ये तो सभी जानते है की इस बार का नोबेल शांति पुरस्कार चीन के ल्यु श्याओपो या लिउ शाओबो ( उनके ये दो नाम सामने आ रहे है जो सही हो वही वाला पढ़ा ले ) को दिया गया है वो चीन में लोकतंत्र के लिए आवाज़ उठा रहे थे ( ऐसा हिंदी अखबारों में लिखा है) इसीलिए उनको जेल में डाल दिया गया है और उनकी पत्नी लिउ शिया को भी घर में नजर बंद कर दिया गया है | निश्चित रूप से ये चीन के लिए ये पश्चिम का षडयंत्र है उसे अस्थिर करने के लिए उसके विचार धारा को ख़राब साबित करने के लिए लेकिन चीन ने कहा है की इस काम से उसकी विचार धारा पर कोई असर नहीं होगा ( फिर नार्वे को धमकी देने की क्या जरुरत थी या उसके राजनयिक से बात निरस्त करने की क्या जरुरत थी ) अब इन सब के बीच दुनिया में लोकतंत्र फ़ैलाने का ठेका लिया अमेरिका कैसे चुप रहता उसने भी अपना मुँह खोला और बोला की नोबेल पुरस्कार विजेता की पत्नी को आज़ादी दी जाये और उसे मानवाधिकार की याद दिलाई ( उसके सैनिक युद्ध बंदियों और युद्ध क्षेत्र से पकडे गए लोगो के साथ जो कर रहे है वो भी मानवाधिकार के अंतर्गत ही हो रहा है ) | नोबेल शांति पुरस्कार कितने निष्पक्ष होते है ये हम सभी को पता है तभी तो पिछले साल वो दो देशों को युद्ध में झोकने वाले अपने पूर्व के राष्ट्रपतियों की नीतियों को ही आगे बढ़ने वाले उनके नए नवेले राष्ट्रपति को दे दिया गया हमारी भाषा में कहे तो उनके हाथों की मेंहदी भी नहीं छूटी थी बस एक महीने बाद ही दे दिया गया | जी हा पुरस्कार उनके हाथों में भले कुछ महीनों बाद आया था पर उनका नोमिनेशन तो तभी कर दिया गया था जब उनको अपना पद संभाले एक महिना ही हुआ था | और आज की तारीख में अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतियोगी दादागिरी करने में चीन ही है अब उसके इस काम से चिढ़े अमेरिका द्वारा उसे इस तरह से चिढाने के कई काम होते है |
संभवतः भूमिका अच्छे से बन गई है अब मेरे भयानक विचार पर आते है सोचिये की कल को हमने अमेरिका से परमाणु समझौता कर लिया बिजली बनाया अपना विकास किया मजे लिए और वो नहीं किया जो वो हमसे चाहता है और जो हमारा दूसरा पड़ोसी उसके आगे करता है, दुम हिलाना, भाई हम अपने पड़ोसी के तरह बिना सिंग वाले बुद्धिहीन जीव तो है नहीं जो अमेरिका की हर इच्छा पूरी करते चले चलो हमने इंकार कर दिया और बन बैठे चीन की तरह उसके दुश्मन तो सोचिये की हमारे यहाँ वो किसको नोबेल पुरस्कार दिला सकता है | दावेदार तो कई है जिसको नोबेल मिलने पर हमें भी वैसे ही हजम नहीं होगा जैसे की आज चीन को नहीं हजम हो रहा है | सबसे पहला नंबर आता है कश्मीर में बैठे कई अलगाववादी नेताओ का जो दावा करते है कि वो तो शांतिपूर्ण तरीके से भारत का विरोध कर रहे है और फिर समय बदलते और नेताओ को बदलते देर थोड़े ही लगती है जब बात नोबेल की हो और साथ में १४ लाख डालर भी मिलते है तो मुहम्द अज़हर से ले कर बड़े से बड़ा हिंसक आतंकवादी दावा कर सकता है की उसने तो सारा विरोध अहिंसक ही किया है उससे बड़ा शांति का दूत कोई और है ही नहीं | अब छविया बदलते देर थोड़े लगती है आखिर इंदिरा जी ने यासिर अराफ़ात को भी गले लगाया था ( ऐसा हमने पढ़ा और सुना है ) उनका इतिहास सभी जानते होंगे की वो अपने शुरूआती जीवन में क्या थे और इजराइल उनसे क्यों इतना चिढ़ता था | चलिए वापस अपने देश आ जाते है तो मतलब ये की तब तक कश्मीर में इस पुरस्कार के लिए कई दावेदार हो सकते है और सभी को नोबेल के लिए शार्ट लिस्ट किया जा सकता है जैसे इस बार चीन से तीन और ऐसे ही लोग शार्ट लिस्ट किये गये थे यानी कुल चार दावेदार चीन की तरफ से थे पर हम उनको पछाड़ देंगे क्योंकि हमारे पास कश्मीर के अलावा बब्बर खालसा , उल्फा, नक्सली नागा विद्रोही बहुत सारे दावेदार हमारे प्यारे पड़ोसियों की कृपा से मौजूद है | सबसे तगड़ी दावेदारी किसकी होगी ये इस बात पर निर्भर होगा कि अमेरिका से उस समय हमारे दोनों पड़ोसियों के रिश्ते कैसे है |
एक और ख्याल है सोचिये की नोबेल कोई छोटा मोटा पुरस्कार तो है नहीं अन्तराष्ट्रीय स्तर का है और काफी सम्मानित भी है उसकी तो बात ही दूसरी है लोग तो छोटे मोटे पुरस्कारों के लिए ना जाने क्या क्या कर जाते है सरकारों के तलवे चाटने से लेकर उनके दिये पदों पर जी हजुरी करने लगते है तो फिर अपनी छवि बदलना कौन सा मुश्किल काम है | अब सोचिये की अचानक से ये ख्याल दाउद को आ जाये की मेरे लिए दो देश आपस में लड़ रहे है चलो मैं ही आत्मसमर्पण कर देता हुं इससे दो देशों की दुश्मनी कम हो जाएगी और बदले में ये शांति स्थापित करने के लिए नोबेल पर अपना दावा ठोक दूँगा हो सकता है अमेरिका भी मेरा साथ दे और भारत से कहे की आप इस शांति के मसीहा को जेल में नहीं डाल सकते है इसने तो दो देशों के बीच शांति फैलाई है ये आत्मसमर्पण करके अपना प्रायश्चित करना चाहता है इसे शांति से करने दे | और मान लो की जेल से छुटकारा नहीं भी मिला तो भारत के जेलों से हम जैसो को डरने की क्या जरुरत है खुद वहा के मंत्री कहते है की अबू सलेम को फाईफरह कर भी वो चकाचक रहते है अरे थोड़ी बहुत परेशानी हुई तो भाई नोबेल के लिए वो भी सह लेंगे | कौन सा मेरे जीते जी मेरे मुकदमो का फैसला आने वाला है और हो भी गया तो क्या गारंटी है की मुझे मिली फाँसी की सजा मुझे दे दी जाये अफजल गुरु का नंबर २७ था मेरा जब तक आयेगा तब तक तो शायद मैं जिंदगी के सारे मजे लेकर अपनी प्राकृतिक मौत मार चूका होंगा |
ख्याल भयानक है पर क्या पता हमें कब सच हो जाये बुरे के लिए हमेशा पहले ही तैयारी कर लेना चाहिए एक एंटी ख्याल भी साथ में अभी अभी आ गया है | जी मेरा नहीं है एक फिल्म से डाका डाल रही हुं फिल्म का नाम है " तेरे बिन लादेन " जी हा बिल्कुल सही सोच रहे है आप हमें भी एक अदद नीरू की जरुरत होगी जिसे लादेन बनाया जा सके बस उससे अमेरिका के खिलाफ सारे युद्ध बंद करने अमेरिका के साथ दूनिया से माफ़ी मागने और आगे शांति के लिए ही कार्य करने वाले डायलॉग बुलावा कर रिकार्ड करना है और जारी कर देना है दुनिया में और फिर मांग करनी है की नारे लगने है |
नोबेल दो नोबेल दो लादेन को नोबेल दो
शांति के मसीहा को जल्दी से नोबेल दो
हम शुरुआत तो अकेले करेंगे पर हमारे साथ सारे इस्लामिक देशों का कारवाँ मिलता जायेगा और आवाज़ तेज होती जाएगी फिर चाहे तो हम खाड़ी देशों के साथ कूटनीति भी कर सकते है कि भाई साफ है कि लादेन को नोबेल दो नहीं तो तेल नहीं |
बोलिये विचार कैसा है
इस विचार से इतर एक बात - - - - मेरा मानना है कि दुश्मन की हर बात में बुराई नहीं देखनी चाहिए और उसकी हर गलती पर "उसने गलत किया" ये भी नहीं चिल्लाना चाहिए उसे अपने नफे नुकसान पर तौल कर बोलना चाहिए ( यहाँ दो देशों की बात हो रही है ) | भारत से ऐसी कूटनीति की उम्मीद तो नहीं थी ( क्योकि अन्तराष्ट्रीय कूटनीति में अक्सर वो कच्चा ही साबित होता है ) पर नोबेल पुरस्कार पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रया ना दे कर भारत ने मेरे हिसाब से तो अच्छा किया |
अच्छा विचार है !
ReplyDeleteहमारे सत्यम राजू को economics के लिए नोबेल दिया जाना चाहिए ... क्या ख्याल है :)
आज मानवाधिकार सिर्फ उसी का है जो नोवेल पुरस्कार पाता है....या लोभी लालची और भ्रष्टाचारियों के तलवे चाटने वाली मिडिया जिनको तरजीह देती है ..उनका क्या जो हर मायने में इंसान हैं ,सत्य की राह पर चलते हैं ,ईमानदारी को भगवान मानतें हैं और अन्याय के खिलाफ निडरता से आवाज उठाते हैं ..ऐसे लोगों को विश्व के किसी भी कोने में किसी भी प्रकार की कोई सुरक्षा और सहायता नहीं मिलती है | शर्मनाक है की हम उनके द्वारा दिशा निर्देश दिए जाने पर मानवाधिकर की आवाज को बुलंद करते हैं जो सबसे बड़े दुश्मन हैं मानवाधिकार के तथा हर मानवीय अधिकार को हनन कर उनका सत्ता की दलाली करना ही पेशा है ...भारत में ऐसे ही लोगों का पूरी सरकार और सत्ता पे कब्ज़ा है | शरद पवार जैसे भ्रष्टाचार के सम्राट के विरुद्ध हमारी मिडिया के पास कोई सबूत नहीं है या मिडिया सबूतों का सौदा करती है ...? जो भी हो अंततः सड़ तो ये देश और समाज ही रहा है ...मिडिया में ऐसे लोगों की संख्या बढती जा रही है जिनकी अगर किसी भी स्तर पर ईमानदारी से जाँच की जाय तो उनको देश और समाज का गद्दार घोषित करना मुश्किल नहीं होगा ...समस्या है जाँच हो कैसे ..? साधन सिर्फ और सिर्फ खुले आकाश के निचे इन सभी बड़े उद्योगपतियों और मंत्रियों की ब्रेनमेपिंग और लाई डिटेक्टर टेस्ट के जरिये जनसरोकार और उनकी संपत्ति से सम्बंधित सवालों का जवाब उनसे माँगा जाय ..ऐसा जबतक नहीं होगा तबतक कुछ भी अच्छा होना संभव नहीं ...आज भ्रष्ट मंत्रियों,राजनेताओं,अधिकारीयों तथा उद्योगपतियों के गठजोड़ से इस देश और समाज को हर तरह से लूटा जा रहा है और पूरे देश की व्यवस्था मूक दर्शक बनी बैठी है ...
ReplyDelete@ मेरा मानना है कि दुश्मन की हर बात में बुराई नहीं देखनी चाहिए और उसकी हर गलती पर "उसने गलत किया" ये भी नहीं चिल्लाना चाहिए उसे अपने नफे नुकसान पर तौल कर बोलना चाहिए ( यहाँ दो देशों की बात हो रही है ) |
ReplyDeleteवाह दोस्त! क्या बात है! बहुत सही कहा। आपसे सहमत। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोsस्तु ते॥
महाअष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
वाह क्या भयानक विचार है पर एक व्यक्ति और हो सकते है परवेज मुसर्रफ | जी हा अमेरिका के दबाव में आ कर कारगिल में अपने सैनिक यानी आतंकवादियों को पीछे नहीं खीचते और उनको बार बार हमारे सैनिक नहीं है कश्मीरी अलगाववादी है नहीं कहते तो दो देशों में तो युद्ध हो जाना था ना | उन्हें तो नोबेल मिलाना ही चाहिए |
ReplyDeleteहां मै भी चोंका था इस खबर को पढ कर लेकिन तभी मेरी शेतान बुद्धि मे अमेरिका की यह चाल आ गई, बाकी खुलासा आप ने बहुत सुंदर ढंग से कर दिया, धन्यवाद
ReplyDeleteजब अमेरिका की दादागिरी सभी जगह चल रही है तो किसी अंतराष्ट्रीय पुरस्कार में क्यों नहीं |
ReplyDelete@ सैल जी
ReplyDeleteमैंने तो सिर्फ शांति नोबेल की बात की थी आपने तो एक और लिस्ट बना दी जी हा इस तरह तो हम हर क्षेत्र का नोबेल जीत सकते है |
@ honesty project डेमोक्रेसी जी
आप की हर बात से सहमत हु पर ये भी एक ऐसा ख्याल है जो शायद कभी पूरा ना हो |
@ मनोज जी
मुझसे सहमत होने के लिए धन्यवाद |
@ देबू जी
वाह आपने तो लिस्ट में एक और नाम जोड़ दिया |
@ राज भाटिया जी
ये चाल तो सभी को समझ आ रही है पर कोई कुछ कर नहीं सकता है |
@ प्रेम जी
सही कहा
मुझे डर है कि कहीं आपके सपने भविष्य कि हकीकत ना बन जाएँ. ऐसे सपने सपनों में भी ना देखें.
ReplyDeletelijiye anshumala ji,
ReplyDeleteaapka lekh padhkar daaood bhai aur musharraf saahab ne to speech ki bhi taiyari shuru kar di jo wo noble milne ke baad denge(andar ki khabar hai).ab bataiye aise bhayanak vicharon ko net par daalne ki kya jarurat thi?
अच्छी पोस्ट |बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए साधुबाद |
आशा
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ReplyDeleteआज नोबेल पुरस्कार के नाम पर सर्वथा मज़ाक ही हो रहा है। क्या इस पुरस्कार को सही हक़दार कभी मिलेगा
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गांधी जी को नोबेल शांति पुरस्कार न मिलना और इसकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह तो खड़ा करता ही है।
ReplyDeleteमेरा मंतव्य भी यही है नोबेल पर
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