शेल्डन सिर्फ नौ साल में ही हाई स्कूल में पढ़ने वाला तेज बुद्धि का विशेष बच्चा हैं | विज्ञानं पढ़ने वाला शेल्डन ईश्वर में विश्वास नहीं रखता लेकिन उसकी माँ एक बहुत ही धार्मिक महिला हैं | जब उनके करीबी की सोलह साल की बेटी की दुर्घटना में मृत्यु हो जाती हैं तो उनका विश्वास ईश्वर से कुछ हिल जाता हैं |
पहले वो घर में ही प्रार्थन की जगह बना और ज्यादा ईश्वर की आराधना में लग जाती हैं ताकि ईश्वर के प्रति उनक आस्था और मजबूत हो लेकिन कुछ काम नहीं बनता | वो इस मौत को गॉड प्लान अर्थात ईश्वर की मर्जी और लीला कहती हैं लेकिन खुद उन्हें उस बात पर यकीन नहीं होता हैं | उसके बाद जब उस दुःखी माँ को सांत्वना का कार्ड भेजते रिवाज के अनुसार ये लिखना चाहती हैं कि चिंता न करो कि मृत आत्मा यहाँ से बेहतर जगह अर्थात ईश्वर के पास हैं तो उनके हाथ कांप जाते हैं और वो ये नहीं लिख पाती | कहतीं हैं भला एक बच्चे के लिए अपने माँ बाप के साथ पास से बेहतर जगह और कौन सी हो सकती हैं , ईश्वर की जगह भी नहीं |
ये टूटती आस्था उन्हें तोड़ने लगती हैं और वो बहुत दुःखी हो जाती हैं और हर तरह की प्रार्थना छोड़ देतीं हैं | शेल्डन के लिए उसकी माँ ही दुनियां में सब कुछ हैं क्योकि उसके तेज बुद्धि उसे बाकियों का दुश्मन बना चुकी हैं | उसे माँ का दुःख देखा नहीं जाता और उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके ईश्वर में विश्वास को फिर से बनाने का प्रयास करता हैं |
कहता हैं आपने कभी सोचा हैं अगर इस यूनिवर्स में ग्रेविटी अगर एक प्रतिशत भी कम होती तो हम अंतरिक्ष में बिखरे कण से ज्यादा कुछ नहीं होते | यदि ग्रेवेटी एक प्रतिशत ज्यादा होती तो दुनिया एक ठोस पत्थर होती जीवन नहीं | सब कुछ इतना सही और परफेक्ट हैं कि लगता हैं जैसे किसी रचनाकार ने ही इसको बनाया हैं | ईश्वर में आस्थाहीन अपने बच्चे के इस प्रयास से माँ अपने प्रति उसके प्यार की गहराई को महसूस कर आराम पाती हैं |
ईश्वर में आस्थावान कई बार जीवन में घट रही घटनाओ के कारण ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को टटोलता हैं या उससे दूर होता हैं लेकिन अंत में उसे नशे की तरह वापस अपना लेता हैं क्योकि उसके बाहर उसे राहत नहीं मिलती | ईश्वर में आस्था सुविधानुसार होती हैं | खुद झूठ बोल रहें , पाप कर रहें , लोगों को धोखा दे रहें , लोगों के साथ गलत कर रहें हैं तो कण कण में रहने वाला सबके कर्मो का हिसाब रखने वाला , सबको हर समय देखने वाला ईश्वर गायब हो जाता हैं | नरक ,जहन्नुम का द्वारा , ईश्वर या क़यामत के दिन की सजा ,अगला जनम ख़राब होना सब भूल जाता हैं |
क्योकि ईश्वर आस्थावानों के दिमाग में होता हैं जब अपना लाभ , फायदा , धन लालच हो तो दिमाग तुरंत ईश्वर वाला कमरा बंद कर देता हैं और बिना डर लोग हर तरह का पाप करते हैं | बाकि सामान्य दिनों में ईश्वर फिर सबको सब जगह दिखने लगते हैं | सोचिये कि सभी आस्थावान वास्तव में अपने अपने ईश्वर में पूरा विश्वास रखते तो ये दुनिया स्वर्ग से कम ना होती पाप , गलत , अपराध से मुक्त होती | इस दुनियां में इतना दुःख , दर्द , अभाव , अपराध इसलिए ही हैं क्योकि लोगों को ईश्वर में ठीक से पक्का विश्वास नहीं हैं |
वैसे जाते जाते शेल्डन के उस तर्क का भी जवाब दे दूँ की दुनियां को जीवन जीने लायक सही परफेक्ट बनने में लाखो साल लगे हैं ये कुछ दिनों का काम नहीं हैं | बिंग बैंग से जल और वनस्पति आने तक , पहले अमीबा से डायनासोर आने तक और जानवर से इंसान बनने का सफर लाखो करोड़ो सालों का हैं | यदि कोई रचनाकार होता तो ये दुनिया छः , आठ , दस दिन में वैसे ही बनती जैसा कि विभिन्न धार्मिक पुरस्तकों में वर्णित हैं |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 21 जून 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-6-22) को "पिताजी के जूते"'(चर्चा अंक 4467) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आस्था और अनास्था के फेर में न पड़ते हुए बस यही मानती हूँ कि कोई तो शक्ति है जो सबमें संतुलन बनाये रखती है ।
ReplyDeleteअंशुमाला दी, कोई तो शक्ति है जो इस प्रकृति तो चला रही है।
ReplyDeleteहम किसी न किसी शक्ति से तो बंधे हुए हैं ही । विचारणीय पोस्ट ।
ReplyDeleteचिंतनपरक पोस्ट!
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