बीए में मेरी एक क्लासमेट थी हमारी अच्छी बातचीत थी | दूसरे साल परीक्षाएं शुरू होने वाली थी और वो हमें फोन की कि मेरे पास अमेरिका के प्रधानमंत्री और नेपाल के राष्ट्रपति का कोई नोट्स ही नहीं हैं तुम्हारे पास हैं तो कल कॉलेज ले आना हम झेरॉक्स ( फोटो कॉपी ) कराके दे देंगे तुमको | हमने माथा ठोका और कहा तुम्हारे पास नोट्स इसलिए नहीं हैं क्योकि ये दोनों होते ही नहीं हैं | बाकायदा उन्होंने तीन साल का बीए पूरा किया और ग्रेजुएट कहलायी | उस समय मेरे क्लास में आधी लड़कियां इसी श्रेणी की स्नातक अर्थात ग्रेजुएट हुयी |
अपने बड़के दादा के बारे में पहले ही लिख चुकी हूँ कि उन्हें परीक्षा में मैंने अपने नोट्स नक़ल मारने के लिए दिए थे | मेरे नोट्स में प्रजातंत्र लिखा था पेपर में लोकतंत्र लिखा आ गया और उन्हें पता ही नहीं था दोनों एक ही चीज हैं | नक़ल मारने के लिए सामने नोट्स था फिर भी वो सवाल छोड़ कर आ गए | उनको टोटल में हमसे ज्यादा प्रतिशत आये परीक्षा में इस पर हमारा मजाक भी उड़ाया गया घर में |
वो अलग बात हैं कि स्नातक वो हो नहीं पाए बदकिस्मती से क्योकि अगले साल बीएचयू ने परीक्षाएं अपने यहाँ कराना शुरू कर दिया और नकल का कोई चांस ही नहीं मिला | पहिला पेपर देने के बाद दूसरा पेपर देने भी नहीं गए | लेकिन उनके सारे दोस्त इस श्रेणी के स्नातक मतलबकी ग्रेजुएट हो गए थे उनके पहले | असल में वो बारहवीं पास करने में तीन साल लगा दिए और मेरे बराबर आ गए दोस्त पहले ही निकल गए थे |
ये लोग नौकरी करने नहीं गए अपने काम धंधे में लगे अगर नौकरी खोजने जाते तो किस नौकरी के काबिल होते ये लोग जिनको अपने पढ़ाई तक समझ नहीं आ रही थी और ग्रेजुएट बन बैठे थे |
यूपी बिहार के ऐसे ऐसे महान ग्रेजुएट और उससे भी ज्यादा डिग्री धारियों की पढाई और समझ का स्तर हमें बढियाँ से पता हैं | यहाँ मुंबई में पतिदेव का तो रोज ही पाला पड़ता ऐसो यूपी बिहार वाले ग्रेजुएटों से | ट्रेनिंग के दौरान पता चलता कि उन्हें मामूली सा प्रतिशत निकालना और सामान्य कैलकुलेटर चलाने तक का सहूर नहीं होता |
सामान्य से सामान्य बात उन्हें समझ में नहीं आती | एक साधारण का ऑफिस का फार्म के बीस सवालो को भरने के लिए पतिदेव को बीस फोन आएंगे | ये तब हैं जब कंपनी बाकायदा एक ट्रेनिंग क्लास हर महीने रखती हैं | फिर उस ट्रेनिंग क्लास के बाद वही सब पतिदेव को फिर से चार बार समझाना पड़ता हैं |
घर पर काम करते देख जब ये सब माथाफोड़ी मैं रोज देखती और सोचती हूँ कि मुंबई दिल्ली या किसी बड़े शहर के किसी हाईस्कूल वाले बच्चे की समझ इनसे ज्यादा होती होगी |
जब अपना काम कर रही थी तो यूपी से आये ऐसे लडको से भी पाला पड़ा जो शैक्षिक योग्यता पूछने पर इंटर या हाईस्कूल का एडमिट कार्ड दिखाते लेकिन उनको हिंदी पढ़ना तक नहीं आता था और कुछ किसी प्रौढ़ साक्षर की तरह बस किसी तरह अपना नाम लिख सकते थे |
बिहार टॉपर का पौढीकल साइंस वाला इंटरव्यू तो आप सब लोग देख ही चुके हैं | 1992 यूपी में जब कल्याण सिंह ने नक़ल अध्यादेश ला कर नक़ल पर रोक लगा दी तो उस साल दसवीं का रिजल्ट 14.70 प्रतिशत और इंटरमीडियट का 30.30 था | जबकि नक़ल के सहारे पास होने का सपना देखने वाले लाखो ने परीक्षा बीच में ही छोड़ दी |
पांच साल सरकार टिक गयी होती तो इंटर ग्रेजुएट किये लोगों की बेरोजगारी का प्रतिशत जमीन छू रहा होता क्योकि केवल पढ़े लिखे ही इंटर ग्रेजुएट हो पाते | बाकी अनपढ़ बेरोजगार की श्रेणी में आते |
कुछ स्कूल या किसी हॉबी क्लास या सिर्फ सूचना देने का ग्रुप ऐसे ही बनाते हैं | वरना बाकी लोग उस पर भी फारवर्ड मैसेज , बेकार के सवाल फालतू के चुटकुले भेजना शुरू कर देतें हैं | फिर जरुरी सूचना इस भीड़ में खो जाती है |
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