"औरत है न इसलिए ज्यादा चिल्लाती है "
निश्चित रूप से ये सुनने के बाद मेरे अंदर की औरत या कह लीजिये नारीवाद को जागना ही था | मैंने भी जवाब दिया की "औरत यू ही नहीं चिल्लाती है ज़रुर कोई तकलीफ़ होगी तभी चिल्ला रही है , क्या भूखी है " "नहीं मैडम खाना तो खा चुकी है"
"तो ज़रुर उसके बच्चे से अलग किया होगा"
" तो क्या करे ,सारे दिन बच्चे के पास ही बैठी रहेगी तो फिर आप लोगो को घूमने कौन ले जायेगा |
देखा मैंने कहा न ज़रुर कोई तकलीफ़ होगी तभी वो चिल्ला रही है उसके बच्चे से उसे अलग करोगे तो क्या वो चिल्लाएगी नहीं |
अभी हाल में ही राजस्थान गई थी तो वहा जा कर ऊंट की सवारी तो करनी ही थी , मेरे बैठने के बाद जब पति देव अपने ऊंट पे बैठने लगे तो वो जोर जोर से चिल्लाने लगी और दोनों ऊँटो के मालिक हाथों से उसका मुंह बंद करने लगे जब मैंने कहा की ये क्यों चिल्ला रही है तो उसके जवाब में बड़े बे फिकरी से और हंसते उसने हमें बताया की वो औरत है इसलिए ज्यादा चिल्लाती है ( वो हमें बताना चाह रहा था की ये मादा ऊंट है ) गलती उसकी नहीं है असल में हजारों वर्षो से महिलाओ के लिए ऐसे ही सोच समाज द्वारा बना दी गई है की महिलाएँ बस बिना कारण बोलती और चिल्लाती है उनकी बातों को ज्यादा सुनने या महत्व देने की जरुरत नहीं है और ये महत्वहिन होना उनकी बातों से चला तो उनके अस्तित्व तक आ गया , अब उनके होने को ही महत्वहीन बना दिया गया है | यही कारण था की जब मैंने ऊंट के मालिक से सवाल किया की भाई तुम्हारे गांव में कल और आज दो दिन में मैंने लड़के ही लड़के देखे है लड़की तो मुझे बस एक ही दिखी तो जवाब में उसने कहा की होती तो है पर लड़कियाँ न कमजोर होती है बचतीं कहा है गांव है यहाँ कौन डाक्टर मिलेगा तो मर जाती है |
"मर जाती है या मार दिया जाता है | '
" अरे नहीं अब पहले जैसा नहीं है अब तो बहुत कम लोग ही मारते है | "
मेरे सवाल पर उसके द्वारा बड़े आराम से सहज स्वीकृति मेरे लिए आश्चर्य जनक था मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की वो इस बात को इतनी आसानी से स्वीकार कर लेगा, उसे तो जरा भी झिझक नहीं हुई ये मान लेने में की आज भी लोग बेटी को जन्म लेने के बाद मार देते है | थोड़े देर बाद फिर पूछा की
" तुम्हारे यहाँ तो सरकार बेटी होने पर पैसे देती है |"
" जब बच्चे अस्पताल में होंगे तब ना यहाँ तो सब बच्चे घर में ही होते है |"
" तो क्या यहाँ सरकारी अस्पताल नहीं है क्या "
" है तो लेकिन वहा डाक्टर कहा होते है सुबह कुछ घंटे के लिए आते है फिर चले जाते है "
" यदि किसी की ज्यादा तबियत ख़राब हो गई तो "
'तो फिर गाड़ी करके शहर ले जाते है "
" तब तो वहा तो १४०० रु मिलते होंगे ना बेटी होने के फिर क्यों मार देते हो "
वो थोड़ी देर चुप रहा फिर कहा " १४०० रु में क्या होता है इतने में क्या बेटी पल जायेगी लालन पालन दहेज़ सब १४०० रु में होता है क्या '
जी तो किया की पूंछू की बेटे कैसे पलते है क्या उन्हें पालने में पैसे खर्च नहीं होते है क्या उनके विवाह में पैसे खर्च नहीं होते पर जाने दिया जानती थी की उसके पास मेरे बातों का कोई सही जवाब नहीं होगा फिर उसने तो ये परंपरा बनाई नहीं है वो तो बस बिना दिमाग लगाये उसे आगे बढ़ रहा होगा | जब हम घूमने के बाद ऊंट से उतारे तो बच्चों के झुंड ने फिर हमारे करीब आ कर खड़े हो गए और लड़कों का झुंड लड़की से कुछ खुसुर फुसुर करने लग तभी लड़की आगे बढ़ी और हमारी बिटिया रानी से पूछी " वॉट इस योर नेम " उसे बिना झिझक आगे बढ़ अंग्रेजी में सवाल करता देख बिटिया से पहले मैंने उससे पूछा स्कूल जाती हो तो उसने ना में सर हिला दिया तो वो सारे लड़के जाते है क्या तो उसने धीरे से कहा हा | समझ गई की बिना स्कुल के ही वो वहा आने वाले पर्यटकों से सुन सुन कर सिख गई होगी इन प्रतिभाओ को दुसरे कब समझेंगे पता नहीं |
आप पढ़ने वालो सोच रहे होंगे कि बेचारा सही कह रह है बेटियों के दहेज़ को लेकर माँ बाप में चिंता तो होती ही है यही कारण है की बेटिया मार दी जाती है गरीब लोग और क्या कर सकते है फिर अनपढ़ भी था इसलिए सब बोल गया तो जरा रुकिए ये लेख अभी ख़त्म नहीं हुआ है | अब राजस्थान गये है तो बिना बड़े बड़े महलों किला राजा महाराजो की बातों के बिना पूरी थोड़े ही होती है | ऐसे ही एक महल घुमाते हुए गाइड हमें दिखाने लगा की देखिये ये सोने चाँदी के बने पालने इनमें हमारे राजकुमार सोते खेलते थे हर राजकुमार के लिए एक अलग शानदार पालना होता था बाकी के लिए साधारण होते थे | मैंने कहा की बाकी के कौन ? वही जो रानियों से अलावा होते थे उसने जवाब दिया | तो ये सारे पालने रानियों से हुए राजकुमार राजकुमारियो के लिए थे मैंने पूछा | नहीं नहीं ये बस राजकुमारों के लिए थे राजकुमारिया तो साधारण लकड़ी के बने पालनो में रहती थी | मन ही मन सोचा की वाह जी वाह क्या बात है राजकुमारियो की स्थिति राजाओ के नाजायज आलौदो के बराबर थी बहुत खूब यहाँ कौन सी गरीबी का वास है यहाँ किस लालने पालने की कमी है फिर भी अपनी ही बेटी और बेटों के साथ इतना भेद, नाजायज औलदो की तरह ही बेटी के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं क्या जा रहा है | मैंने फिर उससे पूछ तो फिर कितनी बेटी थी राजा को जरा जवाब सुनिए अरे बेटिया बचतीं ही कहा थी | इस बार ये सुन कर ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ इस बारे में भी सुन चुकी थी की कई बार राजाओ के घर भी बेटिया मार दी जाती थी ताकि विवाह के समय दूसरों के सामने सर ना झुकाना पड़े, राजशी परिवार से थे किसी के सामने सर नहीं झुका सकते थे और जो नहीं मारते थे वो बेटियों के प्रयोग वस्तु की तरह राज्य की सुरक्षा, सम्बन्ध बनाने के नाम पर एक दूसरे को विवाह के नाम पर दे देते थे | फिर उससे भी मैंने आज के हालत पर सवाल किया " तो आज कल भी बेटिया ऐसे ही नहीं बचतीं है ना यहाँ, या आज भी बेटिया मार देते है "
" नहीं ये सब अब यहाँ कहा होता है अब लोग ऐसा नहीं करते है " उसने तुरंत जवाब दिया |
" पर लड़कियों की संख्या तो राजस्थान में बहुत ही कम है " जानती थी ये इतनी जल्दी स्वीकार नहीं करेगा पर उसने भी स्वीकार करने में जरा भी देरी नहीं की दूसरे सवाल के बाद ही मान गया |
" शहरों में एक आध लोग करते होगें हा गांवो में होता है ये सब शहरों में नहीं | "
अब बोलिए गाइड अनपढ़ गावर नहीं था और ना ही मैं किसी गरीब के घर में खड़ी थी फिर भी बेटियों को लेकर वही सोच | ये सोच बस बेटियों को ही लेकर नहीं था ये सोच पूरी महिलाओ के लिए था | राजा का रंग महल दिखाते हुए गाइड सीना फूला कर बताता है की फला राजा की ३६ रानिया थी राजा को सभी को खुश करने के लिए अफ़ीम खानी पड़ती थी |
"तो राजा फिर इतनी शादियाँ करता ही क्यों था " जवाब मालूम था फिर भी पूछ लिया |
" उस समय राजा शादी तो राज्य के लिए करता था राज्य को सुरक्षित बनाने के लिए | पर आज कौन करता है आज तो एक अकेली ही १३६ के बराबर होती है | "
मैंने जवाब दिया की " ज़रुरी भी है यही एक अकेली १३६ के बराबर ना हो तो आज भी लोग ३६ शादियाँ ना करने लगे और ये बताओ की फिर रानियों के अलावा भी उसके दूसरे बच्चे क्यों होते थे , उसकी क्या जरुरत थी राजा को | वो ना करता तो शायद अफ़ीम कम खानी पड़ती और ज्यादा ध्यान राज काज पर देते और ना इतने पैसे इन रंग महलों पर बहाते और ना देश में बाहरी आक्रमण से ये हालत होती | " मालूम था की इस बात का कोई जवाब उसके पास नहीं होगा एक गाइड ही था कोई इतिहास कार नहीं | वो बस मुस्करा कर इतना ही कह पाया की राजा लोगो को सब करना पड़ता था |
रानी पद्मावती के "जौहर" करते हुए की पेंटिंग दिखाते हुए गाइड उनके शौर्य उनके हिम्मत और सुंदरता की गाथा गा रहा था उसे देख कर लगा की काश ये हिम्मत किसी और रूप में दिखाई गई होती काश की समाज का रूप कुछ और होता काश की महिलाएँ दुश्मन से अपनी रक्षा के लिए "जौहर प्रथा " की जगह कोई और जौहर दिखाती, काश की आत्महत्या करने की जगह वीरो की तरह पुरुषों के साथ तलवार ले युद्ध के मैदान में निकल जाती, मरना तो यहाँ भी था और वहा भी | कम से कम मरने से पहले अपने राज्य और उसकी प्रजा के लिए कुछ कर जाती, कुछ दुश्मनों की गर्दन ही उड़ा देती क्या पता हार को ही बचा लेती | कुछ नहीं तो कम से कम महलों में घुसे दुश्मनों के ही सर तलवारों से उड़ा कर लड़ते हुए वीरगति को पा जाती , तो शायद "खूब लड़ी मर्दानी वो तो----- " जैसी कोई कविता कही पहले कवी चन्द्र वरदाई द्वारा लिख दिया गया होता | शायद हमारे समाज का रूप और देश का इतिहास भूगोल ही कुछ और होता | काश की समाज में महिलाओ को उपभोग का सामान ना समझा जाता काश की महिलाओ को अपनी रक्षा के लिए जौहर प्रथा को ना अपनाना पड़ता | इस प्रथा के बारे में सोचती हूँ तो लगता है जैसे महिलाएँ उपभोग की वस्तु भर थी और उनका उपभोग बस उसका मालिक ही कर सकता था कोई दुश्मन उसका उपभोग ना कर सके इसलिए उन नारी रूपी वस्तुओ में एक खुद को नष्ट करने वाला एक बटन ( जैसे की फिल्मों में कोई वैज्ञानिक अपनी खतरनाक अड्डे या मशीनों में लगा देता है ताकि उसे कुछ हो जाने पर किसी और के हाथ वो ना लगे और नष्ट हो जाये ) जौहर प्रथा के रूप में लगा दिया गया था की मालिक के कुछ होते ही वस्तु अपने आप नष्ट हो जाये |
हमारी बिटिया तो वहा गई थी ख़ुशी ख़ुशी प्रिंसेस को देखने और उनके महलों को देखने बचपन से कहानियाँ सुनते आ रही थी, मैं यही बोल कर उन्हें ले गई थी पर बेचारी को ज्यादातर जगहों पर तो ना तो प्रिंसेस दिखी और ना ही उनसे जुड़े सामान ही, ज्यादातर जगह उनका नामो निशान भी नहीं दिखा | यहाँ आ कर मुझ पर गुस्सा किया और झूठ बोलने का आरोप लगा दिया अब क्या बताऊ की कैसे और क्यों हमारी राजकुमारिया ग़ायब होती जा रही है |
स्पष्टीकरण -- -- उम्मीद है राजस्थान के लोग इस लेख को अपने राज्य की, की जा रही बुराई के तौर पर नहीं देखेंगे ये बात पूरे देश के लिए कही गई है | ये संयोग है की मैं राजस्थान गई और वहा ये बाते आई ये विचार आया इसलिए इसे यहाँ लिख रही हूँ | शायद हरियाणा जाती तो ये सवाल पूछने पर कोई ताऊ लठ्ठा ले मेरे पीछे पड़ जाता या पंजाब में ये सवाल करने पर मुझे माँ बहन की गलियों से नवाज दिया जाता या फिर दिल्ली में सरकारी बाबू लड़कियों की इस हालत को मानने से ही इंकार कर देता और मुझसे कहता की आँकड़े दिखाइये |
आँख खोलता सच्चा आलेख्…………आज भी स्थिति बदली नही है बस थोडा सा जरूर बदलाव आया है मगर पूरी तरह नही…………अभी पूरा बदलाव आने मे काफ़ी वक्त लगेगा।
ReplyDeleteजबरदस्त तमाचा है उन लोगों के मुँह पर जो आज भी लड़कियों को मारते हैं, परंतु इसके लिये उनकी भी गलती नहीं है, जैसी सोच उनके दिमाग में भर दी गई है, उसे केवल शिक्षा के माध्यम से ही निकाला जा सकता है।
ReplyDeletebetiyon ke prati aisi soch man ko jhakjhor kar deti hai....
ReplyDeleteapka spashtikaran....aankade dikhaeye..prabhavshali hai.
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ReplyDeleteयही तो विडम्बना है हमारे सामज की, कि यहाँ औरतों और लड़कियों को केवल भोग कि वस्तु मात्र ही समझा जाता है। आपकी बातों से कहीं में पूरी तरह सहमत हूँ तो कहीं नहीं, माना कि आज हमारे समाज में यह कुरीतियाँ विद्यमान हैं। भले ही उनका रूप बदल गया है जैसा कि आपने खुद ही लिखा है मगर मेरा मानना यह है कि पहले का समय आज से अच्छा ही था। क्यूँकि बहुत सी ऐसी रानियाँ हैं जिनकी वीर गाथा आपने सुनी होगी। जैसे "महारानी लक्ष्मी बाई" या "रानी दुर्गा वती" जो खुद एक राजपूत परिवार से थीं....हाँ यह ज़रूर है कि पहले यह "जौहर प्रथा" बहुत बुरी होती थी। मगर खुशी इस बात कि होती है,कि पहले राजकुमारियों को आत्म रक्षा हेतु शस्त्र विद्या का सम्पूर्ण ज्ञान ज़रूर दिया जाता था। जो लगभग अनिवारी हुआ करता था। जिसकी आज के समय में बहुत बड़ी कमी है। और इस सबके लिए ज़रूरी है इस संकीर्ण मानसिकता का बदलना जो शायद बहुत कठिन काम है।
ReplyDeleteकई मुद्दों पर तुषारापात करती पोस्ट. सच कहा है तुमने. जोहर से आत्महत्या तक. क्या बदला है ? कुछ भी तो नहीं.और त्रासदी तो यह कि इसे गर्व की बात समझा जाता है. मेरी नानी भी जोहर और सती होने वाली वीरांगनाओं के किस्से बहुत गर्व से सुनाया करती थी.और मेरे इसी तरह विरोध और बहस करने पर डाँट कर कहती" नहीं ऐसा नहीं कहते वे सब बहुत पवित्र,पतिव्रता स्त्रियां थीं".तब भी माएं ही थीं जो आक्रमण के समय बेटों को तो टीका करके लड़ने भेजती और अपनी बेटियों को हीरे की अंगूठी दिया करती थीं कि बेटी किसी के आते ही इसे चाट लेना.
ReplyDeleteसबसे पहले तो एक माँ को ही अपनी मानसिकता बदलनी होगी.पहले वो ही अपने बच्चों में भेद करना छोड़े.
अच्छा विश्लेषण है । पर देखिए अंत तक आते आते आप भी उसी रौ में बह गईं जिसका विरोध कर रही हैं। आपने लिखा पंजाब में आपकी मां-बहन एक कर दी जातीं। कम से कम आप तो ऐसा लिखने से बच सकती थीं।
ReplyDelete@ राजेश जी
ReplyDeleteध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद | मै यहाँ ये कहना चाह रही थी की लड़कियों की संख्या कम होने में तो हरियाणा ,पंजाब और दिल्ली भी काफी आगे है किन्तु वहा लोगो से ये सवाल करती तो वह के लोग राजस्थान के लोगो की तरह सच को स्वीकार करने की जगह मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते जैसा की इन जगह के लोग अक्सर करते है | मैंने उसे थोडा और ठीक कर दिया है उम्मीद है अब वो ख़राब नहीं लग रहा होगा |
अच्छी और सच्ची पोस्ट
ReplyDeleteअंशुमाला जी,
ReplyDeleteआज ही अखबार में पढ़ा...चार लडको ने फ्रेंडशिप डे सेलिब्रेट करने के बहाने एक नवीं में पढनेवाली लड़की का रेप किया और लड़की ने इस शर्म से आत्महत्या कर ली. हाईकोर्ट ने इन्हें दस साल की सजा दी है....हो सकता है, अपराधियों के माता-पिता सुप्रीम कोर्ट तक ये केस ले जाएँ..फैसला बदल जाए या फिर यही रहे...लेकिन ये तो दस साल बाद कैद से निकल आएँगे...पर उस लड़की को तो जीवन से हाथ धोना ही पड़ा..ऐसी ना जाने कितनी ही अनगिनत घटनाएं हैं...जहाँ लड़कियों को जान देकर कीमत चुकानी पड़ती है और अपराधी लड़के निर्दंद्व घूमते रहते हैं.
पढ़े -लिखे घरो में भी माता-पिता भी लड़कियों को मुहँ खोले बिना, घरेलू हिंसा सहते रहने की सीख देते रहते हैं....कई बार लडकियाँ आजीवन सहती हैं..कई बार तंग आकर आत्म-हत्या कर लेती हैं. पर उनके पतियों को कोई सजा नहीं मिलती.
सच तो ये हैं कि लडकियाँ ही ज्यादा पैदा होती है लेकिन उन्हें मार दिया जाता है.कई पश्चिमी देशों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा ही है.और आपने समस्या तो सही बताई लेकिन फिर वही बात है कि इनका समाधान क्या है?
ReplyDeleteमैं विवेक जी से सहमत हूँ.सही शिक्षा ही समाधान हो सकता है.स्कूलों में केवल एक पाठ लक्ष्मीबाई या इंदिरा गाँधी के बारे में देने से काम नहीं चलेगा.जेंडर सेंसिटाइजेसन एक अनिवार्य विषय होना चाहिए और केवल स्कूलों में ही नहीं कॉलेजों में भी.महिलाओं से जुडी समस्याऐं क्या है और उनका समाधान क्या है और महिलाओं के प्रति किस तरह की सोच को गलत सोच माना जाऐं ये शिक्षा यदि बचपन में ही बच्चों को दी जाएँ तो इसका प्रभाव उन पर हमेशा रहेगा फिर चाहें उनके घर पर कैसा भी माहौल हो.केवल एक जेएनयू से काम नहीं चलेगा(कृप्या इसका ये अर्थ न लगाया जाए कि मैं ठेठ वामपंथी विचारधारा का समर्थन कर रहा हूँ) देश के हर स्कूल और कॉलेज में ये बातें लडके लडकियों को समझाई जानी चाहिए कि कैसे परम्पराओं या धर्म के नाम पर महिलाओं के साथ गलत हो रहा है.तभी कुछ समाधान हो सकता है.
वैसे स्पष्टीकरण की कोई जरुरत तो नहीं थी पर अब दे ही दिया है तो कोई बात नहीं.
लिंग भेद के नाम पर बहुत कुछ ऐसा है जिससे वाकई सिर शर्म से झुक जाता है।
ReplyDeleteपंजाब में लिंगानुपात बेशक सराहनीय नहीं है लेकिन ऐसे भी हालात नहीं हैं कि आपको आशंका हो, बल्कि अन्य राज्यों के मुकाबले लड़कियों और लड़कों में ज्यादा भेदभाव भी नहीं है। ये मेरा व्यक्तिगत मत है।
@ राजन जी
ReplyDeleteकितना समय हो गया आप को ब्लॉग जगत में इतना समय गुजारने और पढ़े लिखे के विचार जानने के बाद भी आप मानते है की केवल शिक्षा इस समस्या को ख़त्म कर सकती है | मेरा ये भ्रम तो ब्लॉग जगत में आने के बाद टूट गया है विवेक जी की तरह मै भी शिक्षा को एक उपाय मानती थी पर अब तो कुछ और उपाय सोचने में समय लगेगा |
@ संजय जी
आप से बिलकुल सहमत हूँ की पंजाब में और दिल्ली में भी लोग अपनी बेटियों के साथ वैसा भेदभाव नहीं करते है जैसा की हरियाणा राजेस्थान यु पी आदि जगहों पर होता है | वहा तो लोग एक बेटी को ही जन्म देते है और उसे बड़े प्यार से रखते है उसके बाद उन्हें जन्म ही नहीं लेने देते है और एक और कही कही दो बेटो के जन्म के बाद तीनो के लगभग एक जैसी परवरिश देते है | वहा की बड़ी समस्या भ्रूण हत्या है एक बेटी तो लोग प्यार से रख लेते है उससे ज्यादा नहीं चाहते किन्तु कुछ अन्य जगहों पर तो लोग बेटी चाहते ही नहीं है एक भी नहीं और रख भी लिया तो उसका सारा जीवन भाई से कमतर में ही गुजरता है | लेख और टिपण्णी सभी मेरे व्यक्तिगत विचार है आप आराम से इससे असहमत हो सकते है और अपनी और कुछ नई जानकारी रख भी सकते है |
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ReplyDelete.
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अंशुमाला जी,
आपका आक्रोश व गुस्सा दोनों जायज हैं, पर अब बहुत ही तेजी से लोगों का नजरिया बदल रहा है... हम क्यों अंधेरों में झांकें जब रोशनी हमारा इंतजार कर रही है...आपकी पोस्ट में ही कई बार यह तथ्य आया है कि अब यह भेदभाव नहीं होता या कम हो गया है... उजाला अब दूर नहीं, आशावान रहें, मेरी और आपकी बेटियाँ बदल डालेंगी उस पुरानी सोच को !
...
हमारे समाज की कटु सच्चाइयाँ हैं ये ...राजस्थान हो या कोई और प्रदेश .. पूरे समाज में महिलाओं के लिए एक बनी बनाई सोच है जो न जाने कब से चली आ रही है और आगे भी जारी है ... बेटियों से जीने का हक़ छीन लेना भी हमारी इसी सोच का परिणाम है......
ReplyDeleteइन प्रदेशों में अन्य राज्यों के मुकाबले लड़कियों की संख्या में कमी है , यह सत्या है , और यह भी कि अब समय बदल रहा है , राजस्थान वासी हूँ इसलिए कह रही हूँ कि धीरे ही सही ,परिवर्तन आ रहा है , बेटी की स्कूल में बहुत बच्चियां ऐसी थी जिनका कोई भाई नहीं था ...ये जरुर है कि मध्यमवर्ग में धार्मिक पर्व मनाते, व्रत कथाओं को सुनते कई बार बड़ी उलझन होती है . बदलेगा समय जरुर ,हमारे जैसे लोंग ही बदलेंगे ...
ReplyDeleteअंशुमाला जी,
ReplyDeleteवैसे तो मुझे ये बात किसीको कहना अच्छा नहीं लगता लेकिन फिर भी कहना पड रहा है और आपसे तो शायद पहली बार कह रहा हूँ कि आपने मेरी टिप्पणी ध्यान से नहीं पढी है.मैंने भी ये ही कहा है कि अभी तक जो शिक्षा दी जा रही है उससे काम नहीं चलने वाला वो नाकाफी है.इसमें बदलाव की जरूरत है.पश्चिम में इसी ओर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया है.वैसे ये कहना भी सही नहीं कि ब्लॉग पर सभी एक जैसे है.यहाँ दोनों तरह के लोग है.
@ अब तो कुछ और उपाय सोचनेमें समय लगेगा |
च च च...अंशुमाला जी ये क्या कह डाला आपने अभी भी समय लगेगा?
ऐसे तो और कितनी पीढियाँ यूँ ही वारी जाती रहेंगी.मैं भी ये ही चाहता हूँ,समाधान की दिशा में भी कुछ किया जाए.
बिल्कुल ..आज भी कमोबेश स्थिति बहुत बेहतर नहीं कही जा सकती । मुझे हैरत होती ये जानकर कि अमेरिका जैसे सर्वशक्तिशाली देश की महिला सैनिकों का भी दैहिक ,मानसिक शोषण हो रहा है , तो फ़िर कब तक । भारत में देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी को पूरे देश् के सामने जबरन ही पदमुक्त होने पर विवश कर दिया गया वो भी तब जब और देश की बेटियों की ये स्थिति भी तब है जब देश में आज सोनिया , प्रतिभा , शीला ,मायावती ,ममता ,जयललिता और जाने ऐसे ही कितने कद्दावर नाम विश्व पटल पर अपनी पहचान बना रहे हैं । जो भी किया जाना है तुरंत किया जाना चाहिए और पूरी सख्ती और दृढता से किया जाना चाहिए । विचारोत्तेजक आलेख
ReplyDeleteराजस्थान को इतनी बेदर्दी से चित्रित किया है तो मन को ठेस तो लग ही रही है। जब इतिहास को देखने का नजरिया केवल नारी ही हो तब तो सारा इतिहास ही कलंकित लगेगा। लेकिन राजस्थान की कठोर जिन्दगी को भी देखा जाए तो नजरिया कुछ बदलेगा। राजस्थान का जो गौरवशाली इतिहास है अब अगली पोस्ट पर उस पर भी कुछ लिख दें तो मन को शीतलता मिले।
ReplyDeleteअंशुमाला
ReplyDeleteसवाल सीधा से हैं हर पुरुष के लिये दूसरा पुरुष दुश्मन क्यूँ लगता हैं जैसे ही पहला पुरुष किसी बेटी का पिता बनता हैं ?? क्युकी पुरुष से बेहतर पुरुष को क़ोई नहीं समझता . ये समय वो हैं जब एक पुरुष को चाहिये की वो दूसरे पुरुष को नैतिकता का पाठ पढाये ताकि एक पुरुष दूसरे पुरुष को अपनी बेटी का दुश्मन ना समझे
हर समय हर युग में नारी को नैतिकता का पाठ पढ़ा दिया जाता हैं और नारी को ही नारी का दुश्मन माना जाता हैं जब की हैं उल्ट
अगर आप गंभीर रूप से विचार करेगी तो पायेगी की नारी को नैतिकता का पाठ सब से ज्यादा उसके पुरुष अभिभावक ही देते हैं क्युकी वो दूसरे पुरुष को समझते हैं
हर युग में हर की अपनी लड़ाई थी , और जोहर आसन नहीं होता था ये वो हथियार था जिसके जरिये कोम की कोम ख़तम हो जाती थी . स्त्री जोहर कर के अपने को मुक्त कर लेती थी और वो जो उसको अगवा करके उस से ब्याह करके संतान उत्त्पत्ति करते , अपनी दुश्मनी के लिये उनको जोहर करती नारी जोहर से हरा देती और आने वाली संतान अगर बेटी होती उसको भी मुक्त रखती
समय बदल रहा हैं ब्लॉग पर भी अब दिख रहा हैं , पहले जो लोग नारी ब्लॉग पर इन विषयों पर कटु व्यंग करते थे आज आप के ब्लॉग पर सहमत हैं
इश्वर हर घर में एक बेटी दे ताकि हर पिता समझे समाज को सुरक्षित कर ना कितना जरुरी हैं
कटु सच्चाई को अभिव्यक्त करती है आपकी post. समाज के लिए महिलाओ का अस्तित्व उपभोग की वस्तु से ज्यादा नहीं. दिल्ली और आस-पास इनके हालात को मैंने इस post में भी अभिव्यक्त किया था -
ReplyDelete"महिला अपराधों की राजधानी दिल्ली और दबंग अपराधी"
http://ourdharohar.blogspot.com/2011/07/blog-post_30.html
कई बातें आपने कहीं.. कई बातें टिप्पणियों से निकलकर आईं... आपकी बातों से सहमत, लेकिन स्थिति में अंतर नहीं आया है यह मैं नहीं मानता... बिहार की राजधानी पटना में भी एक समय जिस संस्थान में मैं काम करता हूँ वहाँ सिर्फ दो स्त्रियाँ काम करती थीं... पूरे शहर में.. उनमें से एक मिला जुलकर बिना जेंडर के भेद भाव के मिलना जुलना, बोलना बतियाना करती थी..जिसे एक उच्च अधिकारी ने चलताऊ और लडकी को अवेलेबुल समझ लिया... उनकी एक हरकत और पूरी कार्यालय परिसर के बीच उस लडकी का तमाचा उनके गाल पर...
ReplyDeleteमगर सभे नहीं होतीं ऐसी.. आज तो बहुत सारी लडकियां काम कर रही हैं.. नैतिकता की शिक्षा सिर्फ पुरुष देता है क्योंकि वो पुरुष की नज़र को पहचानता है, गलत है... मैं भी देती हैं या मैं ही देती हैं..
समय बदला है कि नहीं, बदलेगा कि नहीं, बदलना चाहिए या नहीं..इस पर हम बहस तो कर सकते हैं.. उत्तेजक विचार व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन हल...??????
@राजन जी
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग जगत कहने का अर्थ यह था की यहाँ लोग शिक्षा के नाम पर बस डिग्रीधारी नहीं है बल्कि उससे कही ज्यादा है, विषयों पर सोच रखने वाले है बुद्धि जीवी और विद्वान् लोग है , जब इनके ये विचार है तो फिर किस तरह की शिक्षा की बात सोची जाये | और रही बात उपाय की तो वास्तव में ऐसा ही है कि अब आगे का सही रास्ता नहीं सूझता है जिससे समाज में किसी बदलाव की उम्मीद की जाये |
@ अजित जी
मैंने तो पहले ही स्पष्टिकरण दे दिया है की इसे बस राजस्थान से जोड़ कर न देखे ये पूरे देश का हाल है और राजस्थान की गौरवशाली परंपरा के बारे में तो सभी जानते है | कभी समय मिला तो वहा क्या अच्छा लगा अवश्य लिखूंगी |
@ रचना जी
ReplyDeleteअभी हाल ही में एक कविता पर मैंने कुछ ऐसी ही बात लिखी थी की पिताओ को बड़े होने पर समाज से डरने और बेटी को भी डराने के बजाये उससे लड़ना सिखाना चाहिए और रही बात जौहर प्रथा की तो मैंने भी वही कहा है की मरना तो था ही अच्छा होता की युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त होती | और हर किसी को बेटी होने से समाज सुरक्षित हो सकता तो ये समाज कभी बेटियों के लिए असुरक्षित होता ही नहीं |
@ सलिल जी
उस महिला ने हिम्मत का और अच्छा काम किया किन्तु पीठ पीछे उसको भी बुरा कहने वालो की कमी न होगी | मै भी मानती हूँ की बदलाव आ रहा है किन्तु ये बस कुछ क्षेत्रो तक और कुछ हिम्मती लड़कियों के बल पर ही संभव है जैसा की आप ने भी कहा है की सभी की हिम्मत अपने बॉस को सरेआम चाटा मारने की नहीं हो सकती है | और रही बात हल की तो उसके लिए मैंने तो पहले ही हाथ खड़े कर दिए है | शिक्षा के कारण बदलाव की उम्मीद थी किन्तु ब्लॉग जगत के विद्वानो की कई बार महिलाओ को ले कर राय जानने के बाद भ्रम तुट गया |
अंशु जी, लगता है आप शिक्षा से बदलाव की उम्मीद बिलकुल ही छोड़ चुकी हैं। पर ऐसा है नहीं । जिस विषय पर यहां चर्चा हो रही है उस दिशा में देश में कुछ समूह हैं जो काम कर रहे हैं। उनके काम से यह आशा बंधती है कि अगर इसे व्यापक पैमाने पर किया जाए तो निश्चित रूप से परिवर्तन होगा। एकलव्य भोपाल द्वारा प्रकाशित शैक्षणिक पत्रिका संदर्भ के 75 वें अंक में महाराष्ट्र में आभा समूह द्वारा किए जा रहे ऐसे ही एक प्रयास का विवरण दिया गया है। इसे आप इंटरनेट पर भी पढ़ सकती हैं। www.eklavya.in पर जाने पर आपको संदर्भ पत्रिका की लिंक मिल जाएगी। वहां उसका 75 वां अंक आपको मिलेगा। जिसमें लेख है लैंगिकता शिविर। मेरा अनुरोध है आप तथा अन्य साथी इसे अवश्य पढ़ें।
ReplyDeleteअंशुमाला जी,
ReplyDeleteआप तो अब पढने लिखने का महत्तव ही खारिज किये दे रही है...और मैंने कब कहा कि बुद्धिजीवी लोगों के साथ कोई समस्या नहीं है या बुद्धिजीवी होना ही समस्या का हल है.उन पर तो खुद कोई न कोई विचारधार हावी रहती है जिसका कारण उनकी विशेष प्रकार का अध्ययन ही है,इससे हटकर वो चाहकर भी नहीं सोच पाते.शिक्षा के पैटर्न में बदलाव कर क्यों नहीं उन्हें इन समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाया जा सकता है.वैसे बहुतों के साथ ये समस्या नहीं है या कम है,और यदि इतनी भी शिक्षा न होती तो समस्या इससे भी बहुत ज्यादा विकराल होती.
आपने शुरू में नारीवाद की बात की तो बता दूँ ये शिक्षा में बदलाव पर जोर देने की बात तो सबसे ज्यादा नारीवादी ही कर रहे है इसके अलावा समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों की भी ये ही राय है.और बहुत से देशों में इसके लिए प्रयास किए गये है और अच्छे परिणाम भी मिले है.क्योंकि विशेष प्रकार के शेक्षणिक वातावरण का प्रभाव व्यक्ति के चरित्र पडता है.आप स्पष्ट कीजिए कि संघ द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाओं जैसे आदर्श विद्या मंदिर आदि में पढने वाले बच्चे धर्म राष्ट्र हिंदी प्रेम को लेकर हमेशा बिल्कुल अलग नजरिया क्यों रखते है जबकि वामपंथी विचारधारा वाले संस्थानों जैसे मैंने जेएनयू का नाम लिया से निकले लडके लडकियों का नजरिया बिल्कुल अलग होता है और मदरसों में पढने वाले तो माशा अल्लाह.एक लडकी को शुरू से केवल मेरी सहेली जैसी कोई सिलाई बुनाई सिखाने वाली किताब पढाईये और दूसरी को चोखेरबाली जैसा कोई स्त्रीवादी ब्लॉग पढाएँ और फिर देखिये दोनों कि सोच में अंतर.दो अलग अलग लोगों की आत्मकथाएँ हम पर अलग अलग प्रभाव डालती है.फिर क्यों नहीं शिक्षा में लिंग संवेदीकरण जैसे विषयों पर जरुरत से ज्यादा जोर दिया जाए.बदलाव आएगा और जरुर आएगा.यदि बचपन से ही शिक्षा इस तरह की हो तो बहुत सी बातों को लडके अहम् का विषय नहीं बनाएगें और लडकियाँ भी महिला विरोधी परम्पराओं की बेडियाँ काटने को तैयार होंगी(मैंने लडकियों की शिक्षा की भी बात की है.).हाँ इसके साथ और भी बहुत सी बातें जरुरी है लेकिन उचित शिक्षा का महत्तव फिर भी सबसे ज्यादा ही रहेगा.
पढे लिखे और बुद्धिजीवी तो और भी बहुत से गुल खिला रहै लेकिन इसका अर्थ फिर ये तो नहीं है कि बच्चों को व्यक्तित्व निमार्ण की शिक्षा ही देनी बंद कर दी जाए.बल्कि मेरा तो मानना है इस पर ओर ज्यादा जोर दिया जाए.फिर भी आपकी असहमति सिर माथे.
@ राजेश जी राजन जी
ReplyDeleteआप दोनों की बातो से बिलकुल सहमत हूँ | किन्तु समस्या ये है की अपने देश में तो साधारण शिक्षा में इतनी समस्या है तो विशेष शिक्षा की क्या बाते करे | सरकारे अभी इस तरह की कोई बात समाज के बदलाव की बात सोच भी नहीं रही है | शिक्षा में बदलाव के नाम पर अपने अपने राजनितिक सोच को ही थोपने में इतने व्यस्त है की सामाजिक बदलाव को शिक्षा से कैसे जोड़े | निजी संस्थाए किस हद तक इसे बदल सकती है उनका अधिकार क्षेत्र काफी छोटा है , वैसे कह सकती हूँ की कुछ नहीं से कुछ तो भला ही है | हा उम्मीद पर दुनिया कायम है सो उम्मीद तो कर ही सकती हूँ, पर सच्चाई तो हम भी जानते है की इस तरह तो हम समझ सकते है की बदलाव आने में कितना समय लगेगा | और मेरा हौसला बढाने और उम्मीद जगाने के लिए धन्यवाद |
बहुत सुंदर पोस्ट । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteक्या कोई इस बारे में कुछ बता सकता है ?
ReplyDeleteइतिहास कथा लेखन के दौरान इतिहास में साहसी सामर्थ्यवान नारियों का अभाव मुझे रह-रहकर सालता था। एक प्रश्न हर बार उठता था कि मीराबाई पन्ना धाय हाड़ी रानी कर्मवती आदि अँगुलियों पर गिनी जानेवाली नारियों के बाद राजस्थान की उर्वरा भूमि, बाँझ क्यों हो गई ? उसने सामर्थ्य को नई परिभाषाएँ देनेवाली नारियों का प्रसव बंद क्यों कर दिया ? इस दिशा में खोज आरंभ करने के चमत्कारी परिणाम निकले। एक दो नहीं, दो दर्जन से भी अधिक नारी पात्र इतिहास की गर्द झाड़ते मेरे सम्मुख जीवंत हो उठे।
http://pustak.org/bs/home.php?bookid=2711
गाइड के सुनाये इतिहास के आधार पर नतीजे निकालना कुछ गलत लगता है ना !
ReplyDeleteइस बात से इनकार नहीं की स्त्री पुरुष समानता बेहद जरूरी है पर इसके नाम पर हो रहे एक तरफ़ा अभियान, संस्कृति विद्रोह से भी बचना चाहिए
आधुनिक युग के लोगों के लिए सुझाव
1. महिलाओं के लिए आत्मरक्षा का अभ्यास पाठ्यक्रम का हिस्सा हो
2. पुरुषों को कानून ठीक से पढ़ाया जाए क्योंकि आजकल कानून का इस्तेमाल कर उन्हें कुछ ज्यादा ही परेशान किया जा रहा है :))
वैसे ............... कितनी अजीब बात है ना , प्राचीन काल के महा-रूढ़िवादी हो या आधुनिक काल के नारीवादी, सबके निशाने पर "स्त्री जीवन" ही होता है
मित्रों ,
ReplyDeleteशिक्षा, विशिष्ट शिक्षा के अलावा अब फिर से नैतिक शिक्षा की जरूरत है
भारत के संतों ने छोटी छोटी कहानियां/प्रेरक प्रसंग बच्चों को सुना कर बलवान होने के साथ साथ चरित्रवान बनाया था आज बच्चे शिक्षा तो ऊँची ले रहे हैं पर टी वी पर सुबह शाम क्या देखते हैं , सबको पता है
रही बात पुरुषों की मानसिकता समझने आदि की तो इस संकेत को भी समझना होगा
मैं बलवानों का आसक्ति और कामनाओं से रहित बल अर्थात सामर्थ्य हूँ और सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात शास्त्र के अनुकूल काम हूँ॥11॥
आप सब विचार कीजिये , मैं चला , आप सब चर्चाकारों को राजस्थानी भाई का राम राम
[इस चर्चा के अलावा कहीं भी मेरे कमेन्ट नहीं आयेंगे, बात राजस्थान की है इसलिए बोलना जरूरी हो जाता है ]
लेखिका महोदया,
आप मेरी बड़ी बहन ही हैं मेरे विचारों को स्नेह की नजर से ही देखिएगा
@ ब्लोबल जी
ReplyDeleteमैंने स्पष्टिकरण में साफ लिखा है की इसे आप केवल राजस्थान से ही जोड़ कर न देखे | ये समस्या पुरे देश की है | मैंने तो ये बताने का प्रयास किया है की स्त्रियों से जुडी रुढियो को हम पुरानी कह कर ख़ारिज कर देते है वो आज भी किसी न किसी रूप में जीवित है और यदि पुराने समय में स्त्रियों को लेकर कुछ अलग दृष्टिकोण होता तो शायद आज का स्वरुप ही कुछ और होता आज हम स्त्री की स्थिति पर बात नहीं कर रहे होते | आप की बात से सहमत हूँ की महिलाओ को भी आत्मरक्षा की शिक्षा दी जानी चाहिए और सभी को स्त्री या पुरुष दोनों को नैतिक ज्ञान दिया जाना चाहिए | किन्तु आज तो नारी को ही ज्यादा नैतिक ज्ञान दिया जाता है जो ठीक नहीं है |
स्त्रियों के खिलाफ अपराधों में पुरुषों का तो हाथ है ही, स्वयं स्त्रियों का भी उतना ही है,क्योंकि वे अपराध सहती हैं।
ReplyDeleteओशो कहते हैं, "स्त्रियों को अपने लिए वाणी जुटानी होगी। और उनको वाणी तभी मिल सकती है सब दिशाओं में,जब तुम यह हिम्मत जुटाओ कि तुम्हारी अतीत की धारणाओं में निन्यानवे प्रतिशत अमानवीय हैं। और उन अमानवीय धारणाओं को चाहे कितने ही बड़े ऋषियों-मुनियों का समर्थन रहा हो,उनका कोई मूल्य नहीं है। न उन ऋषि-मुनियों का मूल्य है,न उन धारणाओं का कोई मूल्य है। चाहे वे वेद में लिखी हों,चाहे रामायण में लिखी हों,कुछ फर्क नहीं पड़ता। कहां लिखी हैं,इससे कोई सवाल नहीं है। एक पुनर्विचार की जरूरत है।"
@ ब्लोबल जी
ReplyDeleteये कौन है ? :)
@मैंने स्पष्टिकरण में साफ लिखा है
आपका लेख इमानदार प्रयास है , नोट भी पढ़ा था पर क्या करें मन नहीं माना :)
[मैंने इस बारे में कुछ खबरे और कुछ प्रोग्राम काफी समय पहले देखे थे उसे देख कर लगा की राजस्थान के इतिहास में काफी कुछ दबा पडा है , ये तो एक ही सन्दर्भ मिल सका ]
@मैंने तो ये बताने का प्रयास किया है की....
बिलकुल सहमत हूँ
[दहेज़ प्रथा:कुछ घटनाओं में तो मैंने देखा की अगर पढ़े- लिखे नौकरी करते लड़के के घर वाले दहेज़ लेने से इनकार कर दें तो भी उन पर संदेह किया जाता है ]
@आप की बात से सहमत हूँ.....
मेरा सौभाग्य
@किन्तु आज तो नारी को ही ज्यादा नैतिक.....
सही बात है , लेकिन ऐसे लोग बड़ी आसानी से पहचानने में आ जाते हैं , मुझे तो उनसे डर लगता है जो नारी हित की बात करते करते पुरुष को दुश्मन जैसा बताने लगते हैं
जैसा की मैंने पहले भी बताया था ये है दबे पाँव आगे बढ़ता ख़तरा , हम अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगे , इस बारे में भी कोई सोल्यूशन निकालना जरूरी है , वरना परिस्थितियाँ नहीं बदल सकेंगी
ReplyDeleteदूध व सब्जियों में ऑक्सीटोसीन की मात्रा बढ़ रही है। यही बढ़ी मात्रा उनमें यौन विसंगतियां पैदा कर रही हैं। लड़कियों का हाल तो और बुरा है। उनकी यौवनावस्था घट रही है। नौ से 11 साल की उम्र में वो 18 की हो जा रही हैं। इसी का कारण है कि स्कूलों में सेक्स क्राइम की घटना बढ़ रही है। कम उम्र के बच्चे भी उत्तेजित हो रहे हैं। कम उम्र के बच्चों में डायबिटिज़ होने का डर भी रहता है।
http://www.bhaskar.com/article/BIH-sexual-harmful-effects-of-oxitocin-in-people-2513950.html?RHS-pasandeeda_khabaren=
@ ग्लोबल जी
ReplyDeleteब्लोबल ग्लोबल का भाई है :)))
नींद के झोके में ग्लोबल को ब्लोबल लिख दिया | आप को सीधे अपने आई डी से आना था मेरे राजस्थानी भाई मेरे ब्लॉग पर आप को अपनी बात कहने की मनाही नहीं है , अब अपने आई डी से आयेंगे तो ही जवाब दूंगी, आप ने ऐसी तो कोई बात लिखी नहीं है की अपनी पहचान छुपानी पड़े और कोई पूर्वा पश्चिम ग्रह मैंने पाल कर नहीं रखा है आप के लिए |
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteमुझे ग्रहों से डर नहीं लगता [उसके लिए तो गृहशांति यज्ञ है] लेकिन आजकल मुझे ये भी लगने लगा है की शायद "गड़बड़ी इस फोटो में है" :) [जैसा एक बार आपने कहा था]
[और ये मैंने आपकी बात को आदेश मानते हुए "डरते-डरते" अपनी आई डी से कमेन्ट कर दिया ]
bahut sach likha aapne...par fir bhi bahut kuchh badla bhi hai:)
ReplyDeleteआप राजस्थान आयीं थी !!!! पर मैंने तो आपको देखा ही नहीं :) .................. काफी बड़ा है ना राजस्थान ,,,, एक जगह खड़े होकर पूरा स्थान कैसे देख सकतें है ???? पर आपने तो जैसे सब्जी पकाते समय चुटकी भर से पता चल जाता है पकी की नहीं वैसे ही एक जगह के स्वयंभू इतिहासज्ञ-गाइड की बतकही को सुनकर रिपोर्ट पेश करदी ................... सिर्फ इसलिए पूछ रहा हूँ की हमें भी तो मालूम चले की राजपूताने का वह कौनसा राजवंश था जहाँ की कुल-कुमारियाँ साधारण पलने में झुलाई जाती थी ????
ReplyDeleteकन्या - हनन समाज की एक भयानक सच्चाई है जो समाज के माथे पर अभिशाप बन सवार है ! लेकिन इसी सन्दर्भ में एक विचार कभी कभी आता है की लैंगिक अनुपात के असंतुलन के लिए क्या सिर्फ यही एक कारण जिम्मेदार है ? स्त्री-पुरुष लैंगिक असमानता का सिर्फ यही तो एक कारण नहीं है, कई जैविकीय कारण भी तो है .
मेरे परिवार की 22 पीढ़ियों का संकलन है, जिसमें ज्ञात कुल 211 व्यक्तियों में 122 पुरुष है और 89 महिलाएं मतलब कुल अनुपात 58% / 42% . अब आपके हिसाब से क्या मेरे परिवार में भी कन्या हत्या की सुदीर्घ परंपरा रही है. जबकि मेरे सामने ही मेरे दादाजी की 6 संतानों में 5 पुरुष और 1 कन्या संतान है. 5 पुरुष संतानों के 2-2 के हिसाब से 10 संतानों में 7 पुरुष और 3 कन्या संतान है. और इन 7 में अभी हम दो भाइयों की 2 पुरुष संतान है. बताइए क्या कारण है. ऐसे एक नहीं अनगिनत उदहारण मिलेंगे जहाँ पुरुष संतति ही अधिकायत में जन्म लेती है और कहीं स्त्री संतति अधिकाधिक पीढ़ी दर पीढ़ी अवतरित होती है. कन्या-हनन क्रूरतम कृत्य है जिसने ना जाने कितनी ही विभूतियों को धरती पर आने से वंचित किया है.
लेकिन जब हम किसी समस्या पर विचार करें तो उसको प्रभावित करने वाले सभी कारकों पर द्रष्टि डालनी होगी किसी एक पर नहीं.
आशा है आप मेरे भावों को सही अर्थों में समझ पाएंगी, और हाँ आपकी कलम से राजस्थान की कुछ रंगीली यात्रा-रिपोर्ट पढने को मिले यह नम्र-निवेदन है !
@ ग्लोबल जी
ReplyDelete@ संस्कृति विद्रोह से भी बचना चाहिए
मै संस्कृति से विद्रोह नहीं करती हूँ मै रुढियो से विद्रोह करती हूँ हा ये संभव है की जो मेरी नजर में रूढी है वो आप के नजर में संस्कृति हो |
@ अमित जी
ReplyDeleteयदि मेरा इरादा राजस्थान की संस्कृति ,इतिहास रहन सहन आदि आदि की बुराई करने की जरुरत महसूस होती तो उसके लिए मुझे वहा जाने की आवश्यता ही नहीं थी यहाँ मुंबई में एक बहुत ही बड़ी संख्या है राजस्थानवासियों की, खुद मेरी आधी से ज्यादा सहेलिया राजस्थान से है | दस सालो से देख रही हूँ की वो अपने जीवन में क्या भोग रही है , हजारो बाते उनकी परेशानियों उनके कष्टों को जो उन्हें राजस्थान की संस्कृति के कारण होती है लिख सकती थी और ये पोस्ट शायद मेरी पहली पोस्ट होती | मैंने पहले ही कह दिया था की इसे व्यापक परिपेक्ष में देखे सिर्फ राजस्थान से जोड़ कर नहीं | निवेदन है जो ग्लोबल जी को उत्तर दिया है टिपण्णी में वो भी पढ़ ले | रही बात लड़कियों के प्राकृतिक रूप से कम होने की तो मुझे लगता है की आप सच को स्वीकार नहीं रहे है ये तर्क किसी के भी गले नहीं उतरेगी वैसे आप नारी ब्लॉग की ये पोस्ट देखे ये तो कुछ और ही कहती है |
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/09/blog-post_20.html
कोई भी बेटियों को जन्म के बाद या जन्म लेने से पहले मारने के बाद अपनी सात पुश्तो को बताएगा नहीं की उसने ऐसा किया है, निश्चित रूप से ये सब छुपा दबा के किया जाता है | क्या आज कोई बताएगा की जी मेरे एक लड़की है एक लड़का है और दो लड़कियों को मैंने गर्भपात करा दिया | अभी हाल ही में एक बार फिर राजस्थान की गुलाबो की कहानी फिर से हर जगह छा गई की कैसे उनके जन्म के बाद लड़की होने के कारण उन्हें जमीन में जिन्दा गाड दिया गया था और निशंतान मौसी ने उन्हें बचाया और पाला |
अंशुमाला जी ,
ReplyDeleteमैंने लिखा है
@..... इसके नाम पर हो रहे एक तरफ़ा अभियान, संस्कृति विद्रोह से भी बचना चाहिए
इससे मेरा आशय था की इसके प्रभाव में आने से बचना चाहिए
आप तो यूँ ही नाराज हो रही हैं
@ ग्लोबल जी
ReplyDeleteहे प्रभु मै कहा नाराज हो रही हूँ , मैंने तो बस आप की बात का जवाब दिया है :)
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ReplyDeleteमुझे लगा की आपने जिन अर्थों में मेरी बात को लिया उससे थोड़ा गुस्सा आना लाजमी है :)
ReplyDeleteवैसे ये बताएं ......
आपने जौहर के अलावा शाकों के बारे में सुना है ?
क्या गाइड द्वारा आपको उसकी जानकारी दी गयी थी ?
कुछ भी तो नहीं बदला है बस किसी अन्य रूप में समाज में आज भी मौजूद है ये प्रथाये |
ReplyDeleteभयावह सच है !!
@ "कोई भी बेटियों को जन्म के बाद या जन्म लेने से पहले मारने के बाद अपनी सात पुश्तो को बताएगा नहीं की उसने ऐसा किया है,"
ReplyDeleteमैंने बाईस पुश्तो का हिसाब देने के साथ साथ अपने आँखों के सामने का सच भी कहा है ................... मेरी पत्नीजी ने मेरी दादीजी से मज़ाक में यह पूछा था की जब आपके एक बेटा दूसरा भी बेटा तो फिर तीन,चार,पांच यह लाइन क्यों लगा दी :) _____________ तब उन्होंने बताया की मेरी सासुजी (यानि मेरी पड़ दादीजी) की जिद थी की "एक छोरी तो चाहयज्ये ही" यानि लड़की तो चाहिए ही, पर वही जेनेटिक लोचा की लड़की हुयी सात लड़कों के बाद (दो मृत हुए थे ) ____________ मेरी दादीजी सात बहिने है उनके कुल दो भाइयों के नौ लडकियां और दो लड़के हैं, मैंने बड्वाजी की पोथी देखी है जिसमें उनके वंशवृक्ष में कन्या संतान ही अधिक हुयी है हर पीढ़ी में!!!!! मैं यहाँ कोई अपना इतिहास नहीं बखान रहा हूँ लेकिन कुछ तो कारण है की किसी परिवार में लडकियां अधिक जन्म लेती है तो किसी में लड़के ही लड़के .................... कन्या हनन को मैं किसी भी प्रकार नहीं झुटला रहा हूँ पर लैंगिक अनुपात असंतुलन का सिर्फ यही एक कारण नहीं है .
अंशुमाला जी,
ReplyDeleteकृपया इस जिज्ञासा का भी समाधान करें
हमें भी तो मालूम चले की राजपूताने का वह कौनसा राजवंश था जहाँ की कुल-कुमारियाँ साधारण पलने में झुलाई जाती थी ????
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ReplyDeleteऔर यह बात तो थी पुरानी पीढ़ी के लोगों की जिनको "एक छोरी तो चाहयज्ये ही" ............. वहीँ कन्या हत्या का ठीकरा अशिक्षा पर भी फोड़ा जाता है जबकि भ्रूण-हत्या शिक्षित लोगों में ज्यादा देखने में आती है .................... यह जो नई विचारधार पनपी है "हम दो हमारे कुछ नहीं" वाली उसके बारे में क्या कहना है जो कभी गर्भ-निरोध के साधनों में लापरवाही बरत जाने पर 72 घंटे की पिल्स या फिर कुछ दिनों बाद अबोर्शन करवाते है !!!!! ऐसे मामले तो तथाकथित उच्च-शिक्षा धारी उन्मुक्त विचारी नर/नारी वाले परिवारों में ही ज्यादा होते है .................. यह तो किसी पुरातन रीति का खेल नहीं है ना ...................... हर बात के लिए संस्कृति को पुराने लोगों को उनकी मानसिकता को दोष देना छोड़िये .................. नए पुराने सब एक से हैं ना पहले सभी हत्यारे थे ना आज.
ReplyDeleteआपने रचनाजी की पोस्ट का हवाला दिया है जबकि मैं खुद ही यही बात कह रहा हूँ...................... मैंने सिर्फ लड़कियों के कम जन्म लेने की बात नहीं कही है मैंने अपने कमेन्ट में कहा है :- " ऐसे एक नहीं अनगिनत उदहारण मिलेंगे जहाँ पुरुष संतति ही अधिकायत में जन्म लेती है और कहीं स्त्री संतति अधिकाधिक पीढ़ी दर पीढ़ी अवतरित होती है.
कमेन्ट ध्यान से पढ़ा कीजिये सारी बातें आसानी से गले उतर जायेगी :)
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ReplyDeleteअमित भाई के सोचने पर मजबूर कर देने वाले कमेन्ट के बाद .....ये दो लेख अवश्य पढ़ें ....
ReplyDeleteचित्तोड़ के जौहर और शाके
http://www.gyandarpan.com/2009/01/blog-post_07.html
और फिर ये पढ़ें
महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना
http://www.patrika.com/article.aspx?id=26442
उस समय की परिथितियों में भारी जोखिम उठा कर भी अमर सिंह ने बेगमों और परिजनों को खुद सुरक्षित खानखाना के सैन्य शिविर तक पहुंचाया | इसके बाद महाराणा और खानखाना के बीच आत्मीय सम्बन्ध रहे , इन्ही कारणों के चलते अकबर द्वारा महाराणा के दमन की जिम्मेदारी किसी और को सौंपी गयी , अगले दस वर्षों तक उसी पोस्ट पर रहते हुए भी खानखाना ने मेवाड़ के हमलों में कोई सहयोग नहीं किया
[राजस्थान के इतिहास का एक और पक्ष दिखाने के साथ साथ] मेरा कहना सिर्फ इतना है की जहां सत-चरित्र , संस्कारी लोग होते हैं वहाँ कोई परेशानी नहीं खड़ी होती और हमने आधुनिकता के चलते सबसे पहला समझौता संस्कारों से ही किया है
@ ग्लोबल जी
ReplyDeleteटिप्पणिया बस मुददे पर ही करे न खुद मुद्दे से भटके न दूसरो को भटकने को कहे | शायद आप को लेख का उठाया मुद्दा समझ नहीं आया अपनी गाड़ी राजस्थान से बहार लाइये |
@ अमित जी
@कन्या हनन को मैं किसी भी प्रकार नहीं झुटला रहा हूँ |
सबसे पहले ये कहने के लिए धन्यवाद | करीब एक साल पहले आप ने इस बात को झुठला कर प्राकृतिक वजह को ही जिम्मेदार ठहराया था | आज आप ने इतना मान लिया ये भी बड़ी बात है यदि सब इस गलती को स्वीकार कर ले तो निकट भविष्य में आधी समस्या समाप्त हो जाएगी | आप का कहना सही है की कुछ परिवारों में लड़की ही ज्यादा होती है और कुछ में लड़के किन्तु दोनों के अनुपात में इतना अंतर नहीं होना चाहिए जितना की आज दिख रहा है | जिस तेजी से ये अनुपात घटा है उसकी वजह प्राकृतिक नहीं हो सकती है ये मानवीय वजह है | माफ़ कीजियेगा मै आप को अभी आंकडे उपलब्ध नहीं करा पा रही हूँ किन्तु आप नेट पर उसे देख सकते है की पिछले एक डेढ़ दशक से ये अनुपात काफी तेजी से घटा है जो कही से भी ठीक नहीं है पूरे समाज के लिए | दूसरी बात अमीर गरीब अनपढ़ गवांर की रही तो मैंने लेख में यही कहने का प्रयास किया है की रजा हो या रंक , और पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ सभी इस काम में लगे है बराबर से | रचना जी की पोस्ट में ये बताया गया है की प्रकृति लड़किया ज्यादा पैदा कर रही है और वास्तव में ऐसा ही है प्राकृतिक रूप से तो लड़कयो की संख्या ज्यादा होनी चाहिए लड़को की नहीं, ( इस बारे में विस्तार से यहाँ टिपण्णी में बताना संभव नहीं होगा कभी पोस्ट में अवश्य बताने का प्रयास करुँगी ) कई देशो में आप देखेंगे की महिलाओ की संख्या पुरुषो से ज्यादा है किन्तु भारत में उसका उलटा हो रहा है , जिससे आप अंदाजा लगा सकते है की कन्या भ्रूण हत्या कितनी तेजी से हो रहा है |
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ReplyDelete@टिप्पणिया बस मुददे पर ही करे न खुद मुद्दे से भटके न दूसरो को भटकने को कहे
ReplyDeleteआप ज्यादा सोचेंगी नहीं तो शायद आप खुद ही समझ जायेंगी की मैंने क्या पूछा और क्यों पूछा :)
आपने कहा है केवल इसलिए मैं मजबूरी में मान भी लूँ की मैंने मुद्दा भटका दिया तो भी मेरे प्रश्न इतने बुरे भी नहीं है की अनुत्तरित छोड़ दिए जाएँ | मैं गाडी कहीं भी ले जाऊं अगर आपको दृश्य सिर्फ वही देखना और दिखाना है जो आप देखना चाहती हैं तो कोई फायदा नहीं होना |
एक एडमिनिस्ट्रेटर + लेखक/लेखिका से इतनी उम्मीद तो की जाती है की चर्चा थोड़ी खुल कर होने दें ना कि अपनी पसंद के कमेन्ट या कमेन्ट से सिर्फ अपनी पसंद का अंश चुन कर खुश होते रहें
धन्यवाद :)
देखिये.... कम से कम दो बार सोचा आपको कमेन्ट करने से पहले , लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं होगा , आगे से आपके ब्लॉग पर कमेन्ट करने से पहले बीस बार सोचूंगा :)
मैंने ब्लॉग बंद ना किया होता तो एक लेख मैं भी लिखता और समझाता की हमारी सोच में गड़बड़ कहाँ है .. खैर ...... कोई बात नहीं .. सब चलता है :)
@जिस तेजी से ये अनुपात घटा है उसकी वजह प्राकृतिक नहीं हो सकती है ये मानवीय वजह है
ReplyDelete.......
@रचना जी की पोस्ट में ये बताया गया है की प्रकृति लड़किया ज्यादा पैदा कर रही है और वास्तव में ऐसा ही है प्राकृतिक रूप से तो लड़कयो की संख्या ज्यादा होनी चाहिए लड़को की नहीं
---- [ उपरोक्त लाइन्स अंशुमाला जी के कमेंट्स से ]
अमित भाई ,
ये नया ओबजर्वेशन तो मामले को और फंसा रहा है , एक घटना ये देखें
undergone three abortions without his consent.
http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2008-11-07/india/27949174_1_aborts-mental-cruelty-hindu-marriages-act
अब जो ये ओबजर्वेशन है इसके एंगल से देखें तो इस तरह के मामले और ये जो "हर बॉडी हर चोइस" नाम का जो कंसेप्ट है ये महिलाओं को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है , दुःख की बात है ना :(
नारीवादियों / स्त्री सशक्तिकरण वालों को इस और ध्यान देना चाहिए , पूरी तस्वीर देखनी बहुत जरूरी है
note : मेरा ये कमेन्ट सिर्फ अमित भाई के लिए है :)
ज़रा मुझे कोई बताये वो की एक साल पहले की वो कौनसी चर्चा / पोस्ट है जिसमें अमित भाई ने कन्या हनन को झुठला कर प्राकृतिक वजह को ही जिम्मेदार ठहराया था ?
ReplyDeleteइस प्रश्न का उत्तर भी ना मिले तो आश्चर्य नहीं होगा :)
this is true हमने आधुनिकता के चलते सबसे पहला समझौता संस्कारों से ही किया है
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाऐं!!
@ करीब एक साल पहले आप ने इस बात को झुठला कर प्राकृतिक वजह को ही जिम्मेदार ठहराया था |
ReplyDeleteअन्शुमालाजी शायद आप से चर्चा करना आपको सुहाता नहीं है विशेषकर आपके नज़रिए के विरुद्ध कुछ कहने पर मैंने साल भर पहले भी इस बात को नहीं झुठलाया था, तब भी मेरा कहना यही था" आपसे बात करना अब शायद अपने करेक्टर पर लांछन लगवाना भी है :))
अब बताइए की जब यह कहा जाता है की "नारी मुक्ति" के झंडाबरदार पुरुष अत्याचार और अन्य तथ्यों को प्रस्तुत करने में ज्यादातर झूंठ का सहारा लेते हैं तो क्या गलत कहा जाता है :))
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ReplyDeleteअमित भाई,
ReplyDeleteपहली बार पढ़ते समय तो मैं खुद आश्चर्य चकित था इस नए दावे/आरोप पर ....... वो भी इतने आत्मविश्वास के साथ !
जहां तक "नारी मुक्ति" के झंडाबरदारों की बात है -- झूठे तथ्य , तथ्यों को गलत ढंग से दिखाना या पूरे ना दिखाना आदि हमेशा से हथकंडा रहा है, ये बात जग जाहिर है
अमित जी
ReplyDeleteअंतहीन बहस करना तो सच में मुझे पसंद नहीं है जब कोई बेकार की बात करना है तो जवाब देना बंद कर देती हूँ, पर चर्चा से कोई भी परहेज नहीं है | असहमति ,आलोचनाओ से मुझे कोई परहेज नहीं है होता तो दूसरो की तरह ब्लॉग पर माडरेशन लगा कर उस तरह की सारी टिप्पणी प्रकाशित नहीं करती या किसी के बातो का जवाब नहीं देती | जो बात मै कह रही हूँ वो आप ने अपने ब्लॉग पर नहीं किसी और की पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में की थी जिसे देख कर ही मै आप के ब्लॉग पर आई थी | अफसोस की अब मुझे याद नहीं है की वो किसकी पोस्ट थी और मै लिंक आप को नहीं दे पाऊँगी | अपने ब्लॉग पर आप ने भले उसे विस्तार में कहा है मुक्ति जी के सवालो, पर टिपण्णी के रूप में आप ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया था की कन्या भ्रूण हत्या होता है | जिस पढ़ मुझे आश्चर्य हुआ और मै आप के ब्लॉग पर गई थी | मेरा कोई इरादा आप के चरित्र पर किसी भी तरीके से लांछन लगाने की नहीं है , सभी के अपने विचार होते है और सभी अपनी जगह सही होते है | नारी मुक्ति और नारी शशक्तिकरण तथा पुरुष अत्याचार या पुरुषवादी समाज का अत्याचार इन शब्दों में काफी फर्क है उन्हें अच्छे से समझिये | और ये भी समझिये की गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करना, और डेढ़ महीने में गर्भपात करवाने और भ्रूण हत्या करना एक नहीं होता है | चुकी चर्चा को, मुद्दे को आप व्यक्तिगत लेते जा रहे है उसे सामाजिक समस्या मान कर चर्चा नहीं कर रहे है तो इसे यही समाप्त करते है वरना ये आगे और व्यक्तिगत आरोपों प्रत्यारोपो में बदल जायेगा और दिवाली होने के कारण दो तीन दिन व्यस्त हूँ तो जवाब देना और भी मुश्किल होगा मेरे लिए | जन्मदिन की बधाई के लिए धन्यवाद आप को भी दिवाली की शुभकामनाये |