ब्लॉग जगत में इस बात को ले कर कई बार बहस हो चुकी है की लोगो को अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं होती है लोग आलोचनात्मक टिप्पणियों को पचा नहीं पाते है अक्सर उन्हें या तो प्रकाशित नहीं किया जाता या फिर हटा दिया जाता है | कई बार तो लोग आलोचनात्मक टिप्पणी करने वाले को ही भला बुरा कहने लगते है | किंतु क्या कभी किसी ने इस बात पर भी ध्यान दिया है की आलोचना है किस बला का नाम क्योंकि यहाँ तो यदि कोई आप की बात से असहमत हो जाये या आप की विचारों के विपरीत विचार रख दे, जो उसके अपने है तो लोग उसे भी अपनी आलोचना के तौर पर देखने लगते है , जबकि वास्तव में कई बार ऐसा नहीं होता है है कि दूसरा ब्लॉगर आप को कोई टिप्पणी दे रहा है जो आप के विचारों से मेल नहीं खा रहा है तो वो आप की आलोचना ही करना चाह रहा है | कई बार इसका कारण ये होता है की वो बस उस विषय में अपने विचार रख रहा है जो संभव है की आप के सोच से मेल न खाता हो , कई बार सिक्के का दूसरा पहलू भी दिखाने का प्रयास किया जाता है | इसका कारण ये है की अक्सर हम अपनी पोस्टो में वो लिखते है जो हमारे विचार है जो हमने अपने आस पास घटते देखा है या हमने किसी चीज के बस एक ही पहलू का देखा है और वही पोस्ट में लिख दिया, परिणाम स्वरूप पाठक बस विषय के उसी रूप को देख कर अपने विचार रखने लगते है , जबकि कुछ विषयों में सिक्के का दूसरा पहलू भी होता है जो हो सकता है जाने अनजाने में लेखक नहीं लिख सका | दूसरे ब्लॉगर कई बार ऐसी जगहों पर सिक्के का दूसरा पहलू भी वहा टिप्पणी के रूप में दे देते है ताकि अन्य पाठक दोनों बातों को समझ ले फिर अपने विचार रखे संभव है की दोनों पहलुओं को देख कर पाठक अपना सही विचार बना सके भले टिप्पणी में वो लेखक की "वाह वाह" करके चले जाये | हमारे जो भी विचार या सोच होती है वो एक दिन में नहीं बनती है कई बार उसे बनने में सालों लगते है और उसके लिए जिम्मेदार होते है हमारा परिवेस जिसमे हम बड़े होते है, उसमे उन लोगो के विचार और व्यवहार का भी मिश्रण होता है जो हमारे आस पास होते है , और हम वही लिखते है जो हम देखते है किंतु इसका ये अर्थ नहीं होता की जो हमने देखा नहीं जो हमने सोचा नहीं वो है ही नहीं और यदि किसी ने वो पहलू हमारे सामने रख दिया तो वो हमारी आलोचना कर रहा है या हमारी खिचाई कर रहा है | मैं ऐसा नहीं मानती की ये कही से भी आप की आलोचना है इसलिए कई पोस्टो पर मैं विषय के दूसरे रूपों को टिप्पणी के रूप में देती आई हूँ |
उसी तरह असहमतियो को भी अपनी आलोचना के तौर पर देख लिया जाता है | किसी के विचारों से असहमत होना कई बार उसकी आलोचना करना नहीं होता है बल्कि हम जब उन विषयों को खुद के तर्क की कसौटी पर कसते है और वो हमें सही नहीं लगता है तो हम लेखक से असहमत हो जाते है किंतु इसके ये अर्थ नहीं है कि लेखक के विचार गलत ही है, उसने विषय को अपनी नजर से अपने तर्क से देखा है और दूसरे ने अपनी विचार और तर्क से और एक ही विषय में दो लोगो के दो विचार हो सकते है जो दोनों ही अपनी जगह सही भी हो सकते है और उन विचारों को रखना कही से भी दूसरे की आलोचना करना नहीं होता है | हिंदी ब्लॉग जगत में ज्यादातर जगह टिप्पणियों के लेने देने का खेल होता है लोग अक्सर लेखक के विचारों से अपने विचार मेल न खाने के बाद भी "वाह वाह" "बहुत अच्छा लिखा" लिख कर चले जाते है , कुछ के पास समय नहीं होता और वो बहुतों को पढ़ना चाहते है सो एक लाइन की भी टिप्पणी दे कर चले जाते है | किंतु कुछ ब्लागरो के लिए हिंदी ब्लॉग इन सब से अलग भी बहुत कुछ है जो टिप्पणी टिप्पणी खेलने की जगह इसे विचारों के आदान प्रदान की जगह मानते है और जो पढ़ते है उस पर अपने निजी सोच अवश्य रखते है वो लेखक के विचारों से मेल भी खा सकता है और नहीं भी , पर ये ज़रुरी नहीं है की उसमे टिप्पणी कर्ता लेखक की आलोचना ही करना चाह रहा है | आलोचना, असहमति, विपरीत विचार और खुद की खिंचाई का फर्क लोगो को समझना चाहिए और जिस तरह लोग ये कहते है की हम आलोचना का स्वागत करते है तो उन्हें ये भी समझना चाहिए की हर बार आप की आलोचना नहीं की जा रही है दूसरे के विपरीत विचारों को भी एक विचार की तरह सम्मान से देखना चाहिए न की हर बार उसे अपनी आलोचना समझ कर उसके प्रति कोई ये विचार बना लेने चाहिए की फला मेरा आलोचक है या वो हर बार मेरी खिंचाई कर के जाता है | इस तरह के विचार उन ब्लोगरो के लिए ठीक नहीं है जो हिंदी ब्लॉग जगत को एक स्वस्थ बहस, एक विचारों के आदान प्रदान की जगह मानते है इस तरह तो निश्चित रूप से वो आप के भी ब्लॉग पर अपने विचार खुल कर रखना छोड़ देंगे | वैसे ये भी संभव है की कुछ लोग हिंदी ब्लॉग जगत में अपने विचार रखने अपने विचार दूसरों के साथ बांटने भर आये है वो इस तरह के किसी भी संवाद विचार विमर्श या बहस का हिस्सा नहीं बनाना चाहते है या उनके पास ये सब करने का समय ही नहीं है | जिन ब्लोगरो को ये पसंद नहीं है जो नहीं चाहते की इस तरह का कोई भी काम उनके ब्लॉग पर हो तो उन्हें खुल कर ये कह देना चाहिए की उन्हें इस तरह की टिप्पणियों की आवश्यकता नहीं है और वो इस तरह का कोई संवाद कायम नहीं करना चाहते है जब तक आप कहेंगे नहीं तब तक मुझे नहीं लगता ही की किसी को भी आप के विचार इस सम्बन्ध में पता चलेगा इसलिए दूसरा बेचारा ब्लॉगर तो अपनी इच्छा का करता ही जायेगा और आप को बुरा भी लगता जायेगा अच्छा है की उसे समय रहते उसे बता दे और सबसे अच्छा तरीका तो होता है टिप्पणी बाँक्स के ऊपर साफ लिख दे की कैसी टिप्पणियाँ आप को चाहिए |
ये सच है की हिंदी ब्लॉग जगत में ऐसे कई लोग है जो किसी को निशाना बना कर हर बार उसकी आलोचना ही करते है , या कुछ ऐसे भी है जो बस आलोचना करने के लिए ही किसी किसी के ब्लॉग पर जाते है या जानबूझ कर आप की आलोचना करते है या आप की टाँग खिचाई करते है या आप को अपमानित करते है ऐसे लोगों के होने से इनकार नहीं क्या जा सकता है लेकिन सभी में फर्क करना तो ब्लॉग स्वामी का काम है और ये बात उसे ही समझनी होगी की कौन टिप्पणी के रूप में क्या लिख कर जा रहा है और उसका क्या इरादा है | पर ये फर्क टिप्पणी की भाषा से आसानी से पहचानी जा सकती है आलोचना करने वाले की भाषा तीखी व्यंग्य करती होगी और विपरीत विचार वाली बात बस सीधे शब्दों में अपनी बात कहने वाली होगी पर इसका अंतर कारण तो ब्लॉग स्वामी को ही होगा यदि ब्लॉगर ये करने में असमर्थ होते है तो ये कही से भी हिंदी ब्लॉग जगत के लिए ठीक नहीं है फिर ये भी अपने मान की भड़ास निकालने की जगह भर बन कर रहा जाएगी जहा सभी अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग छेड़ रहे होंगे और कुछ भी सार्थक निकाल कर यहाँ से नहीं आयेगा |
अपनी कहूँ तो मैं स्वयं ये कई जगह ऐसा करती आई हूँ बिना ये सोचे की मेरी टिप्पणियों को ब्लॉग स्वामी अपनी आलोचना या अपनी खिचाई के रूप में ले रहा है | एक ब्लॉगर ने इस बारे में मुझे मना किया था की उसे ऐसी टिप्पणियाँ नहीं चाहिए तो मैंने उन्हें टिप्पणी देना बंद कर दिया क्योंकि ये ब्लॉग स्वामी का अधिकार है की वो बताये की उसे कैसी टिप्पणियाँ चाहिए | अत: किसी अन्य को मेरे टिप्पणी देने का तरीका पसंद ना हो तो खुल कर कह दे क्योंकि बिना कहे मुझे कुछ सुनाई नहीं देता है और जब तक कोई कहेगा नहीं मैं अपना तरीका बदल नहीं सकती हूँ :)
कुछ लोगों का स्वभाव ही होता है कि विपरीत विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सकते , जबतक उनकी हाँ में हाँ मिलाओ , ठीक रहता है , यदि एक बार भी आपने उनके विचारों से असहमति जता दी तो हर समय आपकी आलोचना करने लगते हैं जबकि सबको अपने विचार प्रकट करने की आजादी होनी चाहिए , जबतक यह व्यक्तिगत नहीं हो !
ReplyDeleteमैं ये मानती हूँ कि ऐसी टिप्पणियां जो किसी व्यक्ति , धर्म अथवा जाति को लक्ष्य करके लिखी गयी हो , अवश्य मिटा देनी चाहिए !
लीजिये आलोचना के क्रम मे मेरी आलोचना - लेख की लंबाई कम होनी चाहिये हर बार लिख कर उसमे कोशिश कीजिये कि कितनी लाईनो को हटा कर भी आसानी से संदेश जा सकता है। इससे लेख भी चमकेगा और पाठक भी अंत तक बंधा रहेगा
ReplyDeleteअंशुमाला
ReplyDeleteजो लोग निरंतर ब्लॉग करते हैं और पोस्टो को पढते हैं वो रेगुलर होते हैं और ब्लॉग जगत की उठा पटक को समझते हैं
कुछ ब्लॉगर अपनी पोस्ट देते हैं और फिर हफ्तों नहीं दिखते और जिस दिन वो आते हैं कई बार उनको किसी मुद्दे पर लिखी हुई पोस्ट दिखती हैं , अब मुद्दा उनको पता नहीं हैं तो उनका कमेन्ट क्या हो वो नहीं जानते हैं
ब्लॉग पर बहस होना / करना एक आम बात हैं और ये माध्यम इसीलिये बना भी . अब बहस , महज बहस होती हैं उसमे आलोचना भी होती हैं , सहमति भी , असहमति भी .
यहाँ लोग बहस नहीं करना चाहते हैं वो उसको नकरातमक कहते हैं क्युकी उनको लगता हैं की उनको दस मिनट ब्लॉग पर समय मिलता हैं इस लिये उनसे बहस ना की जाए
मुझे लगता हैं बहस से क्या परहेज होना चाहिये हाँ व्यक्तिगत आक्षेप नहीं होने चाहिये ख़ास कर किसी की जीवन शैली या रहन सहन को लेकर .
और दूसरी बात जो लोग एक दूसरे से व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाते हैं वो बिलकुल पार दर्शी होता हैं और मुद्दे से नहीं लेखक से जुड़े होते हैं और उसके बहुत से कारण हैं ऐसे लोगो को अपनी व्यक्तिगत प्रेम प्रसंग और व्यतिगत लड़ाई को ब्लॉग जगत से दूर रखना चाहिये या फिर लोगो की राय को ससमान स्वीकार करना चाहिये
alochna par bahut achhi samalochna..........
ReplyDeletebina kisi ke tang khichayi kiye post puri hue.....
post me mool-bhavna se sahmat
sadar.
अंशुमाला जी ,
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगिंग में इस तरह की बात अक्सर देखने को मिलती है कि आलोचना और असहमति से शुरू हुई बात बहुत जल्दी व्यक्तिगत आक्षेप तक पहुंच जाती है , हालांकि ऐसा परस्पर ही होता है इसलिए साधारण जीवन के सूत्र कि , दूसरों का सम्मान करने वाले ही सम्मान पाते हैं को यहां भी अपनाया जा सकता है । हां विचारों और मुद्दों पर असहमति जताना मेरे ख्याल से उतना ही जरूरी होता है जितना कि खुद लिखना और पढना । हिंदी ब्लॉगजगत में ये बहुत पहले से चला आ रहा है किंतु आने वाले समय में ये सब बदलेगा ये उम्मीद करते हैं , विचारोत्तेजक पोस्ट
अंशुमाला ! शब्दों में इतनी ताकत होती है समझा सकें कि उनका मंतव्य सुलझे विचार रखना है या व्यक्तिगत कटाक्ष करना.अत: जहाँ गंभीर लेखन है वहाँ लेखक को ऐसी सुलझी आलोचना से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.हाँ मतभेद मनभेद न बने.बाकी तो ब्लॉग अपना अपना और विचार अपने अपने.
ReplyDelete@ वाणी जी
ReplyDeleteजो आप की आलोचना करते हुए आप के पीछे पड़ जाये उन पर ध्यान न दे उनकी बातो का जवाब न दे और सबसी बड़ी बात खुद हर समय उनकी आलोचना करना न शुरू कर दे |
@ arunesh ji
बिलकुल सहमत हूँ आप की आलोचना से मै खुद ये सिखना चाहती हूँ कि गागर में सागर कैसे भरते है | वैसे आप ने मेरी टिप्पणिया नहीं देखी वो भी लम्बी होती है बातो को ज्यादा समझा के कहने की आदत है ताकि कही भी किसी को कोई गलतफहमी न हो |
@ रचना जी
ज्यादा बहस के पक्ष में तो मै भी नहीं हूँ मेरी बहस दो या तीन टिप्पणी तक ही ज्यादातर सिमित होती है | बस मेरे विचार विषय पर अच्छे से आ जाये उससे ज्यादा लम्बी बहस तो बातो का दोहराव होता है और कोई भी पक्ष लम्बी बहस में एक दुसरे की बात नहीं समझता है और समय की कमी तो मुझे भी रहती है |
@ संजय झा जी
धन्यवाद | आप को लगता है की किसी पर कटाक्ष नहीं है क्या पता किसी को ऐसा लग जाये :)
@ अजय जी
धीरे धीरे दो साल मुझे ब्लॉग पर होने जा रहा है बदलाव तो नहीं देखा लोग आलोचना अब भी नहीं सह पाते उलटे लोगो ने आलोचना करना ही बंद कर दिया है , ये दोनों स्थिति ठीक नहीं है |
@ शिखा जी
व्यक्तिगत अनुभव से बता रही हूँ की लोग फर्क नहीं कर पाते है वजह क्या है मुझे नहीं मालूम |
कुछ अपवादों को छोडकर ये बात यहाँ ज्यादातर लोग नहीं समझते कि यदि कोई किसी एक बात पर आपसे सहमत हो तो ये जरुरी नहीं कि हर बात पर सहमत ही हो या फिर किसी एक बात असहमत है तो जरुरी नहीं कि आगे भी ऐसा ही हो.किसी एक की बात नहीं कर रहा लेकिन कुछ कम ज्यादा करके सभी में ये बात देखी है बल्कि आप मुझे भी इसमें शामिल समझिए.यहाँ बदलाव की जरुरत तो है और निष्पक्ष टिप्पणी तो तभी की जा सकती है जब आप ये बात दिमाग में न लाएँ कि ब्लॉगर आपके बारे में क्या सोचेगा.यहाँ का माहौल देखकर मैं शुरु शुरु में चाहकर भी ऐसी पोस्ट पर असहमति वाली टिप्पणी नहीं कर पाता था जहाँ मुझसे पहले ही कई स्थापित और बडे(माने जाने वाले) ब्लॉगर तारीफों वाली टिप्पणियाँ कर चुके होते थे.मुझे लगता था कि ऐसा करने पर लेखक को लगेगा कि मैं खुद को ज्यादा ही समझदार साबित करना चाहता हूँ.यहाँ तक कि ऐसे ऐसे लोग भी यहाँ देखें है कि यदि उनकी दो तीन अच्छी पोस्ट पर आपने लगातार प्रशंसा वाली टिप्पणी भी कर दी तो वो उसे भी बहुत चीप किस्म की प्रशंसा मान लेते है.लेकिन बाद में मैंने कमेंट करने से पहले ब्लॉगर के बारे में सोचना ही बंद कर दिया कि उसे कैसा लगेगा.बस ये कोशिश रहती है कि विषय पर कमेंट हो और कोई व्यक्तिगत आक्षेप न हों.लगभग साल भर से मात्र पाँच छह ब्लॉग ही नियमित पढ पाता हूँ और उन पर ही कमेंट करता हूँ इसलिए व्यक्तिगत रुप से मेरा अनुभव पिछले एक साल में अच्छा ही रहा.
ReplyDeleteकुछ और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ ताकि किसीको कोई गलतफहमी न हो.ऊपर मेरा मतलब उन लोगों से था जो असहमति(या कई बार सहमति) में कमेंट करने वाले की कोई न कोई छवि मन में बना ही लेते है और कमेंट को केवल पोस्ट से जोडकर नहीं देखते.वैसे एक हद तक ये इंसानी फितरत ही है.
ReplyDeleteअधिकतर ब्लॉगर को पोस्ट से कोई सरोकार नहीं होता,इसलिए वे वाहवाही टिप्पणी देते हैं और ऐसी ही अपेक्षा करते हैं। प्रायः ब्लॉगर अपने ज्ञान की पूर्णता का दंभ पाले बैठे हैं और उससे इतर कोई भी बात उन्हें सुहाती नहीं है। आलोचना ,विपरीत विचार, असहमति या खिंचाई-कुछ भी नाम दे लीजिए,पर टिप्पणी के स्तर अथवा उसकी मंशा को लेकर छेड़ी गई कोई भी बात सर्वस्वीकार्य नहीं हो सकती। बेहतर यही है कि ब्लॉगर अपना ध्यान पोस्ट पर केंद्रित करे और टिप्पणी के सिर-फुटव्वल में खुद शामिल न हों। इसी में ब्लॉगिंग का भविष्य है और कुछ अनुभव लेने की गुंजाईश भी।
ReplyDeleteआपको शायद लगे की मैंने आपका ब्लॉग ठीक से पढ़ा नहीं, किन्तु मैं आपको बताना चाहूंगी की मैंने आपका ब्लॉग भली भांति पढ़ा है। मगर जो कुछ भी मैं कहना चाहती हूँ। वह सब कुछ तो आपने स्वयं ही लिखा है। और रही सही कसर उपरोक्त टिप्पणी देने वालों ने पूरी करदी है। मैं आपकी और खासकर शिखा जी, की बातों से पूरी तरह सहमत हूँ इससे ज्यादा इस विषय में और कुछ कहने के लिए बचा ही नहीं है... :)
ReplyDeleteअंशुमाला जी!
ReplyDeleteआलोचना बड़ी स्वस्थ प्रक्रिया है किसी भी असहमति को व्यक्त करने की... लेकिन मैंने भी देखा है कि कुछ लोग सिर्फ आलोचना करने के लिए ही ब्लॉग पर आते हैं.. आप की बात सच है.. कई बार कुछ लोग इतने इरिटेटिंग कमेन्ट करते हैं कि कहा नहीं जा सकता... एक पोस्ट पर एक बड़े ही सम्मानित ब्लोगर ने एक कमेन्ट किया था कि आपकी इस पोस्ट में एक शब्द गलत टाइप हो गया है उसे सुधार लें!! हा हा हा!! पूरी पोस्ट में सिर्फ उन्हें टंकण की अशुद्धि दिखाई दी???
उन्हीं ब्लोगर ने कई पोस्ट पर (एक ही ब्लॉग की) बड़ी ही साहित्यिक भाषा में सिर्फ और सिर्फ विरोध जताया.. इसी बात को अगर सीधी भाषा में आलोचना के तौर पर रखा गया होता (अगर बात में दम होता तो) तो शायद उसे स्वस्थ आलोचना मन जा सकता था!!
खैर कई उदाहरण हैं और उससे भी ज़्यादा अपवाद हैं!!
- सलिल वर्मा
सच कहूँ तो किसी गंभीर लेख पर अच्छा है ..सुंदर है वाली टिप्पणियां तो बड़ी बेमतलब सी लगती हैं..... मैं ये नहीं कहूँगी की हर बार असहमति ही हो पर अगर असहमति के विचार मेरी पोस्ट पर आये हैं तो हमेशा यही महसूस हुआ की एक और दृष्टिकोण तो मिला इस विषय पर ..... जो की बहुत ज़रूरी होता है.... हाँ भाषा संयम रखते हुए ...अगर असहमत हूँ तो मैं भी अपनी बात ज़रूर कहती हूँ.... फ़िलहाल आपकी इस पोस्ट से पूरी सहमति है...:)
ReplyDeleteआलोचना नहीं समालोचना हो जिसमें लेखन और विषयवस्तु पर चर्चा की जाय. लेखन के सकारात्मक बिन्दुओं पर सहमति और नकारात्मक बिन्दुओं पर अपने विचार के साथ असहमति पोस्ट के रचनाकार को मान्य व स्वीकार्य होनी चाहिए. व्यक्तिगत आक्षेप स्वस्थ्य परम्परा नहीं है. देखिये ! जो विरोध सहने के अभ्यस्त नहीं हैं उनका लेखन एक दिन चुक जाएगा ....क्योंकि उन्होंने घर के दरवाजों-खिड़कियों पर ताला डाल रखा है. बाहर से विचारों का आना बंद कर दिया है ....नवीनता का संकट और परिमार्जन का अभाव लेखन को उत्कृष्ट और कालजयी नहीं बना सकता. इसलिए अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है. हां , ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता अवश्य है जो किसी के लेखन की मिथ्या प्रशंसा करते हैं. ब्लोगर को यदि लम्बे समय तक टिके रहना है और विचारों में निरंतर परिपक्वता लानी है तो उसे चाहिए कि वह मिथ्या प्रशंसकों की पहचान कर ले.
ReplyDeleteलोग सामान विचारों वाले ब्लोग्स की पहचान कर अपने-अपने मोहल्ले बना सकते हैं ....झगड़ा ख़त्म :) मैंने अपना मोहल्ला बनाना शुरू कर दिया है.
एक बात और कहना चाहूंगी .... जो लोग जो ज़रा सी भी असहमति बर्दाश्त नहीं पर पाते उन्हें भी वो तथाकथित आप हमेशा सही हैं .... वाला रुतबा हम में से ही कुछ ब्लॉगर देते हैं...... हाँ में हाँ मिलाकर....... जो हिंदी ब्लॉग्गिंग के लिए किसी भी एंगल से सही नहीं हो सकता ......पिछले दो साल में ऐसा कई ब्लोग्स पर होते देखा है....
ReplyDelete*बर्दाश्त नहीं कर ..
ReplyDelete@राजन जी
ReplyDelete@ ऐसा करने पर लेखक को लगेगा कि मैं खुद को ज्यादा ही समझदार साबित करना चाहता हूँ |
बिलकुल ऐसा ही होता है एक बार तो मुझ पर ये आरोप लग भी चूका है की मै ऐसी टिप्पणिया दे कर खुद को विद्वान् साबित करना चाहती हूँ | एक स्वस्थ आलोचना कई बार आप को और आप के लेखन को बेहतर ही बनाती है , एकतरफा सोच में बदलाव लाती है और आप को और तर्कशील भी बना देती है | मुझे लगता है यदि मेरी मित्र और शुचिन्तक मेरी गलती की तरफ मेरा ध्यान दिलाये तो ज्यादा अच्छा होगा क्योकि उनकी बातो को हम हमेसा सकरात्मक रूप में लेते है पर ऐसा होता नहीं यहाँ तो मित्र बस वाह वाह करने में ही लगे रहते है और लोग करवाने में चाहे जो भी लिखा जाये |
@ राधा रमण जी
जिस तरह से हर असहमति और विपरीत विचार को गलत नजरिये से देखा जा रहा है अंत में यही होगा की सभी को टिपण्णी के रूप में बस वाह वाह की मिलेगी कही कोई विचार विमर्स या सार्थक बात नहीं होगा |
@ पल्लवी जी
धन्यवाद सहमत होने के लिए |
@ सलिल जी
आप जो बात कह रहे है उसका जिक्र मैंने अपने पोस्ट में किया है ऐसी आलोचनाओ में ज्यादातर व्यक्तिगत द्वेष या राजनीतिक विचारधारा में अंतर कारण होते है और कुछ ऐसे भी होते है जो खुद को बड़ा विद्वान् और बड़ा जानकर साबित करने के लिए भी ऐसा करते है | अन ऐसे लोगो का तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है |
ये ब्लॉग स्वामी का अधिकार है की वो बताये की उसे कैसी टिप्पणियाँ चाहिए | अत: किसी अन्य को मेरे टिप्पणी देने का तरीका पसंद ना हो तो खुल कर कह दे क्योंकि बिना कहे मुझे कुछ सुनाई नहीं देता है...
ReplyDeleteबहुत से ब्लॉग ऐसे देखे हैं जहां कुछ लोग हर पोस्ट पर तारीफ का कमेन्ट करते हैं और ऐसा ६ महीने लगातार होता हैं फिर एक दिन किसी और के ब्लॉग क़ोई पोस्ट आती हैं जिस में उस ब्लॉगर की धजियाँ उड़ा दी गयी हैं जिस के ब्लॉग पर वो कमेन्ट कर रहे थे और आप को वहाँ भी तारीफ़ का कमेन्ट मिल जाएगा इनका . बाद मै बाय बवेला होने पर कहते मुझे समझ ही नहीं आया की आप के ऊपर थी उनकी पोस्ट . मुझे लगता हैं सब से खतरनाक ये लोग ही होते हैं जो भ्रम तो देते हैं पाठक होने का पर महज "टिपण्णी चेपू " होते हैं .
ReplyDeleteकिसी को अगर अपने ब्लॉग पर एक से ज्यादा किसी का कमेन्ट , उत्तर , प्रतिउत्तर बहस लगती हैं , समय का दुरूपयोग लगता हैं तो उन्हे हर पोस्ट के अंत में ये जरुर लिख देना चाहिये की बस एक कमेन्ट काफी होगा .
टिपण्णी मोडरेशन के जो खिलाफ हैं वो तब तक ही खिलाफ होते हैं जब तक मुद्दे पर ब्लॉग नहीं लिखते . और ये हमेशा ध्यान रखना चाहिये की टिपण्णी मोडरेशन ब्लॉग मालिक का अधिकार हैं और अगर अपना क़ोई कमेन्ट कहीं नहीं छपा हैं या मोडरेट हुआ हैं तो उसको अपने ब्लॉग पर लिंक के साथ देना चाहिये ताकि लोगो को पता चले की आप ने क्या कहा था
तो लोग टिपण्णी मोडरेट करते समय नाम नहीं डिलीट करते हैं वो एक बहस को खुद दावत देते हैं क्युकी बाकी पाठक सोचते हैं की टिपण्णी करता ने ऐसा क्या लिख दिया था की ब्लॉग मालिक को हटाना पडा इस लिये परमानेंट डिलीट करना जरुरी होता हैं उस से क़ोई और बहस की गुंजाइश ख़तम हो जाती हैं
ब्लॉग में उत्तर प्रतिउत्तर से ही मजा आता हैं और वो भी अगर टिपण्णी की जगह लिंक दे कर बात आगे ले जायी जाये
aur salil ki baat ko maene elite blogger post me aur pehlae bhi kayii post me likhaa haen ki hindi bloging school masterii kae liyae nahin haen aur yahaan har vyakti hindi vidhaa sae nahin aayaa haen
विषय सार्थक है। लेखन के साथ आलोचना विषय जुड़ा हुआ है। प्रत्येक लेखकीय कृति की समीक्षा होती ही है। कभी लेखकीय बिरादरी करती है तो कभी समाज करता है। लेखक या यहाँ ब्लाग पर जब भी कुछ लिखा जाता है, तब उसमें हमारा एक ही पहलु होता है। केवल हमारी सोच ही निहीत होती है। लेकिन उस विषय पर कितनी प्रकार के विचार दुनिया में हैं, इस बात की पड़ताल टिप्पणियों से होती है। यहाँ कई प्रकार की पोस्ट आती हैं। राजनैतिक विषय-वस्तु को लेकर जब पोस्ट आती है तब लेखक के विचार अक्सर दल विशेष के प्रवक्ता के रूप में आते हैं, साथ ही दूसरे दल पर आक्रमणकारी होते हैं। ऐसी पोस्ट पर वार-प्रपिवार होना जायज सी बात है। लेकिन सामाजिक मुद्दों पर जब किसी विषय पर लिखा जाता है तब विभिन्न विचारों का स्वागत किया जाना चाहिए। कई बार देखने में आता है कि हम हमारा पक्ष रखने में ही बहस करने लगते हैं।
ReplyDeleteप्रत्यक्ष लेखकीय समाज में भी विभिन्न मत सामने आते हैं, आलोचना भी खूब होती है। लेकिन कहीं न कहीं मर्यादा का पालन भी किया जाता है। लेकिन ब्लाग जगत में मर्यादाविहीन आचरण भी देखने को मिलता है। मुझे लगता है कि व्यक्ति समझदार और सहनशील परिपक्व होने के बाद ही बनता है। जो लोग छोटी-छोटी बातों को विरोध मान लेते हैं वे अपने ही रास्ते बन्द कर लेते हैं। वो बात अलग है कि कुछ लोगों को श्रेष्ठ लेखन से मतलब नहीं है बस ब्लाग के रूप में एक माध्यम मिल गया है और अपनी मन की मर्जी करने की छूट इसे मान रहे हैं। इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है, लेकिन इतना ही।
अजित जी की टिप्पणी बहुत सहज व संतुलित लगी पोस्ट की बात को बढाती हुई.मैं उनसे सहमत हूँ.
ReplyDeleteआलोचनाओं से हमेशा कुछ नया करने कुछ अच्छा करने की सीख ही मिलती है।
ReplyDeleteब्लॉग पर कमेन्ट का मतलब ही है परस्पर संवाद और स्वाद कभी एकपक्षीय नहीं होना चाहिए.
ReplyDeleteआपके विचारों से सहमत.
mujhe nahi lagta aalochna se bachna chahiye...par haan alochna ke tarike se kabhi kabhi aitraaaj ho sakti hai!!
ReplyDeletealochna post ki ho sakti hai, uss vyakti ki kattai nahi, jisne usko gadhha ho:)
ab fatafat hamare post pe aakar bhi aalochana kar hi daliye, bahut dino se main blog se dur raha hoon!!
असल में हर रचना की आलोचना जरूरी है। बिना आलोचना के रचना का महत्व ही नहीं है। यह बात न केवल लेखक को समझनी चाहिए वरन् टिप्पणीकर्त्ताओं को भी समझना चाहिए।
ReplyDeleteदेर से आने का एक लाभ यह भी होता है..कि लेखक के विचार के साथ....टिप्पणीकर्ताओं के विचार भी पढ़ने को मिल जाते हैं...
ReplyDeleteसबने बड़े संतुलित रूप से अपनी प्रतिक्रिया दी है....
स्वस्थ आलोचना का तो हमेशा ही स्वागत होना चाहिए कई बार कुछ बिन्दुओं पर लेखक की नज़र नहीं गयी होती...वे भी टिप्पणीकर्ता उजागर कर देते हैं...पर कई बार सिर्फ आलोचना ही नहीं की जाती....कुछ लोगो की आदत होती है..टांग खिंचाई की या...मजाक उड़ाने की....कुछ हद तक तो इन्हें बर्दाश्त किया जा सकता है...सीमा पार होने पर...सरल उपाय है....उनकी पोस्ट पर जाना छोड़ दिया जाए...वे खुद ही आना बंद कर देंगे.
लोग मॉडरेशन की आलोचन करते हैं..पर कई बार...टिप्पणी के बहाने लोग लेखक के मित्रों पर कीचड़ उछालना शुरू कर देते हैं...ऐसे में बहुत काम आती है मॉडरेशन और बेकार की बहस से वो पोस्ट बच जाती है.
@ मोनिका जी
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा कई बार लगता है की इस गंभीर विषय पर तो लोगो को कुछ खुल कर कहना चाहिए या कुछ अपने निजी विचार रखने चाहिए पर कई लोग वहा भी आप से सहमत हूँ कह निकल जाते है और कुछ लोग उसे ही पसंद भी करते है |
@ कौशलेन्द्र जी
यही मोहल्ला वाली प्रवित्ति ही तो गलत है एक सामान विचार वाले लोग एक दुसरे की हा में हा मिलाने लगते है और अक्सर विषय के दुसरे रूप को देखा ही नहीं पाते है |
@ अयाज जी
मेरी पोस्ट का लिंक अपने ब्लॉग पर देने के लिए धन्यवाद |
@ रचना जी
माडरेशन को तो गलत मै भी नहीं मानती हूँ और हा दो चार टिप्पणियों तक विचार विमर्श संवाद को भी बुरा नहीं मानती हूँ किन्तु वो विषय तक ही सिमित हो और दोनों पक्ष बात को सकरात्मक ले तब , जहा बात नकारात्मक हो जाये उसे वही ख़त्म कर देना चाहिए क्योकि उसके बाद विचार विमर्स का कोई फायदा नहीं होता |
आलोचना का मतलब निंदा या बुराई नहीं होता...इसका अर्थ होता है देखना...अगर सम्यक प्रकार से देखना हो तो उसे समालोचना कहते हैं...कोई आपके लेख को पढ़कर उसके मूल्यांकन के लिए अपना मूल्यवान समय देता है तो उसका आभारी होना चाहिए न कि उसके लिए कटुता पाल लेनी चाहिए...शब्दों की मर्यादा न तोड़ी जाए तो अपनी पोस्ट पर आने वाली हर टिप्पणी का सम्मान किया जाना चाहिए...मेरा यही आग्रह रहा है कि मेरी पोस्ट पर टिप्पणी में मुझे कुछ भी कहा जाए, मैं कभी उसे मॉडरेट नहीं करूंगा...लेकिन किसी दूसरे ब्लॉगर का नाम लेकर मेरी पोस्ट पर प्रतिकूल टिप्पणी की जाए तो उसे हटाने को मैं बाध्य हूं...
ReplyDeleteजय हिंद...
किसी भी पोस्ट पर टिप्पणी देने से पूर्व कुछ बातें अवश्य ध्यान में रखी जानी चाहिए::
ReplyDelete1)किसी पोस्ट को बिना पढ़े टिप्पणी न दें।
2)पढ़ने के बाद यदि विषय पर विचार-स्पष्ट न हों तो टिप्पणी न दें।
3)विषय पर टिप्पणी दें,न कि व्यक्ति विशेष पर।
4)केवल इस आशय से टिप्पणी न करें कि किसी ब्लॉग पर ट्रफिक बहुत होता है...और आपकी टिप्पणी को पढ़ कर लोग आपके ब्लॉग तक आएंगे।
5)किसी पोस्ट को पढ़ने के बाद मन-मस्तिष्क पर उभरने वाले पहले प्रभाव को टिप्पणी का रूप दें...शब्दों का चयन संयत रखें।
6)किसी भी पोस्ट पर आई पहले की टिप्पणियों से अपनी टिप्पणी न बनाएं...हां,यदि किसी टिप्पणी पर आपको कुछ कहना है तो उसे स्वस्थ ढ़ग से सहमति या असहमति बताते हुए इस तरह व्यक्त करें कि वह विषय को एक नया आयाम दे।
7)देखा गया है कि हल्के-फुल्के ढ़ग से रखी गई पोस्टों पर टिप्पणियां अधिक आती हैं,बनिस्बत किसी गंभीर विषय पर लिखी गई पोस्ट के। इसलिए किसी भी ब्लॉग की विश्वसनीयता उसकी टिप्पणियों से न आंकें बल्कि विषय की गंभीरता को भी देखें। गंभीर विषयों पर लेखन को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि ऐसे ब्लॉग्स पर टिप्पणी अवश्य की जाए...जो किसी नए/पुराने विषय पर तथ्यपरक जानकारी दे रहा है या उसका वैज्ञानिक विश्लेषण कर रहा है।
7)किसी भी पोस्ट पर अपने ब्लॉग का लिंक चस्पा न किया जाए।
8)टिप्पणी में किसी तरह का पक्षपात न करें...निष्पक्ष टिप्पणी वही हो सकती है जब आप किसी विषय पर अपनी टिप्पणी को उसी रूप में दें,जैसा कि उस पोस्ट को पढ़ने पर आपके मन-मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ा...बहुत बार कोई पोस्ट हमें वैचारिक और भावनात्मक स्तर पर बहुत प्रभावित करती है...एक अच्छी टिप्पणी में ये विचार और भावनाएं स्पष्ट दिखाई देते हैं।
9) किसी भी ऐसे विषय पर टिप्पणी देने से बचें,जिसके संबंध में जानकारी का अभाव हो।
10) यदि आपकी टिप्पणी विषय के अन्य पक्षों को दिखाती है तो उसे जरूर दें...लेकिन गुटबाजी न करें।
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ReplyDelete@ अजित जी
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आप ने, मेरी बात को आप ने और अच्छे और स्पष्ट रूप में कह दिया |
@ अतुल जी
आलोचनाये कई बार हमें बेहतर बनती है हम उसके बाद अपने विषय पर और सोच कर लिखते है |
@ अभिषेक जी
ब्लॉग दो तरफ़ा माध्यम है संवाद बिना इसका कोई मतलब नहीं है |
@ मुकेश जी
बिकुल सही कहा हम किसी विषय पर उसके विचार की आलोचना करते है पूरे व्यक्तित्व या व्यक्ति की नहीं |
@ राजेश जी
यहाँ तो ये बात कोई भी समझाने को तैयार नहीं है |
@ रश्मि जी
वही तो लोगो को खुद समझना होगा की कौन सी सकरात्मक आलोचना है और कौन बस आप को परेशान करने के लिए ये कर रहा है और माडरेशन तो है ही सबके हाथ में अभी कल ही में मेरी भी दो टिप्पणी दो जगहों से माडरेट हो गई एक जगह तो समझ आया की क्यों हुई , मैंने राजनितिक लेख में कही बातो की गलती उजागर कर दी थी किन्तु दूसरी जगह क्यों हुई पता नहीं वहा तो मैंने कोई आलोचन की ही नहीं थी उसके बाद भी मै उसे गलत नहीं कहती हूँ ये ब्लॉग स्वामी का अधिकार है |
@ खुशदीप जी
ReplyDelete@ लेकिन किसी दूसरे ब्लॉगर का नाम लेकर मेरी पोस्ट पर प्रतिकूल टिप्पणी की जाए तो उसे हटाने को मैं बाध्य हूं...
सहमत | आप की जगह मै होती तो मै भी वही करती जो आप ने किया | किन्तु ब्लॉग स्वामी को उनके लेखो पर किये जा रहे हर टिप्पणी को अपनी खिचाई भी नहीं मान लेना चाहिए सब हा में हम मिलाये वाह वाह करे ये जरुरी नहीं है कुछ लोग " लिक से हट कर सोचते है " और वो सोच आप के विचार से मेल ना खाए तो वो आप की आलोचन नहीं होती है बस एक और विचार भर होता है |
@ मनोज जी
टिप्पणी में अपनी बात को स्पस्ट और विस्तार से लिखने के लिए धन्यवाद | ज्यादातर बाते जो आप ने लिखी है मै नहीं करती हूँ एक काम दो बार गलती से किया है आगे से प्रयास करुँगी की न करू | सहमत हूँ की लेखक के साथ टिप्पणीकर्ता को भी कुछ बातो का ध्यान रखना चाहिए |
आलोचना की आवश्यकता और उससे उपजे सवालों पर सुन्दर पोस्ट। जरूरत यही है कि निस्पृह भाव से मुद्दे का अवलोकन किया जाय, विचार प्रकट किये जांय । हां, कहीं कहीं कोई कटु अनुभव या पूर्वाग्रह आदि आड़े आ जाते हैं जिनसे बचते हुए मुद्दे को समझ कर बात रखना जरूरी लगता है। वरना तो बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती और बातों की लूपिंग बढ़ते चली जाती है।
ReplyDeleteअपना तो मानना है कमेन्ट-कमेन्ट से ही निष्कर्ष निकाल लेना चाहिए लोग तो पोस्ट-पोस्ट खेलने लगते हैं
ReplyDeleteपंगा हो जाए तो उस ब्लॉग से एक ब्रेक ले लेना चाहिए
सार्वजनिक मंच पर लिखेंगे तो पढ़ा भी जाएगा और टिप्पणी भी होगी
ये जानने की जिज्ञासा है की इस लेख की प्रेरणा कहाँ से प्राप्त हुई [प्रशन अनुत्तरित छोड़ा जा सकता है ]
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ReplyDelete...या फिर केवल संकेत भी दिया जा सकता है :)
ReplyDeleteआलोचना असहमति अगर तार्किक और सही शब्दों में की गयी हो, उस पर ऐतराज होने का प्रश्न ही नहीं होता. गडबडी तभी होती है जब किसी को परेशान करने के लिये कुछ पर्सनल कमेन्ट किया जाता है.
ReplyDeleteएक और किस्सा मजेदार होता है वह है ब्लॉग्गिंग छोड़ने का. अब से ब्लोगिंग बंद और अगले दिन से फिर अगली पोस्ट. तो फिर यह ब्लॉग्गिंग छोड़ने की धमकी किसके लिये है.
@अंशू माला जी, आपका ना उपरोक्त लेख पढ़ा और ना टिप्पणियाँ ही. इसलिए लेख सबंधित टिप्पणी नहीं है. बल्कि इन दिनों आपके अनेकों लेख राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र में काफी पुराने-पुराने लेख प्रकाशित हो रहे हैं. यह जानकारी देने के लिए टिप्पणी की है और शायद फिलहाल में दुबारा यहाँ आऊंगा भी नहीं मुझे मालूम नहीं. मेरी कुछ निजी समस्या है. जिनसे लड़ना है. मेरी जैन धर्म की तपस्या भी चल रही है और ११ अक्टूबर से जीवन और मौत की आखिर लड़ाई शुरू कर दूँगा. जीवन रहा तब यहाँ जरुर आऊंगा. इसलिए आप यहाँ पर मुझे धन्यवाद ना दें या कोई बात ना कहे. कुछ विचार या बात हो तो हमें ईमेल कर दें.
ReplyDeleteअसहमति से अपने को कभी असहज महसूस नहीं होता, बशर्ते टिप्पणी ’below the belt' न हो। लेकिन ये सुझाव अच्छा है कि जिन्हें आलोचना या असहमति पसंद नहीं वो टिप्पणी बाक्स के ऊपर पहले ही ऐसा लिख दें। हम जैसे पढ़ेंगे तो यह मानकर पढ़ लेंगे कि अखबार पढ़ रहे हैं ब्लॉग नहीं:)
ReplyDeleteसिर्फ़ शब्द ही नहीं, स्थान और लेखक\लेखिका का नाम भी मायना रखता है और हर जगह सही को सही और गलत को गलत कहना भी बहुत बार जोखिम भरा लगता है।
वर्तनी में गलती बताने की गलती मैं भी कई बार, कई जगह पर कर चुका हूँ तो उसके पीछे एक कारण यह भी था कि जब मुझे किसी ने मेरी कमी के बारे में बताया तो मुझे अच्छा लगता है कि कोई गौर से पढ़ता है और मुझमें सुधार चाहता है।
लेख से सहमत हैं जी और टिप्पणियों से भी।
आपके लेख से पूर्णता सहमत हूँ. फ़िलहाल टिप्पणी नहीं पढ़ी है और आपके लेख को अपने फेसबुक खाते से भी जोड़ दिया है. वैसे अलोचनात्मक टिप्पणी से सिक्के का दूसरा पहलू भी जानने को मिलता है.आपका सनद होगा कि मेरा पेशा भी ऐसा है कि हमें पक्ष-विपक्ष दोनों को रखना होता है. ब्लॉग जगत की दुनियाँ में भी कुछ सार्थक करना चाहता हूँ. लेकिन फ़िलहाल मेरी निजी समस्या के कारण परिस्थितियाँ गवाही नहीं दें रही है. हमने अपने टिप्पणी बॉक्स पर निम्नलिखित लिखा हुआ है कि:-
ReplyDeleteअपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं. आपको अपने विचारों की अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता है. लेकिन आप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-आप अपनी टिप्पणियों में गुप्त अंगों का नाम लेते हुए और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए टिप्पणी ना करें. मैं ऐसी टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं करूँगा. आप स्वस्थ मानसिकता का परिचय देते हुए तर्क-वितर्क करते हुए हिंदी में टिप्पणी करें.
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प्रचार सामग्री---दोस्तों, अपनी राजभाषा हिंदी का प्रचार-प्रसार करके जो सुखद अनुभूति होती हॆ-उसे कोई हिंदी-प्रेमी ही अनुभव कर सकता हॆ. वैसे आप भी अपनी फेसबुक की अपनी "वाल" पर प्रचार सामग्री (यहाँ से कॉपी करें) एक बार डाल सकते हैं. इससे उपरोक्त समूह के बारें में आपके दोस्तों को भी जानकारी हो सकती हैं. ताकि अधिक से अधिक लोग जुड सकें. जिससे और भी काफी लोग जुडे जो हिंदी के प्रति चिंतित है.
सूचनार्थ--दोस्तों, क्या आप सोच सकते हैं कि "अनपढ़ और गँवार" लोगों का भी कोई ग्रुप इन्टरनेट की दुनिया पर भी हो सकता है. मैं आपका परिचय एक ऐसे ही ग्रुप से करवा रहा हूँ. जो हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु हिंदी प्रेमी ने बनाया है. जो अपना "नाम" करने पर विश्वास नहीं करता हैं बल्कि अच्छे "कर्म" करने के साथ ही देश प्रेम की भावना से प्रेरित होकर अपने आपको "अनपढ़ और गँवार" की संज्ञा से शोभित कर रहा है.अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा, तब आप इस लिंक पर जाकर देख लो. http://www.facebook.com/groups/anpadh/ क्या आप भी उसमें शामिल होना चाहेंगे? फ़िलहाल इसके सदस्य बहुत कम है, मगर बहुत जल्द ही इसमें लोग शामिल होंगे. कृपया शामिल होने से पहले नियम और शर्तों को अवश्य पढ़ लेना आपके लिए हितकारी होगा.एक बार जरुर देखें. अगर किसी करणवश नए/पुराने सदस्य उद्देश्यों और नियमों से अवगत नहीं है. वो सभी उपरोक्त समूह के नीचे लिखे "दस्तावेजों" (Document) पर क्लिक करके एक बार जरुर पढ़ें.
@ सतीश जी
ReplyDeleteकई बार दोनों की किसी न किसी पूर्वा पश्चिम ग्रह से पीड़ित होते है |
@ ग्लोबल अग्रवाल जी
कई बार विषय पर अपनी बात इतनी बड़ी हो जाती है की टिपण्णी के बजाये उसे पोस्ट के रूप में लिखना जरुरी हो जाता है तो कई बार विवाद के करना | और हर बार की तरह फिर एक बार वही बात कहने वाली हूँ जो आप मानेगे नहीं की आप ने पोस्ट और टिप्पणिया ठीक से नहीं पढ़ी है मैंने पहले ही लिख दिया है एक जगह सीधे तौर पर और एक जगह संकेत में की मैंने ये पोस्ट किसी लिए लिखी है |
@ रचना दीक्षित जी
पर सभी को ये तार्किक लगती कहा है और ये व्यक्तिगत टिपण्णी ही तो लोगो को आलोचना के प्रति जरुरत से ज्यादा सतर्क कर देती है |
@ रमेश कुमार जी
जानकारी देने के लिए और मेरा लिंक अपने फेसबुक में देने के लिए धन्यवाद | आप अपनी निजी परेशानियों से जल्द विजयी हो कर बाहर निकले इसके लिए शुभकामनाये |
@ संजय जी
जब लोग टिपण्णी बाक्स के ऊपर ये लिखते है की "आप की आलोचनों का भी स्वागत है" तो जिन्हें नहीं पसंद है वो ये भी लिख सकते है कि "अपनी कमिया तो मुझे खूब पता है कोई खूबी नहीं पता है लेख में दिखे तो मुझे बताइए " बोलिए इसमे क्या बुराई है | अब इस पर पाठक कमी की जगह अपने आप लेखक की खूबी खोजना शुरू कर देगा :)
रही बात वर्तनी की तो उस पर यही कह सकती हूँ की मै हिंदी भाषी हो कर भी वर्तनी में इतनी गलतिया कर देती हूँ तो जो हिंदी भाषी नहीं है या जो हिंदी में अपना काम नहीं करते है उनसे वर्तनी में गलतिया तो हो ही सकती है उस पर से ज्यादातर लोग रोमन में लिखते है उससे ये और भी बढ़ जाती है इस लिए कम से कम किसी का उपहास तो नहीं ही उड़ाना चाहिए |
@आप मानेगे नहीं की आप ने पोस्ट और टिप्पणिया ठीक से नहीं पढ़ी है
ReplyDeleteटिप्पणियाँ तो नहीं पढीं थी लेकिन आपका दिल रखने के मान लेते हैं की लेख ठीक से तो क्या बिलकुल भी नहीं पढ़ा :) क्या फर्क पड़ता है ? :)
ब्लॉगजगत में एक ही जैसे अनुभव कईं बार होते हैं . लगता है की मैं क्या पूछता हूँ और क्यों पूछता हूँ , ये बस मैं ही जानता हूँ :)
खैर ...... लेख ज्ञान-वर्धक है और टिप्पणियाँ भी :)
ReplyDelete@ ग्लोबल अग्रवाल जी
ReplyDeleteजब आप ने ये टिपण्णी दी
@ये जानने की जिज्ञासा है की इस लेख की प्रेरणा कहाँ से प्राप्त हुई [प्रशन अनुत्तरित छोड़ा जा सकता है ]
तो मै उसके पहले ही इसका जवाब लिख चुकी थी और एक ब्लोगर से वार्तालाप भी हो चुकी थी पोस्ट पर उसके बाद भी आप ने सवाल किया इसलिए मैंने कहा की शायद आप ने पोस्ट या टिप्पणी नहीं पढ़ी है | देखिये आप ने कहा न की आप ने टिप्पणिया नहीं पढ़ी थी :)
मेरी बात सही हो गई की जब हम अपनी गलती इस तरह स्वीकार करते तो उसे ऐसे बताते है जैसे की हमसे या तो गलती हुई ही नहीं है या बहुत ही छोटी हुई है जिस पर ध्यान नहीं देना चाहिए सामने वाला तो बेकार में ही उसे बड़ा कर बता रहा है :)
@जब हम अपनी गलती इस तरह स्वीकार करते तो उसे ऐसे बताते है जैसे की हमसे या तो गलती हुई ही नहीं है या बहुत ही छोटी हुई है
ReplyDeleteआपकी बात ठीक निकली ये तो सही है ....
मैंने सही बात को स्वीकार किया ये भी सही है .....
लेकिन टिप्पणी ना पढ़ना क्या गलती माना जाना चाहिए ? :)
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ReplyDelete@ग्लोबल अग्रवाल जी
ReplyDeleteनहीं बिलकुल भी नहीं टिप्पणी नहीं पढना कही से भी गलती नहीं है किन्तु टिप्पणियों में भी व्यक्त मेरे विचारो को पढ़े बिना ही एक ऐसा सवाल कर देना जो हाल में ही ब्लॉग जगत में हुए विवाद से जुड़ता हो या जुड़ता सा दिखता हो का करना गलती है और जवाब देने पर ये लिखना
@ लेकिन आपका दिल रखने के मान लेते हैं की लेख ठीक से तो क्या बिलकुल भी नहीं पढ़ा
मुझे व्यक्तिगत रूप से गलत लगा :)
@ यही मोहल्ला वाली प्रवित्ति ही तो गलत है एक सामान विचार वाले लोग एक दुसरे की हा में हा मिलाने लगते है और अक्सर विषय के दुसरे रूप को देखा ही नहीं पाते है |
ReplyDeleteअंशुमाला जी ! मेरी उस बात पर भी विचार कीजिये जिसमें मैंने समालोचना के बारे में लिखा है ...किन्तु इस सबके बाद भी यदि कोई अपनी प्रशंसा ही चाहता हो ......सहनशीलता का पूर्ण अभाव हो ....सही समालोचना को "शत्रुता का परिणाम" आरोपित करने का अभ्यस्त हो तो ऐसे में मेरी बुद्धि में तो यही एक उपाय है कि उस गली में जाना ही छोड़ दिया जाय .....कुछ टिप्पणीकार अपमानजनक शब्दों के प्रयोग को ही टिप्पणी का आभूषण समझते हैं.....ऐसे लोगों का क्या कीजिएगा ? मेरे जैसे लोग जो गाली-गलौज में विश्वास नहीं करते...ऐसे टिप्पणीकारों का मोहल्ला अलग कर देने में ही भलाई समझते हैं. पिछले एक वर्ष से जिस तरह ब्लॉग पर चीरहरण हो रहा है ...और लोग जानबूझ कर चीरहरण करवा रहे हैं...हर आने-जाने वाले पर पत्थर फेक रहे हैं...खुद भी तमाशा बने हुए हैं और दूसरों को भी तमाशा बना रहे हैं ....क्या उनका मोहल्ला सुरक्षित है आपके लिए ?
मैं पहले भी एक दो जगह यह कह चुका हूँ कि ब्लॉग तो बरगद के नीचे बना एक ऐसा चबूतरा है जहाँ हर प्रकार के पक्षी आकर बैठते हैं......अपनी बात कहते हैं .....इस चबूतरे का सदुपयोग होना चाहिए न कि दुरुपयोग ? लेकिन तकनीकी कारणों से हम उन पंक्षियों का आना नहीं रोक सकते जो केवल शोर करते हैं और चबूतरे पर बैठे लोगों के सर पर बीट करते हैं . अब बीट से बचना है तो छाता लेकर बैठना पडेगा. ......यह मेरा विचार है ....कोई आवश्यक नहीं कि आप या अन्य कोई इससे सहमत हो . अलग मोहल्ला बनाने का आशय खेमेबाजी से नहीं बल्कि समस्या से निजात पाने के सरलतम उपाय से है.
@ कौशलेन्द्र जी
ReplyDeleteआप की बात से बिलकुल सहमत हूँ | जिनमे भाषा का संयम न हो जो गली गलौज करे उनके पास जाने की जरुरत ही नहीं है मै ये पहले ही कर चुकी हूँ साथ ही जो एक ही बात बार बार करते हो बहस आलोचना के बाद भी वही बात दोहराते हो वहा भी आलोचना करने का फायदा नहीं है | आप की बात सही है की ऐसे लोगो का मोहल्ला बनाया जा सकता है जो अपनी आलोचना को सकारात्मक रूप से ले बात चित एक सभ्य भाषा में करे और विपरीत विचार होने के बाद भी एक दुसरे को सुनने का धैर्य रखते हो |
इसे स्पष्टीकरण ही समझिये :)
ReplyDeleteया vs और
पहले कहा ....
@हर बार की तरह फिर एक बार वही बात कहने वाली हूँ जो आप मानेगे नहीं की आप ने पोस्ट और टिप्पणिया ठीक से नहीं पढ़ी है
बाद में कहा .........
@मैंने कहा की शायद आप ने पोस्ट या टिप्पणी नहीं पढ़ी है
:)
अंशुमाला जी ! मेरा विचार आपके लिए ग्राह्य हुआ जानकर अनुग्रहीत हुआ ......
ReplyDeleteहाइपरटोनिक सोल्यूशन में डाली गयी चीज़ें अपने पृथक अस्तित्व के साथ ही रह पाती हैं......
एकसार होने के लिए विनम्रता और सदाशयता अनिवार्य है. वैचारिक आदान-प्रदान में छुई-मुई प्रकृति के लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.....वहाँ प्रदान ही होता है ...आदान के लिए द्वार तो दूर कोई खिड़की भी नहीं है वहाँ. ...और फिर सार्थकता ही क्या है वहाँ ?