बात कुछ साल पहले की हैं एक दिन बाहर से घर वापस आई तो दरवाजा खोलते देखा खिड़की पर एक बिल्ली बैठी हैं | एकबारगी एकदम से चौक गई बंद दरवाजे से वो अंदर कैसे आई , शायद जंगले से घुसी हैं तो दूसरी मंजिल तक चढ़ी कैसे | इस बात पर और आश्चर्य हुआ कि वो कमरे के अंदर थी , मेरे आने पर खिड़की पर भागी लेकिन वहां से नहीं गई | थोड़ा अजीब सा ख्याल आया लेकिन उसे आगे बढ़ कर भगा दिया | थोड़ी देर में बिटिया भी स्कूल से आ गई | वो हाल में बैठी थी और अचानक से चीखते हुए रसोई में आई कि मम्मी घर में बिल्ली आ गई हैं | अब तो आश्चर्य का और ठिकाना नहीं रहा , दुबारा बिल्ली अंदर क्यों आई |
बिल्लियों को लेकर ना जाने कैसे कैसे बुरी बातें कहीं गई हैं , सब एक साथ याद आने लगा | मुंबई के लिए बिल्ली बड़ी आम बात हैं लेकिन खिड़की से दूसरी मंजिल तक इतने सालों में पहली बार आना , बिलकुल भी आम बात नहीं थी | उसे फिर से भगा के खिड़की को बंद कर दिया | थोड़ी देर बाद बिटिया फिर आई बोली बिल्ली की आवाज आ रही हैं | अब तो दिल की धड़कने भी बढ़ गई लगा बिल्ली जा क्यों नहीं रही हैं शायद जंगले पर बैठी हैं | देखा तो वहां नहीं थी लेकिन बहुत धीमे धीमे उसकी आवाज आ रही थी | फिर ध्यान दिया कि आवाज घर से ही आ रही हैं सब जगह झुक कर कान लगा कर सुनने लगी तो पता चला सोफे के निचे से आ रही हैं | सोफे के गैप से देखा तो दो चमकती आँखे दिखी |
फिर तुरंत समझते देर ना लगा , बिल्ली अपने बच्चे मेरे घर छोड़ गई हैं |
हाथ डाल उसी छोटी जगह से बिल्ली के बच्चों को ऊपर खिंचा , लगा कहीं सोफे को हिलाया तो कोई उसमे दब ना जाए , एक बच्चा तो होगा नहीं | दो निकले फिर अच्छे से जाँच लिया और कोई तो नहीं हैं | बिटिया तो दो दो बच्चे देख मारे ख़ुशी के चींख ही पड़ी | उनका जन्मदिन आने वाला था और बहुत सालों से वो अपने लिए एक पेट की मांग कर रहीं थी | उन बिल्लियों को देख उन्हें लगा उनकी तो इच्छा ही पूरी हो गई |
सबसे पहले सोचा उनमे से एक जो लगातार बोले जा रहा हैं शायद वो भूखा हैं उसे दूध कैसे पिलाया जाए |घर में एक भी दवा का ड्रॉपर नहीं मिला , फिर रुई भिंगो कर पिलाने का प्रयास किया लेकिन दोनों ने पीने से ही इंकार कर दिया | हमने बिटिया से कहा कि इन्हे इसी कमरे में छोड़ कर दूसरे कमरे में चलो | इनकी मम्मी फिर से आएगी और इन्हे दूध पीला देगी | उपाय काम किया और बिल्ली आ कर अपने बच्चों को दूध पीलाने लगी | लेकिन उम्मीद के मुताबिक उन्हें ले कर नहीं गई |
फिर अपने गोदाम से जा कर एक गत्ते का बॉक्स ला उसमे पुराना कपड़ा पीछा उनके रहने का इंतजाम किया गया और उसे खिड़की पर रख दिया गया | दो दिन में ही ये हाल था की हम वही बैठे रहते बिल्ली चुपचाप आती बॉक्स में जाती और आराम से बच्चों को दूध पिलाती उनकी सफाई करती और चली जाती | कितनी बार तो उसके आने का पता ही नहीं चलता , अचानक से टीवी देखते खिड़की को देखती तो वहां उसे आराम से बैठ कर टीवी देखते अपने बच्चों को दूध पीलाते , उसे देख चौक सी जाती मैं | लेकिन उसे जरा भी फर्क नहीं पड़ता जैसे मैं उस कमरे में हूँ ही नहीं |
बिटिया के दिन गुलजार हो गए , पूरी बिल्डिंग में खबर फ़ैल गई और बच्चों के जमवाड़े हमारे घर लगने लगे | दोनों का नामकरण भी हो गया ब्लैकी और व्हाटी | बच्चों के मार्फ़त बिल्ली की पूरी रिपोर्ट आ गई , बच्चे ढेड़ हफ्ते के हैं , पहली मंजिल वाले फ़्लैट में पैदा हुए थे , कुल चार थे लेकिन दो की मौत हो गई बारी बारी , फिर पहली मंजिल के ही दूसरे फ़्लैट में गए | हमने भी सुन रखा था बिल्ली अपने बच्चों के लिए दस या सात घर बदलती हैं , हमारा तीसरा था |
ये और दस दिन बाद ही हमें अपने घर जाना हैं याद कर बिटिया को ये समझाया कि भाई ये बच्चे हमेसा के लिए हमारे पास नहीं रहने वाले , इन्हे जाना होगा | जितना खेलना हैं खेलों लेकिन हमेसा साथ रखने का ख्याल मत रखों | हम चले जायेंगे तो इनका क्या होगा , खिड़की खुली छोड़ कर नहीं जा सकते हैं | कुछ उपाय करके बिल्ली को ले जाने के लिए मजबूर करना होगा |
सात दिन आराम से इन दोनों के साथ खेलते निकल गए | फिर हमने सातवे दिन से बॉक्स को खिड़की के बाहर रख दिया रात में खिड़की का दरवाजा भी बंद कर देतें | बिल्ली वैसे ही रोज आती खिड़की के बाहर ही बॉक्स में अपने बच्चों की देखभाल करती | उम्मीद थी बिल्ली हमारा इशारा समझ जाएगी और बिल्ली बड़ी समझदार निकली हमारे जाने वाले दिन ही सुबह अपने बच्चों को लेकर चली गई | पहली को ले जाते हमें तो आहाट भी ना लगी , जब दूसरी को ले जाने लगी तब मेरी नजर गई | शुक्र था की उसी दिन मुझे घर जाना था तो बिटिया थोड़ी दुखी तो हुई लेकिन फिर नानी के घर जाने के ख़ुशी में जल्द ही भूल गई |
एक पालतू जानवर के लिए बिटिया आज भी ज़िद करतीं हैं , हम साफ़ मना कर देतें हैं | हमारे घर कुत्ता , तोता , खरगोश , गाय , बंदर तक पालतू के रूप रह चुके हैं , जानते हैं उनके साथ कितनी जिम्मेदारियां जुडी होती हैं | घर में ला तो कोई भी देता हैं लेकिन उन्हें संभालने का काम सिर्फ मम्मियों को करना पड़ता हैं | उनके ना होने पर जानवर कितने उदास हो जाते हैं , खाना छोड़ देतें हैं | जिम्मेदारी तो दूसरी तरफ रखिये एक तीसरे मोह के बंधन में तो बिलकुल नहीं पड़ना हैं , पहले के दो ही काफी हैं |
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