मुंबई आते ही बरसात के मौसम का असली मतलब समझ आया और गृहस्थी की गठरी खुलते ही इस मौसम ने उसमे घुन भी लगा दिया । जब घर से चली तो अपने भारतीय रिवाज अनुसार माता जी ने खाने पीने की चीजे साथ भेजा । जिसमे मेरे ब्याह के बचे डेढ़ दो किलो मूंग के पापड़ और अच्छी किस्म का बासमती चावल भी था ।
बात बीस साल पुरानी है एक मिडिल क्लास वाली खास मानसिकता की भी । जिसके अनुसार खास चीजे मेहमानो ,खास लोगो या खास दिन के लिए रख देना चाहिए। रोज रोज खुद खा कर उसे खत्म नही करना चाहिए। मठरी सेव नमकीन आदि तो खत्म कर दिये गये लेकिन पापड़ और चावल धर दिये गये खास के लिए ।
मुंबई के मौसम से अनजान बस महिना डेढ़ महीने बाद ही पापड़ मे फंगस लग गया और चावल मे घुन । मायके से आयी एक एक चीज कैसे दिल के करीब होती है ये सब स्त्रियां ही समझ सकती है । पापड़ और चावल की हालत देख इतना दुख हुआ कि समझ लिजिए बस रोये भर नही ।
उस दिन पतिदेव ने समझाया कि मुंबई मे बारिश मे अनाज ऐसे ही खराब होते है या तो ज्यादा खरीदो मत या फ्रिज मे रखो । वो दिन है और आज का दिन बारिश आते ही फ्रिज अलमारी बन जाती है यहां । जैसे जैसे पता चलता गया , खराब होने या किड़े लगने के बाद , कि ये भी खराब हो सकता है सब फ्रिज मे जाता गया ।
मूंग , राजमा , उरद, रवा , मैदा, काॅफी , मूंगफली और ना जाने क्या क्या । जब बिटिया हुयी तो घर मे नमकीन बिस्किट ज्यादा आना शुरू हुआ । उसके लिए अलग से खास एयर टाइट डब्बे आदि खरीदे गये । यहां तो ये हालत है खाने के साथ दो मूंग के पापड़ लेकर बैठते है दूसरे वाले का नंबर आते वो मुलायम हो लटकना शुरू हो जाता है बारिश के इस मौसम मे ।
अब वो खास डब्बे खराब हो गये तो बिस्किट का पैकेट तभी खुलता है जब तीनो साथ घर मे हो ताकि एक ही बार मे उसे खत्म कर दिया जाये । घ॔टे भर मे ही वो मेहरा जाता है । चिप्स कुरकुरे के पैकेट लेते समय चेक किया जाता है हवा जरा भी कम ना हो उसमे , नही तो अंदर सब मेहराया मिलेगा ।
नमकीन का वही पैकेट लिया जाता है जिसमे बंद करने के लिए जिपर हो भले बड़ा पैकेट लेना पड़े । क्योकि डब्बे भी उन्हे सुरक्षित नही रख पाते । बाकि बरसात मे मौसम चटर पटर खाने की इच्छा जाग्रीत कर डायटिंग की वाट लगवाता है वो अलग मुसीबत है । यहां तो चार महीने बरसात होती वो भी लगातार । खुद पर काबू कर भी लो तो बाकि दो ना मानते ।
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