दूसरा मामला ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योकि इस फैसले से कोर्ट ने पति के खिलाफ रेप का मामला दर्ज करने के लिए कहा हैं | पत्नी दस सालो से ज्यादा समय तक क्रूर तरीके का यौन दुर्व्यवहार सहती हैं जिसमे बार अप्राकृतिक यौन सम्बन्धो के साथ बेटी के सामने यौन सम्बन्ध बनाने जैसे आरोप हैं |
पत्नी ने क़ानूनी मदद तब ली जब नौ साल की बेटी के सामने यौन सम्बन्ध बनाने के बाद बेटी का भी यौन शोषण किया गया | पहले पॉक्सो एक्ट में मामला दर्ज किया गया था फिर कोर्ट ने फैसला दिया कि पत्नी से रेप के भी चार्जेस लगाये जाए क्योकि रेप तो रेप होता हैं चाहे वो कोई भी पुरुष करे |
तीसरे मामले में कोर्ट ने अपने जीवनसाथी के चरित्र पर शक करने या चरित्र को लेकर निराधार आरोप बार बार लगाने को क्रूरता माना हैं और इसके आधार पर तलाक को स्वीकार किया हैं | ये फैसला पत्नी के खिलाफ और पति के पक्ष में दिया हैं |
1 - पहले मामले में पत्नी गरीब और पति पर निर्भर है | उन्हें ऐसे अपराधों से संरक्षण और सजा के लिए पहले से कानून मौजूद हैं लेकिन उनकी सामाजिक स्थिति और खुद उनकी सोच के आगे कानून का संरक्षण बेकार हैं | स्त्री सशक्तिकरण और अपराधों से उनके बचाव के लिए बना हर कानून तब तक इन जैसी स्त्रियों के लिए बेकार हैं जब तक नीचे के स्तर तक स्त्रियों की सोच को नहीं बदला जाता |
2 - दूसरे मामले में महिला काम तो नहीं करती लेकिन एक करोड़ से ज्यादा की संपत्ति उनके नाम है | जिसके सहारे वो अपनी बेटी के साथ अलग जीवन बिता सकती थी इस विवाह से बाहर निकल कर | लेकिन एक दशक तक वो अत्याचार सहती हैं जब तक पानी सर के ऊपर नहीं चला जाता और बेटी का भी शोषण शुरू होता हैं | वो कानून का सहारा पहले भी लेकर अपना और अपनी बेटी को बुरे अनुभवों से बचा सकती थी |
3 - तीसरे मामले में महिला ना केवल पढ़ी लिखी है बल्कि एक कॉलेज में पढ़ाती भी हैं मतलब हर तरीके से आत्मनिर्भर हैं | लेकिन जिस पति के चरित्र पर शक है वो उसी के साथ रहने की ज़िद पर अड़ी है तब भी जब पति उन्हें तलाक देना चाहता हैं | आखिर वो कौन सी सोच हैं जो उन्हें उसी पति के साथ रहने के लिए मजबूर कर रहा हैं जिसको वो पसंद नहीं करती |
जब तक स्त्रियां विवाह को अपने जीवन की धुरी , आधार मानना बंद नहीं करेंगी | जब तक वो विवाह की सफलता असफलता को अपने जीवन की सफलता असफलता से जोड़ना बंद नहीं करेगी उनका कोई भला होने वाला नहीं हैं | उनके बचाव के लिए बने सैकड़ों कानूनों का कोई मतलब नहीं होगा जब तक वो अपने रूढ़िवादी सोच से बाहर नहीं निकलेंगी |
निशब्द हूँ आपका लेख पढ़कर अंशुमाला जी | औरत की बबसे बड़ी कमजोरी उसका आत्मनिर्भर ना होना तो हैं ही , इसके साथ सदियों पुरानी उस सोच को ढ़ोना भी है जिसके अनुसार औरत का सबसे सहारा उसके पति को माना गया | जबकि पति क्रूर , अत्याचारी और दुराचारी हो, तो उसे अपनी सोच को बदलना ही होगा | और आज अच्छा खासा पुरुष वर्ग भी कथित अति शिक्षित या नारी स्वतंत्रता की प्रतिनिधि औरतों के हाथों शोषित हो दयनीय जीवन जीने को मजबूर है |
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