की मुस्कान नहीं दिखाई देती।इन्हे सीता की अग्नि परीक्षा याद रहती है पर ये नहीं दिखता कि आज भी हम सीता का नाम राम से पहले लेते है? फिर भी ये देवी के बजाए इन्सान ही बने रहना चाहती हैं।हे ईश्वर अब तू ही कुछ कर,हम घर जोडू पुरूष तो इनके आगे हार चुके हैं।
Dr. Amar Jyoti said...
सामन्ती मनोजगत में घर का अर्थ होता है पुरुष की रियासत और नारी की हैसियत होती है प्रजा जैसी। अब अगर कोई प्रजा को उकसाने लगे तो गालियां त्प पड़ेंगी ही। एक धारदार आलेख के लिये बधाई। नारी ब्लॉग पर सिर्फ इन दो महान लोगों ने ही लेख को अच्छे से समझ और मेरा साथ दिया इस पोल खोल में दोनों का मै खास धन्यवाद देना चाहूंगी और आशा करती हु की और लोग भी मेरा इसमे साथ देंगे |
देखा, आज दर्द हुआ आपको भी। हमें भी ऐसा ही बुरा लगता है, जब हम उल्टा सीधा लिखते हैं और टिप्पणियां दे जाते हैं कि बहुत अच्छा लिखा। सारी मेहनत पर पानी फ़ेर देते हैं लोग बाग।
ReplyDeleteलेख लंबा है तो क्या हुआ, हमें हलाल पसंद नहीं है। एक ही बार में पढ़ गये सारा।
इन घरतोड़ू औरतों का कोई कुसूर नहीं है जी, आजकल सारा सीमेंट मकान बनाने में लगा देते हैं लोग, प्रेम और विश्वास का थोड़ा सा सीमेंट घर बनाने में भी लगायें तो इन औरतों की क्या मजाल कि घर तोड़ दें।
बहुत भिगो भिगो कर मारे हैं आपने आज। इस स्टाईल में आवाज कम होती है और असर ज्यादा। ये अच्छा हुआ कि आपने ये पोस्ट यहां अपने ब्लॉग पर डाल दी, नारी ब्लॉग पर हम नहीं जाते और वंचित रह जाते इस मास्टर पोट से।
नींद आ रही है, कुछ उलटा सीधा न लिक्खा जाये कहीं।
भारत की चिर प्रासंगिक और परिवार को स्थायी बनाए रखने वाली सीखों को अपने स्वार्थ या संदिग्ध उदेश्यों के वजह से गलत सन्दर्भ में पेश करने वाली समाज की शत्रु स्त्रियों और सस्ती सोच वाले पुरुषों और मान लेने वाले बुद्दिहीन स्त्री पुरुषों पर अच्छा व्यंग है , यही कमी है हमारे देश में तभी तो इस संस्कृति को विदेशी अपने सलेबस में शामिल कर के आगे बढ़ना चाहते हैं कोई पूर्वाग्रह नहीं रखते वो दिल में शायद , इन्ही तमगो से सोना निकालने की सोच रहे होंगे जो हमने ठीक से देखे भी नहीं और फेंक दिए , उदाहरण के तौर पर गणपति [आपके लेख से नहीं लिया है .. उदाहरण है ] का जो रूप है उसमें मुखिया के लिए कितनी सीखें होती है सार बाते सुनना , दूर दृष्टि रखना आदि पर लोगों के पास सोचने का नहीं लिखने का वक्त है बस
ReplyDelete@ इनकी इन हरकतों से तो सीता माता भी दुखी है |
अब सीत्ता से सीता माता हो गयी .. हा हा हा ...... सीता माता दुखी है की उन्हें समझ में नहीं आ रहा की वो स्त्रियों की ढाल है , हास्य की पात्रा है , या क्या है ?? दोधारी विचार वाली नयी पीढ़ी बिना जानकारी के उन्हें पीडित क्यों मानती है और मानती है तो उनपर बने जोक्स पर हंसती क्यों है ??
मैं विरोध नहीं किया और अपनी बात भी कह दी
घर तोडू स्त्रियों शब्द का प्रयोग
ReplyDeleteदरअसल मंथरा टाइप की स्त्री के लिए किया जाता है [नारीवादी के लिए नहीं ] , पूर्वाग्रह किसी मन्थरा से कम नहीं होते ...... खैर आगे बढ़ते हैं.... घर तोडू स्त्रियाँ अक्सर पुरुष का सहारा लेकर स्त्री पर वार करती हैं और बदनाम पुरुष होता है , आप लोग तो मान भी लेते हो , सोचने का तो काम ही नहीं है ना , ये ट्रिक न चली तो फिर किसी सीधी साधी स्त्री को कोई हित दिखाकर उसके पूरे परिवार के लिए परेशानी खड़ी कर देना ..अंत में भी राम जैसे पुरुष को ही बदनामी झेलनी होती है , ये ट्रिक भी नहीं चली तो फिर स्त्री संगठन तो है ही जहां प्रवेश की न्यूनतम योग्यता स्त्री होना ही है बस
अब ये भी सोचिये अगर ऐसे ही मेहनत से कोई पुरुष भी व्यंग लेख लिखने पर आ गया तो क्या होगा [वो भी रेफरेंस के साथ] क्या ये समस्या का हल होगा ???
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ReplyDeleteअंशुमाला जी,
हर व्यक्ति, किसी बात को सही परिपेक्ष्य में समझ ही नहीं पाता इसलिए वो अपनी भड़ास निकालता है कहीं न कहीं। कुछ लोग नारी को प्रवचन देने में ही अपनी महानता समझते हैं । ऐसे लोगों से ज्यादा अपेक्षा नहीं की जा सकती।
धारदार लेखन के लिए बधाई।
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बात ये नहीं हैं कि धर्म में क्या गलत है और क्या नहीं बात ये हैं कि इसका नाम लेकर बार बार स्त्री मुक्ति के सवालों को बिल्कुल ही खारिज क्यों कर दिया जाता हैं और फिर इसके नाम पर ज्यादा प्रतिबन्ध स्त्रियों पर ही क्यों हैं?मंथरा को कोई सही नहीं बता रहा है लेकिन नारिवादियों का सवाल सिर्फ इतना है कि राम को उनकी तमाम खामियों(अग्निपरीक्षा,शूर्पनखा का अपमान,सीता त्याग,शम्बूक वध आदि) के बावजूद भी मर्यादा पुरूषोत्तम माना गया पर कैकेयी को उसकी छोटी सी भूल के लिये आज तक क्षमा नहीं किया गया आज भी कोई माँ अपनी बेटी का नाम कैकेयी के नाम पर नहीं रखती ।पुरूष अपने बीवी बच्चों को सोता छोड जाये तो भी महात्मा कहला सकता हैं परन्तु ऐसी स्त्री समाज मेँ कुलटा क्यों कहलाती हैं?(आशा है इस बार गोरव भाई नाराज नहीं होंगे)
ReplyDeletebaat me dam hai
Deleteआज ही के दिन इसी खास पोस्ट पर कमेन्ट वो भी मेरी तारीफ में,वो भी बेनामी होकर ।आपका गेम क्या है डीअर ?
Deleteआजकल वैसे भी बेनामियो के साथ मेरा पंगा चल रहा है।आपको तारीफ करनी ही है तो नाम के साथ सामने आएं।
साकारात्मक अंत लाकर, सम्भावित व्यंग्य!!
ReplyDeleteबधाई आपका लेखन 'धार'दार है। 'सार'गर्भित्।
मित्र राजन,
ReplyDeletehttp://my2010ideas.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html?showComment=1286953267469#c2220651693754517500
@संजय जी
ReplyDeleteघायल की गति घायल जाने आज इसका मतलब अच्छे से समझ गई और आप के दर्द को भी | प्रेम और विश्वास तो ऐसी चीज है की अगर ये हो तो दुनिया में कोई समस्या ही ना रहे और ना हो तो घर क्या इन्सान और देश भी टूट जाते है |
पूरे एक हफ्ते नमक के पानी में भिंगो कर रखा था जरुरत पड़े तो कभी आप भी आजमा के देखिएगा | और काहे नीद हराम कर कर के टिपियाते है देखा नीद में पोस्ट को पोट लिखा दिय ना हम तो कह चुके थे की किस्त में पढ़ लीजियेगा |
@ दिव्या जी
यदि हम सभी किसी बात को सही परिपेक्ष्य में लेटो तो कोई परेशानी ही नहीं होती पर ऐसा नहीं होता यही तो परेशानी है | धन्यवाद
@ राजन जी
सत्तासीन व्यक्ति अपनी सत्ता बचाने के लिए हार हथकंडे अपनाता है धर्म समाज नारी की सुरक्षा किसी के भी नाम पर | अपने मुलभुत अधिकारों के लिए नारी को खुद ही संघर्स करना होगा धार्मिक सामाजिक मान्यताओ को तोड़ कर |
@ गौरव जी
सिर्फ उन सवालो का जवाब दे रही हु जो पोस्ट की बात तो ठीक से समझा सके |
मेरे लिए ना तो सीता माता दुखी है और ना ही वो किसी से पीड़ित है वो एक ऐसी शक्तिशाली चरित्र है जिन्होंने लंका में भी रावण से अपनी रक्षा खुद की थी और स्वाभिमानी भी | सीता माता दुखी है इन नारीवादियो से ये आपने कह था अपनी पोस्ट पर |
नारीवादियो के लिए घर तोडू शब्द मैंने नहीं दिया है ये ज्ञान तो ब्लॉग जगत के कुछ महान लोगों ने मुझे दिया है मैंने तो उनके काहे शब्दों को ही उठा लिया है |
पोस्ट में ये कही भी नहीं लिखा है की नारी पर सारे अत्याचार पुरुष ही करता है | इसलिए इसी नारी बनाम पुरुष ना समझे |
@ पाठको के लिए
कुछ कमेन्ट पोस्ट से निकाल दिये गये है क्योकि वो पोस्ट के विषय में नहीं थे इसलिए नहीं कि वो आलोचनात्मक थे |
अंशु आपका लेख बहुत ही शानदार है ! हा ये सच है कि आजकल नारीवाद का जो झन्डा लिए घुमती है उनके महान कार्य कुछ ऐसे ही होते है ! दूसरो के घर में आग लगा कर या इधर से उधेर बाते लगा कर अपने आपको सबसे प्रगतिशील साबित करने कि कोशिश करती रहती है ! इनके लिए हम मंथरा शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते क्यों कि मंत्र ने मात्र कैकेयी को सलाह दी थी ना कि कौशल्या या सुमित्रा को ! और ये एक सामाजिक व्यंग है ना कि धार्मिक या व्यक्तिगत ! इन नारीवादी को पुरुष के सहारे कि जरूरत नहीं होती बल्कि पुरुष तो इनका गुलाम होता है क्यों कि शाम को चाय के साथ जो चटखारे भरे खबरे मिलती है वो इन्ही से मिलती है ना कि किसी न्यूज़ चैनल से !
ReplyDeleteठीक है जो भी है ,
ReplyDeleteमैंने मेरे ब्लॉग पर उत्तर दे दिए हैं जो शायद कुछ समय बाद हटा लिए जाएँ
मैंने भी काफी नई पुरानी टिप्पणियों को सुधारा [हटाया ]है
धन्यवाद .. सब ठीक है
लगता है इस बात को यहीं समाप्त कर देना चाहिए अब
ReplyDeleteक्योंकि सभी का समय कीमती होता है
5/10
ReplyDeleteविचारणीय
अंशु व्यंग्य तो अच्छा है | कुछ अच्छे मुद्दों पर ध्यान भी दिलाया सही कहा है की बेटी बेटे के साथ कोई भेद भाव ना करने की बात करने वाला भी किसी ना किसी समय उनसे भेद भाव करता है भले अनजाने में ही सही, उच्च शिक्षा उनमे से एक है |
ReplyDeleteok so because i did not understand you repeated it here
ReplyDeletewhere is naari blog link
!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बहुत ही धारदार व्यंग्य ...लोग नारी का पक्ष लेने वाली उनके हित का कहने वालियों को इन्हीं संज्ञाओं से नवाज़ने लगे हैं...या तो नारीवादी...या घर तोड़ू औरतें....क्यूंकि उनके अहम् को सहन नहीं होता कि नारी होकर रास्ते कैसे दिखा गयी, अपने दिमाग से कुछ कैसे सोच लिया.....उसे तो सर झुका कर सब कुछ सह कर सिर्फ महान बनने का अधिकार प्राप्त है.
ReplyDelete@ सुज्ञ जी
ReplyDeleteटिप्पणी दे कर दुबारा उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद | सकरात्मक अंत इसलिए था की लोग इसके फायदे तो समझ सके जैसे कई बार ऐसा होता है की हम ये सब होते देखते है और कुछ करना भी चाहते है पर कर नहीं पाते क्योकि गलत करने वाला हमारा करीबी होता है और हम उससे अपने सम्बन्ध नहीं बिगाड़ सकते है तो लगता है की काश कोई और आ कर ये सब ठीक कर दे या तो उसे समझा दे या अच्छा सबक दे ताकि वो सुधर सके और ये गलती ना दोहराए और कई मामलों में ये लगता है की काश किसी ने पहले आ कर इस बारे में बता दिया होता तो अच्छा होता, तो उस समय ये तीसरा सकरात्मक भूमिका निभा सकता है हम उसकी मदद ले सकते है कुछ मामलों में |
@ विनीता
बहुत दिनों बाद आई आप कोई नई पोस्ट भी नहीं आई आपकी काफी दिनों से हम इंतजार कर रहे है | हा टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
@ उस्ताद जी
शुक्र है इस बार पास कर दिया धन्यवाद |
@ देबू
किसी व्यंग्य को लिखने का मकसद यही होता है की लोगों का ध्यान उन मुद्दों की तरफ जाये जिस पर हम सोचते नहीं है और जाने अनजाने खुद भी गलत करते जाते है |
@ रचना जी
तकनीकी समस्या है
@ रश्मि जी
बिल्कूल सही कहा यदि यही काम कोई पुरुष करे तो उस पर इस तरह के व्यंग्य बाड़ नहीं चलेंगे | कुछ लोग यही समझते है की किसी के लिए अच्छा काम करने का अधिकार भी सिर्फ पुरुषो को है |
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteघर तोड़ू शब्द ही अपने आप में सशक्त व्यंग्य है । व्यंग्य की ताकत को कम मत आँकिये . परसाई जी ने व्यंग्य से ही बहुत उथल पुथल मचाई है । लेकिन गम्भीर लेखन का अपना मह्त्व होता है और यह महत्व समय तय करता है ।
ReplyDeleteजऊ अस बात कहस घर फोरी
ReplyDeleteतऊ धर जीभ कढ़ाऊँ तोरी
यह तुलसी दास जी ने कहा है.
पहले तीन पैराग्राफ पढ़ लिए ... ..
ReplyDeleteयह कड़वा सच है कि हमारे समाज में अधिकतर जगह लड़कियों के साथ सौतेला बरताव होता है ! लड़का बड़े होकर चाहे जूते लगाए मगर प्यारा वही होगा और बेटी जो बचपन से लेकर मरते दम तक अपने पिता भाई को नहीं छोड़ना चाहती उससे शादी होते ही घर की महत्वपूर्ण बातें उससे छिपाई जाने लगती हैं !
अधिकतर परिवारों में निकम्मे लड़के को, ले देकर भी, बी टैक और मेधावी बेटी को एम् ए में दाखिला दिलाया जाता है ! बच्ची के आंसू पोंछने के लिए कहा यही जायेगा कि हम अपनी बेटी को खतरों वाली जगह अथवा अपनी आँखों से दूर नहीं भेज सकते ! सच्चाई यही है कि उस मासूम बच्ची के भविष्य के बारे में कोई नहीं सोचता कि शादी के बाद यह अपने पैरों पर कैसे खड़ी हो पायेगी ! हाथ पीले कर अपने घर विदा कर दो बस हमारा इतना ही लेना देना है !
अफ़सोस यह है कि अक्सर माँ भी इस अन्याय में इस बच्ची का साथ नहीं देती ! शुभकामनायें !
बाकी अगली किश्त में पढूंगा :-))
@ सीता माता दुखी है इन नारीवादियो से ये आपने कह था अपनी पोस्ट पर |
ReplyDeleteअरे मेरी भोली बहना मैंने सिर्फ इतना ही कहा होगा की सीता माता दुखी है इन "सीता के दुखों पर हंसने वाली [जोक्स की बात ]" या /एवं "राम की बुराई करने वाली" और इस आधार पर भी खुद को स्त्री वादी समझने वाली छद्दम स्त्री वादियों से ..आप कभी भी मेरे लेख पूरे नहीं पढ़ती हो लगता है :))
अपने पति की बुराई [काल्पनिक और मनघडंत ] सुन कर किसी भी सभ्य स्त्री को अच्छा नहीं लगेगा |
[अनुरोध है कृपया इस कमेन्ट को मत हटाइएगा , ये सिर्फ स्पष्टीकरण है बहस नहीं ]