October 25, 2010

मौसम जी लीजिये एक और बेमौसम गोल गोल बातों की बरसात झेलिये - - - - - - mangopeople

 बे मौसम कुछ गोल गोल बातों की बरसात यहाँ भी होंगी मौसम जी ( १- मो सम कौन २- संजय ३- कुटिल अब ये आप का चौथा नाम ) दो घटनाएँ है यहाँ पर एक जो आप को पता है और दूसरी वो जो शायद आप को ना पता हो उसकी ही बात यहाँ करुँगी और आप उसमे अपनी जानकारी वाली बात जोड़ लीजियेगा | मैं ब्लॉग जगत में जब आई तो काफी डरी थी मैं एक आम महिला थी और ब्लॉग जगत को बुद्धिजीवियों का जगत समझती थी | यहाँ आते ही नारी समुदाय के लिए काफी अच्छी अच्छी बाते सुनने को मिली और नारी समुदाय  के लिए दिये एक कमेन्ट पर मेरे नाम को ही तोड़ मरोड़ दिया गया मुझे काफी गुस्सा आया कि मैं तो समझती थी की नारियो के लिए ऐसे घटिया विचार केवल आम, कम पढा लिखा पुरुष समुदाय ही रखता है पर पढ़ा लिखा पुरुष समुदाय भी ऐसी ही घटिया सोच रखता है कि नारी समुदाय किसी काम की नहीं है उनमें अक्ल नहीं है उनके पास बुद्धि नहीं है ये हिंदुस्तान है और यहाँ पर इस समुदाय को हम से दब कर ही रहना चाहिए ये हमारा घर है ये बाहर से आई है  आदि आदि  मुझे ये देख कर झटका लगा | मुझ पर निकली गई भड़ास को पढ़ने के बाद मेरी राय ऐसी बन जानी चाहिए थी कि पूरा पुरुष समुदाय हमारे बारे में गलत सोचता है ख़राब सोचता है हमें सम्मान नहीं देता है हम भी उस समुदाय के लिए ऐसा ही विचार रखेंगे | पर ऐसा होते होते रुक गया क्योंकि जहा मेरे नाम को तोडा मरोड़ा गया था वहा मुझसे पहले ही कोई और पुरुष उसका विरोध कर चुका था और वो भी जोर दार मैंने वहा कोई विरोध दर्ज नहीं कराया बस साथ देने वाले का धन्यवाद दे दिया | पूरे पुरुष समुदाय में से एक  पुरुष के विरोध ने पूरे नारी समुदाय में से एक नारी के मन में अपने समुदाय के लिए एक गलत भ्रान्ति बनने से रोक दिया | कोई नारी समुदाय से आ कर यदि उसका विरोध करता तो विरोध तो हो जाता पर मेरे दिल में बनने वाली भ्रान्ति बनने से नहीं रुकती | मैंने अपने अनुभव से हमेशा के लिए सिख ले ली पर कुछ लोग नहीं ले पाते है |
        आप जानते है की एक अकेले का विरोध कही ना कही असर करता है | आप ने भी एक बार किसी चीज का विरोध किया  था आप का साथ एक दो लोगों ने दिया पर सामने वाले पर कोई असर नहीं हुआ आप को भी लगा होगा की देखो विरोध का कोई असर ही नहीं हुआ पर असल में उसका असर उस समय भले सामने वाले पर नहीं हुआ हो पर कुछ दूसरों पर ज़रुर हुआ कि हा कुछ चीजों का विरोध तो होना ही चाहिए और सब को ये समझ भी आया की यदि यही पर इस का विरोध करके इसे बंद नहीं कराया तो ये और बढ़ता जायेगा  और अगली बार उनका ऐसा विरोध सबने किया की उन्हें पीछे हटाना ही पड़ा | अब आप समझ गये ना की कोई भी विरोध जो सम्मानित और जायज़ तरीके से करे तो वो बेकार नहीं जाता है | भले जिसका विरोध किया जाये उस पर कोई असर नहीं हो पर कही और ज्यादा असर कर जाता है |
         हम सभी नेताओं को गाली देते है की वो पवार का गलत  इस्तेमाल करते है लोगों को भड़काते है ज़िम्मेदारी से काम नहीं करते है अनुशासित नहीं रहते है अपने फायदे के लिए किसी को कुछ भी कह देते कर देते है  है | पर जब हमारे पास पवार आता है तो हम भी उसका गलत प्रयोग करने लगते है | कलम और आज के ज़माने में किबोर्ड का पावर कम नहीं है पर हम इस पावर का क्या प्रयोग कर रहे है क्या हम सभी अनुशासित है क्या हम देख रहे है की जिस कलम रूपी तलवार को हम अपनी भावनाओं के वेग में चला रहे है उससे कितना नुकसान हो रहा है | केवल दूसरों का नहीं खुद का भी नुकसान कर रहे है जो शायद अभी ना दिखाई दे पर एक दिन दिखेगा और तब तक उससे लगी चोट इतनी गहरी होगी की हम उसे ठीक नहीं कर सकेंगे |
              चिटठा जगत के जिस गंदे रूप को आप ने कल देखा वो हम में से कइयों ने काफी पहले ही देखा लिया है ( मेरी मिसेज टाइमिंग आप से भी काफी अच्छी है हर उस विवादित जगह पर पहुँच कर सब जान लेती हुं जहा नहीं जाती तो ज्यादा अच्छा होता ) पर एकता की शक्ति एक ऐसी चीज है जो इस तरह के लोगों का मुँह बंद रखने पर मजबूर कर देती है | पर जैसे ही एकता ख़त्म होती है हम सारा ध्यान एक दूसरे से लड़ने में लगा देते है  कोई तीसरा अपनी भड़ास अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने चला आता है | हम तो लड़ते रहते है और तीसरा उसका फायदा उठा ले जाता है | इसलिए कहा गया है की जुड़ने में बरक्कत है लड़ने में नहीं | अच्छा होता की हम सभी एक दूसरे से लड़ने के बजाये अपना ध्यान इस तीसरे पर लगाये जो हमें ज्यादा नुकसान पंहुचा सकता है |  
                                                उम्मीद है इस बार आप के साथ ही सबको ये गोल गोल बात समझ आई होगी | बस पढ़ते समय ध्यान रखिये की जो शब्द लिखा है उसके शाब्दिक अर्थों के साथ उसके पीछे की भावना क्या है | भावना ही मुख्य चीज होती है किसी व्यक्ति विशेष के साथ क्या हुआ इस बात से अनभिज्ञ भी रहिये तो कोई बात नहीं | मुद्दा समझ लीजिये |

17 comments:

  1. 3/10

    बातें तो कुछ अच्छी सी लगीं.
    लेकिन माफ़ी चाहूँगा कि प्रसंग, संगर्भ और निहितार्थ समझने में असमर्थ हूँ. थोडा उल्लेख भी किया होता तो बेहतर था.

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  2. प्रसंग क्या है, मैं नहीं जानती. पर मैं किसी भी नारी को कहे गए अपशब्द या व्यक्तिगत आक्षेप का विरोध करती हूँ. ऐसे मामलों में जहाँ एक स्त्री को सिर्फ स्त्री होने के नाते परेशान किया जाता है, मैं वहाँ कभी तठस्थ नहीं रहती. उस पहले वाले प्रसंग में जहाँ आपके नाम को तोड़ा-मरोड़ा गया था, मैंने उस ब्लॉग पर जाकर अपना विरोध दर्ज काराया था.
    अंशुमाला, मैं आपके साथ हूँ, इस बात पर सहमत कि अपनी बातों से किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. दूसरी बात ब्लॉगजगत को व्यक्तिगत रंजिश का अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए.

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  3. उस्ताद जी

    सारे ब्लॉग जगत को आप के धर्म के बारे में पता चल गया और आप को पोस्ट का प्रसंग ,संगर्भ और निहितार्थ भी नहीं पता चला |


    मुक्ति जी

    प्रसंग आप मेरी पिछली पोस्ट की चार पांच लाइनें पढ़ कर और परसों टॉप पर रहे पोस्ट को पढ़ कर जान जाएँगी और पुरुष और नारी के साथ लगाये गये मेरे एक और शब्द का सही अर्थ भी समझ जाएँगी |

    और उस पोस्ट पर तो मुझे बाक़ायदा निमंत्रण दे कर बुलाया गया था की देखिये यहाँ पर आपका कितना सम्मान हो रहा है मै उस पर दुबारा नहीं गई इसलिए आपकी टिप्पणी नहीं पढ़ सकी चलिए उसके लिए आज आप को धन्यवाद दे देती हु पर यहाँ मै उससे बड़ा मुद्दा उठा रही हु | वो किस्सा तो मात्र साधन है दूसरे मुद्दे को उठाने के लिए |

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  4. बहुत ख़ुशी और हैरत की बात है कि मुझसे पहले दूसरों को
    मेरा मजहब पता चल गया.
    बहुत रहस्यमयी हैं आपकी बातें.
    वैसे अगर मुक्ति जी की बातों का सार समझूँ तो मैं सिर्फ नारी के प्रति ही नहीं बल्कि किसी भी स्त्री-पुरुष अथवा धर्म-समुदाय के प्रति अपशब्द या आक्षेप का पुरजोर विरोध करता हूँ.

    god bless you

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  5. @उस्ताद जी

    आप के धर्म की जानकारी मैंने नहीं किसी और ने दी है | मैंने तो इनका प्रयोग सिर्फ इस लिए किया की आप सारी बाते समझ जाये की यहाँ क्या बाते हो रही है | जी हा आप नारी पुरुष से उठ कर वहा तक पहुच गये है जो बात मै कर रही हु |

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  6. .
    .
    .
    अंशुमाला जी,

    सब कुछ जानते समझते हुऐ भी केवल यही कहूँगा कि जब भी कहीं कुछ गलत भड़काऊ और किसी के लिये अपमानजनक लिखा देखो... तो विरोध अवश्य करो... परंतु यदि लेखक आपकी असहमति को सही तरीके से न लेकर उपहास या अपमान करने लगे... तो चुप ही रहना अच्छा है...

    कीचड़ में यदि लाठी मारेंगे तो चाहे जितने जतन करो... कुछ छींटें शरीर पर पड़ ही जायेंगे... बिना बात एक बार और नहाना व कपड़े बदलने पड़ेंगे... समय व श्रम तो व्यर्थ हुआ ही... और कीचड़ फिर भी कीचड़ ही रहा!


    ...

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  7. प्रवीण जी

    कुछ लोग ब्लॉग जगत में कुछ खास मकसद ले कर आये है जब वो अपने मकसद के हिसाब से कुछ लिखते है तो उतना फर्क नहीं पड़ता है क्योकि वहा पर सिर्फ उनसे सहमत लोग ही जाते है और वहा असहमति जताने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा इसलिए वहा असहमति नहीं जताती हु | लेकिन कुछ जगहों पर असहमति जाताना जरुरी है क्योकि वहा पर इस तरह का कुछ लिखना काफी फर्क डालता है तो वहा पर सभी भाषा में असहमति जताती रहूंगी | उत्साह बढ़ने के लिए धन्यवाद |

    रही बात मेरे ऊपर कीचड़ आने की हा एक दिन तक तो उससे दुख हुआ पर आचानक मेरा ध्यान इस तरफ गया की अनजाने में एक आम घरलू महिला को विद्वान कहा गया है उसे विद्वानों की श्रेणी में रख दिया गया | बोलिए क्या ये बुरा है मेरे लिए, अरे दो दिन से तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं है की अब मै आम महिला से विद्वान महिला बन गई हु | जरा कुछ दिन इस उपाद्धि का आन्नद तो लेने दीजिये |

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  8. अंशु जी आप विद्वान हैं यह बात किसी के कहने की नहीं है। बहरहाल जिसे आप अपने लिए लिखा समझ रही हैं, वह बात किसी और के लिए लिखी गई है। हालांकि उसका संदर्भ भी वही है जो आपका है। उसके लिए भी व्‍यंग्‍य में ही लिखी है।
    बहरहाल गलत बातों का प्रतिरोध तो होना ही चाहिए। मैं इस बात से भी सहमत हूं कि प्रतिरोध जताने से फर्क पड़ता है। लेकिन एक सीमा के बाद ऐसे लोगों को उनके हाल पर ही छोड़ देना ही बेहतर है।

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  9. अंशुमाला जी,वो पोस्ट मैंने भी देखी थी और समझ गया था कि ये पोस्ट आई ही क्यो है।वहाँ आपने बताया की आप असहमति जताते हुए थोडी डरी हुई थी(सम्भवतः पहली बार)परंतु चलिये आपने हिम्मत तो की हमसे तो वो भी नहीं हुई ।शाम होते होते जब एक के बाद एक विकेट गिरने लगे और माहौल ज्यादा खराब होने लगा तो सोचा की अब कुछ कहने का फायदा नही हैं बाद मेँ तो वहाँ फाटक ही बंद कर दिये गये।आपकी टिप्पणियाँ बेवजह हटाई गई इस हरकत के प्रति मेरा विरोध यहीं दर्ज कर लीजिये।परन्तु एक गुजारिश हैं आप विद्वान न बने जैसी है वैसी ही रहें क्योंकि यहाँ विद्वान का मतलब क्या होता है आप देख ही चुकी हैं।

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  10. @ राजेश जी

    बहुत कन्फ्यूजन है राजेश जी मैं नहीं समझ पाई की आप किस पोस्ट की बात कर रहे है | हा पर मैंने ये लेख किसी ऐसी पोस्ट के कारण नहीं लिखा है जो मुझ पर लिखी गई है मैंने तो ये संजय जी की पोस्ट पढ़ कर लिखी है जो उन्होंने सतीश जी के गोल गोल बातों को ना समझ पाने के कारण लिखी है | चलिए जाने देते है ये सब |

    आप ने सही कहा हमारे विरोध का जो काम था वो तो हो गया और उनके लेख को और उसकी भाषा पढ़ कर ये भी पता था की मेरे विरोध का कोई असर नहीं होगा उन पर |


    @ राजन जी

    डरी तो मैं उनकी सार्वजनिक रूप से किसी को भी गाली दे देने की आदत से थी जो मैंने वहा लिखा भी था | इसी कारण उनको तीन पोस्टो से मैंने टिप्पणी देना बंद कर दिया था | लेकिन उस दिन वो लेख मेरे लेख के जवाब में आया था और उसकी भाषा काफी ख़राब थी उसका विरोध नहीं करती तो लगता की पूरा हिन्दू समुदाय ऐसी ही छोटी सोच रखता है | मेरी टिप्पणियाँ हटाई मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वो अपना काम कर चुका था लेकिन उन्होंने वो टिप्पणियाँ नहीं हटाई जो उन्होंने मेरे टिप्पणी के जवाब में लिखा गया था और एक पर तो मेरा नाम भी लिखा था |

    हा इस बात का भी अफसोस हुआ की मैं तो अपने पति को दिखा भी नहीं पाई की देखो लोग अब तुम्हारी पत्नी को विद्वान समझने लगे है | हा हा हा

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  11. अन्शुमाला जी:
    मान सकें तो मान लीजियेगा कि इस पोस्ट के बारे में मुझे अभी ही पता चला है, हालांकि इसके बाद वाली पोस्ट पर मेरा कमेंट पहले का है।
    जैसा कि आपने शीर्षक में ही लिखा है, इस पोस्ट में भी बरसात झेलने को मिल रही है। शायद मेरी पोस्ट ’अब मेरी बारी’ ने आपको व्यथित किया है। मेरा मकसद कोई तमाशा खड़ा करना या लड़ाई करना नहीं था, जो और जैसा मुझे लगा, जाहिर जरूर किया था। सतीश जी से मेरा तो कोई विवाद था ही नहीं, बल्कि किसी से कोई विवाद नहीं है। फ़िर भी दूसरों को अगर यह लगा कि मैं किसी मकसद से ऐसा कर रहा हूँ तो यह आपकी अपनी सोच है। मैंने अगर बात उठाई थी तो इस सोच के साथ कि एक तरफ़ हम दूसरों को किसी निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करते हैं और उन्हें सारे क्या कुछ भी फ़ैक्ट्स नहीं बताते हैं। और ऐसा एक जगह नहीं, कई जगह हुआ है। इस बात को उठाने में मेरा कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं था। हम सबसे ये आशा नहीं कर सकते कि वो हर घटनाक्रम को जानता ही होगा। गलत चीज का विरोध करना कहीं से गलत नहीं, मैं करूँ या आप करें, होना चाहिये। मैं खुद को नये ब्लॉगर्स में ही मानता हूँ, लो प्रोफ़ाईल ब्लॉगर्स में ही मानता हूँ और इस बात का मुझे कोई अफ़सोस नहीं है। समय की कमी कहिये या कुछ और, पूरे ब्लॉगजगत में कहाँ, क्या हो रहा है, कम से कम मैं तो नहीं जान पाता। लिमिटेड से ब्लॉग्स हैं, वहाँ रेगुलर रहने की कोशिश भी रहती है और यदि कोई नया ब्लॉग जमता है तो वहाँ कमेंट भी करते हैं और अगर कुछ सुधार लायक दिखे तो सुझाते भी जरूर हैं, आखिर हम भी अब तक सीख रहे हैं।
    आपके साथ कुछ गलत हुआ, दुख है। अगर गलत करने वाला मैं हूँ तो भी, अगर मैंने गलत करने वाले का समर्थन किया है तो भी खुद को कसूरवार मान लेता हूं। बताईयेगा जरूर, ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके।
    चिट्ठाजगत की जिस घटना का मैंने जिक्र किया था, उससे अपना वास्ता सिर्फ़ इतना ही है कि हम इस ब्लॉगजगत के सद्स्य हैं। मेरा आपका विरोध हो सकता है, लेकिन मेरे सामने कोई भी अपके बारे में अभद्र भाषा का प्रयोग करेगा तो मुझे दुख ही होगा। ’अतिथि देवो भव’ वाला विज्ञापन याद होगा आपको, हम क्या सिर्फ़ अपनी, अपनी बहन, बहू, बेटी के प्रति जिम्मेदार हैं?
    आपने अपना अनुभव बताया। जिस पुरुष ने आपके पक्ष में आवाज उठाई, उन्होंने बहुत अच्छा काम किया। अगर मैंने भी अपनी सामर्थ्यानुसार, या समझ के अनुसार ऐसे हालात में कुछ कहा तो यह बात नागवार गुजरने लायक नहीं है।
    मैंने शायद सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग पर अपने कमेंट में कहा था, ’बिटवीन द लाईंस’ के अर्थ समझने का उपदेश मुझे पहले भी मिल चुका है,अब यहाँ भी मिल रहा है। हो सकता है अब भी मैं बात की, इस पोस्ट की विशेषकर मुझे ऐडरेस करने का महत्व वास्तविक से कम या ज्यादा समझ रहा हूँ, तो क्या कर सकते हैं?
    आपके कमेंट्स, साफ़गोई और सेंस ऑफ़ ह्यूमर का प्रशंसक हूँ, और इसीलिये कभी कभी इस टाईप के कमेंट कर भी दिये हैं।
    शुरू में जिन नामों से नवाजा है, ये पहले से ही मेरे अपनाये हुये हैं अत: इनसे कोई दुख नहीं पहुंचा। मेरे कारण कुछ दिक्कत हुई तो उसके लिये खेद।
    वैसे मुझे ये नहीं स्पष्ट हुआ अब तक कि मैं किस दर्जे का कसूरवार हूँ, वही बिटवीन द लाईंस.....। बल्कि अब तक जो कमेंट एकदम साफ़ मन से कर रहा था, हो सकता है उन्हें भी गलत ही समझा जा रहा हो।
    खैर, देखी जायेगी।

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  12. अन्शुमाला जी:
    मान सकें तो मान लीजियेगा कि इस पोस्ट के बारे में मुझे अभी ही पता चला है, हालांकि इसके बाद वाली पोस्ट पर मेरा कमेंट पहले का है।
    जैसा कि आपने शीर्षक में ही लिखा है, इस पोस्ट में भी बरसात झेलने को मिल रही है। शायद मेरी पोस्ट ’अब मेरी बारी’ ने आपको व्यथित किया है। मेरा मकसद कोई तमाशा खड़ा करना या लड़ाई करना नहीं था, जो और जैसा मुझे लगा, जाहिर जरूर किया था। सतीश जी से मेरा तो कोई विवाद था ही नहीं, बल्कि किसी से कोई विवाद नहीं है। फ़िर भी दूसरों को अगर यह लगा कि मैं किसी मकसद से ऐसा कर रहा हूँ तो यह आपकी अपनी सोच है। मैंने अगर बात उठाई थी तो इस सोच के साथ कि एक तरफ़ हम दूसरों को किसी निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करते हैं और उन्हें सारे क्या कुछ भी फ़ैक्ट्स नहीं बताते हैं। और ऐसा एक जगह नहीं, कई जगह हुआ है। इस बात को उठाने में मेरा कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं था। हम सबसे ये आशा नहीं कर सकते कि वो हर घटनाक्रम को जानता ही होगा। गलत चीज का विरोध करना कहीं से गलत नहीं, मैं करूँ या आप करें, होना चाहिये। मैं खुद को नये ब्लॉगर्स में ही मानता हूँ, लो प्रोफ़ाईल ब्लॉगर्स में ही मानता हूँ और इस बात का मुझे कोई अफ़सोस नहीं है। समय की कमी कहिये या कुछ और, पूरे ब्लॉगजगत में कहाँ, क्या हो रहा है, कम से कम मैं तो नहीं जान पाता। लिमिटेड से ब्लॉग्स हैं, वहाँ रेगुलर रहने की कोशिश भी रहती है और यदि कोई नया ब्लॉग जमता है तो वहाँ कमेंट भी करते हैं और अगर कुछ सुधार लायक दिखे तो सुझाते भी जरूर हैं, आखिर हम भी अब तक सीख रहे हैं।
    आपके साथ कुछ गलत हुआ, दुख है। अगर गलत करने वाला मैं हूँ तो भी, अगर मैंने गलत करने वाले का समर्थन किया है तो भी खुद को कसूरवार मान लेता हूं। बताईयेगा जरूर, ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके।
    -जारी

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  13. कल देर रात में आपकी यह पोस्ट देख पाया था। कोशिश की थी कि अपना पक्ष रख पाऊँ। कमेंट पोस्ट करना चाहा तो लंबे कमेंट के कारण एरर आ गई और कमेंट बाक्स के नीचे लिखा दिखता था your comment has been published. टुकड़ों में कमेंट देना चाहा तो फ़िर वही। छोड़ दिया था सुबह के लिये, और अब देखा है तो एक पूरा कमेंट और एक आधा छपा हुआ दिख रहा है। अधूरा वाला कमेंट आप डिलीट कर दीजियेगा। मैं कर सकूँ, ऐसा ऑप्शन नहीं दिख रहा।
    गोलमोल बातों का अपना लाभ तो है ही, अब देखिये न, पोस्ट और कमेंट्स से कीचड़, गंदगी जैसे विशेषणों को अलग अलग सन्दर्भ में इस्तेमाल कर ही सकते हैं। मुझे तो अपनी कही बात और भी ठीक लग रही है अब(एक मैं ही नहीं तनहा जो कन्फ़यूज़्ड हूँ, और भी दिख रहे हैं), लेकिन लेटेस्ट ट्रेंड यही है तो जिसको जैसा सही लगे वो स्वतंत्र है।
    खैर, मैंने ही शुरूआत की थी ऐसी बातों की, तो ये सब सुनना ही था। फ़िर भी इतना स्पष्टीकरण तो देना बनता ही है मेरा कि उस पोस्ट में आप का और दीपक का नाम सिर्फ़ इसलिये दिया था कि आप लोगों ने माना था कि आप समझ गये हैं वो पोस्ट किस पर आधारित है, जबकि मैं नहीं समझ पाया था। यह थी तो आपकी तारीफ़ ही, अपना तरीका ही सही नहीं रहा होगा।
    धन्यवाद और आगे के लिये शुभकामनायें।

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  14. @संजय जी

    पहले तो मैं अपनी ही लिखी पोस्ट पर जोर से हँस लू हा हा हा

    अब आप को ये स्पष्ट करूँ की ये लेख आप से नाराज़ हो कर आप पर कटाक्ष करते हुए आप से बुरा मान कर और आप जितना कुछ भी सोच रहे है उसके लिए नहीं लिखी गई है | अब पूरी कहानी सुनती हु साफ शब्दों में कोई गोल गोल बात नहीं | एक दिन पहले मुझे दिव्या जी ने विद्वान की पदवी और राजनीति में शामिल होने का आफर दे दिया गया था मैं तो उसी की खुमारी थी फिर आप की पोस्ट पढ़ी जिसमे इस बात की शिकायत थी की आप को प्रसंग नहीं पता था और आप पोस्ट समझ ही नहीं पाये बाते पूरी गोल गोल थी | आप ने दो लिंक दिये थे वो दोनों मै पढ़ चुकी थी ( देखा मेरी मिसिज टाइमिंग कितनी अच्छी है हर विवादित जगह पर पहुँच जाती हु और सारे किस्से भी पता चल जाते है जबकि मै खुद किसी किसी ब्लॉग पर ही जाती हु ) और अंत में आप ने कहा था की आप कल हुई एक घटना पर शर्मिंदा है | मुझे लगा की आप दिव्या जी वाली पोस्ट की बात कर रहे है ( वैसे रात में जो वहा हुआ उससे मुझे भी काफी बुरा लगा और उसे देख कर मैंने भी तुरंत अपने यहाँ माडरेशन आन कर दिया था ) तो मैंने सोचा की आप वहा हुए सारे किस्से को जानते है तो चलो मै किसी का नाम लिए बिना उस पोस्ट को लेकर एक गोल गोल बाते करती हु और आप समझ जायेंगे | इसी कारण मैंने नारी और पुरुष के साथ बार बार बोल्ड अक्षरों में समुदाय लिखा था ताकि उसे पुरुष और हिन्दू समुदाय और नारी और मुस्लिम समुदाय की तरह पढ़ा जाये | पर ऐसा किसी ने भी नहीं किया जबकि मैंने नीचे लिख दिया था की शब्दों के शाब्दिक अर्थों के अलावा उसके मतलब मुद्दों के हिसाब से लगाये |

    ये पूरा किस्सा बिल्कुल वैसा था की एक तरफ हम है और दूसरी तरफ हमारा बच्चा हम M बना कर बच्चे से कहते है की बोलो क्या है वो अपनी तरफ से देखा कर कहता है W | यानी ये ज़रुरी नहीं है की हम जिस तरह से सोच रहे है दूसरा भी उसी दिशा में सोचे | ये पोस्ट मैंने आप को गोल गोल बातो का मतलब समझने के लिए लिखा था पर अब मुझे समझ आ गया की आप सही थे हर बात दूसरों को समझ आये और वो आप के ही दिशा में सोचे ये संभव नहीं है |

    ये बात मुझे तब ही समझ आ गई थी जब उस्ताद जी को अपनी पोस्ट और मेरी टिप्पणी को ठीक से न समझते देखा जबकि वो भी वहा थे और उन पर भी सवाल खड़े किये गये थे | इसी कारण मैंने दूसरे दिन ही एक और पोस्ट लगा कर उसे पीछे कर दिया और आप का कमेन्ट ना देखा कर शुक्र मनाया की चलो अच्छा है आप ने नहीं देखा वरना आप एक बार फिर उसी समस्या से घिर जाते जिससे आप पहले ही घिरे हुए थे | लेकिन दूसरी पोस्ट लगाने के बाद भी आप यहाँ आ ही गये और मेरी अच्छी ख़ासी ट्रेजडी फिल्म आप के आते ही कॉमेडी में बदल गई | हा हा हा

    हमारा आप को जो सेंस ऑफ़ ह्यूमर वाला रिश्ता है वही बना रहे मै तो यही चाहती हु | अब मेरी मानिये तो इस पूरी पोस्ट को भूल जाइये | हा यदि आप को कोई आपत्ति हो तो मै तुरंत आप का नाम हटा देती हु |

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  15. लेकिन हम तो सब समझ गये थे जी ।हम उस्ताद जी थोडे ही हैं।हाँ... एक बात कई महिनों से समझ नहीं आई थी उसका भी जवाब आपने यहीं एक कमेंट मेँ दे दिया।खैर इन सब बातों को भूल जाना ही बेहतर हैं।वैसे आप अपने 'उनको' यह जरूर बताएँ कि आपने ब्लोगिंग के साथ साथ राजनीति की ए बी सी डी भी सीख ली हैं,वोट बैंक(हा हा हा) का जुगाड और नेताओं की तरह गोल मोल बातें करना आपको आ गया हैं।यानी भविष्य उज्जवल हैं।उनका क्या जवाब होता हैं ये जरूर बताईयेगा। तब तक के लिये बाय बाय ।

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  16. अन्शुमाला जी,
    मिसटाईमिंग देखिये जरा -
    @ anshumala ji:
    धनबाद छोड़िये, पटना भी आप रख लीजिये। बस्स मेरा ध्यान रखियेगा, पता चला है कि आप भी राजनीति में उतर रही है। कुछ वोट बैंक वगैरह..........। ध्यान रखेंगी न मेरा? आखिर कई बार मेरे कारण आपके चेहरे पर मुस्कुराहट आई है:)
    Monday, October 25, 2010 1:00:00 AM
    @ http://mosamkaun.blogspot.com/2010/10/blog-post_24.html#comments

    आपके यह पोस्ट लिखने से बारह घंटे पहले का ये कमेंट है। बात से बात निकलती है, जाने दीजिये।
    मेरी किसी शुरुआती पोस्ट में फ़त्तू का एक किस्सा था, इजाजत मांगने का। उसे बाद में सुनना पड़ा कि सीधे से पांच रुपये ना मांग सके था? गोलमोल कहने का मेरी नजर में ऐसा ही अंजाम होता है। सामने वाला भी उसी माईंडसेट का हो, ये जरूरी नहीं। बल्कि मुझे तो ऐसा भी लगता है कि ये जो अनामी, बेनामी, फ़र्जीनामी वगैरह हैं,इनका वजूद ही इसलिये है कि हम लोग अपने विचारों की प्रतिध्वनि के अलावा कुछ और सुनना ही नहीं चाहते।
    शुक्र मनाना भूल जाईये, मंगल मनाईये।
    ट्रेजेडी का कामेडी और कामेडी का ट्रैजेडी - जहँ जहँ पांव पड़े संतन के तहँ तहँ बंटाधार।
    आप उन चुनिंदा ब्लॉगर्स में से हैं, जिनसे कुछ मजाक भरे कमेंट करने की लिबर्टी ली है। फ़िर भी कभी अन्यथा लगे तो सीधे से बता दीजियेगा, गोलमोल भाषा में नहीं।
    मैं नहीं समझूँगा, मैं नहीं भूलूंगा, इंतकाम लूंगा एटसेट्रा एटसेट्रा:)

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  17. अन्शुमाला जी,
    ये किस्सा भी पुराना हुआ और tongue twister भी सारे ट्राई कर लिये। अब कोई नई पोस्ट क्यों नहीं लिखी आपने? प्रोमिस, इस बार कामेडी का कामेडी और ट्रैजेडी की ट्रैजेडी ही रहने दूंगा। थोड़े से ब्लॉग्स पर तो जाना होता है, उन पर भी टिप्पणी सुख से वंचित हो रहे हैं आजकल।
    एक बात और, ये पोस्ट भी नहीं हटानी और मेरा नाम भी रहने देना, मैं भी अपनी उसको दिखाना चाहता हूँ कि बाहर कितनी कदर है मेरी:)

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