June 26, 2022

कुछ नया सीखना और हमारा पूर्वाग्रह

 जब भरतनाट्यम कॉलेज जाना शुरू किया तो कुछ महीने बाद ही एक पारसी महिला भी वहां सीखने आई ,  मुझे सुन कर आश्चर्य हुआ ये क्या और कैसे सीखेंगी | क्योकि किसी कॉलेज में सिर्फ डांस करना नहीं सिखाया जाता बल्कि ढेर सारा ग्रंथीय ज्ञान भी दिया जाता हैं |  बच्चो की बात  और होती है पहले से कोई  भावना नही होती है तो वो सभी चीजे आसानी से सीख लेते है ।


 लेकिन  बड़े  होने पर पहले से भरा ज्ञान और  सोच हमारे कुछ  नया सीखने के आड़े आता है । तो पता था कि मुंबई जैसे जगह में पले  बढे के लिए यह एक मुश्किल काम होगा | थोड़ा बहुत संस्कृत पढ़े हम लोग के लिए संस्कृत के सैकड़ों श्लोकों को याद करना और समझना ही मुश्किल हो रहा हैं इनके लिए तो और भी मुश्किल होगा |

एक  सवाल अपने कॉलेज में अपने मैम से भी किया , ये तो धार्मिक कहानियों को भी नहीं जानती ये कैसे कृष्ण, राधा , शिव  आदि भगवानों के भावों को कैसे पकड़ेंगी उनकी कहानियों पर  कैसे नृत्य करेंगी |मेरी चिंता सही साबित हुए और उनके लिए उन श्लोको को पढ़ना तक मुश्किल  था | 

फिर वो भाषा को लेकर सवाल करने लगती ऐसा क्यों हैं वैसा क्यों हैं , इतने लंबे शब्द क्यों हैं , सारे शब्द एक साथ क्यों लिखे हैं आदि आदि | एक बार मैंने भी टोका आप इंग्लिस  को लेकर भी ऐसे ही सवाल करतीं थी कि कोई शब्द साइलेंट क्यों हैं या उनका उच्चारण अलग अलग जगह अलग अलग क्यों हैं , तो वो बड़ा तगड़ा बुरा मान गई |  कई बार फिजूल की टिप्पणियां वो धार्मिक चीजों पर कर जाती | मात्र एक महीने में ही उन्होंने आना बंद कर दिया |


ऐसा नहीं था कि वो दूसरे धर्म के होने के कारण नहीं कर पाई | हमारे कॉलेज में एक केरल की ईसाई  विद्यार्थी भी थी | वो बचपन से ही भरतनाट्यम सीख रहीं  थी केरल में ही अपने गुरु से  लेकिन उनके पास डिग्री नहीं थी | विवाह के बाद मुंबई आ कर वो दूसरे शैली का भरतनाट्यम सीखीं ताकि डिग्री ले सकें और पांच साल में बी ए और एम ए करके निकली |

हिन्दू ना होने के बाद भी हिन्दू धार्मिक चीजों को लेकर उनकी जानकारी ठीक ठाक थी  और वो कभी कोई बेकार के सवाल भी नहीं करती | साफ था उनको बचपन से ये सब सीखा दिया था उनके गुरु ने , क्योकि दक्षिण भारत में किया जाने वाला भरतनाट्यम पूरी तरीके से धार्मिक होता हैं | कॉलेज आ कर उन्होंने वेद , पुराण , रामायण , महाभारत को कोर्स में भी पढ़ा |

 लेकिन उनका सारा ज्ञान किताबी और सुनी गई बातों से था ना उनका विश्वास उनमे था और ना वो उसके पीछे के आध्यात्म और भावों को महसूस कर सकती थी | यही कारण हैं कि वो इन पर किसी भी तरह की चर्चा में भाग नहीं लेती थी | लेकिन  उन्हे जो आना चाहिए  था वो बहुत  अच्छे से आता था और  वो था भरतनाट्यम।  

3 comments:

  1. बहुत से लोग फर्निचर की तरह होते हैं, एक बार इस आकार में ढाल दिया गया, बस उसी में ढल गए। साल बात जाए, पीढ़ियाँ बीत जाएँ फर्निचर जस का तस रहता है।

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  2. यानि कि आप भारतनाट्यम की ज्ञाता भी हैं । शब्दों को अपनी उंगलियों पर नचाती हैं ।

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  3. I am very thankful to you for providing such a great information. It is simple but very accurate information.

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