देखिये मैं टीवी दस फिट दूर से देखतीं हूँ | पहले उसी जगह से टीवी पर मैच देखते समय रन विकेट और ओवर तीनों अच्छे दिखता था | लेकिन अब रन और विकेट तो दिखता हैं लेकिन ओवर थोड़ा छोटा लिखा होता हैं वो ठीक से नहीं दिखता हैं |
दो साल पहले ये सुन कर मेरी आँखों की जाँच करने के लिए खड़ा लड़का थोड़ी देर तक मुझे देखता रहा | शायद जिंदगी में किसी ने ऐसी समस्या अपनी आँखों की रोशनी के लिए नहीं बोला होगा | फिर पूछता हैं और क्या नहीं दिखता और क्या समस्या हैं | हमने कहा और कुछ नहीं हैं बसओवर नहीं दिखता |
बन्दे ने अपने सभी लेंस लगा कर जाँच लिया बोला नंबर तो नहीं दिख रहा हैं लेकिन आपकी जीतनी उम्र हैं उसमे नजदीक का चश्मा लगाना शुरू कर देना चाहिए | हमने कहा हमें समस्या हैं कि हमें दूर से नहीं दिख रहा हैं और आप हमें नजदीक का चश्मा लगाने का राय दे रहें हैं , आप जाने ही दे |
अपनी आँखों की जवानी पर इतराते चश्मिश पतिदेव को चिढ़ाते बाहर निकली ही थी कि ऊँची ऊँची सीढ़ियों ने किनारे लगे रेलिंग को पकड़ने पर मजबूर कर दिया | पतिदेव धाड़ धाड़ निचे उतरे और मुड़ कर मुझे ऊपर ही खड़ा देख मुस्कराएं , आधा खून तो उनके इस मुस्कान पर ही जल गया , फिर बोलते हैं आज की डेट में उतर जाओगी या कल आऊं |
दो साल हो गए आज भी ओवर ना दिखता तो मोबाईल पर स्कोर लगा कर देख लेती हूँ कितने ओवर और कितने बॉल हुए |
अपने ऊपर हंसना ही व्यंग का सच्चा रूप है | बहुत प्यारी और रोचक रचना |सस्नेह शुभकामनायें अंशुमाला जी |
ReplyDeleteधन्यवाद
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