August 09, 2022

कोरोना काल और मुंबई माॅडल

 कोरोना काल मे एक मुंबई मॉडल भी था जिसकी बहुत कम चर्चा हुयी । उस समय मुंबई मे आ रहे मामलो आदि पर इतनी बात भी नही हो रही थी । उस समय पर मेरी एक टिप्पणी।  

मुंबई मॉडल जानने से पहले मुंबई मतलब क्या समझ लेते हैं | मुंबई दो तरह की हैं एक वास्तविक मुंबई दूसरी सरकारी कागजो में मुंबई | वास्तविक मुंबई बहुत बड़ी हैं कोलाबा , नरीमन पॉइंट से थाना कल्याण  बोरीवली विरार तक | जबकि कागज में वास्तविक मुंबई के दो भाग हैं  जिला मुंबई और जिला थाना | 


जो आंकड़े आप कोरोना के देखते थे मुंबई के नाम पर असल में वो वास्तविक  मुंबई के नहीं कागजी मुंबई अर्थात जिला मुंबई के देखते थे| उसमे जिला थाना के आंकड़े शामिल नहीं होते थे जो वास्तविक मुंबई का ही हिस्सा हैं | ये वास्तविकता आंकड़े देने वाले भी जानते थे  इसलिए मुंबई में मामले कम होने के बाद भी लॉकडाउन  की कड़ाई पहले जैसी ही थी और आगे भी रही भले मामले कागजी मुंबई के कितने भी कम हो गये  | 


वास्तविक मुंबई प्रवासियों  की जगह हैं कोरोना को तरह के आपदा के समय बड़ी आसानी से यहाँ की जनसँख्या कम की जा सकती हैं या वो स्वयं हो जाती हैं |  जनसँख्या भी बस उनकी कम करनी होती हैं जो सरकारी संसाधनों पर हर तरह से निर्भर हैं या हों जायेंगे  और  जो आपदा को बढ़ा सकते थे इस बीमारी के रूप के  कारण | जैसे घनी झोपड़पट्टियां या पुरे शहर में फैला लोगों के रहने का चाल सिस्टम जिसमे कॉमन टॉयलेट लोग प्रयोग करते हैं | 


तीस अप्रैल 2020 तक नौ लाख लोग उत्तर भारत की तरफ की ट्रेनों से जा चुके थे | इसमें दक्षिण भारत जाने वाली ट्रेनों , फ्लाइट या नीजि वाहनों  से जाने वाले   और बसों द्वारा देश और महाराष्ट्र के ही हर हिस्सों में जाने वालों की जनसँख्या शामिल नहीं हैं | अकेले महाराष्ट्र के हर हिस्से में जाने वालों की संख्या कितनी थी इससे अंदाजा लगाइये की अप्रैल 2020 के शुरूआत  में  मुंबई में जो मामले दस हजार के ऊपर जा रहें थे वो बड़ी जल्दी से उससे नीचे तो आ गए लेकिन  महाराष्ट्र के कुल मामलों में कोई फर्क नहीं पड़ा | 


मुंबई मॉडल की दो सबसे बड़ी खासियत हैं , पहली कि ये शोर नहीं मचाती हैं जैसा की हर मामले में दिल्ली मचाने लगती हैं | यहाँ लोगों को पता होता हैं कि काम चुपचाप होता हैं जब शोर होता हैं तो असल में काम नहीं हो रहा होता हैं | दूसरी की काम किसके मार्फ़त होगा बात सीधे उससे करो यहाँ वहां भटकने का नहीं मामले को लटकाने का नहीं  | 


मुंबई में मामले शुरू होते और ऑक्सीजन के शॉर्टेज का अंदाजा लगते ही यहाँ का आईएएस ऑफिसर सीधा दिल्ली केंद्र  में बैठे अपने बैचमेट को फोन लगाता हैं कि ऑक्सीजन चाहिए , चाहिए मतलब बस तुरंत चाहिए | जवाब बिना आ उ  ई के फोन पर ही मिलता हैं तुरंत मिलेगा , जामनगर से भेजा जा रहा हैं लेकिन सिर्फ मुंबई के लिए , सप्लाई कहीं और नहीं जानी चाहिए | एक तो व्यक्ति को पता था काम करना था शोर नहीं दूसरे उसे ये भी पता था काम किससे और कैसे होगा |  मुंबई और दिल्ली दोनों देश की राजधानी हैं लेकिन मुंबई के आगे लगा "आर्थिक" उसे प्राथमिकताओं में दिल्ली से आगे कर देता हैं | 


"आर्थिक" राजधानी वाली मुंबई "अर्थ" की भाषा खूब समझता हैं और ये भी कि किसी चीज  की कीमत उसकी जरुरत पर  निर्भर होती हैं | जरुरत हैं तो एक बड़ा वर्ग कितने का हैं नहीं पूछता | बड़े नीजि अस्पतालों में शायद ही  किसी दवा इंजेक्शन की कमी  हुई  हो क्योकि कोई नहीं पूछता कि कितने की मिली और ना उसका शोर मचाता हैं (अपवाद हर जगह  होंगे )   | अस्पताल खुद लोगों को उपलब्ध करा रहें थे जरुरत की  हर दवा आदि  |  जबकि उसी महाराष्ट्र के कई हिस्सों में आपने उन्ही इंजेक्शन दवा के लिए लोगों को लंबी लाइनों में खड़ा परेशान होते  देखा होगा |  यहाँ गैरकानूनी , काला काम भी बड़े व्यवस्थित , ईमानदारी और ढंग से चुपचाप चलता हैं | 


बकिया और भी बहुत कुछ था लेकिन वो फिर कभी और अब ये सब मुंबई मॉडल की तारीफ हैं या बुराई ये आपकी सोच पर निर्भर हैं |  



























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