एकदम बचपन का जीवन संयुक्त परिवार में बिता हैं | दादी बाबा बड़े पापा मम्मी और उनके चार बचे , चाचा चाची उनकी एक बेटी , एक छोटे चाचा और दो बुआ , मम्मी पापा और हम चार भाई बहन ,हम सब साथ रहते | जैसा कि हर संयुक्त परिवार में होता हैं जीतने लोग उतने तरीके का सबका व्यवहार |
बड़का दादा जहाँ शांत था वही छोटका दादा एक नंबर का शैतान , खुराफाती और खिसियानी बिल्ली | दोनों दादा स्कूल जाते और छोटके दादा की खुराफात वहां भी शुरू रहती ,बल्कि स्कूल में कुछ और शैतानियां सीखना शुरू हो गया | जब दोनों थोड़े बड़े हुए तो कुछ स्कूली खुराफात हमारे घर तक आने लगे | उस समय मैं बहुत छोटी थी शायद पहली में रही होंगी |
घर आये कुछ खुराफात मजेदार होते तो कुछ बस पूछिये मत | उस समय बच्चो के बीच एक मजेदार खेल चला जैसे एक से बीस तक गिनती गिनो साथ में कुट लगा के | एककुट दोकुट तीनकुट अंत में वो बीसकुट बन जाता था | ऐसे ही एक और था एक से बीस तक की गिनती बोलो तुइया लगा के | एकतुइया , दोतुइया और अंत में बीसतुइया बन जाता |
उस समय बच्चो के लिए कोई मोबाईल ,वीडियोगेम या टीवी पर कार्टून चैनल तो होते नहीं थे | बच्चो के मनोरंजन और खेलने कूदने के नाम पर बस भाई बहनो के साथ खेलना और ऐसे ही मामूली शब्द पहेलियों , बाते ही हमारे लिए मजेदार होती थी | हम बच्चे अंत में बीसकुट और बीसतुइया बोल कर ही बहुत खुश हो जाते थे |
ऐसे ही एक दिन छोटके दादा स्कूल से आये और बोले आज नया सीख कर आये हैं तुम बोलो इसको मजा आयेगा | हम ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गए और बोलने लगे अभी के अभी बताओ | बोले शरीर के अंगो का नाम लो साथ में सड़ी लगाओ | हम मासूम से बिना सोचे समझे शुरू हो गए पैरसड़ी , पेटसड़ी , हाथसड़ी , कन्धासड़ी , पीठसड़ी |
दादा बीच में टोकते बोले अरे तुम बहुत देर करोगी ऐसा करो सिर्फ चेहरे वाले अंग लो | हम फिर शुरू हो गए कान , नाकसड़ी , गालसड़ी , आँखसड़ी , भौ ---- स्यापा ये क्या बोल दिया छी छी , थू थू , राम राम | यहाँ हम वो शब्द बोल कर हैरान परेशान कि हमारे मुंह से ये क्या निकल गया वहां दोनों दादा लोग हँस हँस लोटपोट हुए जा रहें थे | साथ में मुझे चिढ़ाते जा रहें थे तुमने गाली दी |
हमारे बनारसी संस्कारी घर में मेरे बाप चाचा को भी गालियां देने की मनाही थी | घर के बच्चे तो छोडो पडोसी का बच्चा भी गाली दे दे तो पापा चाचा लोग उन्हें भी डांट देते थे | ऐसे घर की मुझ मासूम पर क्या बीत रही होगी समझ ही सकते हैं | तभी छोटे चाचा आ गए हमने झट दोनों दादा लोगों शिकायत उनसे लगाते पूरा किस्सा सुनाया |
पहली बार में तो उनकी भी हँसी निकल गयी | छोटके दादा को उन्होंने डांट लगायी लेकिन हँसते हँसते | और मैं छुटकी सी रुआंसी सा मुंह बनाये सोचती रही भला इसमें मजाक और हँसी वाली बात क्या हैं |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.5.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4435 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
सुंदर संस्मरण।
ReplyDeleteबेहद सुखद गुजरा हमारी पीढ़ी का बचपन
ReplyDeleteवो भी क्या दिन थे।
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण।