एक जुलाई से कोई लेबर कानून लागू हुआ है जिसमे काम के घंटे आठ से बढ़ा कर बारह तक किया जा सकता है कंपनियों द्वारा। हमे आश्चर्य इस बात पर है कि प्राइवेट कंपनियों मे काम के घंटे आठ थे ही कब । हम तो अपने घर मे बंदे को दस से बारह घंटे ही काम करते देख रहे है जमाने से । आस पास जितने भी नीजि कंपनियों मे काम कर रहे है लोग उन सबका भी यही हाल है । दस घंटे से कम शायद ही कोई काम करता हो । थोड़ा-बहुत जो रात के समय और इतवार को आराम मिलता था उसमे इस लाॅकडाउन मे चले वर्क फ्राम होम ने सेंध
लगा दी ।
अब तो ये हालत है कि कोई कभी भी फोन कर देता है ना दिन रात का फर्क है और ना छुट्टियों का । लेकिन ये सब कंपनीज के कारण नही बल्कि लोगो के काम करने की आदत की वजह से है । जब तक ऑफिस जाना होता था तो लोगो कि मजबूरी होती थी कि काम ऑफिस मे ही खत्म किया जाये लेकिन लाॅकडाउन ने आदत खराब ईर दी । कुछ लोग निशाचर होते है दिन मे देर ती सोते है और देर रात काम करते है । अब अकेले का काम हो तो करो किसने रोका है लेकिन काम के बीच मे दूसरो की भी जरूरत होती है तो लगा दिया फोन बिना इस फिक्र के कि बाकि लोग सो रहे होगे या छुट्टी मे परिवार के साथ होगे ।
हम लोग दस साढ़े दस तक सोने वाले लेकिन कुछ लोग ग्यारह बारह बजे भी फोन की घंटी बजा देंगे । शुरू मे तो पतिदेव फोन उठा लेते थे अरे जरूरी काम होगा , उसका काम अटक जायेगा बोल के । बाद मे मैने डांटना शुरू किया फोन लेते रहोगे तो लोग ऐसे ही अपनी सुविधानुसार काम करेगें और तुम्हे परेशान करेगे । फोन लेना बंद कर दो तो झक मार के लोग समय से काम करेंगे । बाद मे पतिदेव ने यही करना शुरू किया तब लोगो की आदत सुधरी ।
कजन बता रही थी कि उसके ऑफिस मे तो किसी कि पत्नी ने एच आर को फोन कर इस बात की शिकायत कर दी थी कि लोग देर रात या छुट्टी के दिन फोन कर परेशान करते है ये सब तुरंत बंद किया जाये । पूरे ऑफिस के लोगो को मेल पहुँच गया फिर लोग उसे दिन मे भी फोन लगाने मे डरने लगे ।
हमने पतिदेव को ये बात बताते कहा कि देख लो हम कितने तो अच्छे है ऐसा ख्याल भी हमको नही आया 😂😂।
आठ घंटे का ऑफिस तो बस सरकारी कर्मचारियों के लिए होता है । मै बिटिया को एक क्लास ले जाती थी जिसके बगल मे ही एमटीएनएल का ऑफिस था । बिटिया का क्लास पांच बजे शाम शुरू होता था । पांच बजके एक मिनट होता था और एमटीएनएल के गेट से भीड़ का रेला निकलता था । हम सोचते थे ये लोग दरवाजे पर ही खड़े हो कर पांच बजने का इंतज़ार करते होंगे । वरना पर्स टिफिन पेन संभालते सीढी लिफ्ट से आते कुछ तो समय जाता । इनके लिए आठ घंटा ऑफिस टाइम होता होगा काम का नही । बस किसी तरह ऑफिस मे आठ घंटा गुजारो और निकल लो काम तो पहले ही बंद कर देते होगे ।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-7-22) को "बदलते समय.....कच्चे रिश्ते...". (चर्चा अंक 4486) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सारा ढर्रा ही गड़बड़ा गया-सा लगता है....
ReplyDeleteजी बात तो सही है। प्राइवेट नौकरियों में अलिखित नियम होता है कि घड़ी न देखें बल्कि रिजल्ट दें। 24 घंटे चलने वाले न्यूज चैनलों में अक्सर तय घंटों से ज्यादा काम करना पड़ता है। सार्थक चर्चा के लिए आपको सादर बधाई।
ReplyDeleteLockdown में सब बदल गया , जॉब रिश्ते तक अब बदल गए लगता है।
ReplyDeleteसटीक लेख।
ReplyDeleteचिंतन परक।