सूत ना कपास जुलाहों में लट्ठम लट्ठा | वैवाहिक बलात्कार पर अभी कानून बनने की सोच भी दूर दूर तक नहीं हैं और यहाँ पुरुषो मे ऐसी खलबली मची हैं जैसे कल कानून बना और परसो इनकी पत्नियां इन्हे जेल डलवा देंगी | कितनी बार लोगों को कहा कि पत्नी से बना कर रखो उनके साथ प्रेम से रहें लेकिन लोग सुनते नहीं | अब देखिये उन सबका कितना बुरा हाल हैं | शायद पत्नी के प्रति किये खुद के गलत काम सबको याद आ रहें हैं और उनके परिणाम भी |
चलिए ये तो मजाक की बात रही लेकिन वास्तव में ये कानून बन भी गया तो जमीन पर क्या इसका कोई भी असर दिखाई देगा | घरेलू हिंसा कानून से समाज में पत्नियों के प्रति हो रही शारीरिक और मानसिक हिंसा पर कितनी रोक लगी उसकी वास्तविकता हम देख ही रहे हैं |
आज भी ज्यादातर मामले पुलिस के पास शिकायत के रूप में पहुंचते ही नहीं हैं और ना उनकी कोई काउंसलिंग होती हैं | ये तब हैं जब इस कानून में पहली दूसरी बार में सजा का कोई प्रावधान नहीं हैं | सजा का प्रावधान इसलिए ही नहीं रखा गया क्योकि सभी को पता था तब एक भी स्त्री पुलिस में शिकायत के लिए नहीं आयेगी | हमारी पारिवारिक संरचना और सामाजिक सोच ऐसी हैं कि पत्नी के प्रति पति या ससुराल का हिंसक व्यवहार विवाह के एक अंग के रूप में सामाजिक मान्यता के साथ सबको स्वीकार हैं |
जो समाज हिंसक पति और ससुराल वालों को दो गलियां दे कर स्त्री को ही बर्दास्त करने की सीख देता हैं उस समाज में वैवाहिक बलात्कार जैसी चीज का तो अस्तित्व ही नहीं माना जाता | जिस कानून में पति को सजा का प्रावधान की बात की जा रही हैं उस कानून का कितनी पत्नियाँ उपयोग करेंगी जिनका अपना और बच्चो जीवन पति पर ही निर्भर हैं |
तमिलनाडु में अपनी ही बेटी के बलात्कार के केस में सजा काट रहे पिता को छुड़ाने के लिए बच्ची की माँ , अपराधी की पत्नी कोर्ट को दस सालकी सजा पूरी करने के बाद छोड़ देने की अपील करती हैं | किसको लगता हैं ये पत्नियां अपने पति के ख़राब व्यवहार के लिए कोर्ट जायेंगी |
जिस समाज में सामान्य बलात्कार को नेतागण लडके हैं गलती हो जाती हैं कह कर छोटा बना देते हैं उस समाज में वैवाहिक बलात्कार शब्द सिर्फ एक मजाक का मुद्दा हैं | जिस देश में दिल्ली पुलिस महकमा एक स्टिंग ऑपरेशन में कहता हैं इज्जतदार लडकिया बलात्कार के बाद चुपचाप घर बैठ जाती हैं और पुलिस स्टेशन शिकायत के लिए आती हैं वो असल मे झूठी और ब्लैकमेलर हैं और पैसे की लिए आती हैं | देश का ऐसा पुलिस महकमा वैवाहिक बलात्कार की शिकायत लिख लेगा |
जिस देश की न्याय व्यवस्था कहती हैं कि पति को शारीरिक संबंध बनाने से रोकना पति के प्रति क्रूरता हैं वो वैवाहिक बलात्कारों के केस में न्याय करेगा | जिस देश के न्याय व्यवस्था में क्रूरतम तरीके किये बलात्कारों पर सजा देने में बरसो लग जाते हैं | जिन आदालतों अस्सी प्रतिशत से ज्यादा बलात्कार के अपराधी सजा ही नहीं पाते जो बाइज्जत बरी हो जाते हैं | आप खाली कल्पना करो कि वैवाहिक बलात्कार के केस का क्या अंजाम होगा वहां पर |
घरेलु हिंसा पर एक विज्ञापन आता हैं घंटी बजाओ मतलब किसी पडोसी आदि के घर से स्त्री के पीटे जाने का शोर आ रहा हैं तो घंटी बजा कर उसकी मदद करने का प्रयास कीजिये | पता नहीं कितने लोगो ने अपने किसी पडोसी या जानने वाली महिलाओं की मदद ऐसे की हैं लेकिन कानून के जानकार पुरुष उस तर्ज कह रहें हैं कि आपका पडोसी आपकी शिकायत करके आपको अपनी ही पत्नी के बलात्कार के केस में जेल मे डलवा देंगे , इस कानून के बनने के बाद |
अब कानून की जानकार तो नहीं हूँ जरा बताइये कि कितने कानून में ये प्रावधान हैं कि पीड़ित और उसके करीबी परिवार के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति जिसका मामले से कोई संबंध ही नहीं हैं आपके खिलाफ पुलिस में चला जाएगा बल्कि कोर्ट में आपको सजा भी दिलवा देगा | इस तरह की कल्पनाए करके इस कानून के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा हैं |
वास्तव में जब इस कानून की बात हुयी तो बातचीत का मुद्दा , चर्चा का विषय ये होना चाहिए था कि विवाह में बेडरुम के अंदर स्त्री की कितनी चलती हैं | उसकी इच्छा को कितना सम्मान दिया जाता हैं | उसकी जरूरतों , सोच कष्ट आदि का कितना ख्याल रखा जाता हैं | उसकी जगह चर्चा हैं विवाह संस्थान खतरे में हैं पुरुष खतरे में हैं | घूमफिर के बात पुरुष पर शुरू होती हैं ख़त्म भी क्योकि किसी विवाहमे स्त्री होती ही कहाँ हैं |
मैं खुद इस कानून के खिलाफ हूँ हमारे समाज देश के लिए ये कानून भद्दे मजाक से ज्यादा कुछ नहीं होगा | कानून की किताब में शो ऑफ़ से ज्यादा कुछ हैसियत न होगी इसकी कि देखो समानता के लिए हमारे पास ये एक और कानून हैं | जब अपराधी और पीड़ित दोनों तय करके बैठे हैं कि कोई अपराध होता ही नहीं तो आप सजा किसको दिलायेंगे |
सटीक विश्लेषण । कानून है लेकिन उसे मानता कौन है ।
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