सरकारी काम की रफ़्तार कैसी होती हैं और कैसे संसाधनों की बर्बादी होती हैं ये हम सब जानते है |हमारे यहां जून जुलाई तक गटर की सफाई मरम्मत आदि का काम चलता रहता है । हमरी ही बिल्डिंग के आगे नये गटर बनाने का काम शुरू हुआ और उसके लिए एक बहुत बड़ा गढ्ढा खोदा गया । बरसात आने तक काम पूरा नही हुआ और वो गड्ढा बरसाती पानी से लबालब भर गया ।
हिसाब से गटर बनाने का काम तो बहुत पहले शुरू हो कर मई में ही बंद हो जाना चाहिए था | देर से शुरू हुआ तो उसके बाद भी जून के पहले हफ्ते में तेज बारिश की चेतावनी मौसम विभाग पहले ही दे चुका था और बरसात जोर शोर से हुयी भी | गड्डे को भरने का काम भी जून के पहले हफ्ते में ही कर देना चाहिए था लेकिन वो भी नहीं हुआ | गड्ढे को भरने की शुरुआत रात के साढ़े बारह बजे हुआ जब एक मजदूर ने किनारे पर रखे मलबे को पानी भरे गड्ढे में गिराया | इतने जोर की आवाज से सब जग गए किसी अनहोनी की आशंका में | बाहर देखा तो एक मात्र मजदूर तब छोटे बोर में भर के रखे मलबे को उठा कर पानी में फेक रहा था एक एक करके |
इस गड्ढा भराई के काम में छपाक गुडुप छपाक गुडुप की आवाज एक तो सोने नहीं दे रही थी उस पर से ये लग रहा था कहीं वो शराब पी कर तो इतने रात में काम करने नहीं आया हैं | इतने गहरे पानी से भरे गड्ढे के मुहाने फिसलन कीचड़ में जैसे वो खड़ा था मुझे तो आँख बंद करते उसके गिर कर उसमे डूब जाने के ख्याल ही बार बार डरा रहें थे | इतने से मलबे से होना कुछ था नहीं और हुआ भी नहीं |
अगले दिन एक नए डर का सामना हुआ | एक ट्रक भरा मलबा सीधे उस गढ्ढे में उलटा जा रहा था बिना ये सोचे कि पानी की पाइप और बिजली की तारे पानी के अंदर बिलकुल बीच में हवा में लटक रही हैं | उन पर मलबा सीधा गिरा और वो टूटी तो नयी मुसीबत आएगी | लेकिन असली खतरों के खिलाड़ी इन बातों की परवाह नहीं करते कि बिजली की तारे टूटी तो गड्ढे के पानी में करेंट आ सकता हैं | हमें तो लगा रहा था जैसे फ़ाइनल डेसटीनेसन फिल्म की शूटिंग देख रहें हो | हम और बिटिया ऊपर से आगे की कहानी के अंदाजे लगाते रहें |
अगले तीन दिन एक दो ट्रक आते और फिल्म की शूटिंग चलती रही जबकि एक ही दिन में ये सारा काम हो सकता था | हम लोग घर पर सभी चीजे सुबह की चार्ज करके रख लेते और पानी भी स्टोर कर लेते | अंततः भगवान भरोसे वाला काम बिना किसी अनहोनी के समाप्त हुआ | गिट्टी डाल फुटपाथ वाली टाइल्स डाल दी गयी | बचे हुए काम के लिए गटर की बड़ी बड़ी पाइप किनारे रखी हुयी हैं | बरसात जाने के बाद इसे फिर से खोदा जायेगा फिर से इस काम को पूरा करने में महीनो लगेंगे और लागत कितनी बढ़ेगी आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिये |
वैसे आम लोग भी कम खतरों के खिलाड़ी नहीं हैं | वो गड्ढा बस मलबे से भरा ही था और पानी अभी भी उसके ऊपर थोड़ा था रात में कोई आ कर वही पर अपनी कार खड़ी कर गया और दो तीन बाइक भी | ये सब तब हुआ जब घाटकोपर में उस कार के पानी वाले गढ्ढे में कूद कर आत्महत्या करने का वीडियों हर जगह फ़ैल चुका था | हमारा देश सच में राम भरोसे ही चल रहा हैं |
गड्ढा खोदो फिर गड्ढा भरो ..... यही काम तो राह गया है । सरकारी हर काम ऐसे ही होता है ।किसी को पैसे का दर्द नहीं होता । पहले सड़क बन जाएगी फिर तारें या पाइप डालने के लिए खोद दी जाएगी । रोचक शैली में लिखा है ।
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