कुछ महिन पहले मुंबई की जिस 60 मंजिला बिल्डिंग में आग लगी वो मेरे बिल्डिंग से दो तीन बिल्डिंग बाद ही हैं | पतिदेव बस ऑफिस के लिए निकले ही थे कि फोन किया की खिड़की से बाहर देखो कितनी भयानक आग लगी हैं | खिड़की के बाहर देखा तो सब ब्रिज पर खड़े अपना अपना मोबाईल लिए फोटो वीडियों बना रहें थे दुर्घटना का | हमारे पतिदेव क्यों पीछे रहते चुकी आज टैक्सी में बैठे थे तो झट से वीडियों कॉल लगा मुझे लाइव दिखाने लगे | हमने डपट कर फोन रखवा दिया |
हम लोग ज्यादा चिंतित नहीं थे इस दुर्घटना के लिए क्योकि बिल्डिंग को तैयार हुए भले दस साल हो गया था लेकिन इतनी बड़ी जगह में एक्का दुक्का लोग ही रहते थे | अब कह नहीं सकते कि फ़्लैट बिका नहीं था या सबके काले पैसे संपत्ति में निवेश में वहां ज्यादा लगे था तो रहने वाले कम थे | यही कारण हैं कि आग पर बहुत जल्दी काबू पा लिया गया क्योकि लगभग सभी फ़्लैट खाली ही रहे होगे | दुर्भाग्य ही कहें की एक व्यक्ति की आग से बचने के चक्कर में गिर कर हो मौत गयी | मृत व्यक्ति या तो फ़्लैट की देखभाल करने वाला नौकर रहा होगा या इंटीरियर का काम चल रहा होगा तो कारीगर रहा होगा |
इतनी बड़ी आग देख मुझे आश्चर्य हुआ की आग से बचाव के लिए इसमें अच्छे खासे सिस्टम लगे थे फिर आग इतनी बड़ी कैसे हो गयी | दस साल पहले इसका विज्ञापन पतिदेव के मित्र की विज्ञापन कंपनी ने ही बनाया था तो पता चला तब इसमें तीन या चार बीएचके के फ़्लैट की कीमत करीब बारह करोड़ से शुरू हैं | ख़ास जैन लोगों के लिए बिल्डिंग तैयार की गयी हैं इसलिए आर्टिफिसियल घास लगाए गए हैं |
आग से बचाव के लिए भी दुनियां जहान का सिस्टम लगा था | लेकिन अब पता चल रहा हैं कि सिस्टम काम ही नहीं कर रहा था | सोचिये लाखो रुपये इन महंगे इमारतों की मेंटेनेंस के लिए फ़्लैट मालिकों से वसूला जाता हैं और इनकी ये हालत हैं | आम इमारतों में तो कोई सिस्टम ही नहीं होता हैं तो उनकी क्या हालत होगी |
कुछ साल पहले जब मंत्रालय में आग लगी थी तो फायर ब्रिगेड वाले बड़े सक्रीय हुए थे और लगभग हर ईमारत का निरिक्षण किया गया था | हमारी बिल्डिंग की निर्देश दिया गया था कि सीढ़ियों पर बने जालीदार बाहरी दिवार को तोड़वा कर लोहे के ग्रिल लगवाओ और जिसमे खुलने वाली खिड़की हो | ताकि आग लगने पर लोगों को बाहर निकालने में आसानी हो और धुंआ भी आसानी से बाहर निकले ताकि लोगों का सीढ़ियों से उतरते समय दम ना घुटे |
हमारी बिल्डिंग ने ये काम तुरंत कर दिया लेकिन उन खिड़कियों पर ताला लगा रहता हैं | एक बार मैंने टोका की इनमे ताले लगे हैं तो क्या फायदा किसी को एमरजेंसी में बाहर निकलना होगा तो पहले ताला तोड़ेगा अपने सर से फिर निकलेगा | तो कहते हैं तोड़ने की क्या जरुरत हैं पांचवी मंजिल वाले के पास चाभी हैं उससे मांग कर खोल लेगा | अब बताइये इस महान रिप्लायी का कोई जवाब हैं |
हमने थोड़ी देर इस मूर्खता पर बहस कि की आदमी आग लगने या अन्य दुर्घटना पर नीचे जा कर बाहर निकलने का प्रयास करेगा या ईमारत में और ऊपर जा कर और समय बर्बाद करके खुद को और खतरे में डालेगा | मूर्खो से वैसे भी बहस करना बेकार हैं हमने भी मन ही मन कहा मरो मूर्खो हमें क्या हैं | हमने तो अपने घर में ही खुलने वाली खिड़की लगा रखी हैं दूसरी मंजिल से कूद भी गए तो बचने के चांस हैं | जो ग्रिल वाले जेल में पड़े हैं और कूदने पर मरने वाली स्थिति में हैं वो समझे |
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