1922 में जब गोरखपुर के चौरी चौरा में भारतीयों ने पुलिस चौकी जला कर पुलिस वालों को जला कर मार दिया तो गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था | उनके अनुसार उनके अहिंसक आंदोलन की शुरुआत हिंसा से हुई इसलिए वो इस आंदोलन की ख़त्म कर रहें हैं |
उनके इस निर्णय से रामप्रसाद बिस्मिल जैसे उनके शिष्यों ने विरोध स्वरुप उनसे खुद को अलग कर लिया और अपना एक गरम आंदोलन शुरू किया | गाँधी जी ने उनका भी कभी समर्थन नहीं किया |
गाँधी जी से बहुत लोग इसलिए भी नाराज होतें हैं आज भी , कि उन्होंने भगतसिंह की फांसी को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया | एक अहिंसक आंदोलन चलाने वाले ये ये उम्मीद करना कि किसी हिंसक आंदोलनकारी के बचाव में आएगा , बहुत ही गलत सोच हैं | भगत सिंह को बचाने का कोई भी उनका प्रयास , उनके तरीकों को समर्थन देना होता | फिर हजारों हजार नौजवान भगत सिंह के उग्र तरीके का अनुसरण करने आगे आ जाते और अहिंसक आंदोलन से भी लोग दूर हो जाते |
हर दमनकारी सरकार बड़ी आसानी से हिंसक आंदोलनों का दमन कर लेती हैं वो ज्यादा लंबा नहीं चलता और ना कभी अपनी मंजिल तक पहुँच पाता हैं |
वो सभी जो आज के समय में देश में चल रहें विरोध प्रदर्शन में हुए हिंसा पर एक लाइन का भी विरोध नहीं करतें हैं और केवल सरकारी दमन की निंदा करतें हैं | उन सभी को गाँधी जी का नाम नहीं लेना चाहिए | अहिंसा को लेकर उनके मानदंड बहुत ऊँचे थे , उनका पालन करना आपके बस का नहीं हैं | इसलिए गाँधी जो को कम से कम इससे दूर रखिये | बाकी आपकी अपनी जो विचारधारा हैं उसे आगे बढ़ाते रहिये |
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